मिड डे मील स्कीम में अंडे पर ‘आहार राजनीति ’?
नई दिल्ली: रिसर्च स्कॉलर और ‘राइट टू फूड अभियान’ कार्यकर्ता स्वाति नारायण ने हाल ही में सरकारी डेटा और मीडिया रिपोर्टों का उपयोग करते हुए पूरे भारत में स्कूलों और आंगनवाड़ी में मध्य- भोजन में अंडे शामिल करने की स्थिति का मानचित्र बनाया है। यह मानचित्र राजनीतिक विचारधारा और मध्याह्न भोजन योजना में अंडों के प्रावधान के बीच के संभावित संबंधों को देखता है। इसे 8 जुलाई, 2018 को जारी किया गया था।
14 of 19 BJP-majority states, deny eggs to children in schools and anganwadis
In Saeed Ahmed v State of U.P. (6871 of 2017), Allahabad High Court ruled “food that is conducive to health cannot be treated as a wrong choice...“
Latest #AndaDo maps of weekly eggs #AndaAbhiyan pic.twitter.com/6me0wwE1TS
— Swati Narayan (@SNavatar) July 8, 2018
नारायण के शोध के आधार पर इंडियास्पेंड ने सरकारी पोषण डेटा का विश्लेषण किया। कई विशेषज्ञों और सरकारी अधिकारियों से बात की और पाया कि:
- भारत में सबसे खराब पोषण परिणामों वाले 10 राज्यों में से केवल तीन बिहार, झारखंड और कर्नाटक ही, मिड डे मील स्कीम में बच्चों को अंडे प्रदान करते हैं।
- भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) या उनके सहयोगियों द्वारा शासित 19 राज्यों में से केवल पांच ही मिड डे मील स्कीम में बच्चों को अंडे देते हैं।
- कुछ गैर-भाजपा राज्य भी (पंजाब, मिजोरम और दिल्ली) मध्य-भोजन के भोजन में अंडे नहीं देते हैं। हालांकि, शाकाहारियों की भावनाओं से संबंधित होने के कारण भाजपा शासित राज्यों में अंडों को शामिल करने पर सबसे ज्यादा विरोध की संभावना है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16 के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में, पांच साल से कम आयु के 7.5 फीसदी बच्चे गंभीर रूप से वेस्टेड हैं। डेटा के मुताबिक, 2005-06 में यह 6.4 फीसदी था, जिसमें 1.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
इंडियास्पेंड द्वारा साक्षात्कार किए गए सभी विशेषज्ञों का मानना था कि बच्चों के मध्य-भोजन में शामिल अंडों से कुपोषण से मुकाबला करने में महत्वपूर्ण मदद मिल सकती है।
सबसे खराब पोषण संकेतक के साथ बच्चों को अंडे प्रदान करने वाले 10 राज्यों में से 3 राज्य
Source: NITI Aayog, Swati Narayan
पुणे के आशाकिरण अस्पताल में एक सार्वजनिक स्वास्थ्य पोषण विशेषज्ञ और चयापचय नैदानिक आहार विशेषज्ञ मानसी पाटिल कहती हैं, "बच्चों के बीच कुपोषण को खत्म करने में अंडे सहायक होंगे, क्योंकि वैज्ञानिक अनुसंधान से पता चलता है कि पशु आधारित प्रोटीन पौधे आधारित प्रोटीन से बेहतर हैं।"
भारत के कुछ राज्यों ने पहले मध्य भोजन शुरू किया, लेकिन 2001 से यह पूरे देश में शुरु हुआ। 1989 में तमिलनाडु में मध्य भोजन में पहली बार अंडे दिए गए। तब राज्य द्रविड़ मुनेत्र कझागम (द्रमुक) द्वारा शासित था। पहले हर दो हफ्ते में एक बार अंडे दिए जाते थे, बाद में हर हफ्ते एक बार यह सेवा शुरु हुई।
सवाल यह है कि भाजपा द्वारा शासित राज्य में ऐसा क्यों नहीं? यहां यह जान लेना भी जरूरी है कि कम वजन वाले बच्चों की एक बड़ी संख्या गुजरात (39.3 फीसदी) और मध्य प्रदेश (42.8 फीसदी) में भी है, फिर भी मध्य भोजन में अंडे देने के बारे में क्यों नहीं कोई योजना बनी ?
इंडियास्पेंड ने जब भाजपा शासित राज्यों के अधिकारियों से बातचीत की तो उनका कहना था, “ शाकाहारियों की भावनाओं को चोट पहुंचने को लेकर हम लोग चिंतित थे।”
गुजरात में कमिश्नर (मिड डे मील स्कीम) आरजी त्रिवेदी ने कहा, "गुजरात में, अधिकांश आबादी शाकाहारी है। इसके अतिरिक्त, हम रोजाना भोजन में प्रोटीन समृद्ध भोजन के रूप में दालें प्रदान करते हैं, इसलिए हमने मिड डे मील में अंडा देने के बारे नहीं सोचा।"
खाद्य आदतों पर नवीनतम उपलब्ध जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक त्रिवेदी सही हैं। गुजरात की 61 फीसदी जनसंख्या शाकाहारी है। हालांकि, यह औसत भारतीयों के लिए सच नहीं है। 70 फीसदी भारतीय मांसाहारी भोजन करते हैं।
दिल्ली के अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (आईएफपीआरआई) में सीनियर रिसर्च फेलो पूर्णिमा मेनन ने कहा, "आप शाकाहारी और मांसाहारी खाद्य पदार्थों की प्रोटीन सामग्री की तुलना कर सकते हैं, लेकिन सही प्रोटीन पाचन क्षमता एमिनो एसिड स्कोर (पीडीसीएएएस) को देखें तो अंडों में प्रोटीन की गुणवत्ता दूसरों की तुलना में अधिक है।" पीडीसीएएएस मानव आवश्यकताओं के आधार पर एक विशेष प्रोटीन की गुणवत्ता का मूल्यांकन करने के लिए और वे इसे कैसे पचते हैं, एक तरीका है।
हिमाचल प्रदेश में भी अधिकारियों ने शाकाहारी माता-पिता के बारे में की बात की। हिमाचल प्रदेश के लिए नोडल अधिकारी (मिड डे मील स्कीम) नरेश शर्मा ने कहा, "हम धार्मिक और सांस्कृतिक मुद्दों के कारण भोजन में अंडे नहीं देते हैं। हिमाचल प्रदेश के लोग अंडे को गैर-शाकाहारी मानते हैं और अगर इसे भोजन में शामिल किया जाता है तो हो सकता है कि उनके माता-पिता को परेशानी हो। विवाद से बचने के लिए, हम ऐसा नहीं करते हैं। " जनगणना हिमाचल प्रदेश में शाकाहार पर डेटा प्रदान नहीं करती है।
गैर-भाजपा शासित राज्य भी अंडों से बचते हैं...
इंडियास्पेंड की जांच में पाया गया कि गैर-भाजपा शासित राज्य, जो मध्य-भोजन योजना के तहत अंडे नहीं देते हैं, वे धार्मिक या सांस्कृतिक भावनाओं से ज्यादा, संसाधनों की कमी से अधिक बाधित थे।
‘राइट टू फूड अभियान’ कार्यकर्ता और आंबेडकर विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर दीपा सिन्हा कहते हैं, "पंजाब, दिल्ली और मिजोरम जैसे गैर-भाजपा शासित राज्य में भी अंडे नहीं दिए जाते हैं। झारखंड, भाजपा बहुमत वाला राज्य है और वहां मध्य भोजन में अंडे दिए जाते हैं। लेकिन, गुजरात और राजस्थान जैसे राज्यों में, आप ऊपरी जाति के हिंदू भावनाओं को चोट पहुंचाने के डर से इस तरह की बात भी नहीं कर सकते कि आपको अंडे चाहिए। पिछले कुछ वर्षों में, मिड डे मील कार्यकर्ता अंडे की मांग करते रहे हैं, लेकिन सांस्कृतिक मुद्दों के कारण भाजपा राज्यों में इसका प्रतिरोध अधिक है। "
22 अप्रैल, 2018 को, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने इस विवाद को और बढ़ा दिया, जब उसने एक ऐसे स्टॉक फोटोग्राफ को ट्वीट किया, जो यह इंगित करता था कि शाकाहारी आहार स्वस्थ रहने का एकमात्र तरीका है। ट्वीट को बाद में हटा दिया गया, जैसा कि Scroll.in ने 23 अप्रैल, 2018 को रिपोर्ट की थी।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हिंदू राइट विंग का अध्ययन करने वाले रिसर्च स्कॉलर मनीषा चचरा ने अपनी विचारधारा में सत्त्विक भोजन के महत्व को समझाया। उन्होंने कहा, "भाजपा संघ परिवार का एक सहयोगी है, जो वैचारिक रूप से हिंदुत्व की विशेषताओं के रूप में कुछ ऊपरी जाति के हिंदू मान्यताओं का पालन करती है। इनमें से एक सत्त्विक आहार है, जिसमें मांसाहारी भोजन, प्याज और लहसुन शामिल नहीं है। इस तरह के बहिष्कार (अंडे) के लिए एक बड़ी आहार राजनीति है। "
दिल्ली में, आम आदमी पार्टी (एएपी) सरकार स्कूल के लिए मध्य-भोजन योजना के हिस्से के रूप में उबले अंडे के अपने वादे को पूरा करने में सक्षम नहीं रही है, जैसा कि 9 अप्रैल, 2018 के इंडिया टुडे की रिपोर्ट से पता चलता है।
अंडे प्रदान करने के लिए अधिक संसाधनों की आवश्यकता के बारे में सिन्हा का तर्क अरुणाचल प्रदेश की 2018-19 मध्य-भोजन भोजन नीति द्वारा पुष्टि की जा सकती है। " ग्रामीण इलाकों में हरी पत्तेदार सब्जियां और फल न्यूनतम कीमतों के साथ उपलब्ध हैं और ये महत्वपूर्ण चीजें मेनू में शामिल हैं, लेकिन अंडे उपलब्ध नहीं हैं और उन्हें खरीदना आसान भी नहीं ।"
उत्तर-पूर्व राज्यों में एक विशेष समस्या है। नारायण कहती हैं, " अंडा यहां खरीदना मंहगा है, क्योंकि पोल्ट्री उद्योग कीमत निर्धारित करने के लिए स्वतंत्र हैं। यदि केंद्र सरकार चाहती, तो अंडे के लिए सभी राज्यों को धन उपलब्ध कराना पड़ेगा, लेकिन ऐसा कभी हुआ नहीं।"
पूर्व केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव के. सुजाता राव ने इंडियास्पेंड को बताया कि मध्य-भोजन में अंडों को शामिल करने में लागत एक प्रमुख चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि, "यह आदर्श होगा कि गांव समुदायों को राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम योजना के तहत बाड़ा विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए, जिससे स्कूलों और आंगनवाड़ी केंद्रों को अंडे दिए जाएं। इन हस्तक्षेपों को हर जगह फैलाना चाहिए और केवल सरकार की बजाय इसमें समुदायों को भी शामिल किया जाना चाहिए।"
दूसरा विचार: सावधानी के साथ अंडे का परिचय दें
कुछ आहार विशेषज्ञ मध्य-भोजन में अंडों को शामिल करने के लिए, सावधानी पर जोर देते हैं। मनसी पाटिल कहती हैं, "अगर बच्चे कुपोषित हैं और हम अचानक अंडे (अपने आहार में) पेश करते हैं, तो इसका उनके शरीर पर नकारात्मक प्रभाव हो सकता है। तो मान लें कि हमें सप्ताह में 2-3 अंडों से शुरू करना चाहिए और फिर धीरे-धीरे संख्या को बढ़ाना चाहिए । हमें यह समझने की जरूरत है कि शरीर को वसा और कार्बोहाइड्रेट की भी आवश्यकता होती है। पोषक तत्वों का सही मिश्रण होना चाहिए। "
पाटिल ने कहा कि अंडों की संख्या खपत इस बात पर निर्भर करता है कि बच्चा किस प्रकार के कुपोषण से पीड़ित है और उसके शरीर का किस तरह के चयापचय के प्रकार है। "गंभीर तीव्र कुपोषण (एसएएम) में, मामूली तीव्र कुपोषण (एमएएम) के विपरीत, हम तुरंत अंडे नहीं पेश कर सकते हैं। हमें पहले कार्बोहाइड्रेट और ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता होगी, जिससे शरीर धीरे-धीरे प्रोटीन लेने में सक्षम हो पाए। "
दीपा सिन्हा कहती हैं, "एसएएम बच्चों का कुल अनुपात कम है, इसलिए अंडे न देने का यह कोई कारण नहीं बनता। एसएएम बच्चों के लिए, एक स्थापित प्रोटोकॉल है, जहां उन्हें आंगनवाड़ी श्रमिकों द्वारा अस्पताल ले जाने की आवश्यकता है और तदनुसार इलाज किया जाता है, और उन्हें उचित आहार दिया जाता है। "
पशु अधिकार कार्यकर्ता जो मुर्गियों के खिलाफ क्रूरता के संदर्भ में शाकाहारी भोजन की वकालत करते हैं, इस पर अलग-अलग तर्क देते हैं। जून 2015 में हफिंगटन पोस्ट के लिए पीईटीए इंडिया के एक पूर्व प्रचारक और पोषण सलाहकार भुवनेश्वरी गुप्ता ने लिखा था, "अंडे के लिए मुर्गियां इस ग्रह पर सबसे ज्यादा दुर्व्यवहार झेलने वाली पक्षियों में से हैं। अधिकांश को आईपैड स्क्रीन के आकार से छोटे क्षेत्र में अपने पूरे जीवन जीने के लिए मजबूर होना पड़ता है। वे गुस्से में एक दूसरे को अपनी चोंच से घायल न कर दे, इसलिए उसे गर्म ब्लेड से काटा जाता है, क्योंकि पॉलट्री उद्योग उन्हें और अधिक जगह नहीं दे सकता। "
नारायण इस बात पर सहमत हैं कि पोल्ट्री उद्योग को स्वच्छता के बेहतर मानकों की आवश्यकता है और जानवरों के अधिकारों के बारे में अधिक जागरूक होना चाहिए। उन्होंने कहा, "हालांकि, यह बच्चों को अंडे से इनकार करने का कारण नहीं हो सकता है।"
(साहा, दिल्ली के ‘पॉलिसी एंड डेवलप्मेंट एडवाइजरी ग्रूप’ में मीडिया और नीति संचार परामर्शदाता हैं। वह एक स्वतंत्र लेखक भी हैं और ससेक्स विश्वविद्यालय के ‘इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज’ से ‘जेंडर एंड डिवलपमेंट’ में एमए हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 31 जुलाई, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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