भारत में 500,000 पुलिसकर्मियों की कमी। क्या संख्या रखती है मायने?
26 जुलाई 2016 को लोकसभा में पेश आंकड़ों के अनुसार, 1 जनवरी 2015 तक – नवीनतम उपलब्ध आंकड़े – भारत में 500,000 पुलिसकर्मियों की कमी है। लेकिन वैश्विक पुलिस स्टाफिंग पैटर्न और छह देशों में हत्या दरों पर हमारे द्वारा किए गए विश्लेषण संकेत देते हैं कि पुलिसकर्मियों की अधिक संख्या का यह मतलब नहीं कि अपराध कम होंगे।
अधिक पुलिसकर्मियों की संख्या = कम अपराध? संबंध स्पष्ट नहीं
Sources: Lok Sabha, unstarred question no 1506, July 26, 2016; South Asia Terrorism Portal; World Bank, International Homicides; Police Reform in Mexico, Daniel M Sabet, Stanford University Press; Interpol
Note: This is an indicative chart. Police-population ratios and homicide rates are not always for the same years. We have used homicide rates as a means of comparison between countries because the definition of crime varies globally and comparable data are not readily available.
पुलिस-जनसंख्या अनुपात में स्पष्ट रूप से जहां मायने रखती है वह भारत में पुलिस के काम करने के घंटे हैं। पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो की 2014 की इस रिपोर्ट के अनुसार, 90 फीसदी तक भारतीय पुलिसकर्मी वर्तमान में आठ घंटे से अधिक काम करते हैं। यह कहा गया है कि 68 फीसदी पुलिसकर्मी 11 घंटे से अधिक काम करते हैं जबकि 28 फीसदी 14 घंटे से अधिक काम करते हैं। करीब आधे ने रिपोर्ट की है कि महीने में छुट्टी के दौरान उन्हें कम से कम आठ से दस बार ड्यूटी पर बुलाया जाता है।
गृह मंत्रालय के अनुसार, 36 राज्यों और संघ शासित प्रदेशों में, 1.72 करोड़ पुलिसकर्मी हैं, जबकि पुलिस की संख्या 2.26 करोड़ होनी चाहिए। सरकारी अनिवार्य अनुपात – अधिकारिक भाषा में " स्वीकृत " कहा जाता है - के अनुसार, प्रति 547 भारतीयों पर एक पुलिस अफसर होना चाहिए, लेकिन वर्तमान में यह संख्या प्रति 720 भारतीयों पर एक पुलिस अफसर है।
यह संख्या, दुनिया में सबसे कम पुलिस-जनसंख्या अनुपात में से है। संयुक्त राज्य अमेरिका में, प्रति 436 लोगों पर एक पुलिस अफसर है जबकि स्पेंन प्रति 198 लोगों पर और दक्षिण अफ्रीका में प्रति 347 लोगों पर एक पुलिस अफसर है।
50 देशों की रैंकिंग में, भारत नीचे से दूसरे स्थान पर है, भारत के नीचे केवल युगांडा का स्थान है। यह जानकारी ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय की 2010 की इस रिपोर्ट में सामने आई है। उस वर्ष, प्रति 775 भारतीयों पर एक पुलिस अफसर का अनुपात था, तो लोकसभा में प्रस्तुत आंकड़ा एक सुधार का प्रतिनिधित्व करता है।
दक्षिण एशियाई टेररिज्म पोर्टल में उद्धृत संयुक्त राष्ट्र के मानकों के अनुसार, प्रति 454 लोगों पर एक पुलिस अफसर होना चाहिए। उन मानकों के संदर्भ में, बिहार में तीन गुना से भी अधिक पुलिसकर्मियों की आवश्यकता है; यहां तक कि भारतीय मानकों के अनुसार भी राज्य में पुलिसकर्मियों की संख्या की तुलना में 2.5 गुना अधिक पुलिस की आवश्यकता है।
2010 में की गई एक अमेरिकी अध्ययन के अनुसार, हालांकि यह तार्किक प्रतीत होता है कि अनुकूल पुलिस - जनसंख्या अनुपात का सहसंबंध वैश्विक स्तर पर अपराध दर के साथ है लेकिन रिश्तों पर अध्ययन, अनिर्णायक हैं, यहां तक कि विरोधाभासी है। पुलिस - जनसंख्या अनुपात और हत्या दरों पर किए गए हमारे विश्लेषण भी यही संकेत देते हैं।
भारत में, विद्रोह और अराजकता की अन्य चरम उदाहरण के कारण ,पर्याप्त पुलिस स्टाफ के बावजूद कुछ राज्यों में अपराध दर में वृद्धि हुई है। उदाहरण के लिए, छत्तीसगढ़ में - माओवादी उग्रवाद इलाका – प्रति 574 लोगों पर एक पुलिस अफसर है, जोकि भारतीय मानक से अधिक दूर नहीं है।
यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 28 जुलाई 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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