यूपी में नि:शुल्क आवास या झंझटों का पिटारा
घटिया और जाम पाइप लाइन के कारण टैंकर से पानी खरीदते आगरा के एक नि:शुल्क आवास कॉलोनी के निवासी
उत्तर प्रदेश में नि:शुल्क आवंटित होने वाले करीब ४,००० आवास अब तक बन कर तैयार नहीं हुए हैं। इन आवास को पूरा होने में शायद दो वर्ष और लग जाएं। यानि २०१७ तक यह मकान पूरी तरह तैयार होने की उम्मीद है और संयोगवश वर्ष २०१७ में ही उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव भी होने हैं।हमारे संवाददाता द्वारा सूचना का अधिकार (आर.टी.आई) के तहत दायर किए गए एकयाचिका के बाद यह बात सामने आई है।
उत्तर प्रदेश की यह आवास योजना, समाजवादी पार्टी (सपा) सरकार द्वारा शुरु किया गया था। योजना का नाम “आसरा” ( सहायता ) दिया गया था। सपा सरकार ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सरकार द्वारा शुरु किए गए कुछ ऐसे ही योजना को सामाप्त कर ‘आसरा’ शुरु किया था।
राज्य शहरी विकास प्राधिकरण से आई आरटीआई प्रतिक्रिया के अनुसार “उत्तर प्रदेश के हर शहर में आसरा योजना शुरु की गई है। मकानों का निर्माण कार्य चल रहा है और अगले १८ महीनों में यह बन कर तैयार हो जाएगा। एक बार यह मकान बन कर तैयार हो जाए फिर ही इसे आवंटित किया जाएगा।”
मीडिया के रिपोर्ट के मुताबिक मकान बनने में देरी के दो प्रमुख कारण रहे हैं। पहली आसरा योजना के लिए ज़मीन उपलब्ध न होना और दूसरी सरकार की बेपरवाही।
एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में शहरी गरीबों के लिए मकान तत्काल आवश्यकता है, ( यदि यह एक अलग देश होता तो इसके दो मिलियन आबादी से दुनिया का पांचवा सबसे बड़ा देश होता) जहां हरेक चार शहरी निवासियों में से एक झुग्गी बस्ती में रहता है।
सपा से पहले सत्ता में रही बहुजन समाज पार्टी ने भी गरीबो को आवास देने की ओर कुछ कदम उठाए थे। बसपा ने इसी के तहत “मान्यवर कांशी रामजी शहरी गरीब आवास योजना”(Respected Kanshi Ramji Urban Poor Housing Programme, MKSGAY )शुरु किया था। साल २००२ में इस योजना को बंद कर आसरा योजना शुरु करने की घोषणा की गई थी। बंद होने से पहले मान्यवर कांशी रामजी शहरी गरीब योजना के तहत करीब १४२,००० मकान बन कर तैयार हो चुके थे जोकि उत्तर प्रदेश के झुग्गी के रह रहे कम से कम 3 फीसदी आबादी के लिए पर्याप्त था।
बसपा सरकार ने प्रति वर्ष १००,००० मकानबनाने का लक्ष्य रखा था लेकिन पहले चरण के बाद ही इस लक्ष्य को घटा कर आधा कर दिया गया था क्योंकि यह मान लिया गया था कि, एक ऐसे राज्य में जहां करीब ६ मिलियन लोग शहरी झुग्गी झोपड़ियों में रहते हैं, वहां योजना से लाभ मिलने वाले लोगों में कमी आई है।
केन्द्र सरकार की पूरी तरह नि:शुल्क आवास देने के खिलाफ चेतावनियों के बावजूद दोनों योजनाएं इस बिंदु पर खड़ी नहीं उतरती। दोनों योजनाओं में मुफ्त आवास में खास समाजिक तबको को खास जगह दी गई। बसपा सरकार ने बनने वाले नि:शुल्क आवास में से ५० फीसदी मकान अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित रखा था जबकि सपा सरकार ने गरीब मुस्लीम वाले ज़िलों को महत्ता दी।
आगरा में बने हुए मकान ढ़ह रहे हैं
गंदे नाले, उपरे तक भरे हुए जाम नाले...बहते मल... टूटे हुए पाइप और फर्श...गंदे पानी के टैंक...ढ़हती दिवारें...और निराश निवासी। कुछ ऐसी ही तस्वीर आगरा के कालिंदी विहार कॉलोनी की सामने आई है और यह तस्वीर घटिया निर्माण की लेखापरीक्षा रिपोर्ट की पूरी पृष्टी करती है। कांलिंदी विहार कॉलोनी MKSGAY योजना के तहत बनाया गया था।
नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा मिली एक रिपोर्ट कहती है, “मान्यवर कांशी रामजी शहरी गरीब आवास योजना के तहत जो भी कार्य किए गए ( अक्टूबर २००९ तक) उनमें से ३५.४ फीसदी सैंपल्स तय मानको से नीचे पाए गए। ”
हाल ही में मिले स्क्रॉल पत्रिका के मुताबिक लखनऊ में MKSGAY योजना के तहत बनेमकानों की बिजलीकाट दी गई है।
आगरा के पूर्वी किनारे पर बसे कालिंदी विहार में रह रहे एक निवासी ने बताया कि २०१० में जब १,५०० लोगों को आवास आवंटित किए गए थे, उस वक्त स्थिति काफी बेहतर थी। बसपा सुप्रिमों “बहनजी” मायावती के राज में सरकारी अफसर मकानों की स्थिति का जायज़ा लेने दौरे पर भी आते थे और मकानों की रख रखाव भी की जाती थी।
कालिंदी विहार में रह रहे लोगों ने बताया कि सरकार बदलने के साथ ही मकानों के रख रखाव बंद हो गए। बेहतर व्यवस्थाओं के अभाव में स्थिति बद से बदत्तर हो गई है।
गंदे नालो के साथ ऐसी कॉलोनियों की सबसे मुख्य समस्या हैं टूटे और जाम पाइप, गंदे पानी के टैंक, जहां पहुंच पाना बेहद मुश्किल क्योंकि इन मकानों का निर्माण बहुत ही संकीर्ण जगहों पर किया गया है।
भूतल पर रह रहे लोगों के लिए मुश्किलें और अधिक हैं। भूतल, ज़्यादातर शारीरिक रुप से बिमार और विकलागं लोगों को आवंटित किए गए हैंजिन्हें पाइपलाइन और स्वच्छता की समस्या से निपटने में दोहरी परेशानी आती है।
कई लोगों को खुले में शौंच भी जाना पड़ता है।
कॉलोनी में रह रही शीला ने बताया कि “ हम तो जैसे-तैसे यहां गुज़ारा कर लेते हैं लेकिन हमारे बच्चे यहां नहीं रह सकते। यहां शौच खुले में जाना पड़ता है। घर की बहू-बेटियां तो नहीं जा सकती। इसलिए उन्हें मजबूरी में बाहर किराए का घर लेकर रहना पड़ रहा है”।
शेख मोहम्मद ने बताया कि“स्वच्छता के अभाव में यहां लोग ज़्यादा बीमार पड़ते है जिसकी वजह से यहां रहने वाले लोगों का खर्चा भी बढ़ गया है”।

पानी की टंकियों का पाइप अधिकतर जाम है जिस कारण घरों में पानी नहीं पहुंच पाता। मजबूरी में वहां रह रहे लोगों को पानी खरीदना पड़ रहा है।
रियायती दर पर खाद्य राशन बेचने के लिए निर्मित की गई दुकानें बंद पड़ी हैं। बुजुर्ग और शारीरिक रुप से बीमार लोगों को राशन खरीदने कम से कम १-२ किमी पैदल चल कर जाना पड़ता है। कॉलोनी के शहर से बाहर होने के कारण लोगों ( अधिकांश लोग दैनिक मजदूरी करते हैं) को एक स्थान से दूसरे स्थान जाने में खासी परेशानी आती है।
इन परेशानियों के बावजूद, कालिंदी विहार उन लोगों के लिए आशा कि किरण है जिन्हें अब तक घर नहीं मिले हैं।
मोहम्मद फारुख़ कुरैशी ने २०१० से पहले ही आवास के लिए आवेदन दिया था। लेकिन अब तक इनका नम्बर नहीं आया है। कुरैशी ने हमें कालिंदी विहार में खाली पड़े मकानों के विषय में विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि “ ब्लॉक में कई मकान आधे बने पड़े हैं...कई मकान तो पूरे बने हैं फिर भी खाली हैं...लेकिन मुझे अब तक मकान नहीं मिला है”।
भारत के सबसे गरीब राज्यों में आवास की ज़रुरत
एक मिलियन झुग्गी की पहचान (करीब ९९९,०९१ ) के साथ उत्तर प्रदेश में तत्काल रुप से गरीबो के लिए आवास की ज़रुरत है।
सरकार के विचार के से“पर्याप्त मकान गरीबी कम करने का एक प्रभावी माध्यम हो सकता है क्योंकि आमतौर पर गृहस्थी चलाने के लिए सबसे महंगी आईटम मकान ही होती है”।
ताजा जनगणना के रिकॉर्ड के मुताबिक उत्तर प्रदेश झुग्गी आबादी के मामले में चौथे स्थान पर है। २९३ शहरों में ६ मिलियन की लोग झुग्गी बस्ती में रहते हैं जिनमें से एक चौथाई अनुसूचित जातिके हैं।
उत्तर प्रदेश में गरीबी पर सरकार की रिपोर्ट के अनुसार शहरी गरीबो की करीब २४ फीसदी आबादी झुग्गी-झोपड़ी में रहती है, ३० फीसदी लोगों के घर में पीने का पानी नहीं पहुंच पाता, ४० फीसदी बिजली की समस्या से जूझ रहे हैं।इसके अलावा सबसे बड़ी समस्या देखी गई है वो है शौचालय की। करीब ७१ फीसदी जनता के घरों में फ्लश शौचालय नहीं हैं।
इन सुविधाओं के अभाव में सबसे ज़्यादा क्षति स्वास्थ्य की होती है जिससे जीवन स्तर में गिरावट होती ही है साथ ही पॉकेट का बोझ भी बढ़ता है। नतीजन गरीबी कम नहीं होती।
उत्तर प्रदेश की झुग्गी बस्तियों में साक्षरता दर भारत में नीचे से चौथे स्थान पर है जबकि काम की भागीदारी का दर नीचे से तीसरे स्थान पर है।
राष्ट्रीय शहरी आवास और पर्यावास नीति 2007के अनुसार “समाज के आर्थिक रुप से कमजोर वर्गों एवं शहरी क्षेत्रों में कम आय वाले परिवारों के लिए मकान मिलने में समर्थ न हो पाना सीधे तौर पर शहरी गरीबी के आकार से जुड़ा है”।
६०८ मकानों में कोई नहीं रहता
ताज नगरी फेज २, कालिंदी विहार से लगभग १५ किमी दक्षिण में बसा है। २००८ में बसपा ने यहां भी शहरी गरीबों के लिए कालिंदी विहार जैसी एक योजना चलाई थी। यह योजना जवाहर लाल नेहरू शहरी नवीनीकरण मिशन के तहत नई दिल्ली की सहायता से शुरु की गई थी।
हाल ही में हमारे संवाददाता ने ताज नगरी फेज २ का दौरा किया। संवाददाता ने देखा कियोजना शुरु हुए सात साल बीत जाने के बाद भी ताज नगरी में बने ६०८ मकानों में से ६०७ मकान भूतहा खण्डर की पड़े हुए हैं। केवल एक मकान में शबाना खान का परिवार मौजूद था। खान परिवार ने बाताया कि करीब चार साल पहले उन्होंने मकान के लिए आवेदन दिया था लेकिन अब तक उन्हें घर की चाभियां नहीं दी गई हैं।

चार बच्चों की मां शबाना ने अपने बेबसता ज़ाहिर करते हुए बताया कि कैसे चार सालों से वह घर की चाभी पाने की कोशिश में और चाभी न मिल पाने की वजह से उनकी ज़िंदगी मुश्किलों से भरी हुई है।
MKSGAY के विपरीत, यहाँ प्रारंभिक आवेदन शुल्क के रुप में लोगों ने १६,१८९ रुपए का भुगतान किया था।
शबाना ने बताया कि “हर तीन-चार महीने में हमें मकान बदलना पड़ रहा है...और अगर मकान न मिला तो न जाने कितने और मकान बदलने पड़ेंगे”।
परिणाम : राजनीतिक लाभांशनहीं
अधिकांश योजनाओं का उद्श्य, हाउसिंग सब्सिडी के माध्यम से किफायती आवास प्रदान कर गरीबी को कम करना ही होता है। MKSGAY नि:शुल्क आवास आवंटित किए। हालांकि २००९ में केन्द्र सरकार की एक दस्तावेज़ कहती है “ राज्य सरकार द्वारा लाभार्थियों को मुफ्त में मकान नहीं दिया जाना चाहिए। कम से कम १२ फीसदी का लाभार्थियों का योगदान निर्धारित होना चाहिए जो ( अनुसूचित जाति / शारीरिक रूप से विकलांग अनुसूचित जनजाति / पिछड़ी जाति / अन्य पिछड़ी जातियों /) और अन्य कमजोर वर्गों के मामले में , 10 फीसदी होना चाहिए”।
इन सारी खामियों के बावजूद, कम आय और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आवास प्रदान करने वाली योजनाओं में MKSGAY योजना को राष्ट्रीय स्तर पर सबसे सफल माना गया है – भाजपा भी राष्ट्रीयव्यापी आवास नीति में रियायती वित्तपोषण द्वारा आवास प्रदान करने के तहत ऐसे ही आय समूहों को लक्षित कर रही है। उद्हारण के तौर पर आवास और शहरी गरीबों के योजना के लिए केंद्रीय रूप से प्रायोजित ब्याज सब्सिडी के तहत नौ राज्यों से केवल ८७३४ लाभार्थी थे। इसका मुख्य कारण शायद वित्तीय संस्थानों का गरीबों को ऋण उपलब्ध कराने के लिए ज़्यादा इचछुक न होना है।
२०१२ के चुनावों में MKSGAY योजना से बसपा कोई राजनीतिक लाभांश मिला।लोकनीति,एक अनुसंधान संगठन द्वारा उत्तर प्रदेश चुनाव बाद २०१२ सर्वेक्षण के निष्कर्षों के मुताबिक आधे से अधिक उत्तरदाताओं ने इसके बारे में सुना ही नहीं था। और जिन्होंने सुना था उनमें से केवल २३.४ फीसदी ने आवास लाभ की पृष्टी की।
(चतुर्वेदी एक स्वतंत्र पत्रकार और इनके ब्लॉग opiniontandoor.blogspot.com पर पढ़ सकते हैं)
यह लेख मुख्यत: 19 जून 2015 को अंग्रेजी में indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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