लखनऊः उत्तर प्रदेश के सीतापुर ज़िले के बबुरीखेड़ा गांव के मान सिंह (24) इसी साल कोरोनावायरस महामारी के फैलने से पहले फ़रवरी के महीने में मलेरिया की चपेट में आ गए थे। मान सिंह को इसका पता चलने पर वह सीतापुर से लगभग 88 किलोमीटर लखनऊ के एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती हो गए। यहां छह दिन तक मान सिंह का इलाज चला।

"मेरा इलाज 6 दिन तक चला, अब मैं ठीक हूं। इस साल मुझे मलेरिया हुआ और पिछले साल मेरे बड़े भाई को हुआ था। इस बीमारी ने बहुत परेशान किया है,” मान सिंह ने बताया।

"पिछले साल हमारे गांव के हर घर में किसी न किसी को मलेरिया हुआ था। लोग गांव छोड़कर रिश्तेदारियों में चले गए थे। मेरे भाई को भी मलेरिया हुआ था। प्राइवेट अस्पताल में इलाज हुआ और क़रीब 25 हज़ार रुपए खर्च हुए, तब जाकर जान बची,” मान सिंह के साथ गांव के बाहर पुलिया पर बैठे महेंद्र कुमार (26) ने कहा।

महेंद्र कुमार और मान सिंह के मुताबिक़, पिछले दो साल से उनके और आस-पास के दूसरे गांवों में मलेरिया के मामले तेज़ी से बढ़े हैं। यह सभी गांव सीतापुर जिले के गोंदलामऊ ब्लॉक में पड़ते हैं। जब इंडियास्पेंड की टीम इन गांवों में पहुंची तो पाया कि जगह-जगह जल जमाव था और गंदगी फैली हुई थी। यह सारे कारण मच्छरों की पैदावार के लिए अनुकूल हैं।

सीतापुर के गोंदलामऊ ब्लॉक के एक गांव में कुछ इस तरह गंदगी फैली थी। फ़ोटोः रणविजय सिंह

यह परेशानी अकेले सीतापुर के इन गांवों की नहीं है, बल्कि पिछले दो साल में पूरे उत्तर प्रदेश में मलेरिया के मामले तेज़ी से बढ़े हैं। राज्य में साल 2017 में 32,345 मलेरिया के मामले दर्ज किए गए। साल 2019 में अक्टूबर महीने तक 86,591 मलेरिया के मामले दर्ज किए जा चुके थे, 10 दिसंबर 2019 को राज्यसभा में पेश इन आंकड़ों के मुताबिक़। यह आंकड़े बताते हैं कि देश भर में मलेरिया के मामले 2016 में 1,087,285 से घटकर अक्टूबर 2019 में 286,091 रह गए। इन आंकड़ों के मुताबिक़ देश में मलेरिया के मामलों में लगभग 73% की गिरावट आई है। जबकि इसी दौरान उत्तर प्रदेश में यह मामले तेज़ी से बढ़े हैं। यूपी में साल 2016 में 40,700 मामले थे जो अक्टूबर 2019 में दोगुने से भी अधिक बढ़कर 86,591 हो गए।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट भी बताती है कि भारत में मलेरिया के मामलों में कमी आ रही है। भारत में 2017 की तुलना में साल 2018 में मलेरिया के मामलों में 28% की कमी आई, दिसंबर 2019 में जारी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट के अनुसार। इसी के साथ भारत मलेरिया से सबसे अधिक प्रभावित दुनिया के 4 देशों की लिस्ट से बाहर आ गया। हालांकि 11 सबसे अधिक प्रभावित देशों की लिस्ट में भारत अकेला ग़ैर-अफ़्रीकी देश है। इससे पहले साल 2016 से साल 2017 के बीच भारत में मलेरिया के मामलों में 24% की कमी आई थी।

दुनिया भर में मलेरिया के कुल मामलों के 70% और उससे होने वाली मौतों में से 71% भारत समेत इन्हीं 11 देशों में दर्ज किए जाते हैं, रिपोर्ट में कहा गया।

मलेरिया एक ऐसी बीमारी है जो मादा एनाफ़िलीज़ मच्छर के काटने से होती है। अगर वक़्त पर इलाज ना किया जाए तो इससे मरीज़ की मौत भी हो सकती है। भारत समेत दुनिया भर में हर साल मलेरिया की वजह से लाखों लोगों की मौत हो जाती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक़, 2018 में दुनिया भर में मलेरिया के अनुमानित 22.8 करोड़ मामले सामने आए और 4.05 लाख लोगों की मौत हुई। भारत में इसी साल मलेरिया के मामले अनुमानित तौर पर 67 लाख थे और अनुमान है कि इससे 9,620 लोगों की मौत हुई थी। भारत में मलेरिया के मामलों में सरकार और विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े भले ही अलग-अलग हों मगर दोनों ही आंकड़ों में ट्रेंड इनमें कमी का है।

भारत सरकार ने देश में 2030 तक मलेरिया के ख़ात्मे का लक्ष्य रखा है और भारत इस दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ भी रहा है।

अब सवाल यह है कि जब देश भर में मलेरिया के मामलों में कमी आ रही है तो उत्तर प्रदेश में यह मामले क्यों बढ़ रहे हैं? इसका जवाब यूपी के संयुक्त निदेशक (मलेरिया) डॉ. अवधेश यादव देते हैं। 2018 में यूपी के बरेली और बदायूं में मलेरिया का आउट ब्रेक हुआ था, इसी वजह से यूपी में मलेरिया के मामले बढ़े हैं, डॉ. अवधेश ने बताया।

पिछले दो साल की तुलना में इस साल अभी तक राज्य में मलेरिया के मामलों में कमी दर्ज की गई है। इसकी वजह कोरोनावायरस महामारी और लॉकडाउन की वजह से जांच में आई गिरावट भी है। मलेरिया और दूसरे संचारी रोगों की रोकथाम के लिए राज्य सरकार ने एक जुलाई से संचारी रोग अभियान की शुरुआत की है।

बरेली मंडल में फैला था मलेरिया का प्रकोप

साल 2018 और 2019 में बरेली मंडल के दो ज़िलों-बरेली और बदायूं में मलेरिया का प्रकोप फैला। 2019 में उत्तर प्रदेश में मिले मलेरिया के कुल मामलों में से 73% इन्हीं दो ज़िलों में सामने आए थे, दैनिक जागरण की 5 अक्टूबर 2019 की इस रिपोर्ट के अनुसार।

"2018 के अगस्त महीने में बदायूं के कई गांवों के लोगों को बुख़ार की शिकायत हुई। इनकी जांच की गई तो इनमें मलेरिया पाया गया। पहले बदायूं में मरीज़ मिल रहे थे बाद में बरेली में भी मिलने लगे। दरअसल, बरेली और बदायूं से रामगंगा नदी गुजरती है। 2018 में भारी बारिश की वजह से रामगंगा नदी में बाढ़ आई और जगह-जगह पानी भर गया था। इस ठहरे हुए पानी में मलेरिया के मच्छर पैदा हुए और फिर बरेली और बदायूं के कई ब्लॉक इसकी चपेट में आ गए,” डॉ. अवधेश यादव ने इंडियास्पेंड को बताया।

डॉ. अवधेश यादव, संयुक्त निदेशक (मलेरिया) उत्तर प्रदेश। फ़ोटोः रणविजय सिंह

बदायूं के दातागंज, सलारपुर, समरेर और जगत ब्लॉक और बरेली के मजगवां, रामनगर, फ़रीदपुर, क्यारा और मीरगंज ब्लॉक मलेरिया से प्रभावित हैं। डॉ. अवधेश के मुताबिक़, यह सारे ब्लॉक मिलकर एक चतुर्भुज क्षेत्र बनाते हैं। इस क्षेत्र में पड़ने वाले गांवों में ही मलेरिया का प्रकोप ज़्यादा है।

जांच बढ़ाई तो बढ़े मामले

साल 2018 मलेरिया के मामले बढ़ने के बाद, राज्य सरकार ने इसकी जांच का दायरा बढ़ाया। जांच बढ़ने के साथ मामलों में और भी अधिक तेज़ी दर्ज की गई।

"2018 में जब हमें इसकी जानकारी हुई तो हमने पूरे प्रदेश में एक्टिव सर्विलांस का काम तेज़ कर दिया। हमारी टीमें घर-घर गईं और जांच की गई। जब हमने जांच बढ़ाई तो मामले भी न‍िकलकर आए। 2018 के सितंबर महीने में हमने पूरे प्रदेश में क़रीब 7.39 लाख जांच की, जिसमें से 22,440 मलेरिया के मामले सामने आए। इसी तरह 2019 के सितंबर महीने में हमने क़रीब 9 लाख जांच की, जिसमें 34,762 मामले सामने आए,” डॉ. अवधेश यादव ने बताया।

"उत्तर प्रदेश में मुख्‍य तौर पर दो तरह के मलेरिया पाए जाते हैं, 'प्लाज़्मोडियम वाइवैक्‍स' (साधारण मलेरिया) और 'प्लाज़्मोडियम फ़ाल्सीपेरम' (दिमाग़ी मलेरिया)। दिमाग़ी मलेरिया एक घातक बीमारी है, लेकिन इसका इलाज केवल तीन दिन का होता है। ऐसे में इसे ट्रैक करना आसान होता है जबकि साधारण मलेरिया का इलाज 14 दिन का होता है। साधारण मलेरिया में अगर कोई व्यक्ति शुरुआती दवा लेकर ठीक हो जाता है और पूरे 14 दिन का ट्रीटमेंट नहीं लेता तो उसे फिर से यह बीमारी होने का ख़तरा रहता है। ऐसे में यह केस बार-बार दर्ज होते हैं,” डॉ. अवधेश यादव ने बताया।

सीतापुर ज़िले का एक सामुदाय‍िक स्वास्थ्य केंद्र। फ़ोटोः रणविजय सिंह

साल 2019 की शुरुआत में उत्तर प्रदेश में टेस्ट-ट्रीटमेंट और ट्रैक (टीटीटी) प्रणाली शुरु की गई। इसके तहत ज़्यादा से ज़्यादा लोगों के टेस्ट करने, उनको दवा देने और दवा छूटने की निगरानी करना शामिल है। एक्टिव सर्विलांस की वजह से 2018 में क़रीब 53.12 लाख लोगों की जांच की गई, जिसमें 86,486 मरीज़ मिले। इसमें 22,134 दिमाग़ी मलेरिया के मरीज़ थे। इसी तरह 2019 में 58.54 लाख लोगों की जांच की गई, जिसमें से 92,732 मरीज़ मिले। इसमें 14,727 दिमाग़ी मलेरिया के मरीज़ थे, यह आंकड़े डॉ. अवधेश यादव ने दिए।

कोविड-19 से प्रभावित मलेरिया का सर्विलांस

वैसे तो मलेरिया के ज़्यादातर मामले जून से लेकर अक्टूबर तक आते हैं, लेकिन इसकी जांच पूरे साल चलती है और कुछ मामले भी मिलते रहते हैं। फिलहाल स्वास्थ्यकर्मी कोरोनावायरस की रोकथाम के काम में जुटे हैं, ऐसे में मलेरिया के सर्विलांस पर भी इसका असर पड़ा है।

"लॉकडाउन की वजह से सर्विलांस के काम में थोड़ा सी रुकावट आई है। इस साल बरेली और बदायूं दोनों ही ज़िले संवेदनशील थे, लेकिन अभी यहां मामले काफी कम हैं,” चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, बरेली मंडल के अपर निदेशक, डॉ. राकेश दुबे ने एक जुलाई को इंडियास्पेंड को बताया।

राज्य के संयुक्त निदेशक (मलेरिया) के दिए गए आंकड़ों के मुताबिक़, मार्च 2020 में क़रीब 3.72 लाख जांच की गई, जिसमें से मलेरिया के 848 मरीज़ मिले। 24 मार्च को घोषित लॉकडाउन से पहले मार्च के पूरे महीने स्वास्थ्यकर्मी सुचारु रूप से काम कर रहे थे। ऐसे में सर्विलांस पर ज़्यादा असर नहीं हुआ। लॉकडाउन लगने के बाद अप्रैल में केवल 35,844 जांच हो सकी, जिसमें सिर्फ़ 72 मरीज़ मिले। इसी तरह मई में क़रीब 41 हजार जांच हुई, जिसमें से 150 मरीज़ मिले।

संयुक्त निदेशक (मलेरिया) के दिए गए आंकड़े।

साल 2019 में मई महीने तक क़रीब 15.76 लाख लोगों की जांच हुई थी, जिसमें से 6,712 लोगों को मलेरिया पाया गया था। इस साल मई तक क़रीब 10.35 लाख लोगों की जांच हुई, जिसमें 2,369 मलेरिया के मरीज़ मिले।

इन आंकड़ों से साफ है कि कोरोनावायरस की वजह से मलेरिया का सर्विलांस बुरी तरह प्रभावित हुआ है। इस बात को सीतापुर ज़िले के गोंदलामऊ ब्लॉक के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के मेडिकल अधिकारी डॉ. पंकज कनौजिया भी स्वीकार करते हैं। "कोरोनावायरस की वजह से ओपीडी बंद हो गई थी। ऐसे में मलेरिया को लेकर बिल्कुल भी काम नहीं हुआ। पूरा स्टाफ़ कोरोनावायरस में लगा था। हां, अब संचारी रोग अभियान की शुरुआत हुई तो हमारी टीम गांव-गांव जा रही है,” डॉ. पंकज ने बताया।

संचारी रोग अभियान

एक जुलाई से उत्तर प्रदेश में संचारी रोग अभियान की शुरुआत हो गई है। जगह-जगह कैंप लगाकर जांच की जा रही है और जागरुकता अभियान भी चलाया जा रहा है।

सीतापुर के गोंदलामऊ ब्लॉक के नरवीरपुर गांव में ‘संचारी रोग अभियान’ का कैंप। फ़ोटोः रणविजय सिंह

इंडियास्पेंड की टीम जब सीतापुर के मलेरिया प्रभावित गांवों में थी तो हमें संचारी रोग अभियान से जुड़े कैंप भी दिखे। गांवों में इन कैंपों के ज़रिए लोगों को साफ-सफ़ाई के प्रति जागरुक किया जा रहा था। साथ ही उनकी जांच भी की जा रही थी।

"कोरोनावायरस की वजह से हमें किसी के भी घर में जाने की मनाही है, जो भी जानकारी देनी है घर के बाहर से देनी है। साथ ही दूरी भी बनाए रखनी है। हम इन सभी बातों को पालन करते हुए काम कर रहे हैं,” इस अभियान के बारे में आशा वर्कर सुमन वर्मा ने बताया।

"पिछले साल जितने भी केस पॉज़िटिव मिले थे, हम उनकी फिर से जांच करा रहे हैं। इसके अलावा जो हमारे प्रभावित ब्लॉक हैं वहां विशेष अभियान चला रहे हैं। इसमें तालाबों में गम्बूजिया फ़िश डलवाई गई है जो मच्छरों के लार्वा को खाती है। साथ ही ज़िले में टेस्टिंग करके तुरंत दवा दी जा रही है,” बदायूं के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. यशपाल सिंह ने इंडियास्पेंड को बताया।

(रणविजय, लखनऊ में स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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