मणिपुर की गरीबी की फिक्र नहीं किसी को, जातीय संघर्ष सबसे बड़ा मुद्दा, अन्य मुद्दे बहुत पीछे
मणिपुर की राजधानी इम्फाल के पास 8 दिसंबर 2016 को नागा आर्थिक नाकेबंदी के खिलाफ नारेबाजी के दौरान भीड़ ने वाहनों को आग के हवाले किया। इंफाल-दीमापुर सड़क और इंफाल-सिलचर रोड के माध्यम से अधिकांश माल राज्य में लाया जाता है और इस चुनाव में अन्य सभी मुद्दों की तुलना में इन पर लगाई गई आर्थिक नाकेबंदी भारी रही है।
इंफाल-दीमापुर सड़क और इंफाल-सिलचर रोड के माध्यम से अधिकांश माल राज्य में लाया जाता है और इस चुनाव में अन्य सभी मुद्दों की तुलना में इन पर लगाई गई आर्थिक नाकेबंदी भारी रही है। मणिपुर भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में से एक है जहां सर्वोच्च गरीबी दर, युवा बेरोजगारी दर उच्च है। साथ ही विकास भी कम हुआ है।
आकार के लिहाज से मणिपुर हरियाणा से आधा है, जबकि राज्य की आबादी मुबंई की तुलना में एक-तिहाई है। राज्य में 30 से ज्यादा आदिवासी समूह हैं और छह सक्रिय आतंकवादी समूह हैं।
नई दिल्ली स्थित गैर लाभकारी संस्था ‘इन्स्टटूट ऑफ फॉर कंफिल्क्ट मैनेजमेंट’ के साथ रिसर्च एसोसिएट बिनोद कुमाई कहते हैं, “आर्थिक नाकेबंदी जो राज्य के जातीय संघर्ष की एक मिसाल है आज की तारीख में ज्वलंत समस्या है। ” वह कहते हैं, आवश्यक वस्तुओं की कीमतें आसमान छू रही हैं। रसोई गैस सिलेंडर) 1,000 रुपए में बेचा जा रहा है, जबकि राष्ट्रीय राजधानी में 651.50 रुपए में मिलती है। राज्य में पेट्रोल की कीमत 200 रुपए प्रति लीटर है, वहीं राष्ट्रीय राजधानी में इसकी कीमत प्रति लीटर 71.33 रुपए है।
इम्फाल फ्री प्रेस के संपादक, प्रदीप फनजोउबम 1 नवंबर, 2016 से चल रहे नाकेबंदी पर कहते हैं, “लोग शांति की उम्मीद से आगे कुछ देख नहीं पा रहे हैं।”
8 दिसंबर, 2016 को मणिपुर सरकार ने सात जिलों को 14 जिलों में विभाजित करने की एक राजपत्र अधिसूचना जारी की है।
नाकाबंदी यूनाइटेड नगा काउंसिल द्वारा लगाया गया है, जो सरकार से मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्रों में नए जिलों को बनाने के लिए अपने निर्णय पर वापस जाने की मांग कर रही है, जैसा कि ‘फर्स्टपोस्ट’ ने फरवरी 2017 में बताया है। समूह का कहना है कि निर्णय से पहले नगा के सदस्यों से परामर्श नहीं किया गया है। साथ ही कुछ जिले के जो विभाजन हो रहे हैं, उसे नागा अपनी पैतृक भूमि बता रहे हैं।
मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह के नेतृत्व में सरकार ने कहा कि नए जिलों के बनने से बेहतर प्रशासन में मदद मिलेगी, जैसा कि हिंदुस्तान टाइम्स जनवरी 2017 में विस्तार से बताया है। नए जिलों से विधानसभा क्षेत्रों में परिवर्तन नहीं होंगे।
लेकिन नाकाबंदी पर फोकस ने मणिपुर में अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों को पीछे धकेल दिया है।
कम प्रति व्यक्ति आय, अस्थिर विकास
मणिपुर में 24,042 रुपए की प्रति व्यक्ति आय देश में सबसे कम है, और पिछले 10 वर्षों के रुझान से धीमी गति की वृद्धि दिखती है। कभी कभी, यहाँ तक कि शुद्ध घरेलू उत्पाद और राज्य की प्रति व्यक्ति आय, दोनों में संकुचन में भी देखा गया है, जैसा कि नीति आयोग द्वारा संकलित जानकारी से पता चलता है।
पिछले एक दशक में मणिपुर की आर्थिक वृद्धि असंगत
Source: NITI Aayog
धीमा विकास भी उच्च शहरी बेरोजगारी के कारणों में से एक है। मणिपुर के शहरी इलाकों में 18 से 29 वर्ष के आयु वर्ग में 1,000 लोगों में से कम से कम 188 बेरोजगार हैं, जबकि राष्ट्रीय औसत प्रति 1,000 लोगों पर 139 बेरोजगार का है। माणिपुर में 18 से 29 वर्ष की आयु के बीच 23.3 फीसदी आबादी के साथ रोजगार एक मुख्य चुनौती है।
इम्फाल फ्री प्रेस के संपादक फनजाउबम कहते हैं, “बेरोजगारी एक बड़ा मुद्दा होना चाहिए था, लेकिन नाकाबंदी की वजह से यह नहीं है। इस चुनाव ने रोज-रोज की वास्तविकताओं से सबका ध्यान हटा दिया है। ”
मणिपुर में उच्च युवा बेरोजगारी, 2015-16
Source: Report on Youth Unemployment, 2015-2016, Ministry of Labour and Employment; *Ages 18-29
मणिपुर में गरीबी रेखा के नीचे एक तिहाई लोग, लेकिन बुनियादी स्वास्थ्य संकेतक अच्छे
इन दो वास्तविकताओं में विरोध दिखता है। भारत का तीसरी सबसे गरीब राज्य, देश का सबसे कम शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) वाला राज्य भी है, जो विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार प्रति 1000 जीवित जन्मों नौ लोगों की मृत्यु पर ब्राजील, अर्जेंटीना और सऊदी अरब की तुलना में बेहतर है।
कम शिशु मौतों के लिए कुछ कारणों में बेहतर चिकित्सा सुविधाएं, डॉक्टरों और नर्सों की अधिक संख्या और महिला सशक्तिकरण शामिल हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने फरवरी 2016 को विस्तार से बताया है।
मणिपुर प्रति 1,000 लोगों पर एक डॉक्टर का अनुपात है जैसा कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट में है। यह आंकड़े प्रति 1,700 लोगों पर एक डॉक्टर के राष्ट्रीय अनुपात से बेहतर है। प्रति आबादी पर प्रशिक्षित नर्सों का अनुपात 1: 600 है, जबकि राष्ट्रीय औसत 1:638 है।
मणिपुर में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या वर्ष 2009 के बाद से कम हुई है। वित्त वर्ष 2011-12 में मणिपुर की एक-तिहाई आबादी अब भी गरीबी रेखा के नीचे रह रही थी, ग्रामीण इलाकों में प्रति माह, प्रति व्यक्ति आय 1,118 रुपए थी, जबकि शहरी क्षेत्रों में 1,170 रुपए थी।
मणिपुर की तुलना में केवल दो राज्य- छत्तीसगढ़ और झारखंड में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या ज्यादा है।
मणिपुर में गरीबी दर में गिरावट, भारत में सबसे अधिक
Source: Planning Commission reports here and here, Ministry of Development of North-eastern Region estimates
राज्य में महिलाओं की स्थिति में भारत में बेहतर है। किसी भी अन्य राज्य की तुलना में मणिपुर में जन्म ली हुई लड़की का ज्यादा शिक्षित होने की संभवना है। वयस्क के रूप में अधिक लड़कियों के काम करने की संभावना भी है। साथ ही जन्म के समय अधिक बच्चों के जीवित होने की संभावना । महिलाओं के खिलाफ अपराध कम है। इस पर इंडियास्पेंड ने नवंबर 2016 में विस्तार से बताया है।
मणिपुर की महिलाएं: भारत में अन्य कई से बेहतर
Source: Census 2011; Census 2011; The National Sample Survey Office Report; Regional Institute of Medical Sciences Manipur 2010-11; Sample Registration System Report 2010-12; NCRB Crime in India 2015 Report.
Note: Rankings are among 29 states; they do not include union territories.
उग्रवाद की समस्या के बावजूद यहां स्वास्थ्य और लिंग संकेतक उच्च रहे हैं। यह उग्रवाद 60 के दशक में शुरू हुआ, जब तीस से अधिक जनजातियों के लिए घर रहे मणिपुर को भारतीय संघ का हिस्सा बनाया गया था।
मोटे तौर पर उग्रवादियों की दो मांगे हैं । एक नागाओं की तरफ से है, जो अलग ग्रेटर नागालैंड चाहते हैं,एक राज्य जो मणिपुर के कुछ हिस्सों को नियंत्रित करेगा। नागा मणिपुर में तीन प्रमुख जातीय समूहों में से एक हैं। अन्य दो में एक घाटी में रहने वाली जाति मेइती और पहाड़ों पर रहने वाली जाति कुकी हैं।
अन्य विद्रोही समूह, जिसमें ज्यादातर मेइती हैं, भारत से अलग होकर एक संप्रभु राज्य बनाना चाहता है। तमाम उथल-पुथल के बावजूद, उग्रवाद से संबंधित होने वाली मौतों में गिरावट हुई है।
पिछले 10 वर्षों में उग्रवाद से संबंधित मौतों में 90 फीसदी कमगिरावट
कुल मिलाकर वर्ष 2009 के बाद से, विशेष रुप से वर्ष 2012 के बाद, मणिपुर में उग्रवादी गतिविधियों की कारण होने वाली मौतों में कमी हुई है। दक्षिण एशिया टेररिज्म पोर्टल के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2016 में, 14 नागरिक और 11 सुरक्षा अधिकारियों की मौत हुई है जबकि वर्ष 2006 में 107 नागरिक और 37 सुरक्षा अधिकारियों की मौत का आंकड़ा था।
विवाद का एक और मुद्दा है, 59 साल पुराना सशस्त्र बल अधिनियम (एएफएसपीए) है, जो अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड और त्रिपुरा के अशांत क्षेत्र में भारतीय सशस्त्र बलों के लिए विशेष शक्तियां प्रदान करता है। इसमें किसी व्यक्ति द्वारा कानून तोड़ने पर गोली मारने की शक्ति भी शामिल है, भले ही इससे किसी की मौत हो जाए।
एएफएसपीए के तहत अधिकारी को किसी व्यक्ति के संज्ञेय अपराध करने पर (गंभीर अपराधों के लिए जो एक पुलिस अधिकारी अदालत की अनुमति के बिना जांच शुरू कर सकते हैं ) बिना वारंट गिरफ्तार करने का अधिकार भी प्राप्त है। संदेह के आधार पर भी गिरफ्तार किया जा सकता है। इस अधिनियम के तहत काम कर रहे अधिकारी पर केंद्र सरकार की मंजूरी के बिना मुकदमा चलाया नहीं जा सकता है।
आलोचकों का कहना है कि यह अधिनियम सशस्त्र बलों बहुत अधिक शक्ति देता है । निवासियों की मांग है कि इस अधिनियम को मणिपुर रद्द कर देना चाहिए।
पिछले एक दशक में मणिपुर में उग्रवाद के कारण होने वाली मौतों में गिरावट
Source: South Asia Terrorism Portal
मणिपुरी कार्यकर्ता, इरोम शर्मिला जो जो पिछले 16 वर्षों से एएफएसपीए के खिलाफ भूख हड़ताल पर थीं उन्होंने इस साल, मणिपुर से अधिनियम को निरस्त करने के उद्देश्य से एक राजनीतिक दल बनाने के लिए हड़ताल तोड़ा है। उनकी पार्टी ‘पीपल्स रीसर्जेन्स एंड जस्टिस एलायन्स’ भारतीय जनता पार्टी, और नगा पीपुल्स फ्रंट, राज्य में चुनाव लड़ने वाली कुछ पार्टियां हैं जो पिछले 15 वर्षों से यहां सत्ता में रहे कांग्रेस पार्टी का विरोध कर रहे हैं।
(शाह लेखक / संपादक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)
यह लेख मूलत: 3 मार्च 2017 को अंग्रेजी में indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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