भारत के गरीब परिवारों के लिए अधिक बच्चों का मतलब है कि बुरी तरह से आभावग्रस्त
नई दिल्ली: बिना बच्चों वाले 7.8 फीसदी गरीब परिवारों की तुलना में लगभग आधा (47.9 फीसदी) भारतीय घरों में जिनके पांच से अधिक बच्चे हैं, वे आश्रय, पानी, स्वच्छता, स्वास्थ्य और शिक्षा से बुरी तरह से वंचित हैं। यह जानकारी 11 मई, 2019 को जारी नवीनतम इंडियन ह्यूमन डेवलपमेंट सर्वे में सामने आई है।
वर्ल्ड बैंक के अनुसार, दुनिया के 24 फीसदी गरीब भारत में रहते हैं, जो 2017 में सकल घरेलू उत्पाद के अनुसार पांचवां सबसे बड़ा देश है। भारत में सबसे अमीर 1 फीसदी के पास देश की कुल संपत्ति का 58 फीसदी हिस्सा है, जो कि वैश्विक आंकड़ों का करीब 50 फीसदी है और जो अत्यधिक असमानताओं को दर्शाता है।
गरीबी एक परिवार की भलाई को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करती है, लेकिन अक्सर इस बात पर कम ध्यान दिया जाता है कि केवल वयस्कों में ही नहीं, बल्कि बच्चे भी घर में अभाव के स्तर को गंभीर रूप से बढ़ा देते हैं, जैसा कि एक अध्ययन में बताया गया है, जिसमें 2011 और 2012 के बीच पूरे भारत में 1,503 गांवों और 971 शहरी पड़ोस में 42,556 घरों का एक बहु-विषयक सर्वेक्षण किया गया है।
हाल ही में यूनाइटेड नेशन वर्ल्ड पॉपुलेशन प्रॉस्पेक्ट्स 2019 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2050 तक लगभग 27.3 करोड़ नए लोग जुड़ जाएंगे और 2027 तक दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश के रूप में चीन से आगे निकल जाएगा। आईएचचडीएस सर्वेक्षण के निष्कर्षों को देखते हुए, यह भारत के गरीबों के जीवन को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।
सर्वेक्षण के दौरान एकत्र किए गए आंकड़ों में ग्रामीण और शहरी परिवारों के बीच व्यापक असंगति को दर्शाया गया है-शहरी घरों की तुलना में ग्रामीण परिवारों के बच्चों में बुनियादी आवश्यकताओं से वंचित होने की संभावना 2.1 गुना अधिक है। शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य और शिक्षा के सार्वजनिक संस्थानों तक बेहतर पहुंच उन्हें गरीबी से निपटने में मदद करती है।
बच्चों के साथ वाले परिवार, जिनकी आय का मुख्य स्रोत मजदूरी है, आय के अन्य स्रोत के साथ वाले लोगों की तुलना में बहुत अधिक कमजोर हैं। बच्चों के साथ वाले परिवार जिनकी मजदूरी के जरिए ही आमदनी है, उनकी आय खेती या कारोबार से जुड़े लोगों की तुलना में 1.2 गुना ज़्यादा असुरक्षित होती है।
इसी तरह, विभिन्न जातियों और सामाजिक-धार्मिक समूहों में भी असमानता दिखाई दी है: बच्चों के साथ 57.4 फीसदी अनुसूचित जनजाति परिवार, बच्चों के साथ 24.1 फीसदी अगड़ी जातियों की तुलना में वंचित जीवन जीते हैं। मजदूरी के साथ मुख्य आय स्रोत के रूप में सीमांत समुदायों का कटाव,सभी संभावनाओं में, घर को गरीबी और अभाव के दुष्चक्र में धकेल देता है।
बच्चों के साथ वाले परिवारों में 22 फीसदी गरीबी दर, बिना बच्चों के साथ वाले परिवारों में 8 फीसदी
सर्वेक्षण में, जिसमें ग्रामीण और शहरी भारत में 42,556 घरों को शामिल किया गया था, गरीब घरों का निर्धारण करने के लिए छह महत्वपूर्ण संकेतक अपनाए थे - जिन परिवारों के लोगों को पनाह देने वाली जगह नहीं है, जहां पांच या अधिक लोग एक कमरे या जो मिट्टी से बने मकानों घरों में रहते हैं,जिन घरों में शौचालय नहीं है और स्वच्छता की कमी है,पानी तक कोई सीधी पहुंच नहीं और रेडियो / टीवी / समाचार पत्र के रूप में जानकारी के बिना घर। अन्य प्रमुख निर्धारक स्वास्थ्य थे... जहां पांच साल से कम उम्र के बच्चों को पूरी तरह से टीकाकरण नहीं किया जाता है और पांच साल से कम समय की शिक्षा के साथ शिक्षा की कमी है।
अध्ययन में पाया गया कि बच्चों के साथ वाले परिवारों में 22 फीसदी गरीबी दर और बिना बच्चों वाले घरों में 8 फीसदी गरीबी दर है। ग्रामीण क्षेत्रों में, बच्चों के साथ वाले परिवारों की गरीबी दर 25 फीसदी है और बच्चों के बिना वाले परिवारों 10 फीसदी है; शहरी क्षेत्रों में यह अंतर तुलनात्मक रूप से कम है - क्रमशः 13 फीसदी और 4 फीसदी।
महिला साक्षरता का मतलब आश्रय, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य तक बेहतर पहुंच
महिला साक्षरता का परिवार के सदस्यों के जीवन पर समग्र प्रभाव पड़ता है और शिक्षा के बढ़ते स्तर के परिणामस्वरूप आश्रय, पानी, स्वच्छता, शिक्षा, स्वास्थ्य और सूचना तक बेहतर पहुंच होती है, चाहे उनकी आर्थिक स्थिति कैसी भी हो, जैसा कि आईएचडीएस अध्ययन में पाया गया है।
यदि परिवार की महिला अशिक्षित है तो आश्रय, स्वच्छता, शिक्षा और पानी जैसी बुनियादी आवश्यकताओं तक पहुंच से वंचित होने की संभावना 1.6 गुना अधिक है। यदि महिला मिडिल स्कूल तक शिक्षित है तो एक घर से वंचित होने की संभावना 1.4 गुना तक गिर जाती है और अगर महिला सेकेंडरी स्कूल तक शिक्षित है तो बंचित होने की संभावना 1.3 गुना तक गिर जाती है जैसा कि अध्ययन में पाया गया है।
एक महिला जितनी अधिक शिक्षित होती है, वह अभाव को रोकने में उतनी ही पारंगत होती है। एक मां की शिक्षा पारिवारिक धन से अधिक महत्वपूर्ण माना गया है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 15 जून, 2019 की रिपोर्ट में बताया था।
बिना बच्चों के साथ वाले ऐसे परिवारों में, जहां महिलाएं मिडिल स्कूल तक शिक्षित हैं, वहां 32 फीसदी के पास रहने की कोई सही जगह नहीं है, जबकि बच्चों के साथ वाले परिवार जहां महिला ने सेकेंड्री शिक्षा पूरी की है, यह आंकड़े 30 फीसदी हैं। इससे संकेत मिलता है कि अभाव को कम करने में महिला साक्षरता का लाभ, अधिक बच्चों की उपस्थिति से कम हुआ है, जैसा कि अध्ययन के निष्कर्ष में बताया गया है।
रिपोर्ट के अनुसार, अनपढ़ पुरुषों की तुलना में अनपढ़ महिलाओं के नेतृत्व वाले परिवारों के लिए घरेलू अभाव की संभावना 1.1 गुना अधिक है।
आईएचडीएस के सुनील कुमार मिश्रा ने कहा, "जैसा कि पारंपरिक परिवार का पैटर्न बदला है, एक अनपढ़ महिला को परिवार के मुखिया की भूमिका निभाने के लिए मजबूर किया जाता है, जहां उसके पति नौकरी के बेहतर अवसरों के लिए शहर की ओर पलायन करते हैं या घर के पुरुष मुखिया की मृत्यु हो जाती है। ऐसे परिदृश्य में गृहस्थी में कमी अधिक झलकती है। संयुक्त परिवारों में बच्चों के आभाव में होने की संभावना कम होती है। "
समुदाय, जाति भी महत्वपूर्ण कारक
भारत में वंचित होने की स्थिति जाति और धर्म से भी जुड़ी हुई है। आईएचडीएस की रिपोर्ट के अनुसार, अन्य समुदायों के मुकाबले बच्चों के साथ मुस्लिम परिवारों में, वंचित होने की संभावना दो गुना अधिक थी। साथ ही, अन्य पिछड़े वर्ग (ओबीसी) और सामान्य जाति के घरों की तुलना में एससी और एसटी परिवारों में बच्चों के साथ वंचित होने की संभावना 1.5 गुना अधिक है।
अत्यंत कम साक्षरता दर के साथ और मजदूरी में लगे होने के साथ,इनमें से अधिकांश के पास कोई भूमि जोत नहीं है, अनुसूचित जनजाति समूह सबसे कमजोर हैं, जैसा कि 28 फरवरी, 2018 को इंडियास्पेंड की रिपोर्ट में बताया गया है।
मजदूरी करने वाले बच्चों के साथ वाले घरों में से 49.3 फीसदी पानी से वंचित हैं। इस संबंध में बिना बच्चों वाले परिवारों के लिए आंकड़े 36.4 फीसदी हैं। मध्य प्रदेश, ओडिशा, बिहार, झारखंड, राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे गरीब राज्यों में परिवारों के वंचित होने की संभावना अन्य राज्यों की तुलना में 1.2 गुना अधिक है।
बच्चों के साथ वाले परिवारों को गरीबी से बाहर निकालना
बच्चे और उनके परिवार, जो सामाजिक कल्याण योजनाओं के लाभार्थी हैं और सरकारी सेवाओं तक आसानी से पहुंच रखते हैं, वे उच्च स्तर के सुख का आनंद ले सकते हैं।
बिहार का साइकिल कार्यक्रम, जिसका उद्देश्य स्कूल पहुंच में सुधार लाना था और साइकिल लड़कियों को प्रदान करके सेकेंड्री स्कूल नामांकन में लिंग अंतर को कम करना था, से 14-15 वर्ष आयु वर्ग में लड़कियों के नामांकन की या ग्रेड IX पूरा करने की संभावना 30 फीसदी बढ़ गई।
अध्ययन में यह भी कहा गया कि शौचालय, पानी, और सैनिटरी नैपकिन तक उनकी पहुंच बढ़ गई है। लेकिन शिक्षक की अनुपस्थिति एक बच्चे के विकास में बाधा बन सकती है। मध्याह्न भोजन योजना ने स्कूल नामांकन में सुधार किया और गोलियों की मदद से बच्चों के बीच दैनिक कैलोरी प्रोटीन और आयरन के स्तर बढ़ाया है।
आईएचडीएस के अध्ययन में पाया गया कि उन गरीब परिवारों से बाल मजदूर बनने की संभावना कम है, जो परिवार महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) का एक हिस्सा हैं। जो घर मनरेगा के तहत पंजीकृत नहीं हैं, वहां बाल श्रम में शामिल होने वाले बच्चों की संभावना लड़कों के लिए 13.4 फीसदी और लड़कियों के लिए 8.2 फीसदी बढ़ी है।
मिश्रा ने कहा, " यहां तक कि स्वयं सहायता समूहों ने भी छोटे पैमाने पर और कुटीर गतिविधियों को शुरू करने के लिए सदस्यों को प्रोत्साहित किया है। एसएचजी ने परिवारों को स्वच्छता, स्वास्थ्य और सरकारी कार्यक्रमों के बारे में जानकारी प्रसारित करने में मदद की है। इस तरह के कार्यक्रमों के माध्यम से स्थानीय नेतृत्व के निर्माण ने बचपन में कमी को कम करने में मदद की है।"
(अली रिपोर्टर हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 09 जुलाई 2019 को IndiaSpend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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