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मुंबई: केंद्र और राज्य के वित्तीय संबंधों पर निर्णय लेने के लिए, हर पांच साल में बनने वाला एक संवैधानिक निकाय है वित्त आयोग । 2020-2025 के लिए गठित नवीनतम पैनल को केंद्रीय करों पर हर राज्य के हिस्से का निर्णय लेने के लिए 2011 की आबादी की जनगणना का उपयोग करने के लिए कहा गया था। इसका मतलब यह हो सकता है कि उच्च आबादी वाले राज्यों को अधिक केंद्रीय धन मिलेगा।

यह निर्णय जल्द ही एक राजनीतिक विवाद में बदल गया, क्योंकि इसका मतलब था कि भारत के दक्षिणी राज्य ( तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और केरल ) केंद्रीय करों के अपने हिस्से में गिरावट देखेंगे। इन राज्यों में स्वास्थ्य और शिक्षा उपायों ने राज्य की जनसंख्या वृद्दि को कम किया है। जो जनसंख्या 1971 में राष्ट्रीय आबादी का 25 प्रतिशत था, वह 4 प्रतिशत अंक नीचे, 2011 में 21 प्रतिशत हुआ है।

तुलनात्मक रूप से देखें तो उत्तर भारतीय राज्यों की जनसंख्या ( उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्य प्रदेश ) 1971 में भारत की कुल जनसंख्या का 33 फीसदी था, जो बढ़कर 2011 में 37 फीसदी हो गया है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 30 अप्रैल, 2018 की रिपोर्ट में बताया है।

2001-11 के बीच केरल की आबादी में, एक दशक की वृद्धि दर 4.8 फीसदी रही है, यानी इसी अवधि के दौरान राष्ट्रीय औसत 17.6 फीसदी रही, जिससे केरल की दर काफी नीचे है।

कमीशन के फैसले का विरोध करने के लिए पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, दिल्ली, पंजाब और पुडुचेरी के साथ केरल की कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी)-वाम विकास मोर्चा सरकार भी एक है।

केरल में वित्त और कोयर मंत्री, और सीपीआई (एम) के केंद्रीय समिति के सदस्य, 66 वर्षीय, टी. एम. थॉमस इसहाक, घोषणा के बाद से ही निर्णय के खिलाफ प्रचार कर रहे है।उनका मानना ​​है कि इसके कार्यान्वयन से राज्यों में वित्तीय व्यवधान पैदा होगा। उन्होंने राजनीतिक पतन के संबंध में भी चेतावनी दी है।

इसहाक जीएसटी के कार्यान्वयन से भी परेशान है। उन्होंने कहा, हालांकि, सरकार के प्रेस विज्ञप्ति के मुताबिक संग्रह उच्च है, ( एक सरकारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, अप्रैल, 2018 में 1.03 लाख करोड़ रुपये की रिकॉर्ड प्राप्ति हुई है ) लेकिन राज्यों को लाभ नहीं हुआ है। मार्च 2018 को समाप्त हुए आठ महीनों में, 7.17 लाख करोड़ रुपये ( 2018-19 के लिए केंद्र के बजट का लगभग एक-तिहाई हिस्सा ) एकत्रित किया गया था। लेकिन जुलाई 2017 और मार्च 2018 के बीच राज्यों को जीएसटी से उत्पन्न राजस्व हानि के लिए भुगतान मुआवजा केवल 41,147 करोड़ रुपये था।

फरवरी 2018 में, इसहाक ने राज्य की बजट घोषणा को उन्नत किया ताकि प्रशासन के लिए वित्तीय वर्ष की शुरुआत से योजनाओं को लागू करने के लिए पर्याप्त समय सुनिश्चित किया जा सके। वह विधायी असेंबली के चार बार सदस्य रहे हैं। वह एक अर्थशास्त्री हैं। उन्हें उनकी किताब, ‘केरलम: मानम मनुषियम’ (2010) के लिए केरल साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिला है। केरल में सामाजिक परिवर्तनों और समाज अंतरराष्ट्रीय और स्थानीय विकास से कैसे प्रभावित होता है, इस पर इस किताब में विस्तार से बात की गई है। इंडियास्पेंड के साथ एक साक्षात्कार में, इसहाक ने वित्त आयोग के बारे में अपनी चिंताओं पर बात की। राज्य सरकार को लॉटरी से मुनाफा और केरल के बुजुर्गों के लिए बजट विश्लेषण द्वारा वित्त पोषित स्वास्थ्य सेवा योजना शुरू करने की सरकार की योजना पर भी चर्चा की।

हालांकि, आपने यह कहा कि केरल, एक उपभोक्ता राज्य के रूप में, जीएसटी से लाभान्वित होगा। आपने इसके कार्यान्वयन और केरल को प्राप्त कर रिटर्न पर निराशा व्यक्त की है। समस्या कहां है?

शुरुआत से ही ई-वे बिल (इलेक्ट्रॉनिक तरीके से) को वस्तुओं के अंतरराज्यीय व्यापार के लिए अनिवार्य बना दिया गया। हमारे चेकपोस्ट सक्षम नहीं हैं, जिससे अंतरराज्यीय व्यापार की सारी गतिविधियां दर्ज नहीं होतीं। इसने केरल के राजस्व को बुरी तरह प्रभावित किया है, जहां लगभग 80 फीसदी वस्तुओं को राज्य के बाहर से लाया जाता है। रिटर्न फॉर्म (जीएसटी रिटर्न फाइल करने के लिए) को अभी तक अंतिम रूप दिया जाना बाकी है। 3 जी फॉर्म (जीएसटी के तहत पंजीकृत सभी लोगों द्वारा दायर) व्यापारी द्वारा स्वैच्छिक घोषणा का सार है। ऐसा कोई तरीका नहीं है कि हम इनपुट क्रेडिट की सत्यता की जांच कर सकें क्योंकि कुछ डेटा उपलब्ध नहीं है। इसके अलावा, डेटा की जांच करने के लिए, हम नहीं चाहते हैं कि (जीएसटी) की वार्षिक वापसी को और भी स्थगित कर दिया जाए। यह सब जीएसटी के संग्रह को प्रभावित कर रहा है। राजस्व के मामले में हम जिन फायदों की उम्मीद कर रहे थे, उनका आना अभी तक बाकी है।

जीएसटी के अनुमानित लाभ क्या हैं और क्या इन्हें अभी तक महसूस किया गया है?

कर तेजी से कम हो गए हैं, लेकिन यह कीमतों में परिलक्षित नहीं है। जहां तक मुझे पता है, बहुत कम वस्तुओं की कीमतों में कमी देखी गई है। यह कॉपरेट्स के लिए लाभदायी है, जबकि आम लोगों को उतना फायदा नहीं हुआ। छोटे पैमाने पर काम करने वाले भी आंशिक रूप से प्रभावित हुए, क्योंकि उन्हें उत्पाद शुल्क छूट को छोड़ना पड़ा।

फिर, क्षेत्र-विशिष्ट समस्याएं हैं। वर्तमान जीएसटी किसी भी प्रकार की क्षेत्रीय आजादी की अनुमति नहीं देता है। जीएसटी परिषद द्वारा हर चीज की पुष्टि की जानी चाहिए। अंतरराज्यीय व्यापार के लिए यह संभव नहीं हो सकता है, लेकिन राज्य के जीएसटी के लिए किया जा सकता है।

इसके अलावा, राज्य को एक और नुकसान हुआ है कि राज्य और केंद्र के बीच करों का शेयर 50:50 किया गया है। यह राज्यों की मदद नहीं करता है। कुल मिलाकर, हमने अभी तक इस निर्णय का लाभ देखा नहीं है। लेकिन मैं आशावादी हूं , इसलिए लगता है कि चीजें बेहतर होंगी, लेकिन अभी तक दृश्य धुंधला है।

आपने कहा था कि राज्यों से परामर्श के बिना वित्तीय जिम्मेदारी और बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) अधिनियम को लागू करने का प्रयास-राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए सरकार का लक्ष्य निर्धारण है और राज्यों की उधार शक्ति को सीमित करने के लिए यह कदम उनकी वित्तीय आजादी के लिए एक चुनौती है। आप राज्य सरकारों के क्या भविष्यवाणी करते हैं, खासकर ऐसे समय में जब केंद्र कोआपरैटिव फेडरलि के बारे में बात कर रहा है?

केंद्र में कई नीति निर्माता देश की (क्रेडिट) रेटिंग पर कुछ अलग ही सोचते हैं। वे चाहते हैं कि राजकोषीय घाटे का अनुपात कम हो जाए, जिससे रेटिंग में सुधार हो और बाहर से फंड आए। मेरा मानना ​​है कि राज्य सरकारें विशेष रूप से कल्याण और सामाजिक और आर्थिक आधारभूत संरचना के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इसलिए, वे (केंद्र) घाटे को कम करने का आसान रास्ता ले रहे हैं। यह विसंगतिपूर्ण है। हम इसे स्वीकार नहीं कर सकते कि इसे कुछ विदेशी ताकतों के लाभ के लिए किया जाए। वित्तीय घाटे के अनुपात को कम करने के लिए एफआरबीएम अधिनियम का उपयोग करके यह नहीं किया जा सकता है। 2008 से, केंद्र में लगभग 4 फीसदी का वास्तविक घाटा है। आप इसे 3.5 फीसदी मानते हैं तो यह आंकड़ों से छेड़छाड़ है।

उदाहरण के लिए, एकीकृत जीएसटी में अनुमानित 150,000 करोड़ रुपये का आधा हिस्सा राज्यों के लिए है। लेकिन उन्होंने (केंद्र) ने इसे अपने राजकोषीय घाटे के अनुपात को ठीक करने के लिए अपने कोष में डाल दिया है। यदि वे राज्यों पर शासन करना चाहते हैं, तो फिर राज्य की सरकार क्यों है?

15 वें वित्त आयोग के ब्योरे में कहा गया है कि आवंटन पर विचार करने के लिए 2011 की आबादी की जनगणना का उपयोग किया जाएगा। एक डर है कि इससे केरल और अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, जो अपनी आबादी को कम करने में सक्षम हैं। आप क्या सोचते हैं?

हम वित्त आयोग के खिलाफ नहीं हैं। हम सभी मांग कर रहे हैं कि इसे अपने संवैधानिक कर्तव्यों को पूरा करने की अनुमति दी जाए। केंद्र को (क्लॉज) जोड़कर इसे संक्षेप में प्रबंधित नहीं करना चाहिए या न ही विवरणों को जोड़कर कर विघटन को कम किया जाना चाहिए, उधार शक्ति को सशर्त बनाया जाना चाहिए, आदि।

प्रत्येक राज्य का हिस्सा नहीं बढ़ सकता है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन सा फॉर्मूला उपयोग किया जाता है। यह अलग-अलग होगा। हमें एक नियम बनाना चाहिए कि राज्य के वित्त में बाधा नहीं आए।

वर्तमान में, केरल केंद्रीय कर राजस्व का 2.5 फीसदी प्राप्त करता है। केरल को अपने शेयर में 2 फीसदी कम प्राप्त होगा, यदि 2011 की आबादी की जनगणना को 14 वें वित्त आयोग के समान मानदंडों के साथ प्रयोग किया जाएगा।

यदि कमीशन के विवरण की यांत्रिक स्वीकृति है, तो राज्य स्तर पर वित्तीय व्यवधान का खतरा है। हम इससे बचना चाहते हैं। मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि हम राज्य के वित्तीय डोमेन को कमजोर करने के किसी भी फैसले को स्वीकार नहीं करेंगे। जीएसटी के कारण हम पहले से ही इसे झेल चुके हैं। वित्त आयोग के माध्यम से अब और नहीं। लेकिन अगर कुछ ऐसा होता है तो तो तय है कि गंभीर राजनीतिक पतन होगा। हम उत्सुकता से स्थिति को देख रहे हैं। हमने राष्ट्रपति से मांग की है कि विवरण बदला जाए। वित्त आयोग के साथ हमारी चर्चा के बाद, मैं बदलाव के बारे में सकारात्मक हूं। तब तक हम अपना अभियान जारी रखेंगे।

नवीनतम नीति आयोग स्वास्थ्य सूचकांक ने केरल को तमिलनाडु और पंजाब के साथ सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वालों में रखा है। यदि इंडेक्स का उपयोग विकास समस्याओं को ठीक करने के लिए, आधारभूत संरचना के लिए और प्रौद्योगिकी के मामले में केंद्र से प्रोत्साहनों के रूप में किया जाता है, तो क्या आपको डर है कि केरल जैसे बेहतर प्रदर्शन करने वाले राज्य घाटे में रहेंगे?

कुछ राज्य राष्ट्रीय औसत से काफी अधिक प्रदर्शन कर रहे हैं। लेकिन इन उपलब्धियों ने कई दूसरी समस्याओं को उठाया है जिसके लिए सरकार द्वारा धन हस्तक्षेप की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, सार्वभौमिक शिक्षा के कारण हर कोई गुणवत्ता शिक्षा प्राप्त करने की इच्छा रखता है ,जो विशाल राज्य संसाधनों की मांग करता है। हम जीवनशैली रोगों में वृद्धि देख रहे हैं, जिसके लिए विशेष देखभाल में निवेश की आवश्यकता है। विकास का मतलब यह नहीं है कि व्यय आवश्यकताओं में कमी आई है।

साथ ही, हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि देश भर में न्यूनतम स्तर की सेवा हो। विकसित क्षेत्रों से संसाधनों को कम विकसित क्षेत्रों में स्थानांतरित करने की आवश्यकता से कोई भी इनकार नहीं कर सकता है। मुझे यह मंजूर है, लेकिन, यह सही अनुपात में सही भावना के साथ किया जाना चाहिए और इसे ध्यान में रखते हुए विकास की उस प्रक्रिया को बाधित नहीं करना चाहिए, जिसमें पर्याप्त संसाधनों की आवश्यकता है।

अपने बजट भाषण में, आपने निदेशालय द्वारा संचालित लॉटरी का उपयोग करके एक व्यापक हेल्थकेयर योजना के लिए संसाधन संग्रहण का प्रस्ताव दिया है। लॉटरी के लिए राजस्व रसीद 11,110 करोड़ रुपये (2018-19 के लिए बजट अनुमान) और व्यय 7,874 करोड़ रुपये है। क्या सरकार राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना और नई राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना (एनएचपीएस) में सभी लाभार्थियों को शामिल करने के लिए लाभ का उपयोग करेगी?

जितना मैं समझता हूं, सभी घर नए एनपीएचएस कार्यक्रम में शामिल नहीं होंगे। हम उन लोगों को भी कवर करना चाहते हैं। राज्य में एक अनुपात में परिवारों को कर्मचारी और पेंशनभोगियों के स्वास्थ्य कार्यक्रमों द्वारा कवर किया जाता है, जबकि बाकी को भी स्वास्थ्य कवरेज के तहत लाया जाना चाहिए। हम सिर्फ एक बीमा कार्यक्रम का उपयोग नहीं करना चाहते हैं। केरल में, सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली बहुत महत्वपूर्ण है। शेष भारत के विपरीत, हमारे पास सरकारी संचालित अस्पतालों की एक विस्तृत श्रृंखला है, जहां सेवा प्रदान की जाती है। मांग को संभालने के लिए हम इस कार्यक्रम को सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली से जोड़ना चाहते हैं।

हम विशेषज्ञ स्वास्थ्य सेवाओं सहित भविष्य की मांग को संभालने के लिए डॉक्टरों, नर्सों और पैरामेडिक्स को भर्ती करने वाले स्वास्थ्य क्षेत्र में 5000 करोड़ रुपये का निवेश कर रहे हैं। हम मान्यता प्राप्त और सरकारी अस्पतालों में लोगों को पहुंच प्रदान करने और आश्वासन देने का इरादा रखते हैं। इसके लिए लॉटरी के माध्यम से पर्याप्त मात्रा में प्रीमियम की आवश्यकता होगी। लॉटरी के लिए एकमात्र औचित्य यह है कि लाभ सामाजिक हित में जाएगा। लॉटरी के माध्यम से हम केरल में लोगों को बताने की कोशिश कर रहे हैं कि आप अपनी किस्मत आजमा सकते हैं, लेकिन यदि आप जीत नहीं पाते हैं, तो यह स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए दान की तरह है। हम इसे इस वित्तीय वर्ष में करना चाहते हैं।

13 फीसदी पर, केरल में 60 से ऊपर के लोगों का उच्चतम अनुपात है। स्वास्थ्य पर गंभीर रूप से ध्यान देने के बावजूद, 2015 और 2017 के बीच गैर-संक्रमणीय बीमारियों के तहत (दिसंबर 2017 तक) केरल ने बुजुर्गों की स्वास्थ्य देखभाल के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम द्वारा जारी 24.16 करोड़ रुपये का सिर्फ 14 फीसदी खर्च किया है। एक खास बात यह भी कि लगभग 79 फीसदी बुजुर्ग महिलाएं और 21 फीसदी वृद्ध पुरुष केरल में अकेले रहते हैं। फिर भी इस साल बजट के दौरान आपने कहा था, "बुढ़ापे के लिए बजट विश्लेषण अगले वर्ष शुरू किया जाएगा"?

निश्चित रूप से हमें बुजुर्गों के स्वास्थ्य पर ध्यान देना चाहिए। ध्यान हमेशा बच्चों पर दिया जाता है, जिन्हें बदलना होगा। केरल में, एक बहुत ही सक्रिय देखभाल नेटवर्क का विस्तार हुआ है, जो वृद्ध देखभाल के लिए महत्वपूर्ण है। केरल के किसी भी गांव में एक देखभाल इकाई होगी। इसका समर्थन होना चाहिए। लगभग 5.2 मिलियन लोग सरकार से कुछ पेंशन प्राप्त कर रहे हैं, हालांकि यह पर्याप्त नहीं हो सकता है। इसके अलावा हमें बुजुर्गों को सामाजिक गतिविधियों और स्थानीय स्तर के विकास में शामिल करने के प्रयास भी करने चाहिए,जिससे उन्हें लगे कि वे समाज के लिए जरूरी हैं। इसके लिए हमें सिस्टम को नए सिरे से डिजाइन करने की आवश्यकता है।

हालांकि भारत दुनिया में भेजे गए धन को प्राप्त करने को मामले में अग्रणी है, लेकिन इसमें लगभग 8.9 फीसदी की गिरावट आई है, जैसा कि विश्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है। 2014 में केरल के शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद में अनुदान का 36 फीसदी योगदान रहा है। लकिन 2014-16 के बीच 11 फीसदी की गिरावट आई है। सऊदी अरब जैसे देशों के साथ, जहां केरल प्रवासियों का लगभग 23 फीसदी काम करते हैं, वहां निताकत (निजी क्षेत्र में सऊदी नागरिकों के रोजगार को प्रोत्साहित करने के लिए सिस्टम) की व्यवस्था है। आपकी सरकार श्रमिकों की वापसी और उससे उपजे राजस्व घाटे को कैसे देखती है?

हालांकि धीरे-धीरे जमा करने के मामले अभी भी बढ़ रहे हैं। 2015-16 में, यह नीचे चला गया था। रिटर्न माइग्रेशन में भी, लोग अपनी बचत के साथ वापस आते हैं, ताकि विप्रेषित धन में उछाल सुनिश्चित हो सके। इसके अलावा, पश्चिमी देशों में प्रवासन का विविधीकरण है। विप्रेषित धन में में गिरावट आई है और संभावना है कि यह समय के साथ घट सकता है और इससे केरल की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए, हमें आधुनिक उत्पादन और दक्षताओं के क्षेत्रों में उत्पादन आधार को जल्द ही विविधता देनी है। हम निवेश के पसंदीदा क्षेत्रों में निजी पूंजी को आकर्षित करने के लिए आधारभूत संरचना बना रहे हैं।

आपने किसान कल्याण कोष बोर्ड के गठन की घोषणा की, जिसे आंशिक रूप से भूमि कर संग्रह द्वारा वित्त पोषित किया जाएगा और आंशिक रूप से कृषि कार्यकर्ता कल्याण निधि बोर्ड में योगदान दिया जाएगा। इससे 60 वर्ष से ऊपर के किसानों के लिए मासिक पेंशन मिलेगी। यह कैसे विकसित होगा?

इससे 150 करोड़ रुपये कर के रूप में आने का अनुमान है। हर साल करीब 75 करोड़ रुपये किसान कल्याण निधि बोर्ड में जाएंगे, और इसमें किसान भी योगदान देंगे। समय के साथ वृद्धावस्था पेंशन और अन्य सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों के लिए एक महत्वपूर्ण कॉर्पस होगा। केरल में कृषि श्रमिक कल्याण निधि बोर्ड सबसे बड़ा कल्याण निधि बोर्ड है, लेकिन इसमें अपर्याप्त धन है, क्योंकि इसमें सरकार और नियोक्ताओं द्वारा धन का मिलान नहीं किया गया है। अब, अगर आधा भूमि कर उनके पास जाता है, तो उन्हें फिर से जीवंत किया जाएगा।

आपने अपने बजट भाषण के दौरान, कहा कि लगभग 140,000 छात्र केरल के अवैतनिक विद्यालयों से सरकारी स्कूलों में स्थानांतरित हो गए हैं। राज्य में साक्षरता की एक मजबूत विरासत है। भारत में, 2010-11 और 2014-15 के बीच, निजी स्कूलों में 16 मिलियन की वृद्धि की तुलना में सरकारी स्कूलों में नामांकन 11.1 मिलियन गिर गया। आपकी सरकार ने इस प्रवृत्ति को कैसे उलट दिया है?

हम स्कूल में शिक्षा को डिजिटल करने के लिए सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली में आधारभूत संरचना की गुणवत्ता में विस्तार, सुधार और कंप्यूटर प्रयोगशालाएं सुनिश्चित करने में भारी निवेश कर रहे हैं। हमने सार्वजनिक शिक्षा प्रणाली पर लोगों का भरोसा जीता है।इसके अलावा, शुल्क निजी स्कूलों के विरोध में मामूली है। इससे निम्न मध्यम वर्ग और गरीब परिवारों ने अपने बच्चों को (सरकारी स्कूलों) में दाखिले के लिए भेजा । चालू वर्ष में नामांकन में 150,000-200,000 के बीच वृद्धि देखी जा सकती है।

(पालियथ विश्लेषक है और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)

यह साक्षात्कार मूलत: अंग्रेजी में 6 जुलाई, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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