यूपी में डेंगी के मामलों में कमी, लेकिन वजहों पर जानकारों की राय अलग
लखनऊ: 52 साल की चंद्रकांती पांडेय ने हर रोज़ की तरह 13 सितंबर को सुबह उठकर भैंस का दूध दुहा, परिवार के लिए खाना बनाया और रोज़मर्रा के काम निपटाए। चंद्रकांती को इस दौरान बुख़ार चढ़ गया। गांव में स्वास्थ्य कैंप लगा हुआ था। चंद्रकांती का बेटा उन्हें लेकर कैंप गया जहां उन्हें दवाई देकर घर भेज दिया गया। जब अगले दिन भी तबीयत नहीं सुधरी तो चंद्रकांती को फिर से कैंप ले जाया गया। वहां से उन्हें सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) भेज दिया गया। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर मौजूद डॉक्टर ने उन्हें ज़िला चिकित्सालय रैफ़र कर दिया। कुछ घंटे भर्ती करने के बाद ज़िला चिकित्सालय से उन्हें आगरा के लिए रैफ़र कर दिया गया। आगरा पहुंचने के बाद पता चला कि चंद्रकांती को डेंगी है। 15 सितंबर को चंद्रकांती की मौत हो गई।
चंद्रकांती पांडेय, उत्तर प्रदेश के मैनपुरी ज़िले के करीमगंज गांव की रहने वाली थीं। कुल 8,711 की आबादी वाले इस गांव में अगस्त के आखिरी हफ्ते से ही डेंगी से मामले आने लगे थे। गांव वालों के मुताबिक, अब तक 14 लोगों की डेंगी से मौत हो चुकी है और 400 से ज़्यादा लोग डेंगी की चपेट में आ चुके हैं।
"मां को बुख़ार आया तो मैं उन्हें लेकर गांव में लगे कैंप में गया, वहां दवा दी गई। इसके बाद भी आराम नहीं मिला तो हम अगले दिन फिर से कैंप पर गए। वहां से सीएचसी भेज दिया गया। सीएचसी से मैनपुरी जाने को कह दिया। मैनपुरी में भी कुछ घंटे भर्ती रखने के बाद आगरा रैफ़र कर दिया गया। जहां पता चला उन्हें डेंगी (डेंगी) है, कुछ ही देर बाद उनकी मौत हो गई," चंद्रकांती के बेटे अजीत ने बताया।
करीमगंज गांव, मैनपुरी ज़िला मुख्यालय से सिर्फ़ 10 किलोमीटर की दूरी पर है। इस साल गांव में बड़े पैमाने पर डेंगी फैलने के बाद से यहां के लोग दहशत में हैं। कई परिवार गांव छोड़कर चले गए हैं तो कई लोगों ने अपने बच्चों को रिश्तेदारों के पास भेज दिया है। लोगों को प्राथमिक उपचार देने के लिए गांव के स्कूल में अस्थाई अस्पताल खोला गया है।
लेकिन समूचे प्रदेश के हालात करीमगंज से अलग हैं। उत्तर प्रदेश में इस साल डेंगू यानी डेंगी के मामले पिछले साल की तुलना में कम रिपोर्ट हुए हैं। सिर्फ़ कुछ जगहों पर इसका फैलाव सामने आया है। राज्य में मिले डेंगी के कुल मामलों में से 69% मामले लखनऊ से रिपोर्ट किए गए हैं। राज्य के बाकी हिस्सों में स्थिति काफ़ी बेहतर बताई जा रही है।
सरकारी अधिकारियों के मुताबिक़ कोरोनावायरस के लिए हुए सेनेटाइज़ेशन से भी राज्य में डेंगी की रोकथाम में मदद मिली है। “अभी प्रदेश में जागरूकता, स्वच्छता, सेनेटाइज़ेशन, सफ़ाई और फ़ॉगिंग का काम चल रहा है। यह कोरोना के लिए किया जा रहा है, लेकिन इसका असर वेक्टर बॉर्न डिज़ीज़ पर भी देखने को मिल रहा है,” यूपी के संयुक्त निदेशक (डेंगी), विकास सिंघल ने कहा।
वहीं दूसरी तरफ़ कुछ विशेषज्ञ कहते हैं कि डेंगी सिकलिकल होता है -- कुछ साल इसका प्रकोप ज़्यादा और कुछ साल कम रहता है। "डेंगी के मामले हर तीन साल में बढ़ते हैं। पिछले साल ज्यादा मामले आए थे तो इस साल कम होंगे," किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के कम्यूनिटी मेडिसिन एवं पब्लिक हेल्थ विभाग के अध्यक्ष प्रो. जमाल मसूद ने कहा। इसके अलावा इस साल कोरोना की वजह से सेनेटाइज़ेशन और साफ़-सफ़ाई की वजह से भी डेंगी के मामले कम हुए हो सकते हैं, उन्होंने कहा।
करीमगंज गांव में लगा हेल्थ कैंप। फ़ोटो: स्वास्थ्य विभाग
डेंगू या डेंगी मलेरिया की तरह ही मच्छरों के काटने से फैलता है। यह एडीज़ मच्छर के काटने से होता है। इसे ‘हड्डी तोड़ बुख़ार’ भी कहते हैं इससे पीड़ित व्यक्ति को तेज़ बुख़ार, शरीर और सिर में दर्द की समस्या होती है। भारत में यह बीमारी बरसात और उसके बाद तेज़ी से फैलती है।
यूरोप को छोड़कर पूरी दुनिया में इस बीमारी का तेज़ी से फैलाव हुआ है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, डेंगी के मामले पिछले दो दशक में आठ गुना से अधिक बढ़े हैं। साल 2000 में 5.05 लाख डेंगी के मामले दर्ज किए गए थे जो 2010 में 24 लाख से अधिक हो गए। 2019 तक दुनिया भर में डेंगी के 42 लाख मामले दर्ज किये गए। साल 2000 से 2015 तक रिपोर्ट की गई मौतों की संख्या भी 960 से बढ़कर 4,032 हो गई।
भारत में भी डेंगी के हर साल एक लाख से ज़्यादा मामले दर्ज किए जाते हैं। लोकसभा में पेश आंकड़ों के मुताबिक, डेंगी के 2016 में 1.29 लाख, 2017 में 1.88 लाख और 2018 में 1.01 लाख मामले दर्ज किए गए। 2019 के अक्टूबर तक देश में डेंगी के 91,457 मामले दर्ज किए गए थे।
2016 में डेंगी से देश में 245 लोगों की मौत हुई, 2017 में 325 लोगों की और 2018 में 172 लोगों की मौत हुई। 2019 में अक्टूबर तक देश में डेंगी से 82 लोगों की मौत हुई थी।
करीमगंज में क्यों फैला डेंगी?
इसका जवाब उत्तर प्रदेश के संयुक्त निदेशक (डेंगी) विकास सिंघल देते हैं। "करीमगंज में हमने लखनऊ से एक टीम भेजी थी। यह देखने को मिला कि गांव में कई ऐसी जगह थीं जहां पानी जमा था। यहां मच्छरों के लार्वा भी पाए गए। डेंगी के मच्छर अगर कम भी होंगे तो भी ज़्यादा मामले आ सकते हैं। हालांकि हमने वक़्त रहते इसे कंट्रोल किया है," विकास सिंघल ने कहा।
"गांव में तीन बड़े तालाब हैं। इनकी कभी सफ़ाई नहीं हुई। तालाब जल कुम्भी से भरा हुआ है। अगस्त में इन तालाबों में कुछ छिड़काव किया गया, इसके बाद से ही लोग बीमार होना शुरू हुए," गांव के युवक प्रशांत पांडेय (20) ने बताया। प्रशांत कहते हैं कि छिड़काव के बाद से मच्छर लोगों के घरों में घुस आए।
करीमगंज गांव का एक तालाब जो गंदगी से भरा हुआ है। फोटो: प्रशांत पांडेय
"हमें 7 सितंबर को इसकी जानकारी मिली, तब से करीमगंज में कैम्प लग रहा है। 7 सितंबर से 22 सितंबर तक कुल 238 बुख़ार के मरीज़ मिले हैं। इसमें से 31 लोग डेंगी से पॉज़िटिव निकले हैं। बाकी लोगों को सामान्य बुख़ार था," मैनपुरी के मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. अशोक पांडे ने बताया।
डॉ. अशोक पांडे गांव में हुई मौतों पर कहते हैं, "गांव वाले 14 मौत बता रहे हैं, इसमें से किसी का डेंगी कंफर्म नहीं है। लोग स्क्रीनिंग टेस्ट को डेंगी बता देते हैं, वो कंफर्म नहीं होता। इसमें अलग-अलग कारणों से लोगों की मौत हुई है। 2 लोग कैंसर से पीड़ित थे, कुछ लोगों की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई है," डॉ. अशोक ने कहा।
लखनऊ भी डेंगी की चपेट में
इस साल एक जनवरी से 29 सितंबर तक लखनऊ में डेंगी के 115 मामले आए हैं। यह राज्य में 29 सितंबर तक मिले कुल मामलों का 69% है। लखनऊ में औसतन हर दिन 10 डेंगी के मरीज़ आ रहे हैं, उत्तर प्रदेश के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय की ओर से इंडियास्पेंड को दिए गए आंकड़ों के अनुसार।
पिछले साल भी उत्तर प्रदेश में डेंगी के मरीज़ों में सबसे ज़्यादा संख्या लखनऊ की थी। साल 2019 में लखनऊ में डेंगी के कुल 2,165 मामले दर्ज किए गए और 9 लोगों की मौत हुई थी, जो पूरे राज्य में मिले मामलों का 20.5% है। सबसे ज़्यादा मौतें भी लखनऊ में हुई थीं, लोकसभा में पेश इन आंकड़ों के मुताबिक।
लखनऊ के कई इलाक़े हैं जहां हर साल डेंगी का प्रकोप रहता है। ऐसा ही एक इलाक़ा है फ़ैज़ुल्लागंज। लगभग 1.25 लाख आबादी वाले फ़ैज़ुल्लागंज में 27 सितंबर तक डेंगी के 14 मरीज़ मिल चुके हैं। फ़ैज़ुल्लागंज के रहने वाले संतोष शुक्ला (40) को भी डेंगी हुआ था। क़रीब पांच दिन अस्पताल में रहकर आए संतोष कहते हैं, "यहां हर साल डेंगी फैलता है। डेंगी की शुरुआत होते ही हम प्रशासन से बार-बार कहते हैं कि एंटी लार्वा का छिड़काव करवा दीजिए, लेकिन कोई सुनवाई नहीं होती है।"
करीमगंज गांव में एंटी लार्वा का छिड़काव करता सफाई कर्मचारी। फोटो: प्रशांत पांडेय
"लखनऊ में नगर निगम की तरफ़ से फ़ॉगिंग होती है। हमारा स्टाफ़ भी लगा है। लखनऊ में इन दिनों डेंगी के लिए काम करना इसलिए भी चुनौतीपूर्ण है क्योंकि यहां कोरोना के मामले ज़्यादा आ रहे हैं। हमारा पूरा स्टाफ़ पहले ही कोविड की ड्यूटी में लगा है। इसके बाद भी हम डेंगी पर ध्यान दे रहे हैं," विकास सिंघल ने कहा।
यूपी में डेंगी की चुनौती
इस साल पूरे राज्य में एक जनवरी से 29 सितंबर तक डेंगी के 166 मामले सामने आए हैं और एक व्यक्ति की मौत हुई है। पिछले साल इसी दरमियान 1,271 मामले आए थे और दो लोगों की मौत हुई थी, उत्तर प्रदेश के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय की ओर से इंडियास्पेंड को दिए गए आंकड़ों के अनुसार। इसमें से अगर लखनऊ को अलग कर दें तो राज्य के बाकी के हिस्सों में इस साल स्थिति काफ़ी बेहतर है।
सरकारी आंकड़ों में इस साल अभी तक यूपी में डेंगी के मामलों में कमी दिख रही है। लेकिन राज्य में साल 2019 में साल 2018 के मुकाबले डेंगी के मामलों में 175% की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई थी। जबकि इस दरमियान देश भर में डेंगी के मामलों में कमी दर्ज की गई थी। 2018 में यूपी में डेंगी के 3,829 मामले थे, जो 2019 में बढ़कर 10,557 हो गए। 2018 में डेंगी से 4 लोगों की मौत हुई, जबकि 2019 में डेंगी से मरने वालों की संख्या 26 हो गई, 6 मार्च 2020 को लोकसभा में पेश इन आंकड़ों के मुताबिक। एक जनवरी से सात सितंबर तक राज्य में डेंगी के कुल 65 मामले आए थे, जबकि 29 सितंबर तक यह बढ़कर 166 हो गए। यानी सितंबर के सिर्फ़ तीन हफ़्तों में डेंगी के मरीज़ों की संख्या क़रीब 155% बढ़ गई।
करीमगंज में डेंगी से बचाव की जानकारी का पोस्टर लगाती एक आशा वर्कर। फ़ोटो:स्वास्थ्य विभाग
इन आंकड़ों से पता चलता है कि इस साल उत्तर प्रदेश में डेंगी के मामले साल 2019 के मुकाबले कम रिपोर्ट हुए हैं। उत्तर प्रदेश में डेंगी का सीज़न अगस्त के अंत से ही शुरु हो जाता है और नवंबर तक चलता है।
"यह संचारी रोगों का मौसम है। अभी डेंगी, मलेरिया जैसे और मामले आएंगे। कोरोना की वजह से गांव-गांव में सेनेटाइज़ेशन का काम चलता आया है। यही कारण है कि पिछले साल के मुकाबले अभी तक कम मामले आए हैं। अक्टूबर से हम संचारी रोग अभियान भी चलाएंगे। इसमें एक से 15 अक्टूबर तक स्वास्थ्य टीम घर-घर दस्तक देगी और लोगों को बचाव से संबंधित जानकारी दी जाएगी," यूपी के संचारी रोग निदेशक, राजेंद्र कपूर ने इंडियास्पेंड को बताया।
"सितंबर से नवंबर का समय वेक्टर बॉर्न डिज़ीज़ जैसे डेंगी, चिकनगुनिया, मलेरिया, जेई, एईएस का होता है। इस समय बहुत सारे मामले आते हैं। इसलिए इस समय सभी को सावधानी बरतनी चाहिए," राज्य के चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव अमित मोहन प्रसाद ने 15 सितंबर को एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा।
"कोरोना के बीच हमारा फ़ोकस डेंगी पर भी है। हम तीन बार ट्रेनिंग कर चुके हैं। दो बार वेक्टर कंट्रोल ट्रेनिंग हुई है और एक बार डॉक्टरों की ट्रेनिंग हुई है। जहां तक बात 2018 के मुकाबले 2019 में डेंगी के मामले बढ़ने की है तो ऐसा देखने में आया है कि हर तीन साल में ये मामले बढ़ते हैं, यह एक कारण हो सकता है," यूपी के संयुक्त निदेशक (डेंगी), विकास सिंघल ने कहा।
"आप देखेंगे कि मिलिट्री एरिया में डेंगी के मामले कम देखने को मिलते हैं, ऐसा इसलिए है क्योंकि वहां साफ़-सफ़ाई होती है। जब मच्छर पैदा ही नहीं होंगे तो डेंगी कैसे फैलेगा," किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के कम्यूनिटी मेडिसिन एवं पब्लिक हेल्थ विभाग के अध्यक्ष प्रो. जमाल मसूद ने कहा।
(रणविजय, लखनऊ में स्वतंत्र पत्रकार हैं।)
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