राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 92% दया याचिकाओं को किया खारिज
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राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा मुबंई सीरियल बम धमाकों के आरोपी याकूब मेमन की दया याचिका खारिज होने के बाद, दया याचिका का मुद्दा एक बार फिर सुर्खियों में है। Factly.in, डाटा आधारित पोर्टल के अनुसार भारत में ऐसे कई राष्ट्रपति रहे हैं जिन्होंने दया याचिका को मंजूर किया है लेकिन कई ऐसे भी राष्ट्रपति रहे हैं जिन्होंने आरोपी के किए गए जुर्म के बदले दया नहीं दिखाई है।
हालांकि दया याचिका के मामले में देश के विभिन्न राष्ट्रपति द्वारा लिए गए निर्णय में अनुरुपता नहीं देखी गई है। पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने अपने कार्यकाल में 14 फीसदी दया याचिकाओं को खारिज किया था जबकि मौजूदा राष्ट्ररपति, प्रणब मुखर्जी ने 92 फीसदी याचिकाओं को खारिज किया है। यह आंकड़े आज़ादी के बाद किसी भी राष्ट्रपति द्वारा लिए दया याचिका खारिज करने के मामले में सबसे अधिक है।
1948 से अब तक कुल 4,802 दया यचिका पर विभिन्न राष्ट्रतियों द्वारा गौर किए गए हैं। इनमें से 3,238 याचिकाएं खारिज की गई हैं। Factly.in के आंकड़ों के मुताबिक 1,564 मामलों में मृत्युदंड को उम्र कैद की सज़ा में तब्दील किया गया है।
दया याचिका की प्रक्रिया
संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति को क्षमा अनुदान और दया याचिकाओं पर फैसला करने की शक्ति प्रदान की गई है। इस निर्णय के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की गई है। लेकिन हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने पाया है कि कुछ दया याचिका मामले में फैसले का समय कम किया जा सकता है। आरोपियों को अधिकार है कि “निर्धारित समय सीमा” के भीतर ही निर्णय लेने पर जोर दे सकें।
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हालांकि यह लगता है कि दया याचिका का पूरा निर्णय राष्ट्रपति पर ही होता है लेकिन पूर्व राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने 2012 में जारी किए गए एक प्रेस नोट के ज़रिए स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 74 के अनुसार दया याचिका पर राष्ट्रपति केवल सरकार की सहायता एवं सलाह पर ही निर्णय ले सकता है।
प्रारंभ के 26 सालों में 94 फीसदी दया याचिकाओं पर फैसला
सरकार एवं बिक्रम जीत बत्रा की किताब “कोर्ट एवं लास्ट रिसॉर्ट” से मिले आंकड़ों के मुताबिक पिछले चार दशकों में दया याचिका दायर के मामले एवं उन पर लिए गए निर्णय के मामलों में कमी देखी गई है।
प्रत्येक दशक में दया याचिकाओं पर लिए फैसले
Mercy Petitions Adjudged Each Decade
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प्रत्येक दशक में (1948-1954 , 1955-1964 और 1965-1974 ) 1,000 से भी अधिक दया याचिकाओं पर निर्णय लिया गया है। 1974 के बाद से दया याचिकाओं दायर एवं निर्णय के मामलों में कमी देखी गई है। के.आर. नारायणन एवं डॉ अब्दुल कलाम आज़ाद के राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान (1995 से 2006 ) केवल 9 मामले पर ही निर्णय लिया गया है।
बत्रा के अनुसार मृत्युदंड में आई कमी का मुख्य कारण 1973 में लाए गए नए दंड प्रक्रिया संहिता का प्रभाव हो सकता है। नई दंड प्रक्रिया संहिता के अनुसार मृत्युदंड को असाधारण सज़ा मानते हुए हत्या जैसे खतरनाक जुर्म के लिए आजीवन कारावास की सज़ा तय की गई है। बत्रा ने अपनी किताब में लिखा है कि 70 के अंत एवं 80 के शुरुआती साल के दौरान सुप्रीम कोर्ट में मृत्युदंड का मामले बहुत ही विवादपूर्ण रहे हैं। किताब में बच्चन सिंह मामले का भी ज़िक्र किया गया है जिसे दुर्लभ से दुर्लभ मामला मानते हुए मौत की सज़ा सुनाई गई थी।
यह 1970 के दशक के बाद मौत की सजा एवं राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिकाओं दायर करने में कमी के लिए एक स्वीकार्य विवरण माना जा सकता है।
1974 के बाद दया याचिकाओं में कमी
Drop In Mercy Petitions Adjudged After 1974
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सज़ा परिवर्तन या अस्वीकृति में किसी तरह का एकरुपता या तर्क नहीं
दया याचिकाओं की अस्वीकृति या मृत्युदंड के आजीवन कारावास के परिवर्तन होने में किसी भी प्रकार की कोई एकरुपता नहीं देखी गई है।
आज़ादी के बाद के कुछ शुरुआती सालों में करीब 24 फीसदी फैसलों को आजीवन कैद में बदला गया था। वहीं 1964 से 1995 के बीच फैसले परिवर्तन के आंकड़े 29 फीसदी दर्ज किए गए। सबसे अधिक निर्णय परिवर्तन के मामले ( 50 फीसदी से अधिक ) 1965 से 1974 के दौरान किए गए। इस अवधि के दौरान वी.वी. गीरी एवं ज़खिर हुसैन देश के राष्ट्रपति थे।
इसके बाद से दया याचिकाओं पर निर्णय के मामले में उतार-चढ़ाव आते रहे हैं। मामले का निर्णय राष्ट्रपति पर निर्भर रहा है। सजा परिवर्तन के सबसे कम मामले राष्ट्रपति आर.वेंकटरमन के कार्यकाल ( 1985-1994 ) के दौरान दर्ज किए गए हैं। यह आंकड़े 2006 से 2015 के दौरान बढ़ कर 43.8 दर्ज किए गए। केवल राष्ट्रपति प्रतिभा पाटित के कार्यकाल के दौरान ही 19 साज़ाओं में परिवर्तन किया गया है।
दया याचिकाओं के परिवर्तन का प्रतिशत
% Of Mercy Petitions Commuted
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विभिन्न राष्ट्रपति – विभिन्न निर्णय
यदि एक नज़र पिछले छह राष्ट्रपति के कार्यकाल पर डाले तो स्पष्ट होता है कि दया याचिकाओं पर लिए गए निर्णय में स्थिरता नहीं है।
Name of the President | Total Disposed | Commuted | Rejected |
---|---|---|---|
R Venkataraman | 40 | 0 | 40 |
Shankar Dayal Sharma | 14 | 4 | 10 |
K R Narayanan | 0 | 0 | 0 |
Dr A P J Abdul Kalam | 2 | 1 | 1 |
Pratibha Patil | 22 | 19 | 3 |
Pranab Mukherjee | 26 | 2 | 24 |
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आर. वेंकटरमन ने अपने कार्यकाल के दौरान दायर किए गए कुल दया याचिकाओं में से 40 याचिकाए खारिज किया जबकि प्रतिभा पाटिल ने 22 में से केवल तीन याचिकाओं को अस्विकृत किया है। प्रणब मुखर्जी ने 92 फीसदी से अधिक दया याचिकाओं को खारिज किया है। के. आर. नारायणन ने किसी भी याचिका पर फैसला नहीं लिया जबकि डॉ अब्दुल कलाम आज़ाद ने दो याचिकाओं पर फैसला सुनाया जिसमें से एक याचिका खारिज की और दूसरी को परिवर्तित किया। शंकर दयाल शर्मा ने अपने कार्यकाल के दौरान दायर याचिकाओं में से 70 फीसदी याचिकाओं को खारिज किया।
पिछले 6 राष्ट्रपतियों द्वारा दया याचिकाओं पर लिए निर्णय
% Of Mercy Petitions Commuted & Rejected By Last Six Presidents
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(दुब्बदु पिछले एक दशक से सूचना के अधिकार से संबंधित मुद्दों पर काम कर रहे हैं। दुब्बदु शासन/नीतिगत मुद्दों के विशेषज्ञ हैं। factly.inसार्वजनिक डेटा सार्थक बनाने के लिए समर्पित है)
यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 6 अगस्त 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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