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प्रधानमंत्री ने शिमला से उड़ान योजना की शुरुआत की। इस योजना का उद्देश्य क्षेत्रीय सम्पर्क को बढ़ावा देना है।

हाल ही में सरकार ने ‘उड़े देश का आम नागरिक’ ( उड़ान ) योजना का शुभारंभ जरूर किया है। लेकिन इस योजना के तहत औसत भारतीय 2,500 रुपए में उड़ान का खर्च वहन करने में सक्षम शायद ही हो पाए। यहां इस बात पर भी ध्यान देने की जरूरत है कि यह खर्च वर्ष 2011-2012 में यात्रा पर मासिक औसत व्यय (180 रुपए) की तुलना में 13.8 गुना ज्यादा है।

उड़ान कार्यक्रम 27 अप्रैल 2017 को शुरु किया गया था। सरकारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार इस योजना के तहत छोटे शहरों से वायु उड़ाने भरी जाएंगी जिसमें एक निश्चित संख्या में सीटों पर सब्सिडी दी जाएगी। एक घंटे की उड़ान सेवा के लिए 2,500 रुपए की सीमा लगाई है। लंबी दूरी के लिए किरायों में बढ़ोतरी हो सकती है। उद्हारण के लिए 1 जून को शिमला से दिल्ली तक के लिए सब्सिडी वाली टिकट 2,036 रुपए है और इसे एयर इंडिया की सहायक कंपनी, एलायंस एयर द्वारा संचालित की जाएगी।

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे अधिक लोगों, विशेष रुप से "आम आदमी" का हवाई यात्रा तक के पहुंचने के लिए अवसर का रुप बताया है। 27 अप्रैल 2017 को योजना के शुभारंभ के दौरान उन्होंने कहा कि, “वायु सेवा केवल देश के कुलीन लोगों तक ही सीमित क्यों रहनी चाहिए? मैंने अपने अधिकारियों से कहा कि मैं हवाई चप्पल में यात्रा करने वाले लोगों को भी वायु उड़ान भरते देखना चाहता हूं। ”

लेकिन कम कीमतें होने के बावजूद भी देश की आबादी के एक बड़े हिस्से के द्वारा प्रधानमंत्री द्वारा दावा किए जाने वाले हवाई सेवाओं के उपयोग करने की संभावना नहीं है।

हालांकि पिछले दो दशकों में भारत में गरीबी में भारी गिरावट देखी गई है। फिर भी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अब भी 21.9 फीसदी आबादी ग्रामीण इलाकों में प्रति व्यक्ति प्रति माह 816 रुपए पर और शहरी क्षेत्रों में प्रति व्यक्ति प्रति माह 1,000 रुपए पर जीती है।

40 फीसदी शहरी भारतीयों का खपत पर 1,760 रुपए प्रति माह से कम खर्च

Source: National Sample Survey Organisation, 2011-2012

एक घंटे की उड़ान की लागत शहरी इलाकों में 2,2692.65 रुपये के औसत मासिक प्रति व्यक्ति व्यय के लगभग बराबर है। जाहिर है शहरी इलाकों में ही अधिकांश हवाई अड्डे स्थित होंगे। सरकार के राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय से 2011-2012 के आंकड़ों से भी यही बात पता चलती है। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में बताया गया है कि समान उड़ानों पर गैर सब्सिडी वाले टिकटों का किराया 19 हजार रूपए तक जा सकता है।

बढ़ी हुई कनेक्टिविटी

अगर तुलनात्मक रुप से देखें तो हिमाचल रोड ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन द्वारा संचालित एक वातानुकूलित (एसी) बस में 415 रुपए का खर्च आता है और दिल्ली से शिमला तक पहुंचने में 12 घंटे लगते हैं। शिमला के लिए दिल्ली से कोई सीधी ट्रेन नहीं है- दिल्ली से कालका तक की ट्रेन में नियमित बर्थ पर 235 रुपए का खर्च आता है।एसी सीट पर 590 रुपए खर्च होते हैं और ट्रेन में करीब पांच घंटे लगते हैं। कालका में ट्रेन बदलनी पड़ती है ।कालका से शिमला तक की लागत करीब 300 रुपए है और इसमें भी अच्छा खासा वक्त लगता है।

वैश्विक परामर्श केपीएमजी में एरोस्पेस और रक्षा मामले के भारत प्रमुख एम्बर दुबे इंडियास्पेंड से बात करते हुए कहते हैं “ उड़ान योजना के सबसे बड़े लाभार्थी भारत के अंदरूनी हिस्सों में रहने वाले व्यवसायी और पेशेवर होंगे, जो सड़क और रेल द्वारा बड़े शहरों तक पहुंचने में अधिक समय गवांते हैं। ”

दुबे कहते हैं- “लाखों ऐसे भारतीय हैं जो 500 किमी की उड़ान के लिए 2,500 रुपए का भुगतान कर सकते हैं। इससे पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। ऐसे कई पर्यटक, विशेष रूप से मध्यम आयु वर्घ वाले ऐसे लोकेशन को पसंद नहीं करते, जहां सुविधाजनक उड़ान कनेक्शन नहीं हैं। ”

बहुतों के लिए सस्ती लेकिन गरीबों की पहुंच से बाहर

औसतन एक भारतीय ने वर्ष 2011-2012 में एक महीने में औसतन 180 रुपए का खर्च किया। एनएसएसओ के आंकड़ों के मुताबिक, इसमें काम के स्थान से और व्यक्तिगत सामान के परिवहन पर खर्च, छुट्टी के खर्च, अपने वाहनों पर खर्च किए गए धन (पशु-खींचा गए वाहनों सहित ) शामिल हैं।

हाल ही में एनएसएसओ के आंकड़े बताते हैं कि यह ज्यादातर ऊपरी क्विनटाइल वाला हिस्सा था, जिन्होंने वर्ष 2014-2015 में हवाई परिवहन का उपयोग किया था और एक महीने में 2,500 रुपए से कम खर्च किया । उन्होंने एक माह में यात्रा के सभी तरीकों पर (हवाई यात्रा सहित) 133 रुपए या उससे कम खर्च किया ।( ध्यान दें कि वर्ष 2011-2012 और वर्ष 2014-2015 एनएसएस से उपलब्ध डेटा में वर्ष 2014-2015 से कुल मासिक खपत संख्या अनुपलब्ध थी)

परिवहन के विभिन्न तरीकों पर प्रति व्यक्ति शहरी मासिक व्यय, 2014-2015

Source: National Sample Survey Office

हवाई यात्रा पर सब्सिडी को लेकर विश्लेषक सहमत नहीं

उड़ान योजना के तहत एयरलाइन कंपनियों आम हवाई जहाज, हेलिकॉप्टर, सी प्लेन या एयर एंबुलेस के जरिए 800 किलोमीटर की दूरी तक हवाई सेवा दे सकती हैं। एयरलाइन कंपनियों को अपनी उड़ान में आधी सीटें बाजार कीमत से कम पर मुहैया करानी होगी। लागत और सस्ते किराये के बीच का अंतर सब्सिडी के तौर पर मिलेगा। एयरलाइन कंपनियां एक हवाई जहाज में हर उड़ान पर कम से कम 9 और ज्यादा से ज्यादा 40 सीटें सब्सिडी वाले किराये पर मुहैया करा सकती हैं, जबकि बाकी सीटें बाजार कीमत पर उपलब्ध होंगी।

निहित या अनुरक्षित मार्गों की नीलामी की जाएगी, और सबसे कम बोलीदाता इस क्षेत्र पर तीन वर्षों के लिए एकाधिकार जीत जाएगा। बदले में, उन्हें रूट पर एक सप्ताह में कम से कम तीन उड़ानें और अधिकतम सात उड़ाने संचालित करना पड़ेगा। सरकार के प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, “इस तरह के समर्थन को तीन साल की अवधि के बाद वापस ले लिया जाएगा।

लेकिन हवाई यात्रा के लिए सब्सिडी देने के सवाल पर विश्लेषक असहमति जताते हैं। विमानन सलाहकार फर्म, मार्टिन कंस्लटिंग के संस्थापक, मार्क मार्टिन कहते हैं-“कार्यक्रम का संचालन जटिल है और यह केंद्र, राज्य और भारत के हवाई अड्डे प्राधिकरण के बीच समन्वय पर निर्भर करता है।”

यह समझाते हुए कि यात्रा की लागत मुख्य रूप से ईंधन की कीमतों और मुद्रा विनिमय दर पर निर्भर करती है, वह कहते हैं, “तेल की कीमतें अभी कम हैं, लेकिन तब क्या होगा जब तेल की कीमतों में वृद्धि हो जाएगा? सब्सिडी मूलभूत रूप से अनिश्चित है। और वैरिएबल को देखते हुए, यह तीन साल के लिए भी एक क्षेत्र को सब्सिडी देने में मुश्किल साबित हो सकता है।

(शाह पत्रकार और संपादक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 02 मई 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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