“महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक भागीदारी पर ध्यान देने की जरूरत”
नई दिल्ली: शहरी भारत में महिलाएं बेहतर रोजगार के अवसरों को छोड़ते हुए कम वेतन वाले स्थानीय अवसरों को चुनती हैं, क्योंकि सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था अक्सर अविश्वसनीय है या कठिन है।
सामाजिक और आर्थिक अवसरों तक पहुंच को सुविधाजनक बनाने हुए सुरक्षित, आरामदायक, सुविधाजनक और किफायती परिवहन महिलाओं के सशक्तिकरण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 9 अप्रैल, 2018 की रिपोर्ट में बताया है।
वैश्विक पोषण रिपोर्ट 2017 के मुताबिक 15-49 आयु वर्ग की लगभग 51 फीसदी भारतीय महिलाएं एनीमिक थीं, जो दुनिया में सबसे ज्यादा है, जो महिलाओं की उत्पादकता और स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित करता है।
आर्थिक गतिविधियों में महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि करना देश लिए बड़ी चुनौतियों में से एक है, जैसा कि इंडियास्पेंड पर चल रहे लेख श्रृंखलाओं में प्रकाश डाला गया है।
कुछ हद तक समस्या को ठीक किया जा सकता है, यदि देश महिलाओं से संबंधित, ‘छोटे-छोटे मुद्दों’ पर ध्यान दे , जिनका आर्थिक भागीदारी पर भी गहरा असर हो सकता है। उदाहरण के लिए, बच्चों के लिए किफायती और सुरक्षित डे-केयर और विश्वसनीय परिवहन प्रदान करने से स्थिति बदल सकती है, जैसा कि एक गैर-लाभकारी संस्था, इंटरनेशनल डेवलपमेंट रिसर्च सेंटर (आईडीआरसी) के अध्यक्ष, जीन लेबेल, ने एक साक्षात्कार में इंडियास्पेंड को बताया है।
आईडीआरसी अनुसंधान की गुणवत्ता में सुधार के लिए भारतीय सार्वजनिक नीति संस्थानों का समर्थन कर रहा है, और इसमें समर्थित प्रमुख गतिविधियों में महिला सुरक्षा और आर्थिक मजबूती, हाशिए वाले श्रमिकों के बीच उद्यमिता को बढ़ावा देना, जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन और बाजार उत्पादन और खपत को बढ़ावा देना शामिल है।
2013 में आईडीआरसी के अध्यक्ष बने जीन लेबेल ने इन मुद्दों में से कुछ के बारे में इंडियास्पेंड से बात की। पेश है संपादित अंश:
2004-05 और 2011-12 के बीच भारत में नौकरियां छोड़ने वाली महिलाओं की संख्या (पिछले वर्ष जनगणना डेटा उपलब्ध है) 19.6 मिलियन है। यदि यह एक शहर होता, तो यह शंघाई और बीजिंग के बाद दुनिया में तीसरा सबसे अधिक आबादी वाला शहर होता। आईडीआरसी लिंग इक्विटी के विषय पर केंद्रित है। लिंग पक्षपातों को कम करने के लिए एक विकासशील देश को ध्यान केंद्रित करने वाले प्रमुख मार्कर क्या हैं?
भारत और दक्षिण एशिया में महिला कार्य भागीदारी में कमी आई है, क्योंकि सामाजिक-आर्थिक वातावरण को और अधिक अनुकूल होना जरूरी है। महिलाओं के लिए ग्रोथ एंड इकोनोमिक आपर्टूनिटी फॉर वुमन (ग्रो) कार्यक्रम समृद्ध साधन पैदा करने की नीतियों को साथ लेकर चलते हुए महिलाओं की आर्थिक भूमिकाओं पर केंद्रित है।
भारत और (दक्षिण एशिया) क्षेत्र में हमारे शोध से पता चलता है कि छोटे मुद्दे महिलाओं के जीवन के आर्थिक पहलू पर गहरा प्रभाव डालते हैं।
बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल करने के कार्य के साथ महिलाओं पर अत्यधिक बोझ डाला जाता है। एक गैर लाभकारी संस्था, सेवा मंदिर के साथ हमारा शोध दर्शाता है कि बच्चों के लिए किफायती और सुरक्षित डे-केयर ने महिलाओं को राजस्थान में काम करने के लिए स्वतंत्र माहौल दिया, और इसका मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। पाकिस्तान में हमारे शोध से पता चला है कि असुरक्षित सार्वजनिक परिवहन महिलाओं को काम के लिए यात्रा से रोकता है। देशों को इन मुद्दों पर ध्यान देने की जरूरत है।
आखिरकार, ‘सभ्य श्रम’ (अच्छी तरह से भुगतान और सुरक्षित काम ) की अवधारणा एक समावेशी सामाजिक-आर्थिक वातावरण विकसित करने के लिए अपनाया जाना चाहिए। पितृसत्ता और सामाजिक मानदंडों की तरह अन्य मुद्दे भी हैं, जो महिलाओं की सामाजिक-आर्थिक भागीदारी में बाधा डालती हैं। साक्ष्य-आधारित अनुसंधान को उन नीतियों को विकसित करने में बड़ी भूमिका निभानी होगी, जो महिलाओं को कार्यबल में भाग लेने में मदद करते हैं।
आईडीआरसी के डबल फोर्टिफाइड सॉल्ट (डीएफएस) परियोजना के निष्कर्ष क्या हैं? क्या यह मापनीय है?
डबल-फोर्टिफाइड सॉल्ट के विभिन्न पहलुओं पर कनाडा और भारत में कई अध्ययन किए गए हैं। उदाहरण के लिए, भंडारण के बाद नमक में आयोडीन प्रतिधारण का अध्ययन करने के लिए एक अध्ययन आयोजित किया गया था। एक और अध्ययन में उपभोक्ता स्वीकार्यता और स्वाद पर केंद्रित किया गया। दो अतिरिक्त अध्ययनों में महिलाओं और बच्चों के लोहे और आयोडीन की स्थिति में सुधार के प्रदर्शन को देखा गया।
डबल-फोर्टिफाइड नमक के बड़े पैमाने पर प्रभाव का आकलन करने के लिए, पोषण संबंधी कमियों के मौजूदा स्तर को निर्धारित करने के लिए आधारभूत अध्ययन आयोजित किया गया है। एक बार सार्वजनिक वितरण प्रणाली द्वारा एक वर्ष की अवधि के लिए डबल-फोर्टिफाइड नमक की आपूर्ति लगातार उपलब्ध होने के बाद बड़े पैमाने पर इसेक प्रभाव पर अध्ययन आयोजित किया जाएगा।
परियोजना को आसानी से बढ़ाया जा सकता है, क्योंकि यह नियमित रूप से घरेलू नमक को डबल-फोर्टिफाइड नमक के साथ बदल सकता है।
ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट 2017 के मुताबिक 15-49 साल की 51 फीसदी भारतीय महिलाएं एनीमिक पाई गई हैं। एनीमिया न केवल महिलाओं के प्रति व्यक्ति उत्पादकता पर प्रभाव डालती है, बल्कि भारत में बच्चों और माताओं की मृत्यु दर भी प्रभावित करती है। डीएफएस परियोजना से इस मुद्दे को कैसे हल किया जा सकता है?
डबल-फोर्टिफाइड नमक में लौह और आयोडीन दोनों को एक साथ प्रदान करके एनीमिया को कम करने की क्षमता है। पोषक तत्वों को खोने या भोजन के स्वाद को बदले बिना आयोडीन के साथ प्रतिक्रिया करने से लौह को रोकने के लिए डबल-फोर्टिफाइड नमक में एक अनूठी तकनीक का उपयोग किया जाता है। अमीर हो या गरीब, नमक का उपभोग लगभग हर किसी के द्वारा किया जाता है। इसमें भारत में महिलाओं और बच्चों में एनीमिया के उच्च स्तर को ठीक करने की क्षमता है।
भारत में छोटे बाजरा ( कृषि उपज, एनीमिया से लड़ने में सक्षम ) का उत्पादन 1951-55 में 2.17 मिलियन टन से घट कर 2011-15 में 0.4 मिलियन टन हो गया है और 2011-15 में छोटे बाजरा फसलों के तहत क्षेत्र 5.3 मिलियन हेक्टेयर से घटकर 2011-15 में 0.7 मिलियन हेक्टेयर हो गया है। आईडीआरसी भारत में बाजरा के प्रचार पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। क्यूं?
उच्च पौष्टिक मूल्य, भारतीय आहार में छोटे बाजरा की पारंपरिक भूमिका, और दूसरे फसलों के लिए लगातार अप्रत्याशित मौसम और जलवायु परिवर्तन से बढ़ने वाली कीटों और बीमारियों जैसे खतरों की वजह से भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिकों के बीच बाजरा की स्वीकार्यता बढ़ी है। प्रोफेसर एम. एस. स्वामीनाथन जैसे वैज्ञानिक भी बाजरा के महत्व पर जोर दे रहे हैं।
छोटे बाजरे से भूसी हटाने के लिए एक कुशल और आसान प्रक्रिया स्थानीय आहार में इस कठोर फसल को वापस ला सकती है। भूसी निकालने का कठिन काम आम तौर पर महिलाओं के लिए आता है, लेकिन हमारे शोध से पता चलता है कि अगर भूसी निकालने के लिए एक सरल और कम समय लेने वाला काम बनाया जाए, तो यह महिलाओं के काम के बोझ को भी काफी कम करेगा और वे अन्य गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित कर सकती हैं।
आईडीआरसी बाजरा के श्रम-केंद्रित भूसी निकालने को सरल बनाने के लिए एक बाजरा प्रसंस्करण इकाई का प्रचार कर रहा है। यह मशीन कैसे काम करती है?
बाजरा बीज से बाहरी भूसी को अलग करना महिलाओं द्वारा मैन्युअल रूप से किया जाने वाला एक कठिन और समय लेने वाला काम है। इससे सूक्ष्म पोषक तत्व युक्त इस समृद्ध अनाज की खपत कम हो पा रही है। आईडीआरसी शोधकर्ताओं ने नई प्रसंस्करण इकाइयों को विकसित कर इस प्रक्रिया को आसान बनाया है। लोग अब बाजरे में दिलचस्पी ले रहे हैं।
पिछले सात वर्षों में, आईडीआरसी और ग्लोबल अफेयर्स कनाडा द्वारा समर्थित शोधकर्ताओं ने कम लागत वाली मशीनों को विकसित करके बाहरी भूसी को बाजरा बीज से आसानी से अलग करने की प्रोद्योगिकी विकसित की है। कनाडा में मैकगिल विश्वविद्यालय और भारत में तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित मशीनें स्थानीय उत्पादन में वृद्धि कर रही हैं और चोकर के नुकसान और छिलके के प्रतिशत को कम कर रही हैं। इससे महिलाओं द्वारा बाजरा को हटाने में लगने वाला समय 70 फीसदी तक कम हुआ है।
सरकारों और उद्यमों के बीच भारत भर में बाजरा उत्पादन और वितरण का विस्तार करने में मदद के लिए नए शोधकर्ता व्यावसायिक मॉडल का परीक्षण कर रहे हैं।
यह परियोजना छोटे उद्यमों और किसान संगठनों के बीच 120,000 से अधिक उपभोक्ताओं के लिए तैयार बाजरा उत्पादों को पेश करने के लिए कौशल और जानकारी भी बढ़ा रही है।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, 2015 में, उत्तरी भारत में असाधारण वर्षा से 8 मिलियन से अधिक हेक्टेयर फसल बर्बाद हो गए। आईडीआरसी एक एग्रोमेटोरोलॉजी सलाहकार परियोजना की सुविधा प्रदान कर रहा है जिसका उद्देश्य किसानों को मौसम पूर्वानुमान प्रदान करना है। ये पूर्वानुमान भारतीय मौसम विज्ञान विभाग द्वारा प्रदान की गई सलाह से अलग कैसे होंगी और इसका उद्देश्य क्या है?
परियोजना का उद्देश्य जलवायु पूर्वानुमान और कृषि सलाह के साथ जलवायु से अन्य खतरों के लिए किसानों की सहायता करना और उन्हें तैयार करना है। एग्रोमेटोरोलॉजी प्रोजेक्ट को ‘बहु-दाता पहल’ द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है जो भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) और गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) द्वारा स्थापित 69 स्वचालित मौसम स्टेशनों से डेटा का उपयोग करता है। कृषि विश्वविद्यालय और आईएमडी की मदद से, एनजीओ सूचनाओं का विश्लेषण कृषि सलाह तैयार करने के लिए करता है, जिसे उपयोगकर्ताओं को उनके मोबाइल फोन पर भेजा जाता है।
यह परियोजना किसान क्षेत्र के स्कूलों के माध्यम से किसानों की क्षमता बढ़ाने में भी मदद करेगी।
आईडीआरसी ने लिंग समानता और जलवायु परिवर्तन के लिए एक नया वित्त पोषण अवसर खोला है। लिंग समानता जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में कितना महत्वपूर्ण है?
इसका उद्देश्य ज्ञान का उत्पादन करना है, जो सामाजिक रूप से परिवर्तनीय जलवायु अनुकूलन समाधानों के स्केलिंग और वित्तपोषण को सुविधाजनक बनाता है। महिलाओं की अंतर्दृष्टि समुदाय अनुकूलन में सुधार करने में मदद कर सकती है। कम विकसित देशों में महिलाओं को सशक्त बनाने पर हमारा ध्यान केंद्रित है, जिनपर जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय तनाव के प्रभाव सबसे ज्यादा हैं।
(त्रिपाठी प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)
यह साक्षात्कार मूलत: अंग्रेजी में 13 मई, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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