New Delhi: The Punjab Regiment Marching Contingent on Rajpath during Republic Day Parade 2018 in New Delhi Jan 26, 2018. (Photo: IANS/PIB)

मुंबई: 2018 के एक अध्ययन के मुताबिक, भारत में सेना पर लोग सबसे ज्यादा भरोसा करते हैं। इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय का स्थान रहा है।16 निर्वाचित और गैर-निर्वाचित संस्थानों और कार्यालयों की सूची में राजनीतिक पार्टियों का स्थान सबसे नीचे रहा है।

‘अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय’ (एपीयू) और ‘लोकनीति’ (सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) द्वारा आठ राज्यों में यह अध्ययन किया गया था। इंडियास्पेंड द्वारा प्राप्त अध्ययन, 22 विधानसभा क्षेत्रों में 16,680 उत्तरदाताओं के साथ आयोजित किया गया था। लगभग 77 फीसदी उत्तरदाताओं ने सेना में सबसे अधिक विश्वास दिखाया, जबकि सर्वोच्च न्यायलय में 54.8 फीसदी और उच्च न्यायलय में 48 फीसदी लोगों ने भरोसा दिखाया है।

संस्थानों में औसत प्रभावी विश्वास

औसतन, निर्वाचित कार्यालय और संस्थान जैसे राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री, मुख्यमंत्री, संसद, विधानसभा और पंचायत / नगरपालिका निगम पर लोगों का भरोसा 40 फीसदी है। लेकिन आठ राज्यों में इन श्रेणियों के भीतर व्यापक भिन्नताएं हैं।

सभी राज्यों की राय अलग-अलग

महाराष्ट्र ने निर्वाचित संस्थानों में संसद, विधानसभा, पंचायत / एमसी में 60 फीसदी से अधिक भरोसे के उच्च स्तर को दिखाया है, जबकि आंध्र प्रदेश (एपी) ने कम से कम विश्वास का प्रदर्शन किया है,संसद और विधानसभा पर उनका विश्वास -4 फीसदी और -2 फीसदी रहा है,जैसा कि रिपोर्ट में बताया गया है।

अध्ययन के सह-लेखक और एपीयू में एक फैकल्टी, सिद्धार्थ स्वामीनाथन ने इंडियास्पेंड को बताया, "हम यह भी पाते हैं कि ग्रामीण और शहरी, दोनों क्षेत्रों में स्थानीय स्तर के निर्वाचित अधिकारी अपने निर्वाचन क्षेत्र में सेवाएं प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और इससे निर्वाचित अधिकारियों से संबंधित नागरिकों की सार्वजनिक राय प्रभावित होती है।" महाराष्ट्र ने आंध्र प्रदेश की तुलना में निर्वाचित कार्यालयों और संस्थानों में लगभग 53 प्रतिशत अधिक विश्वास दिखाया है। महाराष्ट्र के बाद रैंकिंग में झारखंड (52.5 फीसदी) और छत्तीसगढ़ (49.5 फीसदी) का स्थान रहा है।

राज्य अनुसार विभिन्न संस्थानों में प्रभावी भरोसा

राजनीतिक दलों पर लोगों के विश्वास का स्तर शून्य

राजनीतिक दलों ने कम विश्वास हासिल किया है, आंकड़ों में देखें तो -1.75 फीसदी । महाराष्ट्र अपवाद के रूप में है,जहां राजनीतिक दलों पर विश्वास का प्रतिशत 31 फीसदी है। सात राज्यों ने या तो एक अंक में विश्वास पर मतदान किया है, या फिर नकारात्मक मार्किंग की है।

आर्थिक सहयोग और विकास संगठन की एक रिपोर्ट, ‘गवर्मेंट एट ए ग्लांस- 2017’ के मुताबिक, 73 फीसदी भारतीयों ने 2016 में अपनी सरकार पर आत्मविश्वास दिखाया, जबकि अमरिकीयों के लिए यह आंकड़े 30 फीसदी रहे हैं। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने जुलाई 14 2017 की रिपोर्ट में विस्तार से बताया है। सरकार में आत्मविश्वास का स्तर वास्तव में 2007 के 82 फीसदी से घट गया है। सर्वेक्षित आठ राज्यों में संसद में औसत ‘प्रभावी विश्वास’ 36.6 फीसदी था। 2013 में आयोजित सीएसडीएस के एक समान अध्ययन से संकेत मिलता है कि 56 फीसदी लोग अलग-अलग तरीके से संसद पर भरोसा करते हैं। 2005 में यह आंकड़ा 43 फीसदी था, जैसा कि ‘फर्स्टपोस्ट’ ने 6 अक्टूबर, 2015 की रिपोर्ट में बताया है।

न्यायालय भरोसेमंद, लेकिन पहले से कम

अध्ययन में न्यायपालिका में महत्वपूर्ण विश्वास पाया गया है। लेकिन सर्वोच्च न्यायलय से लेकर उच्च न्यायलय और जिला अदालतों में औसत विश्वास स्तरों में लगातार गिरावट देखी गई है। केवल आंध्र प्रदेश को छोड़कर, जहां 28 फीसदी लोगों ने जिला अदालतों में भरोसा दिखाया है। आंध्र प्रदेश में लोगों ने सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायलय पर क्रमश: 21 फीसदी और 20 फीसदी विश्वास जताया है।अन्य सात राज्यों में, सर्वेच्च न्यायलय और उच्च न्यायलय पर क्रमश: 60 फीसदी और 52 फीसदी का औसत प्रभावी विश्वास सामने आया है।

अध्ययन के मुताबिक, शीर्ष पांच संस्थानों में से जिनपर भरोसे का उच्च स्तर है, उनमें से चार संस्थान नागरिकों से दूर रहकर काम करते हैं।

स्वामीनाथन कहते हैं, " ऐसे संस्थान जो जनता से दूर रहकर काम करते हैं और वे संस्थान जो जनता के बीच रहकर काम करते हैं,जैसे कि जिला अदालतें, पुलिस, सरकारी अधिकारी) उनके बीच विश्वास में अंतर का कारण साफ है। जिला अदालतें, पुलिस, सरकारी अधिकारियों से लोग अक्सर संपर्क में रहते हैं।"“इसके अतिरिक्त, प्लवन प्रभाव भी हो सकते हैं - नागरिक जो संस्थानों के एक समूह पर भरोसा करते हैं, उससे संबंधित एक और समूह पर भरोसा करने की संभावना अधिक होती है,” स्वामीनाथन कहते हैं।

जिला कलेक्टर का कार्यालय, जिससे करीब—करीब रोज ही लोगों का वास्ता पड़ता है,विश्वास का मामला यहां कुछ अलग है। जिला कलेक्टर का कार्यालय ने 47 फीसदी "प्रभावी विश्वास" हासिल किया है और उच्च न्यायालय के बाद सूची में चौथे स्थान पर आया है। महाराष्ट्र ने सबसे ज्यादा 69 फीसदी का मतदान किया है, यानी आंध्र प्रदेश से 45 प्रतिशत अधिक अंक।

सरकारी अधिकारियों का स्थान केवल राजनीतिक दलों के ऊपर

सूची में पुलिस और सरकारी अधिकारियों का स्थान केवल राजनीतिक दलों से ऊपर हैं।

सरकारी अधिकारी (कलेक्टर और तहसीलदार को अलग से सूचीबद्ध किया गया है) पर लोगों ने 4.8 फीसदी भरोसा जताया है, जबकि पुलिस केवल 0.9 प्रतिशत भरोसा अर्जित कर पाई। रिपोर्ट के मुताबिक, इसके लिए इन क्षेत्रों के राजनीतिकरण, उनके कामकाज में पारदर्शिता की कमी और पिछले दशकों में भ्रष्टाचार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।

दो सालों से 30 जून, 2017 तक, ‘भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम- 1988’ के तहत, भारत में भ्रष्टाचार के 1,629 मामले दर्ज किए गए थे( जिसमें 9, 960 लोग शामिल थे यानी दिन हर 11 मामले ), जैसा कि इंडियास्पेन्ड ने 30 अक्टूबर, 2017 की रिपोर्ट में बताया है।

भ्रष्टाचार पर वैश्विक संस्था, ‘ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल’ द्वारा जनवरी 2017 में जारी "भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक 2016" पर भारत को 176 देशों में से 79 स्थान पर रखा गया था।

स्वामीनाथन कहते हैं कि मीडिया भी संस्थानों के संबंध में जनता की राय को प्रभावित कर सकती है। उन्होंने कहा कि पुलिस जैसे संस्थानों की तुलना में चुनाव आयोग जैसे कुछ संस्थानों पर भरोसा होने की संभावना अधिक है।

पिछले पांच वर्षों में सरकारी एजेंसियों द्वारा जांच किए गए सार्वजनिक भ्रष्टाचार के मामलों में शामिल वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों की संख्या में 95 फीसदी की वृद्धि हुई है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 2015 की रिपोर्ट में बताया है।

(पालियथ विश्लेषक है और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 13 जुलाई, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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