बिहार में भाजपा की हार का असर राज्यसभा पर?
बिहार में भारतीय जनता पार्टी ( भाजपा ) की हार का अप्रत्यक्ष प्रभाव संसद में पारित होने वाले कानून पर पड़ेगा।
भाजपा के लिए यह हार बहुत बड़ी प्रतीत नहीं होती है क्योंकि लोकसभा में 280 सदस्यों ( संसद के निचले सदन ) के साथ बहुमत की सरकार है।
हालांकि राज्यसभा में पार्टी को अधिक प्रतिनिधित्व की आवश्यकता है क्योंकि संसद के दोनों सदनों से मंजूरी के बिना कोई भी महत्वपूर्ण राष्ट्रीय कानून पारित नहीं किया जा सकता है।
राज्यसभा के सदस्य राज्यों से निर्वाचित किए जाते हैं एवं राज्य विधानसभा में पार्टी का प्रतिनिधित्व, उस राज्य से राज्यसभा में पार्टी की ताकत को प्रभावित करता है।
233 निर्वाचित राज्यसभा सदस्यों में से भाजपा के केवल 48 सदस्य हैं।
सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ( एनडीए ) की अपनी सहयोगी, तेलुगू देशम पार्टी से छह सीटों सहित , कुल 64 सीटें हैं।
राज्यसभा में सबसे ज्यादा प्रतिनिधित्व वाली पार्टी
राज्यसभा की सदस्यता राज्य की जनसंख्या से निर्धारित होता है ।
जनसंख्या के आधार पर टॉप पांच राज्यों (उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु , बिहार और पश्चिम बंगाल ) की राज्यसभा में 100 सीटें हैं।
राज्यसभा में सबसे अधिक प्रतिनिधित्व वाले राज्य
भाजपा के लिए चिंता की बात यह है कि जिन राज्यों में राज्यसभा के सदस्यों की संख्या सबसे अधिक है वे राज्यसभा के लिए टॉप राज्यों में से नहीं हैं।
भाजपा के राज्यसभा सांसदों के उच्चतम प्रतिनिधित्व वाले राज्य
महाराष्ट्र के अलावा, सदन में 19 सीटों के साथ भाजपा को बिहार में जीत की आवश्यकता थी।
जबकि बिहार ने पहले ही पार्टी के खिलाफ फैसला सुना दिया है, अब उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए जीतना अति महत्वपूर्ण हो गया है, जहां 2017 में चुनाव होने हैं।
( तिवारी इंडियास्पेंड के साथ नीति विश्लेषक हैं। )
यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 20 नवंबर 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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