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पिछले पांच वर्षों में सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) - सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम - पर 1,15,625 करोड़ रुपए (17.7 बिलियन डॉलर) खर्च हुए हैं, लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट आई है।

उद्हारण के लिए, शिक्षा पर 2014 वार्षिक स्टेटस रिपोर्ट (एसईआर) के अनुसार कक्षा तीन के केवल एक चौथाई बच्चे कक्षा दो की किताबें ठीक तरह से पढ़ सकते हैं, पिछले पांच वर्षों में 5 फीसदी की गिरावट हुई है।

नवीनतम बजट में, वित्त मंत्री, अरुण जेटली द्वारा सर्व शिक्षा अभियान के लिए आधे से अधिक राशि (52 फीसदी) आवंटित क गई है, लेकिन पिछले पांच वर्षों में, एसएसए बजट में 6 फीसदी की गिरावट हुई है, 2012-13 में 23,873 करोड़ रुपए (4.4 बिलियन डॉलर) से गिरकर 2016-17 में 22,500 करोड़ रुपए (3.3 बिलियन डॉलर)तक पहुंचा है।

शिक्षा, मुख्य रुप से राज्यों की ज़िम्मेदारी है, लेकिन 60 फीसदी राशि, सर्व शिक्षा अभियान जैसे कई कार्यक्रमों के माध्यम से सीधे केंद्र से दिया जाता है। भारत के 66 फीसदी प्राथमिक विद्यालय के छात्र सरकारी स्कूल या सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में जाते हैं, बाकि के लोग महंगे निजी स्कूल में जाते हैं।

एकाउंटिब्लीटी इनिशिएटिव रिपोर्ट के अनुसार, 2015-16 में एसएसए के लिए अलग रखी गई राशि में से सितम्बर 2015 तक केवल 57 फीसदी ही जारी किया गया है।

एसएसए के तहत बजटीय आवंटन

निजी और सरकारी स्कूलों में शिक्षा में गिरावट; शिक्षकों का प्रशिक्षण अपर्याप्त

अपनी तीसरा बजट पेश करते हुए जेटली ने गुणवत्ता पर कोई चर्चा नहीं की है। गुणवत्ता में गिरावट का कारण मिलने वाली राशि में कमी के साथ जोड़ा जा सकता है लेकिन सिर्फ पैसों की कमी ही इसका कारण नहीं हो सकती है।

इंडियास्पेंड ने पिछले साल अपनी रिपोर्ट में बताया था कि पांच प्राथमिक स्कूल के शिक्षकों में से एक से भी कम पर्याप्त रुप से प्रशिक्षित हैं। इसका परिणाम है कि सरकारी एवं निजी स्कूलों में सीखने की क्षमता में उल्लेखनीय गिरावट आई है।

निजी और सरकारी स्कूलों के सीखने की क्षमता का औसत परिणाम

2013 में, सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर में अचानक 41.1 फीसदी की गिरावट देखी गई थी लेकिन 2014 में यह वापस 42.2 फीसदी तक पहुंच गया था, जैसा कि इंडियास्पेंड ने पहले भी बताया था।

इसी तरह, गणित के साथ, कक्षा तीन के एक चौथाई छात्र 10 से 99 के बीच की संख्या पहचान नहीं सकते हैं, पिछले पांच वर्षों में 13 फीसदी की गिरावट हुई है।

99 फीसदी एसएसए स्कूलों का निर्माण, केवल 1 फीसदी को कक्षाओं के निर्माण के लिए राशि मिली

7 दिसंबर, 2015 को लोकसभा में पूछे गए एक प्रश्न के जवाब के अनुसार, 2000-01 में कार्यक्रम की शुरुआत के बाद से 30 सितंबर 2015 तक मंजूर किए गए 400,000 में से 99 फीसदी नए प्राथमिक विद्यालयों का निर्माण हुआ है।

स्थापना के बाद से सर्व शिक्षा अभियान की प्रगति

2015-16 में एकाउंटिब्लीटी इनिशिएटिव द्वारा सर्वेक्षण किए गए स्कूलों में से करीब 23 फीसदी स्कूल में शिक्षा के अधिकर के मानदंडों को पूरा करने के लिए कम से कम एक कक्षा का निर्माण करने की आवश्यकता है। हालांकि, वित्त वर्ष के दौरान नए कक्षा का निर्माण करने के लिए केवल 1 फीसदी स्कूलों को राशि मिली है।

इस कार्यक्रम में अन्य कमी भी है।

प्राथमिक स्तर पर, लड़कियों के नामांकन 2009-10 में 48.12 फीसदी से 2014-15 में 48.19 फीसदी पहुंच गया है। स्पष्ट है कि अधिक लड़कियों को नामांकित किए जाने की जरूरत है। प्राथमिक विद्यालयों में कम से कम 52 फीसदी लड़कों ने नामंकन कराया है।

अच्छी खबर: स्कूल छोड़ने वाले बच्चों में कमी, छह से 14 आयु वर्ग में उच्चतम

6 से 14 वर्ष के आयु वर्ग के बीच 55 फीसदी ड्रॉपआउट दर्ज किया गया था, 2006 में 13.46 मिलियन से 2013 में 6.1 मिलियन आंकड़े दर्ज किए गए थे। वार्षिक औसत प्राथमिक ड्रॉपआउट दर 2009-10 में 6.8 फीसदी से गिर कर 2013-14 में 4.3 फीसदी हुआ है।

स्कूलों में मिड- डे मील के लिए 9,700 करोड़ रुपये (1,4 बिलियन डॉलर ) दिया गया है। 2014-15 में भारत भर में लगभग 102 मिलियन बच्चे मिड डे मील कार्यक्रम का इस्तेमाल कर रहे थे, जो कि दुनिया की सबसे बड़ी खाना खिलाने की योजना है।

अगले दो वर्षों के दौरान, ग्रामीण पहल के हिस्से के रूप में, जिन ज़िलों में नवोदय विद्यालय नहीं हैं, वहां सरकार 62 नए नवोदय विद्यालय खोलने की योजना बना रही है।

ग्रामीण प्रतिभाओं को शिक्षित करने के लिए नवोदय विद्यालय योजना की शुरुआत शिक्षा राष्ट्रीय नीति 1986 के तहत किया गया था। दिसंबर, 2015 को लोकसभा में पेश आंकड़ों के अनुसार भारत भर में 591 नवोदय विद्यालय हैं।

2,471 करोड़ रुपये (400 मिलियन डॉलर) नवोदय विद्यालय समिति (जो इन स्कूलों को चलाती है) के लिए आवंटित किया गया था, जो कि पिछले वर्ष के मुकाबले 8 फीसदी अधिक है।

बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए उच्च शिक्षा पर ध्यान, लेकिन नामांकन में कमी

उच्च शिक्षा के क्षेत्र में बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए, 1,000 करोड़ रुपये (146 मिलियन डॉलर) की एक प्रारंभिक पूंजी के साथ, वित्त मंत्री ने उच्च शिक्षा के वित्त पोषण एजेंसी (एचईएफए) की स्थापना का प्रस्ताव दिया है।

एचईएफए, लाभकारी संगठन के लिए नहीं होगा, जो बाज़ार से राशि का इस्तेमाल करेगा एवं और उन्हें दान और कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी राशि के साथ पूरक करेगा।

उच्च शिक्षा - केंद्रीय और डीम्ड विश्वविद्यालयों सहित – को सबसे अधिक राशि, 7997 करोड़ रुपये (1.2 बिलियन डॉलर ), दिया गया है, इसके बाद, आईआईटी को 4,984 करोड़ रुपए एवं यूजीसी को 4,492 करोड़ दिए गए हैं।

करीब, 80 फीसदी छात्रों ने स्नातक कार्यक्रमों में दाखिला लिया गया, लेकिन केवल 0.3 फीसदी छात्रों ने (84058 छात्र), वर्ष 2012-13 में पीएचडी के लिए पंजीकृत किया है, जो कि एक संकेत देता है कि संकेत है कि अनुसंधान की दिशा में गति धीमी है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने पहले भी रिपोर्ट किया है।

18 से 23 वर्ष के आयु वर्ग के बीच केवल 21 फीसदी पुरुष एवं महिलाओं ने उच्च शिक्षा के लिए दाखिला लिया है।

भारत की उच्च शिक्षा में नामांकन दर 18 फीसदी है – जो 27 फीसदी की वैश्विक औसत से नीचे है और 2014 ब्रिटिश काउंसिल की रिपोर्ट में बताया गया है कि यह आंकड़े चीन में 26 फीसदी और ब्राजील में 36 फीसदी की तुलना में कम है।

(मल्लापुर इंडियास्पेंड के साथ विश्लेषक हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 04 मार्च 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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