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29 अगस्त, 2017 को मुंबई में हुई बारिश के दौरान पानी भरे इलाके को अपने मोटरसाइकिल से पार करने की कोशिश करता एक व्यक्ति।

मुंबई: 29 अगस्त 2017 को भारत की वित्तीय राजधानी के कुछ हिस्सों में 200 मिलीमीटर से अधिक बारिश हुई थी। यह 12 घंटे औसत दैनिक मॉनसून वर्षा के 11 दिनों के बराबर है। इस महीने अन्य शहरों में भी इसी तरह के जल प्रलय देखे गए हैं। विभिन्न अध्ययनों के अनुसार इस तरह की परिस्थिति का कारण बढता कंक्रीट और तेजी से बदलता वर्षा का पैटर्न है।

बृहन्मुंबई नगर निगम के आंकड़ों के मुताबिक, 30 अगस्त 2017 को सुबह 8.30 बजे तक, उपनगरीय मुंबई में सांताक्रूज में पिछले 24 घंटों में 304 मिमी बारिश हुई है। जबकि अंधेरी में 297 मिमी, वर्ली शहर के पश्चिमी तट पर 29 मिमी, बोरिवली में 211 मिमी और बायकल्ला 227 मिमी बारिश हुई है।

यह 2005 के बाद से सबसे खराब बाढ़ की स्थिति है। इससे पहले 27 जुलाई, 2005 को मुबंई में 24 घंटों में 944 मिमी बारिश हुई थी जिस बाढ़ में 500 लोगों की जान गई थी।

21 अगस्त 2017 की सुबह चंडीगढ़ में भी मुंबई जितनी ही बारिश हुई थी। दोपहर तक, पंजाब और हरियाणा की संयुक्त राजधानी में 112 मिलीमीटर वर्षा हुई, जो कि शहर की औसत दैनिक मानसून का 23 गुना है। इसी तरह, 15 अगस्त को, बेंगलुरु में 37 गुना और 11 से 12 अगस्त को अगरतला में पिछले पांच सालों की औसत दैनिक मॉनसून वर्षा से 11 गुना ज्यादा बारिश हुई है।

1 मिलियन आबादी वाले शहर, चंडीगढ़ में यात्रियों को अपने गंतव्यों तक पहुंचने में कठिनाई का सामाना करना पड़ा। कुछ लोगों को तो सड़कों पर अपनी कारों और मोटरबाइकों को छोड़ना पड़ा। कई वाहन पानी में तैरते नजर आए। ऐसा नाजारा नवंबर-दिसंबर, 2015 में आए बाढ़ के दौरान चेन्नई में देखने को मिला था। पानी इमारतों के भीतर तक पहुंच गया और देश के सबसे अच्छे नियोजित शहर में अफरा-तफरी मच गई।

बेंगलुरु के लिए 2017 का स्वतंत्रता दिवस असमान्य रुप से बारिश भरा दिन था। शहर में जगह-जगह पानी भरे हुए नजर आए। आधी रात से ही भारी बारिश शुरू हुई, और सुबह तक, 9 मिलियन आबादी वाले शहर में 128 मिलीमीटर बारिश हुई थी। शहर के दक्षिणी भाग, कोरमंगला और उसके आसपास के इलाकों में पानी भर गया था। पार्क और वाहन लगभग डूब गए थे।

इसी साल अगस्त 11 और 12 को पूर्वोत्तर भारत में त्रिपुरा की राजधानी अगरतला में भारी बारिश हुई थी। 438,000 आबादी वाले शहर में, एक दिन में 102 मिमी बारिश हुई थी, जबकि दूसरे दिन 94 मिमी बारिश हुई थी। यानी कुल मिला कर दो दिनों में 196 मिमी बारिश हुई। शहर ठप पड़ गया और सामान्य जीवन ठहर सा गया।

26-27 जुलाई, 2017 को, अहमदाबाद में भारी बारिश हुई थी, जहां 24 घंटे के भीतर 5.5 मिलियन आबादी वाले शहर में 200 मिलीमीटर बारिश हुई थी। भारी बारिश के कारण साबरमती जलग्रहण ऊपर तक लबालब हो गया, जिस कारण अधिकारियों को धरोई बांध से पानी छोड़ना पड़ा। नदी के किनारे कंक्रीट होने के कारण यहां बाढ़ का गंभीर जोखिम है। प्रशासन ने कथित तौर पर 10,000 से अधिक लोगों को वहां से हटाया था।

जुलाई से सितंबर के मानसून के महीनों में, 2012 और 2016 के बीच, मुंबई के उपनगरीय जिले में औसत वर्षा 18.54 मिमी हुई है। जैसा कि हमने कहा, मुंबई ने 29 अगस्त, 2017 को 12 घंटों के भीतर 11 गुना ज्यादा वर्षा देखा।

भारतीय शहरों में औसत वर्षा, 2012-16
DistrictJuneJulyAugustSeptemberAverage per day (122 days)On Extreme Rainfall Event
Mumbai641.94867.56361.46391.118.54200
Chandigarh99.36200172110.944.77112
Bengaluru88.0896.0293.66142.243.44128
Western Tripura327.86304.42276205.269.13102

Source: Customised Rainfall Information System, Indian Meteorological DepartmentNote: Figures in mm.

देश भर में जल-प्रलय की ऐसी स्थिति आम हो रही है। ये कुछ सवाल हैं जिन पर वैज्ञानिकों द्वारा विचार किया जा रहा है। क्या जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसम घटनाएं होने का पूर्वानुमान सच हो रहा है? क्या भारतीय शहर ऐसी घटनाओं का सामना करने के लिए तैयार हैं? उन्हें अधिक लचीला बनाने के लिए क्या किया जा सकता है?

जलवायु परिवर्तन के दौर में वर्षा तीव्रता में वृद्धि

बेंगलुरु के इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस में इंटरडिसीप्लूनरी सेंटर फॉर वॉटर रिसर्च (ICWAR) के अध्यक्ष, प्रदीप मुजुमदार के मुताबिक हाल के शोध से पता चलता है कि इन चरम मौसम की घटनाओं की तीव्रता बढ़ रही है। इसके अलावा, गैर शहरी के साथ-साथ शहरी घटनाओं की तीव्रता भी बढ़ रही है।

मुजुमदार ने जलवायु परिवर्तन रिपोर्ट को समर्पित एक वेबसाइट, indiaclimatedialogue.net से कहा कि "हालांकि जलवायु परिवर्तन के लिए किसी भी एक घटना को व्यक्त करना मुश्किल है, फिर भी दुनिया भर से बहुत अधिक शोध किए जा रहे हैं, जो दिखा रहा है कि बदलते जलवायु के कारण मौसम में कई चरम घटनाओं का पैटर्न में बदलाव हो रहा है।"

वैज्ञानिक भाषा में, चेन्नई में 8 नवंबर और 4 दिसंबर, 2015 के बीच पांच "चरम तेजी वाली घटनाएं" हुई हैं। इससे पहले कि शहर एक घटना से उबर पाता दूसरी घटना सामने आ खड़ी हुई। इसका परिणाम शहर की नदी के ऊपर स्थित चेम्बरबम्क्कम जलाशय से पानी की रिहाई थी, जिससे अद्यार नदी का पानी चेन्नई तक आ गया।

अद्यार नदी के ऊपर बना, चेन्नई हवाई अड्डे का माध्यमिक रनवे तक पानी आ गया और कुछ दिनों के लिए हवाईअड्डे की सेवाएं बंद करनी पड़ी थी। जो लोग शहर छोड़ना चाहते थे, उन्हें खाली करने के लिए और हवाईअड्डे पर फंसे हुए लोगों के लिए भारतीय नौसेना ने पास के आर्कोनम में नौसेना के हवाई अड्डे से नागरिक उड़ानें संचालित करने में मदद की।

आईसीडब्ल्यूएआर हाल के वर्षों में चेन्नई, हैदराबाद और बेंगलुरु में शहरी बाढ़ की घटनाओं का अध्ययन कर रहा है। बेंगलुरु के लिए, टीम ने चार "प्रतिनिधि एकाग्रता रास्ते" के साथ 26 सामान्य परिसंचरण मॉडल (या वैश्विक जलवायु मॉडल) की तुलना की थी- ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन परिदृश्य वर्ष 2100 तक, जलवायु परिवर्तन (आईपीसीसी) पर अंतर-सरकारी पैनल के पांचवें आकलन रिपोर्ट द्वारा उपयोग किया जाता है। निष्कर्ष: जलवायु परिवर्तन के अनुमानों से स्पष्ट रूप से उच्च तीव्रता वाली वर्षा में वृद्धि का संकेत मिलता है।

दिसंबर 2015 में बाढ़ के दौरान चेन्नई में वर्षा तीव्रता

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Source: Interdisciplinary Centre for Water Research

बेंगलुरु के ‘अशोक ट्रस्ट फॉर रिसर्च इन इकोलोजी एंड द एन्वाइरन्मन्ट’ (एटीआरईई) द्वारा प्रकाशित एक अन्य रिपोर्ट इसी तरह के निष्कर्ष की पुष्टि करता है । पिछले 100 वर्षों में 100 मिलीमीटर से अधिक बारिश वाली घटनाओं की संख्या में वृद्धि हुई है, जैसा कि शोधकर्ताओं जगदीश कृष्णस्वामी और श्रीनिवासन वैद्यनाथन ने लिखा है। 1900 के बाद से 100, 150 और 200 मिमी से अधिक वर्षा की घटनाओं में समग्र वृद्धि की प्रवृति है। लेकिन हाल के दशकों में बढ़ती गतिशीलता है।

हालांकि, जलवायु परिवर्तन के और भी कारण रहे हैं, जिस पर बात होनी चाहिए।

1 दिसंबर, 2015 को चेन्नई में चरम बारिश का श्रेय जलवायु परिवर्तन को देना संभव नहीं है, जैसा कि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली और ब्रिटेन में ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं की एक टीम ने 2016 के एक अध्ययन में कहा है।

आश्चर्य की तरह देखते हुए शहर के लोग बारिश की तीव्रता और उसके प्रभाव का अनुमान में व्यस्त

बारिश में इतनी परिवर्तनशीलता है कि शहरों द्वारा आश्चर्य रुप से लिया जाता है। व्यावसायिक रुप से भारत मौसम विज्ञान विभाग के मौसम पर नजर रखने वाले और निजी व्यक्तियों और एजेंसियां ​​यह कहने में सक्षम हैं कि किसी विशेष शहर में बारिश होने वाली है लेकिन वे इसकी तीव्रता और प्रभाव का अनुमान नहीं लगा सकते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार, अनुमान में सुधार लाने के लिए, आईपीसीसी द्वारा विकसित वैश्विक जलवायु मॉडल को शहरों के लिए पुनर्निर्माण करने की आवश्यकता है।

उच्च जनसंख्या घनत्व के कारण, ग्रामीण इलाकों की तुलना में शहरी जीवन और संपत्ति के अधिक नुकसान होने की संभावना होती है। उदाहरण के लिए, चेन्नई में प्रति वर्ग किमी 26,553 लोगों की जनसंख्या घनत्व है।

अत्यधिक वर्षा, शहरों को अधिक आर्थिक जोखिम में भी छोड़ देती है। वैश्विक पुनर्बीमा प्रमुख म्यूनिक री द्वारा संकलित वार्षिक अनुमानों के मुताबिक 2015 में बाढ़ से चेन्नई को करीब 3.5 बिलियन डॉलर (21,381 करोड़ रुपए) के आर्थिक नुकसान का अनुमान था।

यदि अत्यधिक बारिश होने वाली घटनाएं अधिक हो जाती हैं, तो शहरों को अत्यधिक बाढ़ के लिए तैयार करने की आवश्यकता है। और वे इसके लिए तैयार प्रतीत नहीं लगते हैं।

क्यों चरम बारिश के लिए तैयार नहीं हैं भारतीय शहर

एटीआरईई से जुड़े फेलो, वीना श्रीनिवासन के अनुसार, बेंगलुरु में तूफान जल नेटवर्क या तो अवरुद्ध है या पर्याप्त नहीं हैं। इनमें से कई नालों में सीवेज भी होता है, जिसे अलग और उपचारित किया जाना चाहिए। तूफान के पानी का नालों के पानी के साथ मिल जाने से स्थानीय झीलों में अतिरिक्त वर्षा जल को चैनल करना मुश्किल है।

2100 के लिए वर्षा तीव्रता अनुमान

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Source: Indian Institute of Technology, Madras

कचरा भी अपना रास्ता खोज लेता है और अतिप्रवाह के समय नालियों को बाधित करता है।

शहरी भूमि उपयोग को बदलने से पानी जमीन के भीतर सोख नहीं पाता है। अहमदाबाद स्थित एक विकासक थिंक टैंक, तरु लीडिंग एज के चेयरमैन जी के भट ने indiaclimatedialogue.net को बताया, " सामान्य तौर पर, शहर के बाहर लगभग 80 फीसदी बारिश अवशोषित हो जाती है। आज हर तरह कंक्रीट और पक्की सड़क है और इसके साथ ही हम करीब-करीब अभेद्य क्षेत्र बना रहे हैं। इस प्रकार, भूमि उपयोग में परिवर्तन के कारण शहरी इलाकों में बाढ़ बढ़ी है। "

हालांकि, शहर के इतिहास में, अहमदाबाद में आई जुलाई 2017 की बाढ़ सबसे ज्यादा गंभीर नहीं थी, लेकिन खुले जमीन पर बढ़ते कंक्रीट के कारण इसका प्रभाव ज्यादा पड़ा था।

चेन्नई में, 1 दिसंबर 2015 को अद्यार नदी के चेम्बरबम्क्कम जलाशय से पानी की रिहाई से सोचा गया कि नदी के साथ बाढ़ शुरु हो गया है। हालांकि, बाद के अध्ययनों से यह साबित हुआ कि जलाशय का पानी केवल तंबाराम के बाहर शहर के दक्षिण-पश्चिमी उपनगरों से बहने वाले पानी में जोड़ा गया है।

indiaclimatedialogue.net से बात करते हुए इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, मद्रास के एसोसिएट प्रोफेसर, बालाजी नरसिमहान ने बताया कि "अद्यार नदी में मुख्य प्रवाह इन उपनगरों से आ रहा था, और चेम्बराम्बक्कम नदी केवल इससे जोड़ा गया था। भविष्य में, जब इन उपनगरों में अधिक इमारतों और सड़कों होगीं तब बाढ़ का प्रवर्धन भी अधिक हो सकता है। "”

मौजूदा बुनियादी ढांचा अपर्याप्त है और गिरने का खतरा है

चंडीगढ़ जैसे नियोजित शहरों और भिलाई और जमशेदपुर जैसे औद्योगिक टाउनशिप के अपवाद के साथ, अधिकांश भारतीय शहर गांवों और छोटे शहरों के समूह से बड़े पैमाने पर विकसित हो रहे हैं।

पर्याप्त बुनियादी ढांचे के बिना शहर विकसित होते हैं और अति वर्षा के लिए जो कुछ भी मौजूद है वह अपर्याप्त है।

भट्ट कहते हैं कि, "मौजूदा बुनियादी ढांचे छोटे बाढ़ के लिए हैं, न कि हाल ही में अनुभव किए गए चरम घटनाओं के लिए। हालांकि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा दिशानिर्देश तैयार किए गए हैं, लेकिन शहरी नियोजक और प्रबंधक लागत कम करने के लिए, मामूली घटनाओं को रोकने वाले डिजाइनों का रुख करते हैं। ”

विडंबना यह है कि जब चेन्नई में वर्ष 2015 में बाढ़ आया था, तो शहर के पुराने हिस्सों एक सदी पहले ब्रिटिशों द्वारा आपदा से निपटने के ढांचों का प्रदर्शन नई संचरना से बेहतर रहा था।

अपने बुनियादी ढांचे को फिर से तैयार करने और चरम मौसम की तैयारी के बिना, भारत के शहर तेजी से विध्वंस के शिकार होंगे।

इस रिपोर्ट का पहला संस्करण indiaclimatedialogue.net पर यहां प्रकाशित हुआ है।

(वारियर एक पर्यावरण पत्रकार और ब्लॉगर हैं।)

यह लेख अंग्रेजी में 29 अगस्त 17 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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