पटना: अब से लगभग एक महीने पहले 15 अगस्त को बिहार में कोरोनावायरस के कुल मामलों की संख्या एक लाख को पार कर गई थी। ये वो दिन था जब बिहार में एक दिन में 3,536 नए मामले मिले थे, जो एक दिन पहले के यानी 14 अगस्त को हुए तब तक के सबसे अधिक (एक लाख से ज़्यादा) सैंपल की जांच में सामने आए थे। 15 अगस्त को राज्य में कोरोनावायरस के सक्रिय मामलों की संख्या 32,715 हो गई थी। उस दिन राज्य में रिकवरी की दर 67.39% थी।

इसके क़रीब एक महीने बाद, 13 सितंबर को बिहार में कोरोनावायरस के लिए 1.10 लाख सैंपल की जांच की गई, जिसमें से 1,137 सैंपल पॉज़िटिव पाए गए। राज्य में सक्रिय मामलों की संख्या घटकर 13,675 रह गई और रिकवरी दर पहुंच गई 91% पर।

लगभग पूरी दुनिया में कोरोनावायरस के मामले में एक ही तरह का नतीज़ा निकल कर सामने आया है; ज़्यादा जांच, ज़्यादा मामले। लेकिन बिहार में ये उल्टा नज़र आ रहा है। यहां जांच तो बढ़ रही है लेकिन पॉज़िटिव और सक्रिय मामलों में लगातार कमी आ रही है।

“कोरोना को लेकर बिहार में एक अलग ही ट्रेंड दिख रहा है। ये ट्रेंड दूसरे राज्यों में दिख रहे ट्रेंड से एकदम उलट है,” जॉर्ज इंस्टीट्यूट ऑफ ग्लोबल हेल्थ, इंडिया के सीनियर रिसर्च फ़ेलो और पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट, डॉ. विकाश आर केशरी ने इंडियास्पेंड को बताया। डॉ. विकाश ने लंबे समय तक बिहार में काम किया है।

इधर, केंद्र सरकार ने बिहार के छह ज़िलों के 60 गांवों में नेशनल सिरो सर्वे कराने का फ़ैसला लिया है। इस सर्वे में यह जानने की कोशिश की जाएगी कि कहीं बिहार में कोरोनावायरस के लक्षण और प्रभाव में कोई बदलाव तो नहीं आया है। हालांकि बिहार सरकार का कहना है कि कंटेनमेंट ज़ोन में सौ फ़ीसदी टेस्टिंग, कड़ी निगरानी और एहतियात की वजह से संक्रमण को रोकने में मदद मिल रही है।

लेकिन, जानकारों ने टेस्ट की रफ्तार बढ़ने के बावजूद नए कोरोना संक्रमित मरीज़ कम मिलने को लेकर सवाल उठाया है। उनका कहना है कि बिहार सरकार की तरफ से ठोस एहतियाती कदम नहीं उठाए जाने, सोशल डिस्टेंसिंग मेंटेन नहीं करने, बाजारों और भीड़भाड़ वाले इलाकों में मास्क का इस्तेमाल नहीं होने और अनलॉक प्रक्रिया के तहत पब्लिक ट्रांसपोर्ट शुरू कर दिए जाने के बावजूद कम मरीज़ मिलना भरोसे लायक नहीं लग रहा है।

राज्य में ज़्यादातर टेस्ट एंटीजन किट से किए जा रहे हैं, जो पॉज़िटिव मामलों में तो 99% तक सटीक है लेकिन निगेटिव मामलों में इसकी सटीकता बेहद कम है। एंटीजन टेस्ट के मामले में बिहार में इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की गाइडलांस का भी ठीक से पालन नहीं हो रहा है।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने बिहार में कोरोनावायरस से हुई डॉक्टरों की मौत पर चिंता ज़ाहिर की है। आईएमए के मुताबिक़ बिहार में डॉक्टरों की मौत का प्रतिशत देश में किसी भी दूसरे राज्य से बहुत ज़्यादा है।

दूसरे राज्यों से अलग है बिहार में कोरोनावायरस के मामलों का ट्रेंड

जुलाई से अगस्त के बीच बिहार में कोविड-19 की जांच की रफ़्तार और कोरोना पॉज़िटिव मामले सामने आने के आंकड़े संक्रमण रोगों के विज्ञान के उलट नज़र आ रहे हैं और जानकार इन आंकड़ों को लेकर सवाल उठा रहे हैं। इंडियास्पेंड ने जून से अगस्त तक के आंकड़ों का विश्लेषण कर पाया कि जून के महीने में रोज़ाना औसतन 4,838.43 टेस्ट किए गए और प्रतिदिन संक्रमण के औसतन 201.73 मामले सामने आए। जुलाई में टेस्ट की रफ़्तार बढ़ी। जुलाई में रोज़ाना औसतन 10,557.48 टेस्ट किए गए जो जून के मुकाबले लगभग दोगुने थे। जुलाई में रोज़ाना औसतन 1,330.4 नए केस सामने आए, जो जून की तुलना में लगभग 6 गुना ज़्यादा थे। वहीं, अगस्त में रोज़ाना औसतन 85,128.67 टेस्ट किए गए, जो जुलाई के मुकाबले क़रीब 8 गुना ज़्यादा थे, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से रोज़ाना औसतन 2,753.2 नए मामले ही सामने आए, जो जुलाई के मुक़ाबले दोगुने हैं।

बिहार में कोविड-19 के संक्रमण में वृद्धि की दर भी देश के सभी राज्यों से कम है।

कोरोनावायरस से जुड़े मामलों की ट्रैकिंग करने वाली वेबसाइट कोविड19इंडिया डाॅट ओआरजी ने 4 सितंबर से 11 सितंबर के बीच देश के अलग-अलग राज्यों में मिले कोविड-19 के मामलों का विश्लेषण कर पाया कि बिहार में कोविड-19 संक्रमण की वृद्धि दर 1.1% है, जो देश के किसी भी दूसरे राज्य से कम है।

महाराष्ट्र में इस अवधि में कोविड-19 की वृद्धि दर 2.4%, बिहार से सटे उत्तर प्रदेश में वृद्धि दर 2.4%, पश्चिम बंगाल में 1.7%, मध्यप्रदेश में 2.5%, दिल्ली में 1.8%, हरियाणा में 3% और झारखंड में 3% रही। बिहार के बाद सबसे कम वृद्धि दर गुजरात में 1.3% थी। अन्य राज्यों में भी कोविड-19 संक्रमण की वृद्धि दर 2 से 5% के आसपास रही, कोविड19इंडिया डाॅट ओआरजी के मुताबिक़।

बिहार के स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव प्रत्यय अमृत का कहना है कि कंटेनमेंट ज़ोन में शत-प्रतिशत टेस्टिंग और कड़ी निगरानी की जा रही है। बाढ़ से पीड़ित जिन लोगों को सुरक्षित निकाला जा रहा है, उनका एंटीजन टेस्ट कर उन्हें आइसोलेट किया जा रहा है। ये एहतियाती कदम कोविड-19 के संक्रमण को रोकने में मदद कर रहे हैं।

बिहार के समस्तीपुर में हाल ही में शुरू हुए इस सेंटर में कोविड-19 का इलाज़ होता है। फ़ोटो: उमेश कुमार राय

रैपिड एंटीजन टेस्ट पर ज़्यादा भरोसा

बिहार में 13 जुलाई से रैपिड एंटीजन किट से कोरोनावायरस के सैंपल की जांच शुरू हुई। पहले चरण में 40 हजार रैपिड एंटीजन टेस्ट किट भेजे गए थे।

बिहार में एंटीजन किट से टेस्ट की शुरुआत होने के बाद बिहार सरकार इस तकनीक से ज़्यादा से ज़्यादा टेस्ट कर रही है, 8 अगस्त को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ वीडियो कॉन्फ़्रेंस में 8 अगस्त को ही हुई 75,346 सैंपलों की जांच का ब्यौरा दिया था।

“इन 75,346 सैंपलों में से 6,100 की जांच आरटी-पीसीआर (रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन पालिमरेज चेन रिएक्शन) से की गई थी और 65,000 सैंपलों की जांच रैपिट एंटीजन किट के ज़रिए की गई थी", नीतीश कुमार ने प्रधानमंत्री को बताया था।

बिहार की तरफ से प्रधानमंत्री को दिए गए आंकड़ों के आधार पर अगर आरटी-पीसीआर तकनीक से टेस्ट का प्रतिशत निकाला जाए, तो पता चलता है कि कुल सैंपलों में से महज़ 8.13% की जांच आरटी-पीसीआर से हुई थी।

बिहार का स्वास्थ्य विभाग रोज़ाना टेस्ट का जो आंकड़ा अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल पर डालता है, उसमें कुल टेस्ट में आरटी-पीसीआर और एंटीजन टेस्ट का ब्रेक-अप क्या है, ये नहीं बताता है।

अलबत्ता, 10 सितंबर को राज्य के स्वास्थ्य विभाग के सचिव, लोकेश कुमार सिंह ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर बताया कि बुधवार, 9 सितंबर को 1,12,199 सैंपलों की जांच की गई, जिनमें आरटी-पीसीआर और ट्रूनैट के जरिए 15,649 सैंपलों की जांच हुई।

रैपिड एंटीजन किट पर आईसीएमआर की गाइडलाइन

केंद्र सरकार ने जब देश में रैपिड एंटीजन टेस्ट की मंजूरी दी थी, तो उसका उद्देश्य ज़्यादा से ज़्यादा टेस्ट करना था, ताकि संक्रमित मरीज़ों की शिनाख़्त जल्द से जल्द हो सके। देश में कोरोनावायरस के लिए जितने टेस्ट हो रहे हैं उसमें RT-PCR टेस्ट को आईसीएमआर ने सबसे ज्यादा विश्वसनीय बताया है। एंटीजन टेस्ट की प्रक्रिया पॉज़िटिव मामलों में तो 99.3% से लेकर 100% तक सटीक है लेकिन निगेटिव मामलों में 50.6% से लेकर 84% तक ही सटीक है, इंडियास्पेंड की पांच अगस्त 2020 की इस रिपोर्ट के अनुसार।

अगस्त के शुरूआती हफ़्ते में पटना ज़िले के ज़िलाधिकारी कुमार रवि ने बुख़ार, खांसी और सर्दी की शिकायत पर रैपिड एंटीजन किट से अपना टेस्ट कराया था, उनका रिज़ल्ट निगेटिव आया। उन्होंने जब दोबारा आरटी-पीसीआर से जांच कराई, तो उनका रिज़ल्ट पॉज़िटिव आया। पटना के सिविल सर्जन डॉ. आरके चौधरी के साथ भी ऐसा ही वाक़या हुआ। उनके घर में काम करने वाली सहायिका में कोविड-19 का संक्रमण मिला था। डॉ. चौधरी ने जब एंटीजन किट से टेस्ट कराया, तो रिज़ल्ट निगेटिव था। बाद में जब आरटी-पीसीआर तकनीक से जांच कराई गई, तो रिज़ल्ट पॉज़िटिव आया।

आईसीएमआर की गाइडलाइंस के मुताबिक, रैपिड एंटीजन टेस्ट में अगर निगेटिव रिज़ल्ट आता है, तो व्यक्ति में लक्षण होने पर उसका सैंपल आरटी-पीसीआर से टेस्ट के लिए भेजा जाएगा। वहीं, टेस्ट के बाद अगर लक्षण दिखते हैं, तो उसकी दोबारा जांच रैपिड एंटीजन किट से या आरटी-पीसीआर तकनीक से की जाएगी।

रैपिड एंटीजन टेस्ट में फ़ॉल्स निगेटिव रिज़ल्ट की आशंका को देखते हुए इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने गाइडलाइंस जारी की थी। जिसके तहत रैपिड एंटीजन टेस्ट में रिज़ल्ट पॉज़िटिव आने पर उसे सही परिणाम माना जाए। जबकि, निगेटिव रिज़ल्ट आने पर अगर व्यक्ति को बुख़ार, खांसी, गले में ख़राश जैसी शिकायतें हैं, तो उसका सैंपल आरटी-पीसीआर से जांच के लिए भेजा जाए। अगर किसी व्यक्ति का रिज़ल्ट निगेटिव है और उसमें कोई लक्षण नहीं नज़र आ रहा है, तो निगेटिव रिज़ल्ट को सही माना जाएगा, आईसीएमआर अपनी पुरानी गाइडलाइंस में कहता है।

बाद में आईसीएमआर ने अपनी गाइडलाइंस में बदलाव किया। नई गाइडलाइंस के मुताबिक, रैपिड एंटीजन टेस्ट में अगर पॉज़िटिव रिज़ल्ट आता है, तो उसे सही माना जाए और अगर निगेटिव रिज़ल्ट आता है, तो व्यक्ति में लक्षण होने पर उसका सैंपल आरटी-पीसीआर से टेस्ट के लिए भेजा जाएगा और अगर व्यक्ति में कोई लक्षण नहीं है और टेस्ट के बाद अगर लक्षण दिखते हैं, तो उसकी दोबारा जांच रैपिड एंटीजन किट से या आरटी-पीसीआर तकनीक से की जाएगी।

आईसीएमआर के दिशा-निर्देशों की अनदेखी

विश्व आनंद मुज़फ़्फ़रपुर ज़िले के बोचहा प्रखंड के चौमुख गांव में रहते हैं। उनके गांव में 25 अगस्त को कैम्प लगा था, जहां वह रैपिड एंटीजन किट से टेस्ट कराने पहुंचे थे। उनका सैंपल लिया गया और बाद में उनके मोबाइल पर संदेश आया कि उनका रिज़ल्ट निगेटिव आया है।

आईसीएमआर की गाइडलाइंस के अनुसार स्वास्थ्य कर्मचारियों को चाहिए था कि जांच के बाद यह पता लगाते कि उनमें कोई लक्षण विकसित तो नहीं हुआ, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। स्वास्थ्य विभाग की तरफ से कोई कर्मचारी उनसे पूछने नहीं आया कि उनमें कोई लक्षण दिख रहा है कि नहीं।

उस कैम्प में 200 लोगों का टेस्ट हुआ था और सभी का रिज़ल्ट निगेटिव आया था, लेकिन बाद में इनमें से किसी की भी ख़बर नहीं ली गई।

“एक बार टेस्ट रिज़ल्ट निगेटिव आ जाता है, तो लोग खुश हो जाते हैं कि वे स्वस्थ्य हैं। उन्हें नहीं पता है कि एंटीजन टेस्ट में निगेटिव रिज़ल्ट गलत होने की आशंका ज़्यादा रहती है। मैं ख़ुद निगेटिव हूं, लेकिन मैं अपने रिज़ल्ट को लेकर आशंकित हूं”, विश्व आनंद ने इंडियास्पेंड से कहा।

मुज़फ़्फ़रपुर ज़िले के बोचहा ब्लॉक के घरभाड़ा गांव में 22 अगस्त को जांच कैम्प लगा था। वहां भी करीब 200 लोगों का सैंपल लिया गया गया था, जिनमें से 13 लोगों में कोविड-19 संक्रमण मिला था। इन्हीं में अनिल कुमार सिंह भी हैं।

“मैसेज में मुझे कहा गया कि मेरा रिज़ल्ट पॉज़िटिव आया है। मैं अपने परिवार के साथ ही था, ऐसे में संभव है कि मेरे परिवार में भी संक्रमण फैला हुआ होगा, लेकिन स्वास्थ्य विभाग ने मेरे परिवार व मेरे कॉन्टैक्ट हिस्ट्री को तलाशने की कोई कोशिश नहीं की। मैंने स्वास्थ्य विभाग के कर्मचारियों से कहा कि मेरे परिवार के सदस्यों का भी टेस्ट कर लिया जाए, लेकिन ऐसा नहीं किया गया, ” अनिल ने इंडियास्पेंड को बताया।

मुज़फ़्फ़रपुर निवासी अनिल कुमार सिंह की एंटीजन जांच रिपोर्ट पाॅज़ीटिव आई थी, लेकिन स्वास्थ्य विभाग की तरफ़ से उनकी कोई कांटेक्ट हिस्ट्री नहीं ली गई और न ही उनके परिवार के सदस्यों की ही जांच की गई। फ़ोटो: उमेश कुमार राय

“मैसेज मिलते ही मैं एहतियात के तौर पर आइसोलेट हो गया और अपने परिवार के सदस्यों को भी अलग-अलग कमरों में आइसोलेट कर दिया। खाना पकाने के लिए एक कुक को रख लिया और सोशल डिस्टेंसिंग का कड़ाई से पालन किया। इस पूरी प्रक्रिया में स्वास्थ्य विभाग की कोई भूमिका नहीं थी”, उन्होंने कहा।

जानकारों की राय

देशभर में 1 जून से अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हुई थी, तो बिहार सरकार ने कुछ प्रतिबंधों के साथ अनलॉक शुरू किया था। लेकिन, संक्रमण बढ़ने के बाद 16 जुलाई से बिहार में दोबारा लॉकडाउन शुरू किया गया था। बिहार के मुख्य सचिव दीपक कुमार ने कहा था, “कोरोना संक्रमण लगातार बढ़ रहा है। इसे देखते हुए सरकार ने लोगों को संक्रमण से बचाने के लिए राज्य में फिर से लॉकडाउन का फैसला किया है।”

हालांकि, लॉकडाउन में अनाज, दूध, माँस-मछली, फल, सब्ज़ी आदि की दुकानों को खोलने की इजाज़त थी। मोबाइल शॉप, रिपेयरिंग शॉप, गैराज खोलने की अनुमति ज़िला प्रशासन के स्तर पर दी गई थी। पूरे राज्य में ऑटो और टैक्सी संचालित करने की भी छूट दी गई थी। 25 अगस्त से सार्वजनिक बस सेवा भी शुरू हो गई, लेकिन लॉकडाउन पूरी तरह ख़त्म नहीं हुआ था। 7 सितंबर को बिहार में लॉकडाउन पूरी तरह ख़त्म हुआ।

लेकिन, जब लॉकडाउन था और कई तरह के प्रतिबंध थे, तब भी लोग मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने में लापरवाही बरतते नज़र आ रहे थे। लापरवाही की तमाम ख़बरें अलग-अलग ज़िलों से आ रही थीं। इन सबके बावजूद टेस्ट में तेज़ी आने के बाद भी नए मामलों का कम मिलना एक्सपर्ट को हैरान कर रहा है।

“पिछले कई दिनों से बिहार में टेस्ट की संख्या बढ़ रही है। रोज़ाना क़रीब 1.5 लाख के आसपास सैंपल टेस्ट हो रहे हैं, लेकिन रोज़ाना नए पॉज़िटिव केस 2,500 या उससे कम पर अटके हुए हैं। रिकवरी रेट भी देश में सबसे ज़्यादा है और मृत्यु दर 0.5% है। दूसरे राज्यों में टेस्ट की संख्या बढ़ने के साथ ही पॉज़िटिव मामलों में भी इज़ाफ़ा हुआ है,” डॉ. विकाश आर. केशरी ने इंडियास्पेंड को बताया।

“ऐसे में ये देखने की ज़रूरत है कि बिहार में रैपिड एंटीजन किट और आरटी-पीसीआर तकनीक से कितने टेस्ट हो रहे हैं तथा इनमें पॉज़िटिविटी रेट क्या है। अगर दोनों तरह के टेस्ट में ही पॉज़िटिविट रेट कम हैं, तो ये निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि बिहार में पॉज़िटिव मामले कम हो रहे हैं”, डॉ विकाश आर. केशरी ने बताया।

वह आगे कहते हैं, “लेकिन, विडम्बना ये है कि बिहार में नए कोविड-19 पॉज़िटिव मामलों में कमी जुलाई में दूसरे दौर के लॉकडाउन और कई चरणों की रि-ओपनिंग के बाद आई है। बिहार में जनसंख्या का अधिक घनत्व (प्रति वर्ग किलोमीटर पर जनसंख्या का घनत्व 1102 व्यक्ति) और आर्थिक गतिविधियाँ शुरू होने के कारण सोशल डिस्टेंसिंग के पालन और मास्क के इस्तेमाल में कोताही बरती गई। फिर भी पॉज़िटिव केसों में गिरावट और अस्पताल में भर्ती होने वाले कोविड-19 मरीज़ों की संख्या में कमी आना कोविड-19 के संक्रमण और फैलाव को लेकर स्थापित वैज्ञानिक समझ के विपरीत है। ऐसे में ये जानना दिलचस्प होगा कि बिहार में ऐसा क्या हुआ है कि इतने टेस्ट के बावजूद नये मामले कम आ रहे हैं।”

“आरटी-पीसीआर के मुकाबले रैपिड एंटीजन किट की सेंसिटिविटी दर काफ़ी कम है। बिहार में रोज़ाना 10 से 15,000 के आसपास टेस्ट आरटी-पीसीआर से हो रहे हैं और बाकी के टेस्ट रैपिड एंटीजन किट से किए जा रहे हैं। ऐसे में हो सकता है कि एंटीजन किट से टेस्ट में पॉज़िटिव मरीज़ों का रिज़ल्ट भी निगेटिव आ रहा हो,” ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेस, पटना के चिकित्सक डॉ आलोक रंजन ने इंडियास्पेंड को बताया।

जन स्वास्थ्य विशेषज्ञ और एपिडेमियोलॉजिस्ट एंटोनी कोल्लनुर ने ग़लत निगेटिव रिपोर्ट से संक्रमण का ख़तरा बढ़ने की आशंका जताई है।

"अगर रैपिड एंटीजन टेस्ट में आपका रिज़ल्ट निगेटिव है, तो संभव है कि असल में आप पाॅज़िटिव हों, लेकिन इस पर चुप रहते हैं, तो प्री-सिम्टोमैटिक अवधि में आप संपर्क में आने वाले सभी लोगों और रिश्तेदारों को संक्रमित कर सकते हैं", डाॅ कोल्लनुर ने इंडियास्पेंड से कहा।

ये पूछे जाने पर कि क्या कम पाॅज़िटिव मामले आने से ये आशंका भी है कि एंटीजन टेस्ट में ग़लत निगेटिव रिपोर्ट की वजह से बहुत सारे पाज़िटिव मामलों की शिनाख़्त नहीं हो पा रही है और इस वजह से आने वाले समय में संक्रमण बढ़ सकता है, उन्होंने कहा, "हां, ऐसा हो सकता है।"

"ग़लत निगेटिव रिपोर्ट रैपिड एंटीजन टेस्ट से ही बढ़ती है। अगर रैपिड एंटीजन टेस्ट में पाॅज़िटिव रिज़ल्ट है, तो आरटी-पीसीआर से टेस्ट करना ज़रूरी नहीं, मगर निगेटिव रिज़ल्ट की सूरत में अनिवार्य तौर पर आरटी-पीसीआर से जांच की जानी चाहिए", डाॅ. एंटोनी कोल्लनुर ने इंडियास्पेंड को बताया।

बिहार के एक प्राइमरी हेल्थ सेंटर (पीएचसी) में कार्यरत चिकित्सक ने नाम ज़ाहिर न करने की शर्त पर बताया, “8 अगस्त तक बिहार सरकार ने हमारे पीएचसी को रोज़ाना 500 टेस्ट रैपिड एंटीजन किट से करने का टारगेट दिया था। ये टारगेट हर पीएचसी को मिला था। लेकिन, इस किट से टेस्ट के लिए नाक के किस हिस्से से सैंपल लेना है, इसकी ट्रेनिंग तक स्टॉफ़ को नहीं के बराबर मिली है। ऐसे में ये भी संभव है कि सैंपल सही जगह से नहीं लिया जा रहा हो, जिस कारण ज़्यादातर टेस्ट रिज़ल्ट निगेटिव आ रहे हैं। हम लोग ये भी देख रहे हैं कि बहुत सारे लोग टेस्ट भी नहीं कराना चाह रहे हैं।”

"किसी व्यक्ति का रिज़ल्ट रैपिड एंटीजन टेस्ट में निगेटिव आ जाता है, तो वो मान बैठता है कि उसकी सेहत ठीक है। हम लोग अगर दोबारा टेस्ट कराने को कहते हैं, तो वो टेस्ट कराने नहीं आता है”, एक अन्य पीएचसी के डाॅक्टर ने नाम ज़ाहिर न करने की शर्त पर कहा।

इस संबंध में स्वास्थ्य विभाग के सचिव प्रत्यय अमृत को कई बार फ़ोन किया गया, लेकिन उन्होंने फ़ोन नहीं उठाया। इंडियास्पेंड ने उन्हें और स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय को ईमेल पर सवाल भेजे हैं। उनका ज़वाब मिलने पर हम इस रिपोर्ट को अपडेट करेंगे।

इस बीच, एक ख़बर के मुताबिक़, केंद्र सरकार के आदेश पर बिहार के छह ज़िलों के 60 गांवों में नेशनल सिरो सर्वे कराया जाएगा। सर्वे में शामिल सभी ज़िलों से 400-400 कोविड-19 संक्रमित मरीज़ों का सैंपल लिया जाएगा और जांच की जाएगी कि कहीं बिहार में कोरोनावायरस के लक्षण और प्रभाव तो नहीं बदल रहा है। इस सर्वे में विश्व स्वास्थ्य संगठन और आईसीएमआर के प्रतिनिधि भी शामिल रहेंगे।

पटना के एक बाज़ार में सोशल डिस्टेंसिंग की अनदेखी। फ़ोटो:उमेश कुमार राय

बिहार में कोरोना से चिकित्सकों की मौत ज़्यादा

9 अगस्त को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के बिहार चैप्टर ने बिहार में चिकित्सकों की मौत का आंकड़ा सार्वजनिक किया था।

"भारत में कोविड-19 के संक्रमण से मारे गए लोगों में डॉक्टरों की संख्या 0.5% है, जबकि बिहार में कोविड-19 से हुई कुल मौतों में डॉक्टरों की संख्या 4.75% है", आईएमए ने आंकड़े जारी कर कहा था।

“23 अगस्त तक कोविड-19 के संक्रमण से बिहार में 23 चिकित्सकों की मौत हो चुकी है और 400 से ज़्यादा संक्रमित हो चुके हैं”, आईएमए (बिहार चैप्टर) के सचिव सुनील कुमार ने इंडियास्पेंड को बताया।

उन्होंने कहा, “चिकित्सकों की सुरक्षा के पर्याप्त इंतज़ाम नहीं किए गए, जिस कारण वे संक्रमित मरीज़ों के संपर्क में आए और कोविड-19 का शिकार हो गए।”

प्रत्यय अमृत ने मुज़फ़्फ़रपुर के श्रीकृष्णा मेडिकल कॉलेज व अस्पताल का दौरा किया था, जिसमें उन्होंने पाया था कि डॉक्टरों को मिलने वाले पीपीई किट की क्वालिटी ख़राब थी।

आईएमए (बिहार चैप्टर) ने बिहार सरकार से कोविड-19 संक्रमण से मारे गए सभी सरकारी और प्राइवेट डॉक्टरों के परिजनों को प्रधानमंत्री ग़रीब कल्याण योजना के तहत घोषित दुर्घटना बीमा की राशि देने की मांग की है।

(उमेश, पटना में स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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