भारतीय मां और बच्चे अब तक सबसे अधिक स्वस्थ्य – ताज़ा आंकड़े
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, केंद्र शासित प्रदेश, में भारत में शिशु - मृत्यु दर (प्रति 1000 जीवित जन्मों पर मृत्यु) एवं पांच वर्ष की आयु से कम बच्चों की मृत्यु दर सबसे कम दर्ज की गई है। यह आंकड़े हाल ही में 13 राज्यों एवं दो केंद्रीय शासित प्रदेशों के लिए जारी आंकड़ों में सामने आए हैं।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 4 (एनएफएचएस 4) के आधार पर स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा प्रकाशित आंकड़ों के अनुसार, मध्यप्रदेश में शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) एवं पांच वर्ष की आयु से कम बच्चों की मृत्यु दर (यू5एमआर) सबसे अधिक दर्ज की गई है। मध्यप्रदेश के लिए यह आंकड़े 51 एवं 65 दर्ज की गई है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 4 (एनएफएचएस 4) एक राष्ट्रव्यापी स्वास्थ्य जनगणना है एवं इससे पहले यह आंकड़े वर्ष 2005-06 में जारी किए गए थे।
इस दशक के दौरान, महिला साक्षरता , कम आयु में विवाह न होना, वित्तीय निर्णय लेने की क्षमता , बेहतर स्वास्थ्य, खाना पकाने की सुविधा और पानी की आपूर्ति को भारतीय माताओं और बच्चों की अधिक जीवन प्रत्याशा के कारण बताए गए हैं। यह कारण 13 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के आंकड़ों में सामने आए हैं।
लेकिन कुछ वेदनाओं में सीमित प्रगति पाई गई है, जैसे कि एनीमिया, 10 राज्यों में से आधे से अधिक बच्चों में एवं 11 राज्यों में आधे से अधिक महिलाओं में पाई गई हैं। कुल मिलाकर, आंकड़े बताते हैं कि प्रगति असामन हैं।
अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में शिशु - मृत्यु दर 10 दर्ज किया गया है, जोकि ब्राज़िल (15) की तुलना में बेहतर है एवं विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की आंकड़ों के अनुसार चीन और बुल्गारिया के बराबर है। यह आंकड़े प्रति व्यक्ति आय के उच्चतर के साथ वालों देशों की तुलना में भी बेहतर हैं। इसके विपरीत, मध्यप्रदेश में शिशु मृत्यु दर, दुनिया की कुछ गरीब देशों, जैसे कि गाम्बिया और इथियोपिया से भी बद्तर है।
केंद्र शासित प्रदेशों एवं हाल में गठित, एक वर्ष पुराने राज्य, तेलंगना के आंकड़ों को पहली बार एनएफएचएस में शामिल किया गया है।
भारत के कुछ पिछड़े राज्यों (जिसे आधिकारित तौर पर एंपावर्ड एक्शन ग्रूप, ईएजी कहा जाता है एवं जिसमें बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड शामिल हैं) के लिए महत्वपूर्ण आंकड़े अनुपस्थित है, जिसमें केंद्र सरकार द्वारा विशेष स्वास्थ्य हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
भारत में बाल स्वास्थ्य में सुधार
राज्य अनुसार शिशु मृत्यु दर
राज्य अनुसार पांच वर्ष की आयु से कम बच्चों की मृत्यु दर
स्तनपान , संस्थागत जन्म, टीकाकरण , दस्त की दवा में वृद्धि
लगभग सभी 13 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों में शिशु - मृत्यु दर और पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर में गिरावट हुई है।
आईएमआर में सबसे अधिक गिरावट, त्रिपुरा में देखी गई है - एनएफएचएस 4 (2014-15) में यह प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर 27 मृत्यु का आंकड़ा दर्ज किया गया है जबकि 2005-06 में 51 मृत्यु का आंकड़ा दर्ज किया गया था।
पांच वर्ष की आयु से कम के बच्चों की मृत्यु दर में सबसे अधिक गिरावट पश्चिम-बंगाल में दर्ज की गई है – इसी अवधि के दौरान यह आंकड़े 59 से गिरकर 32 तक पहुंचे हैं।
आंकड़ों में इन सुधार के प्रत्यक्ष कारण बेहतर मातृ - और बच्चों के स्वास्थ्य प्रथाओं का होना है जैसा कि स्तनपान, स्वास्थ्य संस्थानों में जन्म, बेहतर टीकाकरण, और दस्त की दवा का उपयोग करना है। जबकि अप्रत्यक्ष कारणों में महिला साक्षरता, कम आयु में विवाह न होना, बेहतर खाना पकाने की सुविधा बढ़ना जैसे कि गैस - इस प्रकार लकड़ी या कोयले से चलने वाले स्टोव से स्वास्थ्य का जोखिम कम होना – और वित्तीय समावेशन शामिल हैं।
बच्चों की बेहतर देखभाल
छह महीने से कम के बच्चे जो विशेष रूप से स्तनपान पर निर्भर हैं
Figures in percentage. Data for Telangana, Puducherry, and Andaman & Nicobar Islands were not surveyed during NFHS-3. Source: NFHS-3 & NFHS-4
राज्यों में जहां आईएमआर एवं यू5एमआर में सुधार हुए हैं, उन राज्यों में स्पष्ट रुप से बच्चों के स्वास्थ्य संकेतकों में सुधार हुआ है।
त्रिपुरा, जहां आईएमआर में सबसे अधिक गिरावट है, में दस्त के प्रसार में गिरावट देखी गई है, 2005-06 में 8.4 फीसदी से गिरकर 2015-16 में यह 4.9 फीसदी हुआ है और पूरी तरह से प्रतिरक्षित बच्चों में 49.7 फीसदी से 57.7 फीसदी की वृद्धि हुई है।
पश्चिम बंगाल, जहां आईएमआर में दूसरा सबसे अधिक गिरवाट एवं यू5एमआर में सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई है, इन्हें प्राप्त करने में डायरिया से पीड़ित बच्चों के लिए मौखिक पुनर्जलीकरण समाधान (ओआरएस) की उपलब्धता में वृद्धि (42.6 फीसदी से 64.7 फीसदी) के माध्यम से हो पाया है एवं बच्चों के टीकाकरण में 64.3 फीसदी से 84.4 फीसदी की वृद्धि हुई है।
गर्भवस्था के दौरान माताएं जिन्होंने 100 दिन से अधिक आईएफए टेबलेट का सेवन किया
Figures in percentage. Data for Telangana, Puducherry, and Andaman & Nicobar Islands were not surveyed during NFHS-3. Source: NFHS-3 & NFHS-4
कर्नाटक में, आईएमआर वर्ष 2005-06 में 43 से गिरकर वर्ष 2015-16 में 28 दर्ज किया गया है एवं यू5एमआर में 54 से 32 कि गिरावट दर्ज की गई है। राज्य में महिलाओं द्वारा आयरन की गोलियों का सेवन करने में 28.2 फीसदी से 45.3 फीसदी की वृद्धि हुई है। राज्य में उन महिलाओं के प्रतिशत में भी वृद्धि देखी गई है जिन्हें पूर्व प्रसव देखभाल मिली है। इस संबंध में यह आंकड़े 24.8 फीसदी से बढ़ कर 32.9 फीसदी हुए हैं। साथ ही संस्थागत जन्मों के आंकड़े 64.7 फीसदी से बढ़कर 94.3 फीसदी दर्ज किए गए हैं - मातृ स्वास्थ्य में सुधार एवं बाल मृत्यु दर के बीच सीधा संबंध दर्शाता है।
साफ-सफाई और आईएमआर संख्या के बीच के संबंध में अच्छी तरह से प्रलेखित है।
त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल में स्वच्छता सुविधाओं में सुधार देखा गया है, जिस कारण इन राज्यों में शिशु मृत्यु दर के आंकड़ों में कमी हुई है।
पश्चिम बंगाल में स्वच्छता सुविधाओं में सुधार के साथ परिवारों के प्रतिशत में 34.7 फीसदी से 50.9 फीसदी की वृद्धि हुई है।
साक्षरता, वित्तीय समावेश महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं
साक्षरता के माध्यम से महिला सशक्तिकरण और वित्तीय समावेश से भी शिशु और मातृ मृत्यु दर को कम करने में मदद मिली है।
महिला सशक्तिकरण परिणाम दर्शाते हैं
राज्य अनुसार, माताओं के साक्षरता दर
Figures in percentage. Data for Telangana, Puducherry, and Andaman & Nicobar Islands were not surveyed during NFHS-3. Source: NFHS-3 & NFHS-4
विकास अध्ययन के लिए ब्रिटेन स्थित संस्थान (आईडीएस) द्वारा प्रकाशित इस अध्ययन के अनुसार माताओं की शिक्षा और निर्णय लेने की उनकी क्षमता, शिशु और बाल मृत्यु दर को प्रभावित करता है। यह तथ्य पश्चिम बंगाल के संबंध में स्पष्ट है, जहां महिला साक्षरता दर 58.8 फीसदी से बढ़ कर 71 फीसदी हुआ है एवं आईएमआर एवं यू5एमआर में गिरावट हुई है।
इसी तरह, त्रिपुरा में महिला साक्षरता 68.5 फीसदी से बढ़ कर 80.4 फीसदी एवं कर्नाटक में 59.7 फीसदी बढ़ कर 71.7 फीसदी हुई है।
तीन राज्यों में महिलाओं के घर के फैसलों में भागीदारी में भी वृद्धि देखी गई है। उदाहरण के लिए, कर्नाटक में महिलाओं की भागीदारी 68.6 फीसदी से बढ़ कर 80.4 फीसदी हुई है।
महिलाओं की स्थिति में सुधार का एक कारण उनकी अपनी आय खर्च करने की क्षमता होना भी है। आईडीएस अध्ययन कहती है कि यह वित्तीय समावेशन के माध्यम से हासिल हुआ है जिसने कईयों को अपने स्वयं के बैंक खाता रखने के लिए प्रेरित किया है।
(सालवे इंडियास्पेंड के साथ नीति विश्लेषक है)
यह लेख मूलत:अंग्रेज़ी में 21 जनवरी 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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