मुंबई: 18 जुलाई, 2019 को समाप्त हुए तीन वर्षों में बारिश से संबंधित प्राकृतिक आपदाओं, जैसे कि चक्रवात, बाढ़ और भूस्खलन के कारण 6,585 लोगों की जान गई है, जैसा कि 23 जुलाई, 2019 को लोकसभा में दिए गए एक सरकारी जवाब में बताया गया है। यह हर साल औसतन लगभग 2,000 लोगों की मौत का आंकड़ा है।

बिहार और असम राज्यों में बाढ़ से 170 से अधिक लोगों की मौत हुई है। बाढ़ से करीब 1 करोड़ लोग प्रभावित हुए हैं, जैसा कि इंडिया टुडे ने 24 जुलाई, 2019 की रिपोर्ट में बताया है।

असम के गोलाघाट जिले के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में 13 जुलाई 2019 से 204 पशुओं के मरने की सूचना है, जिसमें 15 गैंडे शामिल हैं।

असम और बिहार राज्यों में हर साल भारी बारिश और नदियों के बहाव के कारण बाढ़ का खतरा होता है।

अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी, ‘नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन’ (नासा) द्वारा जारी की गई उपग्रह छवियों से पता चलता है कि कैसे "ब्रह्मपुत्र नद भारत और बांग्लादेश के कई स्थानों में अपने किनारे को लांघकर बाहर आ गया, जिससे खेतों में भारी बाढ़ आ गई।"

Source: Lok Sabha

वर्ष 2018-19 में वर्षा से संबंधित प्राकृतिक आपदाओं में हुई कुल मौतों 2,045 में से दक्षिणी राज्य केरल में 2018 के जलप्रलय (94 वर्षों में सबसे खराब में से एक) में 477 या 23 फीसदी लोगों की मौत हुई है।

तीन वर्षों में, बिहार में सबसे ज्यादा मौतों की सूचना मिली है ,970 या 15 फीसदी मौतें हुईं - इसके बाद केरल (756), पश्चिम बंगाल (663), महाराष्ट्र (522) और हिमाचल प्रदेश (458) का स्थान रहा है।

सभी मौतों में इन पांच राज्यों की 51 फीसदी की हिस्सेदारी रही है।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इन तीन वर्षों में बारिश से संबंधित प्राकृतिक आपदाओं के कारण 200,000 से अधिक पशुधन की मौत हुई है और 39 लाख से अधिक घरों / झोपड़ियों को नुकसान पहुंचा है।

1 अप्रैल, 2019 और जुलाई, 18, 2019 के बीच वर्षा से संबंधित आपदाओं में 496 लोग मारे गए हैं या दूसरे शब्दों में, रोजाना पांच मौतों का आंकड़ा रहा है। महाराष्ट्र में सबसे अधिक (137) और दूसरे स्थान पर बिहार (78) से मौतों की सूचना मिली है।

64 वर्षों में भारी बारिश और बाढ़ ने 100,000 से अधिक लोगों की जान ली

1953 और 2017 के बीच 64 वर्षों में भारत भर में भारी बारिश और बाढ़ के कारण 107,487 लोगों की मौत हुई है, जैसा कि 19 मार्च, 2018 को केंद्रीय जल आयोग द्वारा राज्य सभा में प्रस्तुत आंकड़ों में बताया गया है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने 17 जुलाई, 2018 की रिपोर्ट में बताया है।

लोकसभा में दिए गए जवाब के अनुसार, "बाढ़ के मुख्य कारणों का आकलन कम अवधि, खराब या अपर्याप्त जल निकासी क्षमता, अनियोजित जलाशय नियमन और उच्च तीव्र वर्षा के रूप में किया गया है।"

आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि भारत की 4 करोड़ हेक्टेयर (12 फीसदी) से अधिक भूमि बाढ़ से ग्रसित है। भारत ने 1980 और 2010 के बीच तीन दशकों में 431 प्रमुख प्राकृतिक आपदाओं को देखा, जिससे मानव जीवन, संपत्ति और संसाधनों का नुकसान हुआ है।

केंद्रीय जल आयोग कहता है, “लगभग 48 फीसदी बाढ़ प्रवण क्षेत्र को तकनीकी और आर्थिक बाधाओं के कारण निम्न से मध्यम परिमाण के बाढ़ के खिलाफ उचित सुरक्षा प्रदान की गई है। बाढ़ की सभी भयावहता से सुरक्षा प्रदान करना संभव नहीं है। ”

भारत 2040 तक गंभीर बाढ़ के जोखिम के संपर्क में लोगों की संख्या में छह गुना वृद्धि देख सकता है – 2.5 करोड़ लोग, जो कि 1971 और 2004 के बीच इस जोखिम का सामना करने वाले 37 लाख लोगों की संख्या से ज्यादा है, जैसा कि साइंस एडवांस में प्रकाशित एक अध्ययन के आधार पर इंडियास्पेंड ने फरवरी 2018 के एक रिपोर्ट में बताया है।

सिर्फ भारत ही नहीं, पूरे दक्षिण एशिया में बाढ़ का खतरा है

नासा ने 18 जुलाई, 2019 को बताया कि भारत, नेपाल, बांग्लादेश और पाकिस्तान (हांगकांग की जनसंख्या) में लगभग 70 लाख लोग विस्थापित हो चुके हैं या जुलाई 2019 के मध्य में बाढ़ से उनका जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है।

Source: NASA Earth Observatory

28 जून (पहले) और 14 जुलाई, 2019 (बाद) में ली गईं उपरोक्त दो छवियां, भारत का पूर्वी क्षेत्र में नदी के किनारों ( गहरा नीला) और बाढ़ के मैदानों से पानी दिखा रहा है। बादल सफेद या सियान में देखे जा सकते हैं और हरे रंग में वनस्पति-कवर भूमि देखी जा सकती है।

नासा की तरह, द इंटरनैशनल चार्टर स्पेस और मेजर डिजास्टर असम राज्य में बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों की पहले और बाद की छवियों को दर्शाते हैं।

दुनिया भर में, चार्टर अंतरिक्ष एजेंसियों और अंतरिक्ष प्रणाली ऑपरेटरों का एक समूह है (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन सहित) जो आपदा निगरानी के लिए उपग्रह चित्र प्रदान करते हैं।

"वैश्विक जलवायु परिवर्तन से दक्षिण एशिया में बाढ़ की आवृत्ति और गंभीरता बढ़ने और कृषि उत्पादन को खतरा होने और छोटे पैमाने पर किसानों के लिए अनिश्चितता बढ़ने की आशंका है, जिनकी आजीविका इन क्षेत्रों में ग्रामीण अर्थव्यवस्था की पूर्ति करता है, उन्हें समग्र जोखिम में कमी के लिए एक एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है, जैसा कि ‘फल्ड रिस्क एसेसमेंट इन साउथ एशिया प्राइऑरटाइज़ फल्ड इंडेक्स इश्युरेंस एप्लिकेशन इन बिहार, इंडिया’, शीर्षक के साथ एक लेख में कहा गया है।

दक्षिण एशिया के शहरों जैसे "ढाका, कराची, कोलकाता और मुंबई (शहरी क्षेत्र जो 5 करोड़ से अधिक लोगों के लिए घर हैं) अगली शताब्दी में बाढ़ से संबंधित नुकसान और पर्याप्त जोखिम का सामना करते हैं," जैसा कि ‘साउथ एशियाज हॉटस्पॉट्स – द इंपैक्ट ऑफ टेंप्रेचर एंड प्रेसिपिटेशन चेंजेज ऑन लिविंग स्टैंडर्ड्स’, शीर्षक के साथ 2018 विश्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है।

जुलाई 2019 के पहले सप्ताह में मुंबई में भारी वर्षा हुई। कुछ हिस्सों में 45 साल में जुलाई में दूसरी सबसे अधिक बारिश हुई, जिसने वित्तीय राजधानी के काम-काज को ठप कर दिया। इस दौरान 16 लोगों की जानें भी गईं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 2 जुलाई, 2019 की रिपोर्ट में बताया है।

जलवायु परिवर्तन से एक विशेष घटना को जोड़ने के लिए व्यापक विश्लेषण की आवश्यकता है। यह स्पष्ट है कि मुंबई और पश्चिमी घाटों पर तीव्र वर्षा की घटनाओं की बढ़ती दर बढ़ते तापमान के कारण है, जैसा कि पुणे के ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी’ में जलवायु वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल ने इंडियास्पेंड को बताया था।

पिछले 100 वर्षों में शहरी भारत में भारी वर्षा की घटनाएं (100 मिमी से अधिक) बढ़ी हैं। 1900 के दशक के बाद से 100, 150 और 200 मिमी से अधिक की घटनाओं की लगातार बढ़ती प्रवृत्ति रही है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 29 अगस्त, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

( मल्लापुर वरिष्ठ विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं। )

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 29 जुलाई 2019 को IndiaSpend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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