मां पढ़ी-लिखी तो बच्चे स्वस्थ
पुरानी मान्यता है, मां पढ़ी-लिखी हो तो बच्चे का भविष्य उज्ज्वल।अपने देश में भी बाल स्वास्थ्य परिणामों को बेहतर बनाने के लिए नीति निर्माता भी महिलाओं की शिक्षा पर अधिक संसाधन लगाने की योजना बनाई है।, जिससे परिणाम सुखद हो। यह जानकारी ‘राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण’ 2015-16 (एनएफएचएस -4) के आंकड़ों पर इंडियास्पेंड द्वारा किए गए विश्लेषण में सामने आई है। अधिक शिक्षित महिलाओं वाले राज्यों में बच्चों के लिए बेहतर स्वास्थ्य परिणाम देखे गए हैं।
हमने पांच वर्ष की आयु के भीतर उच्च मृत्यु दर वाले पांच राज्यों और निम्न मृत्यु दर वाले पांच राज्यों के आंकड़ों पर गौर किया और दोनों के बीच 10 से अधिक वर्षों के स्कूली शिक्षा प्राप्त महिलाओं के मुकाबले उनके प्रदर्शन की तुलना की।
पांच वर्ष की आयु के भीतर मृत्यु दर का मतलब प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर होने वाली मृत्यु की संख्या है। यूनिसेफ के अनुसार, यह बाल स्वास्थ्य का एक अच्छा सूचक माना जाता है, क्योंकि यह विभिन्न प्रकार के इनपुट जैसे कि मां के पोषण संबंधी स्थिति और स्वास्थ्य, प्रतिरक्षण स्तर, आय और भोजन की उपलब्धता, स्वच्छता, मातृ एवं बाल स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता और समग्र सुरक्षा के परिणाम हैं।
हमने पाया कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार और असम में पांच वर्ष के भीतर की मृत्यु दर उच्च है। इन राज्यों में 10 वर्ष के अधिक की स्कूली शिक्षा प्राप्त करने वाली महिलाओं का प्रतिशत 35.7 फीसदी के राष्ट्रीय औसत से कम है।
पांच वर्ष के भीतर बद्तर मृत्यु दर वाले राज्य
Source: National Family Health Survey, 2015-16
देश में केरल, गोवा, मणिपुर, तमिलनाडु और महाराष्ट्र में पांच वर्ष के भीतर का मृत्यु दर सबसे कम है। इन राज्यों में 10 से अधिक वर्षों तक स्कूली शिक्षा प्राप्त महिलाओं का प्रतिशत राष्ट्रीय औसत से काफी अधिक है।
पांच वर्ष के भीतर मृत्यु दर में सुधार वाले राज्य
Source: National Family Health Survey, 2015-16
अन्य प्रमाण भी हैं, जो बताते हैं कि महिला शिक्षा से बच्चों के स्वास्थ्य पर बेहतर प्रभाव पड़ता है। पढ़ सकने वाली महिलाएं जब मां बनती हैं तो उन बच्चों की पांच साल तक जीवित रहने के संभावना 50 फीसदी अधिक होती है। संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन की 2011 की रिपोर्ट ‘एजुकेशन काउंट’ के मुताबिक माता के स्कूली शिक्षा के प्रत्येक वर्ष से शिशु मृत्यु दर 5 से 10 फीसदी तक कम हो जाने की संभावना रहती है।
पांच वर्ष के भीतर निम्न मृत्यु दर वाले राज्यों ने महिलाओं के सशक्तिकरण संकेतकों पर बेहतर प्रदर्शन किया है। इन राज्यों में अधिक महिलाओं के पास बैंक खाते हैं और वे इसका इस्तेमाल खुद करती हैं। साथ ही 18 वर्ष की आयु से पहले लड़कियों के विवाह हो जाने की दर राष्ट्रीय औसत की तुलना में कम है।
इन राज्यों में प्रसवपूर्व पूर्ण देखभाल प्राप्त करने वाली ऐसी महिलाओं का प्रतिशत राष्ट्रीय औसत से अधिक है, जो गर्भावस्था के दौरान 100 दिन या इससे अधिक के लिए आयरन और फोलिक एसिड (आईएफए) की खुराक लेती हैं। इसके अलावा इन राज्यों में कम वजन वाले बच्चों का प्रतिशत राष्ट्रीय औसत से कम है।
स्वस्थ महिला, स्वस्थ बच्चे को जन्म देती है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने जनवरी 2016 की रिपोर्ट में बताया है। गर्भावस्था के दौरान आईएफए की खुराक, माता और बच्चे की पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद करती है।यह खुराक एनीमिया को रोकने में मदद करता है। साथ ही जन्म दोषों की संभावना को भी कम करता है।
इस मामले में केरल की मिसाल दी जा सकती है। केरल में पांच वर्ष के भीतर मृत्यु दर निम्न है ( प्रति जीवित जन्मों पर सात मृत्यु, जो संयुक्त राज्य के आंकड़ों के बराबर है ) । राज्य में 10 वर्ष से अधिक स्कूली शिक्षा प्राप्त महिलाओं का प्रतिशत 72.2 फीसदी है। कम से कम 63.4 फीसदी महिलाओं को प्रसव पूर्व पूर्ण देखभाल प्राप्त होता है । 67.1 फीसदी महिलाओं को 100 दिनों के लिए आईएफए गोलियां मिलती हैं। प्रसव पूर्व पूर्ण देखभाल का औसत राष्ट्रीय आंकड़ा 21 फीसदी और 100 दिनों के लिए आईएफए गोलियां लेने वाली महिलाओं का औसत 30.3 फीसदी है।
दूसरी ओर देखें तो उत्तर प्रदेश में पांच वर्ष के भीतर मृत्यु दर उच्च है। उत्तर प्रदेश के लिए आंकड़े प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर 78 मृत्यु का है। राज्य में केवल 32.9 फीसदी महिलाओं ने 10 साल या उससे अधिक की पढ़ाई पूरी की है। केवल 5.9 फीसदी महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान प्रसवपूर्व पूर्ण देखभाल प्राप्त होता है, जबकि गर्भावस्था के दौरान केवल 12.9 फीसदी महिलाएं 100 या उससे अधिक दिनों के लिए आईएफए गोलियों का सेवन करती हैं।
(सालवे विश्लेषक हैं और यादवार प्रमुख संवाददाता हैं। दोनों इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)
यह लेख मूलत:अंग्रेजी में 20 मार्च 17 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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