"एक लिंग विशिष्ट बजट एक ऐसा बजट है जो समाज में मौजूद लिंग व्यवस्था की स्वीकार करता है और उन नीतियों और कार्यक्रमों को लागू करने के लिए पैसे आबंटित करता है जो इस लिंग व्यवस्था में बदलाव ला कर समाज में लिंग बराबरी स्थापित करने में मदद करते हैं"।

- महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार

2006 में एक सरकारी प्रस्ताव जारी होने के बाद महाराष्ट्र में जेंडर बजटिंग प्रस्तावित की गई थी । प्रस्ताव में यह अनिवार्य किया गया था कि नगर निगम द्वारा प्रतिबद्ध व्यय के बाद, शेष राशि का 5% महिला एवं बाल कल्याण समितियों के कार्यों के लिए आरक्षित रखा जाएगा। लैंगिक समानता में निवेश न केवल महिलाओं के खिलाफ हिंसा से लड़ने में मदद करता है, अपितु विकासात्मक लक्ष्यों की उपलब्धि जैसे गरीबी उन्मूलन, आजीविका विकास और शिक्षा तक पहुँच के विस्तार में मदद की ओर एक बहुत ही महत्वपूर्ण कदम है।

महाराष्ट्र सरकार ने 1994 में 'महिलाओं का सशक्तीकरण मतलब देश का विकास ' सिद्धांत को अपनाया है और एक 'महिला नीति' प्रकाशित की है। 2001 में एक संशोधित नीति की घोषणा की गई थी और नीति का तीसरा संस्करण 2013 में प्रकाशित किया गया है। इसमें कोई विवाद का विषय नही है कि यह बहुत अच्छे नीति दस्तावेज हैं, लेकिन वास्तविक प्रश्न यह है कि : यह नीतियों क्या कभी कार्यान्वित हो पाती हैं ? क्या सरकार अपनी , "कथनी और करनी " के फ़र्क को मिटा सकती है ?

मुंबई देश के कुछ उन शहरों में से है जिन्होंने स्थानीय स्तर पर जेंडर बजटिंग को अपनाया है और अपने बजट में एक अलग अनुभाग का गठन किया है। हालांकि सरकार द्वारा यह प्रस्ताव 2006 में पारित किया गया था, लेकिन ग्रेटर मुम्बई निगम (एमसीजीएम) ने तीन साल बाद , 2009-10 में ही जेंडर बजट की शुरुआत की। हालांकि एमसीजीएम की वेबसाइट पर, लिंग बजट अध्याय अलग से एक दस्तावेज़ के रूप में देखा जा सकता है, और एमसीजीएम के इन प्रयासों की सराहना की जानी चाहिए। लेकिन क्या यह प्रयास मुंबई निवासी महिलाओं के जीवन की गुणवत्ता में सुधार लेन के लिए पर्याप्त हैं?

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि मुंबई की 12.4 मिलियन की आधे से अधिक आबादी गंदी/मलिन बस्तियों(स्लम) में रहती है जिसका अर्थ है कि महाराष्ट्र में दुसरे सबसे अधिक आबादी वाले शहर पुणे की आबादी के बराबर ,यानि 31 लाख महिलाऐं वहां रहती हैं।

2014-15 बजट के अनुमान अनुसार मुंबई के लिंग बजट की प्रमुख विशेषताओं में से कुछ इस प्रकार हैं :

•एमसीजीएम 2014-15 में 'जेंडर बजट' के लिए लगभग 584 करोड़ रूपये का बजट प्रावधान किया गया है।

•एमसीजीएम का जेंडर बजट चार पहलुओं पर केंद्रित है : आर्थिक और सामाजिक, शैक्षिक सुधार, स्वास्थ्य और स्वच्छता और बच्चों के लिए पार्कों का विकास।

• एमसीजीएम मुंबई की गंदी मलिन बस्तियों (स्लम) में रहने वाली 4,858 महिलाओं को सहारा देने के लिए एक परिक्रामी निधि के माध्यम से 0.96 करोड़ रुपये खर्च करेगा । जो कि मुंबई की झुग्गी बस्ती में रहने वाली उन महिलाओं का 0.16% भाग है जिनकी प्रति व्यक्ति आय लगभग रु 164प्रति माह है ।

• मुंबई में भीड़ भरे स्थानों पर महिलाओं के शौचालयों के निर्माण के लिए 1 करोड़ रुपये का आबंटन किया गया है जबकि आत्मरक्षा प्रशिक्षण, के लिए 2 करोड़ रुपये का आबंटन हुआ है।

• मुंबई के जेंडर बजट (रु 305.5 करोड़ रुपये) का लगभग 52% मातृ एवं शिशु देखभाल के लिए आवंटित किया गया है। मुंबई की शिशु मृत्यु दर-संख्या- हज़ार जीवित जन्मे शिशुओं पर प्रति शिशु मृत्यु दर -26 हजार है - राष्ट्रीय औसत 44 की संख्या से काफी कम ।

• जेंडर बजट के तहत स्वच्छता के लिए 37.5 करोड़ रुपये आवंटित के गए जिसमें से 33.5 करोड़ रुपये केवल समुदायिक शौचालयों के निर्माण के लिए आबंटित हैं लेकिन यह निर्देशित नही किया गया है कि यह शौचालयों केवल महिलाओं के लिए ही बनाए जाएंगे ।

• बालिकाओंकी छात्रवृत्ति के लिए 46.71 करोड़ रुपये आबंटित किए गए है।

• प्रशासन के कुल खर्च की लागत 11.5 करोड़ रुपए है और जेंडर बजट पहल के कार्यान्वयन के लिए सॉफ्टवेयर विकसित करने के लिए 0.2करोड़ की राशि खर्च हुई है ।

हालांकि,यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि यह वास्तविक बजट के आंकड़े नहीं हैं । पिछले तीन वर्षों के वास्तविक आंकड़े नीचे दिए जा रहे हैं:

एमसीजीएम का जेंडर बजट, 2011-12, 2012-13 के लिए

परिप्रेक्ष्य में देखें तो , एमसीजीएम ने , वर्ष 2012-13 में, मुंबई में झुग्गी बस्ती निवासी महिलाओं के आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक बेहतरी और बेहतर स्वास्थ्य और स्वच्छता सेवाओं के प्रावधान के लिए प्रति माह 62 रुपए खर्च किए । 2014-15 में,एमसीजीएम ने, इस राशि को झुग्गी बस्ती की प्रति महिला निवासी के लिए 62 रुपये से 157 रुपए तक बढ़ाने का प्रस्ताव रखा।

यह सब सिर्फ यही दिखता है कि भागीदारी दृष्टिकोण रखते हुए , एक गहन , बहुस्तरीय विश्लेषण मुंबई में महिलाओं के जीवन पर 'जेंडर बजट' के प्रभाव का आकलन करने और एमसीजीएम को सलाह देने के लिए आवश्यक है ।

(नाइम केरूवाला जनवाणी, पुणे स्थित,एक गैर सरकारी संगठन में एक सहायक निर्देशक हैं जो पुणे महानगरीय क्षेत्र के समग्र एवं सतत विकास की दिशा में काम कर रही है । यह पुणे और पिंपरी चिंचवाड़ के शहरों की जटिल समस्याओं पर शोध के आधार पर सहभागिता आधारित समाधान प्रदान करती है। जनवाणी ने संयुक्त राष्ट्र महिला और भारतीय प्रतिष्ठान के साथ 'पुणे में जेंडर सेंसिटिविटी माइक्रो प्लान ' के आकलन और योजना संरचना में सहयोग किया है।)

(छाया आभार: © Bgopal | Dreamstime.com)

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