भारत के शहरों का 70% सीवेज अनुपचारित
वर्ष 2019 तक सरकार का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना कि देश का हर नागरिक शौचालय का उपयोग करे एवं देश को खुले में शौच से मुक्त बनाना है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने में अभी चार वर्ष का समय बाकी है लेकिन सिर्फ शहरी भारत में 377 मिलियन लोगों द्वारा उत्पन्न गंदे पानी (सीवेज) का 30 फीसदी ही उपचार संयंत्रों के माध्यम से बहता है।
इंडियास्पेंड की विभिन्न स्रोतों के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि बाकी का गंदा पानी बेतरतीब ढंग से नदियों, समुद्र , झीलों और कुओं के पानी से मिल जाता है जिससे देश की तीन-चौथाई जल निकाय प्रदूषित होती हैं।
दिसंबर 2015 में, सरकार की ओर से जारी आंकड़ों से पता चलता है कि शहरी क्षेत्रों से करीब 62,000 मिलियन लीटर गांदा पानी प्रति दिन (एमएलडी) उत्पन्न होता है जबकि भारत भर में परिशोधन क्षमता केवल 23,277 एमएलडी या उत्पन्न सीवेज का 37 फीसदी है।
इन आंकड़ो की व्याख्या से पता चलता है कि भारत भर में सूचीबद्ध 816 नगर निगम के सीवेज उपचार संयंत्र (एसटीपी) में से 522 ही क्रियाशील हैं। इसलिए, 62,000 एमएलडी में से सूचीबद्ध क्षमता 23,277 एमएलडी है लेकिन वास्तव में उत्पन्न गंदे पानी में से 18,883 एमएलडी से अधिक परिशोधित नहीं किया जाता है।
इसका मतलब हुआ कि शहरी भारत में उत्पन्न गंदे पानी का 70 फीसदी परिशोधित नहीं किया जाता है।
सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की रिपोर्ट के अनुसार जबकि 79 एसटीपी काम नहीं करते है, वहीं 145 निर्माणाधीन हैं और 70 प्रस्तावित हैं।
सालों से नहीं हुआ कोई सुधार; कस्बे और शहर प्रदूषित करते हैं जल
पिछले कुछ वर्षों से बिना किसी सुधार के कस्बे और शहर अपने ही जल को प्रदूषित कर रहे हैं।
एक अनुमान के अनुसार भारत के क्लास – I शहरों (1,00,000 से अधिक आबादी के साथ) एवं क्लास – II शहरों (50,000 से 100,000 आबादी) से 38,255 एमएलडी सीवेज उत्पन्न होता है जिसमें से केवल 11,787 एमएलडी (30 फीसदी) परिशोधित किया जाता है। यह आंकड़े 2009 सीपीसीबी की रिपोर्ट का हवाला देता हुए वॉटर एड, सुरक्षित पानी और साफ-सफाई की संस्था, की फीकल स्लज मैनेजमेंट रिपोर्ट में दर्ज किया गया है।
अशुद्ध पानी सीधा जल निकायों में मिलाया जाता है। एफएसएम की रिपोर्ट की अनुसार इस कारण भारत की सतह जल संसाधनों का तीन –चौथाई भाग प्रदूषित होता है। रिपोर्ट कहती है कि जल निकायों का करीब 80 फीसदी भाग प्रदूषित है।
मौजूदा परिशोधन क्षमता का परिचालन और रखरखाव सममूल्य से नीचे है। सीपीसीबी की 2009 की रिपोर्ट कहती है कि 39 फीसदी संयंत्र धाराओं या जल निकायों में निर्वहन के लिए पर्यावरण नियमों के अनुरूप नहीं हैं।
एक अनुमान के अनुसार, जल प्रदूषण का 75 से 80 फीसदी हिस्सा घरेलू सीवेज से उत्पन्न होता है जोकि बिना किसी परिशोधन के स्थानीय जल निकाय से मिल जाता है।
मलजल उपचार संयंत्रों ( क्रियाशील ) की कमी
भारत भर में काम करने वाले 522 एसटीपी में से अधिकर उत्तरी राज्य, पंजाब में स्थित हैं। पंजाब में संयंत्र की संख्या 86 है। लेकिन इसमें से भी केवल 38 या इससे कम ही वास्तव रुप में कार्य करने योग्य है।
सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का प्रदर्शन: टॉप 5 राज्य
Source: Central Pollution Control Board; (0) indicates information not received.
उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक क्रियाशील एसटीपी है। उत्तर प्रदेश में इसकी संख्या 62 है। दूसरे स्थान पर 60 के आंकड़े के साथ महाराष्ट्र एवं तीसरे स्थान पर 44 के साथ कर्नाटक है।
शहरी भारत के करीब 87 मिलियन में पर्याप्त साफ-सफाई की कमी – जर्मनी की आबादी से अधिक
भारत के शहरी क्षेत्रों में करीब 17 मिलियन घरों में पर्याप्त साफ-सफाई की कमी है। एफएसएम की रिपोर्ट के अनुसार 14.7 मिलियन घरों में शौचालय नहीं हैं।
यदि पर प्रति परिवार पांच लोगों को मानते हैं तो इसका मतलब हुआ की करीब 87 मिलियन लोग – या जर्मनी की आबादी से अधिक – शहरी इलाकों में पर्याप्त साफ-सफाई के बगैर हैं।
लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब के अनुसार, 7 दिसंबर 2015 तक ग्रामीण परिवारों के संदर्भ में, केवल 48.4 फीसदी (87.9 मिलियन) घरों में शौचालयों की सुविधा है।
शहरी भारत में शौचालय सुविधाओं के प्रकार
Source: Census 2011
करीब पांच मिलियन (7.1 फीसदी) शहरी परिवारों में गड्ढ़े शौचालय (पिट लैटरिन्स) जिसमें कोई स्लैब नहीं है या खुले गड्ढे हैं एवं 900,000 शौचालय सीधे नालियों में मुक्त होते हैं।
शहरी घरों का केवल 32.7 फीसदी जिनके पास स्वच्छता सुविधाएं हैं वो भूमिगत सीवेज नेटवर्क से जुड़े शौचालय का उपयोग करते हैं।
सेप्टिक टैंक के साथ 79 मिलियन परिवारों में से कम से कम 30 मिलियन शहरी परिवार (38.2 फीसदी) कचरा निस्तारण के लिए कोई स्पष्ट उपाय नहीं है।
खुले में शौच अब तक बनी हुई है बड़ी चुनौती
शहरी परिवारों के करीब 12.6 फीसदी लोग खुले में शौच जाते हैं। यह आंकड़े झुग्गी बस्तियों के लिए अधिक है। बस्तियों के लिए यह आंकड़े 18.9 फीसदी है।
सरकार राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण रिपोर्ट 2012 के आधार पर पिछले महीने सरकार ने लोकसभा को बताया है कि भारत भर में करीब 1.7 फीसदी लोग शौचालय होने के बावजूद खुले में शौच जाते हैं।
भारत और चयनित राज्यों में स्वच्छता सुविधाएं
Source: Census 2011; Figures in (%).
मध्य प्रदेश के शहरी क्षेत्रों में करीब 22.5 फीसदी लोग खुले में शौच जाते हैं। यह आंकड़े तमिलनाडु के लिए 16.2 फीसदी, उत्तर प्रदेश के लिए 14.8 फीसदी, गुजरात 8.7 फीसदी , महाराष्ट्र के लिए 7.7 फीसदी और दिल्ली के लिए 3 फीसदी है।
7 मई 2015 को लोकसभा में पेश आंकड़ों के अनुसार करीब 55 फीसदी ग्रामीण परिवार खुले में शौच जाते हैं। इस संबंध में ओडिसा सबसे पहले स्थान पर है। ओडिसा में करीब 86.6 फीसदी ग्रामीण परिवार खुले में शौच जाते हैं। जबकि केरल के लिए यह आंकड़े 3.9 फीसदी है।
वैश्विक कहानी: पिछले 25 वर्षों के दौरान खुले में शौच जाने के आंकड़ों में आधे की गिरावट
खुले में शौच जाने वाले लोगों के अनुपात में आधे की गिरावट हुई है। 1990 में जहां यह आंकड़े 24 फीसदी थे वहीं वर्ष 2015 में यह आंकड़े 13 फीसदी दर्ज किए गए हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार वर्ष 2015 में, दुनिया की आबादी के लगभग 68 फीसदी लोगों तक , फ्लश शौचालय और कवर शौचालयों सहित सुधार स्वच्छता सुविधाओं की पहुंच है।
डब्ल्यूएचओ के अनुसार दुनिया भर में लगभग 2.4 बिलियन लोगों के पास बुनियादी स्वच्छता सुविधाएं, जैसे शौचालयों की कमी है। इनमें से 946 मिलियन लोग खुले में शौच जाते हैं।
क्या शौचालय निर्माण से बनेगी बात? परिणाम है सामने
राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार द्वारा 2 अक्टूबर को शुरू की गई स्वच्छ भारत अभियान का लक्ष्य 2 अक्टूबर 2019 तक भारत को खुले में शौच मुक्त बनाना है।
2015-16 तक सरकार ने शहरी इलाकों में 2.5 मिलियन घरेलू शौचालयों के निर्माण करने की योजाना बनाई है। ताजा आंकड़ो के मुताबिक दिसंबर 2015 तक 882,905 शौचालयों का निर्माण हो गया है।
100,000 समुदाय और सार्वजनिक शौचालयों में से स्वच्छ भारत अभियान के तहत कम से कम 32,014 शौचालयों का निर्माण हुआ है। ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम के पहले वर्ष में 6 मिलियन लक्ष्य के मुकाबले 8.8 मिलियन शौचालय का निर्माण हुआ है।
(मल्लापुर इंडियास्पेंड के साथ नीति विश्लेषक है।)
यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 27 जनवरी 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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