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नई दिल्ली: एक नए अध्ययन के मुताबिक, दवा कार्बोटेसिन का एक बेहतर संस्करण उन भारतीय माताओं को बचा सकता है जिनकी प्रसव के दौरान पोस्टपर्टम हेमोरेज ( अत्यधिक रक्तस्राव ) के कारण मृत्यु की संभावना होती है।

वर्तमान में, विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की ओर से प्रसव के दौरान रक्तस्राव को रोकने के लिए ऑक्सीटॉसिन ( रासायनिक रुप से कार्बोटेसिन से मिलता-जुलता ) की सिफारिश की जाती है। लेकिन ऑक्सीटॉसिन को 2-8o सी पर संग्रहीत और परिवहन किया जाना चाहिए, जो भारत सहित कई देशों में करना मुश्किल है, जिससे इस दवा तक पहुंचने में कई महिलाएं वंचित रह जाती हैं, जैसा कि 27 जून, 2018 को न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित डब्ल्यूएचओ के अध्ययन में कहा गया है। कार्बोटेसिन के नए रूप को प्रशीतन की आवश्यकता नहीं होती है और प्रशीतन की जरुरत वाले ऑक्सीटॉसिन के विपरीत ( व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है, लेकिन हाल ही में निजी निर्माताओं के लिए निर्माण और बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया था ) 30o सी और 75 फीसदी सापेक्ष आर्द्रता पर संग्रहीत कम से कम तीन वर्षों के लिए इसकी प्रभावकारिता बरकरार रखती है। यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि 37,387 भारतीय स्वास्थ्य उप-केंद्रों ( मूल सरकारी संचालित क्लीनिक ) में से 24 फीसदी में बिजली नहीं है। 70 फीसदी के साथ झारखंड सबसे बद्तर स्थिति में है। इसके बाद बिहार (64 फीसदी) और जम्मू-कश्मीर (63 फीसदी) का स्थान है।

डब्ल्यूएचओ के शोधकर्ताओं ने 29,245 महिलाओं का अध्ययन किया, जिन्होंने 10 देशों में ( अर्जेंटीना, मिस्र, भारत, केन्या, नाइजीरिया, सिंगापुर, दक्षिण अफ्रीका, थाईलैंड, युगांडा और यूनाइटेड किंगडम ) के 23 अस्पतालों में बच्चों को प्राकृतिक तरीके से जन्म दिया था, और पाया कि गर्मी-स्थिर कार्बोटेसिन सुरक्षित है और पोस्टपर्टम हेमोरेज को रोकने में ऑक्सीटॉसिन के रूप में प्रभावी है।

सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में खून बहने को रोकने लिए दवा की क्षमता का होना महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) में 22 फीसदी की गिरावट ( 2011-13 में 167 से 2014-16 में 130 ) के साथ सुधार करने की कोशिश कर रहा है। 2015 विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, एमएमआर ने विकास लक्ष्यों को पीछे किया है, जैसा कि ‘फैक्टचेकर’ ने 19 जून, 2018 को रिपोर्ट में बताया है, और भूटान, इंडोनेशिया, कंबोडिया और बोत्सवाना जैसे देशों से भी पीछे है। श्रीलंका का एमएमआर 30 है, जो भारत से एक चौथाई है।

मातृ मृत्यु दर में सुधार के बावजूद, रक्तस्राव मातृ मृत्यु का सबसे बड़ा सीधा कारण है, जो 2003 और 200 9 के बीच दुनिया भर में 661,000 मौतों के लिए जिम्मेदार है। 19 जून, 2018 को ‘फैक्टचेकर’ ने रिपोर्ट में कहा है कि मातृ मृत्यु के वैश्विक बोझ का 17 फीसदी हिस्सा भारत के सिर पर है और भारत में मृत्यु के प्रमुख कारण रक्तस्राव (38 फीसदी), सेप्सिस (11 फीसदी) और गर्भपात (8 फीसदी) हैं।

एमएमआर को कम करने के लिए ऑक्सीटॉसिन एक महत्वपूर्ण हथियार है, लेकिन दवा को संग्रहीत करने और उपयोग करने के तरीकों में समस्याएं हैं।

ऑक्सीटॉसिन को लेकर संशय

बेलगाम के जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर और अध्ययन के सह-लेखक शिवप्रसाद एस गौदर ने इंडियास्पेंड को बताया, " इस तथ्य के अलावा कि ऑक्सीटॉसिन की प्रभावकारिता भारत भर में कई स्थितियों पर निर्भर करती है। जागरूकता की कमी भी है । ऑक्सीटॉसिन को एक विशिष्ट तापमान और प्रशीतन के रूप में संग्रहीत करने की आवश्यकता होती है। इसलिए, गर्भवती महिलाओं को सही रूप में ऑक्सीटॉसिन नहीं मिल पाता है। "

मातृ नवजात स्वास्थ्य और सुरक्षित गर्भपात पर काम कर रहे एक संगठन कॉमनहेल्थ की अध्यक्ष सुभाषरी ( वह छोटे नाम का उपयोग करती हैं) कहती हैं, "अध्ययन के नतीजों में बहुत सारे संकेत छुपे हैं।"

सुभाषरी कहती हैं, “हालांकि, कार्बोटेसिन लेने के लिए तीन चुनौतियां हैं। एक, अध्ययन से पता नहीं चलता है कि कार्बोटेसिन गंभीर रक्तस्राव (1,000 मिलीलीटर से अधिक) के लिए ऑक्सीटॉसिन के रूप में प्रभावी है, और गंभीर रक्तस्राव को रोकने के लिए कार्बोटेसिन की प्रभावशीलता साबित करने के लिए और अधिक परीक्षण आवश्यक हो सकते हैं। दूसरा यह कि ऑक्सीटॉसिन पेटेंट से बाहर की एक दवा है, जबकि कार्बोटेसिन पेटेंट के नीचे है और इसके महंगा होने की संभावना है। तीसरा यह कि ऑक्सीटॉसिन की तरह ही कार्बोटेसिन के दुरुपयोग की ‘ बड़ी आशंका ’ है।

गौदर बताते हैं कि कार्बेटोसिन की लागत ऑक्सीटॉसिन के करीब ही होगा, क्योंकि डब्ल्यूएचओ का निर्माता के साथ एक समझौता है। वह कहते हैं, " भारत के संदर्भ में, अगले कुछ सालों में, कार्बेटोसिन व्यवहार्य विकल्प के रूप में उभर सकता है और इससे ऑक्सीटॉसिन के सुरक्षित उपयोग को सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक भंडारण और बुनियादी ढांचे की लागत कम हो जाएगी।"

जैसा कि हमने कहा, केंद्र ने निजी कंपनियों द्वारा ऑक्सीटॉसिन फॉर्मूलेशन के निर्माण और बिक्री को रोक दिया। केवल सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी कर्नाटक एंटीबायोटिक्स एंड फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड (केएपीएल) को एक जुलाई, 2018 से घरेलू उपयोग के लिए ऑक्सीटॉसिन का निर्माण करना था। हालांकि, स्वास्थ्य चिकित्सकों, शोधकर्ताओं, स्वास्थ्य कार्यकर्ता और विरोधियों के विरोध के बाद 2 जुलाई, 2018 को प्रतिबंध स्थगित कर दिया गया था।

सुभाषरी कहती हैं, "ऑक्सीटॉसिन की तरह कार्बोटेसिन के दुरुपयोग की भी आशंका है। दुरुपयोग की वजह से ही सरकार ने ऑक्सीटॉसिन को प्रतिबंधित कर दिया था।" ऑक्सीटॉसिन का दुरुपयोग डेयरी उद्योग में व्यापक है, जहां लोग सुविधाजनक समय पर दूध के लिए पशुओं को ऑक्सीटॉसिन इंजेक्शन देते हैं। इस तरह के हार्मोन का उपयोग सब्जियां, जैसे कि कद्दू, तरबूज, बैंगन, गोर और खीरे के आकार को बढ़ाने के लिए भी किया जाता है, जैसा कि जैसा कि हिंदुस्तान टाइम्स ने 14 जुलाई, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

विशेषज्ञों का कहना है कि अलग-अलग तरह से दुरुपयोग के अलावा, सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में कार्बोटेसिन को डालने में चुनौती होगी।

देश भर में कार्बोटेसिन को फैलाने की चुनौतियां

एक स्वतंत्र स्वास्थ्य शोधकर्ता नितिन बाजपेई ने इंडियास्पेंड को बताया, "सबसे बड़ी चुनौती कार्बोटेसिन के उपयोग को प्रायोगिक ढंग से करना और भारत के सभी राज्यों में इसे फैलाना है। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश की आबादी तमिलनाडु की आबादी से बहुत अलग है। इस प्रकार, एक राज्य में कार्बोटेसिन के साथ प्रयोग कर रहे कर रहे हैं तो पूरे भारत के लिए परिणामों के सामान्यीकरण में समस्याएं आएंगी । "

कार्बोटोसिन का प्रशासन और परिणामों की निगरानी, विशिष्ट चुनौतियां हैं।

बाजपेई कहते हैं, "सरल शब्दों में, एक टीका या इंजेक्शन प्रभावी हो सकता है, लेकिन अगर इसे सही तरीके से प्रशासित नहीं किया जाता है और डेटा सही ढंग से एकत्र नहीं किया जाता है और पायलट परीक्षणों के नतीजे प्रभावी रूप से लाभदायक नहीं होते हैं, तो इसका वांछित प्रभाव नहीं होगा। ज्यादातर बड़े पैमाने पर अध्ययन में इन परिचालन मुद्दों ध्यान नहीं दिया जाता । क्लीनिक में एक परीक्षण और उसे फिर बड़े पैमाने पर लागू करने में कई तरह की सावधानियां जरूरी हैं। "

बाजपेई यह भी कहते हैं कि सहायक नर्स / मिडवाइव (एएनएम),सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की अगली पंक्ति, को प्रसव में अत्यधिक रक्तस्राव को संभालने के लिए प्रशिक्षित नहीं किया जाता है। वे सवाल उठाते हैं, "यदि वे सामान्य प्रसव को संभाल सकते हैं, तो उन्हें पोस्टपर्टम हेमोरेज को संभालने के लिए प्रशिक्षित क्यों नहीं किया जा सकता है? अगर डॉक्टर और नर्स उपलब्ध नहीं हैं, प्रशिक्षित एएनएम आपातकालीन स्थितियों में जीवन बचाने में मदद कर सकते हैं।"

हालांकि कार्बोटेसिन में मातृ मृत्यु दर को कम करने की अधिक क्षमता हो सकती है। लेकिन अन्य संबंधित कारक भी तो हैं, जैसे कि एनीमिया, जो सीधे मातृ मृत्यु का पांचवां सबसे बड़ा कारण है और इन मौतों के आधे हिस्से का सहयोगी कारण भी, जैसा कि एक अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका, ‘न्युट्रीशन’ में प्रकाशित एक 2014 के अध्ययन के में बताया गया है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने 29 अगस्त 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

साहा, दिल्ली के ‘पॉलिसी एंड डेवलप्मेंट एडवाइजरी ग्रूप’ में मीडिया और नीति संचार परामर्शदाता हैं। सितंबर 2018 में, वह ससेक्स विश्वविद्यालय के ‘इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज’ के ‘जेंडर एंड डिवलपमेंट’से अंतर्राष्ट्रीय विकास में पीएचडी शुरू करेंगे।

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 10 जुलाई, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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