बजट 2015: व्यक्तिगत सशक्तिकरण पर एक और परत, जैम (JAM) की
भारत की एक बड़ी असफलता भारतीय नागरिक को एक वित्तीय पहचान द्वारा सशक्त करने में उसकी अक्षमता है।
कुछ मायनों में एक वित्तीय पहचान सब पहचानों से ऊपर है। यदि आप का बैंक खाता है,तो यह आपके होने की एक पहचान है। इसके विपरीत, एक बैंक खाता खुलवाने का रास्ता बाधाओं से भरा है। आज भी, सभी प्रयासों के बावजूद, भारत में एक बैंक खाता खुलवाना एक बुरे सपने की तरह है।
बिना किसी लाभ या सब्सिडी से जोड़े बिना हर भारतीय को एक अद्वितीय पहचान प्रदान करने के उद्देश्य से 'आधार' परियोजना की संरचना करना उसी दिशा में एक कदम था। जैसे कि नो -फ्रिल खाते खोल कर वित्तीय समावेशन का प्रसार करने का प्रयास किया गया था।
पूरे प्रयास को केंद्रीय बजट 2015 के साथ एक और प्रोत्साहन मिला है। हाल की प्रक्रिया को धन में रखते हुए सरकार ने एक और परिवर्णी शब्द गढ़ा है - जैम (जेएएम) । जिसका अर्थ है जन धन योजना (बैंक खाता खोलने का प्रयास), आधार और मोबाइल , जो कुछ मायनों में धन, पहचान और प्रगति के संगम का सूचक है।
फिलहाल, प्रधानमंत्री जन-धन योजना (पीएमजेडीवाई) के तहत 125 मिलीयन से अधिक नए खाते खोले गए हैं। इसके अलावा, 100 मिलियन से अधिक लाभार्थियों को रूपे (डेबिट) कार्ड जारी किए गए हैं। इन कार्ड धारकों में से प्रत्येक को 100,000 रुपये का निजी दुर्घटना बीमा दिया गया है। इसके अलावा, 30,000 रुपये का जीवन बीमा कवर भी है।
बैंक खाता और आधार , जो बैंक खाता खोलने या लेन-देन के लिए प्रमाणीकरण में मदद करता है ,वित्तीय पहचान के लिए किसी नींव की तरह महत्त्वपूर्ण हैं। यह दो साल पहले तक एक ऊपरी सा सैद्धांतिक प्रस्ताव था, लेकिन अब यह एक स्पष्ट और ठोस वास्तविकता होता जा रहा है।
केंद्रीय बजट 2015 में इस पर आगे कार्य किया गया है। वास्तव में इसमें उन योजनाओं को रेखांकित किया गया है जो मांग और आपूर्ति बनाने में मदद करेंगी।
बजट में सभी भारतीयों के लिए एक कार्यात्मक सामाजिक सुरक्षा प्रणाली की बात की गई है, खासकर गरीबों और वंचितों के लिए। इस साल दिसंबर 31 से पहले खोले गए ने खातों के लिए एक परिभाषित पेंशन योजना के अंतर्गत, पांच साल तक , सरकार की ओर से लाभार्थियों ' के प्रीमियम में 50% का योगदान किया जाएगा। बजट दस्तावेजों में, स्वास्थ्य बीमा सहित , कई अन्य योजनाओं का ब्यौरा उपलब्ध है।
केंद्रीय बजट 2015 में यह भी कहा गया है कि प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) के लिए लाभार्थियों की संख्या में 10 मिलियन से -100 मिलियन तक वृद्धि की जाएगी। प्रत्यक्ष ट्रांसफर में आप, उत्पाद के लिए बाजार मूल्य का भुगतान करते हैं और आपको देय सब्सिडी की राशि आपके बैंक खाते में स्थानांतरितकर दी जाती है। जितने अधिक खाते होंगे उतनी ही अधिक कुशलता से या कम से कम पहले की तुलना में अधिक कुशलता से सब्सिडी काम करेगी।
इसी तरह, एक सामाजिक सुरक्षा योजना भी उतनी ही अच्छी है जितना की वह बैंक खाता जिससे वह जुड़ी है और जितनी गतिशीलता वह देती है । और पेंशन योजना या एक बीमा योजना भी तभी प्रभावी है जब उससे भुगतान एकत्र करना आसान हो।
इन बैंक खातों का का सामूहिक प्रभाव , आधारिक संरचना और उन योजनाओं को बनाने पर पड़ेगा जिन के लिए आपूर्ति की आवश्यकता होती है ताकि उत्पादों एवं सेवाओं की मांग बढ़े और एक वित्तीय पहचान के माध्यम से वास्तविक अर्थ में सशक्तिकरण हो सके।
बिंदु अब जुड़ने लगे हैं। सरकार का कहना है कि वह सब्सिडी में कटौती नही कर रही लेकिन लीकेज को नियंत्रित करने की कोशिश कर रही है । यह निस्संदेह कहा जा सकता है कि बैंक खाते खोलने पर ज़ोर देना -जैसा की कई राज्यों में अनुभव किया गया है -लीकेज रोकने के लिए एक बहुत बड़ा कदम है ।
लीकेज रोकने से भी अधिक, आर्थिक रूप से पिछड़े लोग सरकार की ओर से सब्सिडी , (बेनिफिट्स)लाभ या अंशदान के माध्यम से उच्चित लाभ प्राप्त कर सकते हैं। दान में कुछ भी गलत नहीं जब तक यह सही लोगों को मिलता है या कम से कम इसका अधिकांश भाग उन तक पहुंचता है।
एक सुलभ पेंशन और बीमा या वेतन और सब्सिडी अपने आप में और जब भी सामूहिक रूप से संकलित हो जाएँ तो कहीं अधिक सशक्त और सुरक्षित व्यक्ति गढ़ती हैं। अधिक वित्तीय उत्पादों और सेवाओं को लाने के लिए बहुत से अवसर हैं। अगला कदम माइक्रो म्यूचुअल फंड निवेश योजनाओं का हो सकता है उन लोगों के लिए जो अधिक जोख़िम उठाने के लिए तैयार हैं।
और अंत में, इन सब से ऊपर है गतिशीलता, जो पहले एक अवरोध थी। भविष्य निधि खाते (प्रोविडेंट फंड) वेतन और भौगोलिक स्थिति से जुड़े थे और पेंशन राज्य सरकार के विभागों या डाकघरों से जुड़ी थी । पहले नागरिकों को हमेशा एक सीमा में बांधा जाता रहा है। और उन एक अधिक सुरक्षित भविष्य का निर्माण करने की क्षमता से वंचित रखा गया है । लेकिन स्थिति अब बदल रही है। रोटी पर जैम (जेएएम) की एक परत से जीवन को और अधिक स्वादिष्ट बनना चाहिए।
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