बच्चों से बलात्कार के लिए मौत की सजा क्या बेहतर न्याय नहीं?
मुंबई: 2016 में भारत में लगभग 90 फीसदी बच्चों से बलात्कार के मामले जांच के लिए लंबित थे, इस तरह के 28 फीसदी से अधिक मामलों में सजा नहीं सुनाई गई है और और मामलों को सुनवाई में 20 साल का बैकलॉग है। यह जानकारी नवीनतम उपलब्ध राष्ट्रीय अपराध आंकड़ों से पता चलता है।
ये आंकड़े सरकार के कानून में बदलाव को प्राथमिकता देने का संकेत देते हैं, जो अदालतों को 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के बलात्कारियों को मौत की सजा देने की इजाजत देती है, लेकिन जल्दी या बेहतर न्याय के लिए दोषसिद्धि विफलताओं और अदालत में देरी को हल करने की कोई योजना नहीं है।
नए अध्यादेश में 16 साल से कम उम्र की महिला से बलात्कार करने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए 20 साल की न्यूनतम सजा भी है।
2016 में, 39, 6868 बलात्कार पीड़ितों में से ( महिलाओं और लड़कियों सहित ) 43 फीसदी पीड़ित (16,863) नाबालिग थे, यानी 18 साल की आयु से कम, जबकि 5 फीसदी पीड़ित (2,116) की आयु 12 साल से कम थी। यह जानकारी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों से मिली है।
आयु अनुसार 18 वर्ष से कम आयु के बलात्कार पीड़ित, 2016
21 अप्रैल, 2018 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारतीय दंड संहिता, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, आपराधिक प्रक्रिया संहिता और यौन अपराध अधिनियम (पोक्सो) से बच्चों के संरक्षण के लिए एक अध्यादेश को मंजूरी दी, जिससे महिलाओं और बच्चों के खिलाफ यौन अपराध करने वालों को कठोर दंड की अनुमति मिल गई है। यूनियन कैबिनेट की सिफारिश पर भारत के राष्ट्रपति द्वारा एक अध्यादेश जारी किया जाता है । जरूरी माने जाने वाला और जल्दी से कानून पारित करने के लिए ऐसा तब होता है, जब संसद सत्र से बाहर होती है।
आपराधिक कानून अध्यादेश 2018 के रूप में जाना जाने वाला, संशोधन राष्ट्रीय उथल-पुथल की अवधि के दौरान आया है। अप्रैल 2018 के महीने में जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले में आठ वर्षीय असिफा के साथ बलात्कार का मामला और भाजपा विधायक द्वारा कथित तौर पर उत्तर प्रदेश के उन्नाव में एक नाबालिग के कथित बलात्कार का मामला सामने आया था, जिस कारण देश भर में धार्मिक और जातीय रेखाओं के साथ राजनीतिक बहस को बढ़ावा मिला।
बलात्कार के बजाय रिपोर्टिंग रोका जा सकता है
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 और यौन अपराधों (पोक्सो) अधिनियम से बच्चों के संरक्षण की धारा 4 और 6 के तहत 2016 में भारत में 19 765 बच्चों के बलात्कार की सूचना दी गई थी। ये आंकड़े 2014 की तुलना में करीब 6 फीसदी अधिक हैं, तब 18,661 मामलों की सूचना मिली थी।
बच्चों से बलात्कार के रिपोर्ट किए गए मामले, 2012-2016
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Reported Cases of Child Rapes, 2012-16 | |||||
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Child Rape Cases Reported | 2012 | 2013 | 2014 | 2015 | 2016 |
Sec 376 of Indian Penal Code | 8541 | 12363 | 13766 | 10854 | |
Sec 4 of POCSO Act | 4131 | 6723 | |||
Sec 6 of POCSO Act | 764 | 2077 | |||
Total | 8541 | 12363 | 18661 | 19654 | 19765 |
Source: National Crime Records Bureau
Note: Child rape cases in 2016 have been recorded under section 376 of the IPC and section 4 & 6 of the POCSO Act. In 2014 and 2015, these cases were recorded separately under IPC crimes and POCSO Act, and we have included them for comparison. Cases reported in 2012 and 2013 were only under section 376 of the IPC.
2016 में, देश भर में सबसे ज्यादा बच्चों से बलात्कार के मामले 13 फीसदी (2,467) मध्यप्रदेश में रिपोर्ट किए गए हैं। इसके बाद महाराष्ट्र (12 फीसदी, 2,292 मामले) और उत्तर प्रदेश (11 फीसदी, 2,115 मामले) का स्थान रहा है।
सिक्किम ने बलात्कार की उच्चतम दर की सूचना दी है, प्रति 100,000 बच्चों पर 32.5 बलात्कार। इसके बाद मिजोरम (26.7) और दिल्ली (14.5) का स्थान रहा है जबकि राष्ट्रीय औसत के लिए आंकड़े 4.4 बच्चों के बलात्कार का रहा है।
‘जर्नल साइकोलॉजिकल स्टडीज’ में प्रकाशित 2013 के इस पेपर के अनुसार, लगभग 18-20 फीसदी बलात्कार परिवार में होते हैं और 50 फीसदी संस्थागत परिवेश में होती हैं।
एनसीआरबी के आंकड़ों से पता चलता है कि 2016 में रिपोर्ट किए गए बलात्कार के 94 फीसदी मामलों में अपराधी पीड़ित ( महिला और लड़कियों सहित ) के पहचान के थे। उनमें से अधिकतर (29 फीसदी) पड़ोसी थे, इसके बाद 'पीड़ितों से शादी करने के वादे पर ज्ञात व्यक्ति' (27 फीसदी) और रिश्तेदार (6 फीसदी) थे; 30 फीसदी अन्य ज्ञात लोग थे।
12 साल से कम उम्र के बच्चे के साथ बलात्कार करने वाले आरोपियों के लिए मृत्युदंड की शुरूआत से रिपोर्टिंग पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है, जैसा कि लोग परिवार के सदस्यों के लिए बहिष्कार और कानूनी परिणाम से डरते हैं।
महिला अधिकार की वकील और महिलाओं के लिए कानूनी पहल प्रदान करने वाली मुंबई स्थित संगठन, मजलिस की सह-संस्थापक, फ्लाविया एग्नेस कहती हैं, "मौत की सजा की शुरुआत एक महान कदम नहीं है। परिवार में इन मामलों की सूचना नहीं दी जाएगी, इसलिए इनमें से कई चीजें ज्ञात लोगों द्वारा होती हैं, समुदाय उनकी रक्षा करेगा।"
उन्होंने आगे कहा, "रिपोर्टिंग दर निश्चित रूप से बढ़ रही थी, लेकिन अब मुझे विश्वास है कि अधिकतर लोग परिणामों के डर के लिए रिपोर्ट (बलात्कार) नहीं करेंगे ।"
सजा में देरी और 72 फीसदी विफलता दर
2016 के अंत तक रिपोर्ट किए गए 90 फीसदी बलात्कार के मामले के जांच लंबित थे।
2016 में, बच्चों से बलात्कार के लिए सजा दर 28 फीसदी थी ( आईपीसी की धारा 376 और पोक्सो अधिनियम की धारा 4 और 6 के तहत रिपोर्ट किए गए मामलों सहित ) जबकि आईपीसी की धारा 376 के तहत पिछले वर्ष यह आंकड़ा 34 फीसदी था और 2015 में पोक्सो अधिनियम की धारा 4 और 6 के तहत 41 फीसदी और 32 फीसदी थे।
एग्नेस ने कहा, "भारत में शीघ्र जांच नहीं हो रही हैं। सिस्टम को बेहतर बनाने में 20-30 साल लगेंगे। सिर्फ एक या दो विशेष अदालतें पर्याप्त नहीं हैं; यही कारण है कि इतने सारे मामले लंबित हैं। इसके अलावा जांच में बहुत लंबा वक्त लगता है। "
अधूरी जांच की उच्च दर को हल करने और तेजी से दृढ़ विश्वास को प्रोत्साहित करने के लिए, 23 वर्षीय पैरामेडिकल छात्र के सामूहिक बलात्कार के बाद 2013 में दिल्ली में छह फास्ट ट्रैक कोर्ट स्थापित किए गए थे।
हालांकि, 2012 में, नियमित अदालतों ने फास्ट ट्रैक कोर्ट के 400 मामलों की तुलना में 500 मामलों का समाधान किया। फास्ट ट्रैक कोर्ट निहित उद्देश्य की सेवा में विफल रहा है, जैसा कि ‘बिजनेस स्टैंडर्ड’ ने 14 दिसंबर, 2014 की रिपोर्ट में बताया है।
आतंकवाद के अलावा अन्य कारणों से भारत में मौत की सजा पाने वाले अंतिम व्यक्ति धनंजय चटर्जी थे जिन्होंने 14 वर्षीय स्कूली छात्रा के साथ बलात्कार के बाद उसकी हत्या कर दी थी। अगस्त 2004 में चटर्जी को फांसी दी गई थी।
- उपधारा में संशोधन के अनुसार बलात्कार के लिए न्यूनतम सजा सात से दस साल की कारावास में बढ़ी है (ए)
- एक नया सब-क्लॉज (iii) बताता है कि 16 वर्ष से कम आयु की महिला के साथ बलात्कार की न्यूनतम सजा 20 साल की कारावास है
- चिकित्सा लागत और पुनर्वास को कवर करने के लिए पीड़ित को दोषी पर जुर्माना लगाया गया है। जुर्माना लगाने के लिए उपखंड (सी) में संशोधन किया गया है
- नए सम्मिलित खंड 376 एबी कहता है कि 12 साल से कम उम्र की लड़की के साथ बलात्कार के लिए न्यूनतम सजा 20 साल की कारावास है, साथ ही अदालतें मृत्युदंड भी दे सकती हैं।
- 12 और 16 साल से कम आयु की महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार के लिए जीवन कारावास की न्यूनतम सजा नए डाले गए खंड (376 डीए और डीबी) के तहत निर्धारित की गई है; अदालतें 12 साल से कम आयु के साथ बलात्कार के लिए मौत की सजा भी दे सकती हैं।
- खंड (ii) (ए) में संशोधन के अनुसार, बलात्कार करने के दोषी पुलिस अधिकारियों को अब दस साल की न्यूनतम कारावास का सामना करना पड़ेगा।
- धारा 173 (i) में संशोधन के अनुसार, जब पुलिस स्टेशन में पहली बार अपराध दर्ज किया जाए,तब तीन महीने के भीतर बलात्कार की जांच की जानी चाहिए
- धारा 374 (3) में संशोधन के अनुसार, बलात्कार के मामलों के सभी अपीलों को अब 6 महीने के भीतर निपटाया जाना चाहिए।
- धारा 439 में जोड़े गए एक नए उपधारा के अनुसार 16 वर्ष से कम उम्र के साथ बलात्कार करने वाले आरोपी को कोई अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती।
- भारतीय दंड संहिता की धारा 376 एबी, धारा 376 डीए और धारा 376 डीबी में संशोधन शामिल करने के लिए पोस्को अधिनियम की धारा 42 में संशोधन किया गया है।
- उसी आईपीसी अनुभाग को साक्ष्य अधिनियम की धारा 53 ए और 146 में जोड़ा गया है, जो कुछ मामलों में वर्णित साक्ष्य या पिछले यौन अनुभव को संबोधित नहीं करता है।
Source: Live Law
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 24 अप्रैल 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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