लक्ष्य प्राप्त करने में राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम पीछे
मुंबई: 163 मिलियन से अधिक भारतीयों ( रूस की आबादी से अधिक ) को सुरक्षित पेयजल नहीं मिल पा रहा है। हम बता दें कि राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के तहत वर्ष 2017 तक पांच वर्षों में 89,956 करोड़ रुपये का 90 फीसदी खर्च किया जा चुका है। इसके बावजूद यह कार्यक्रम लक्ष्य हासिल करने में विफल रहा है, जैसा कि सरकारी आडिटर की अगस्त 2018 की एक रिपोर्ट से पता चलता है। कार्यक्रम का लक्ष्य इस प्रकार है- 35 फीसदी ग्रामीण परिवारों को पानी कनेक्शन और प्रति दिन प्रति व्यक्ति को 40 लीटर ( करीब दो बाल्टी ) पानी प्रदान करना। लक्ष्य का आधे से भी कम हासिल हो पाया है और इसकी वजह ‘खराब कार्यप्रणाली’ और ‘कमजोर अनुबंध प्रबंधन’ को जाता है, जैसा कि नियंत्रक और महालेखा परीक्षक ( कैग ) की ओर से आडिट रिपोर्ट में कहा गया है।
1.7 मिलियन ग्रामीण भारतीय निवासियों में से करीब 78 फीसदी को, न्यूनतम आवश्यक मात्रा में पानी मिल पाता है, प्रति दिन-प्रति व्यक्ति 40 लीटर यानी करीब दो बाल्टी। विशेषज्ञों के मुताबिक, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे वास्तव में इतनी मात्रा में पानी प्राप्त करते हैं। संसद में जुलाई 2018 की सरकारी प्रतिक्रिया के अनुसार, लगभग 18 फीसदी ग्रामीण निवासियों को राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम (एनआरडीडब्लूपी) के तहत प्रति दिन प्रति व्यक्ति 40 लीटर पानी से कम मिलता है। पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के वेबसाइट के मुताबिक, एनआरडीडब्लूपी केंद्र द्वारा प्रायोजित एक योजना है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण भारत में प्रत्येक व्यक्ति को ‘स्थायी तरीके से पीने, खाना पकाने और अन्य घरेलू बुनियादी जरूरतों के लिए’ पर्याप्त सुरक्षित जल प्रदान करना है। यह योजना राज्य सरकारों को ग्रामीण पेयजल कनेक्शन स्थापित करने के लिए वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान करती है।
राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के तहत कवर किए गए घर
Source: Lok Sabha (Unstarred question no.450)
नोट: 'पूरी तरह से कवर किए गए घर' प्रति दिन प्रति व्यक्ति कम से कम 40 लीटर पानी प्राप्त करते हैं। 'आंशिक रूप से कवर किए गए घर' प्रति दिन प्रति व्यक्ति 40 लीटर से कम पानी प्राप्त करते हैं।
एनआरडीडब्लूपी के कैग आडिट में उल्लेख किया गया है कि “ग्रामीण आवासों का कवरेज 40 एलपीसीडी ( प्रति दिन प्रति व्यक्ति लीटर या प्रति व्यक्ति उपलब्ध पानी ) पर केवल 8 फीसदी और 2012-17 के दौरान 81,168 करोड़ रुपये के व्यय के बावजूद 55 एलपीसीडी के आधार पर 5.5 फीसदी की वृद्धि हुई है।" हालांकि, किसी अन्य देश की तुलना में भारत ने पानी के मामले में तेजी से सुधार किया है, लेकिन किसी भी अन्य देश की तुलना में भारत में सुरक्षित जल लोगों को बहुत कम मिल पा रहा है। सुरक्षित जल न मिल पाने वाले भारतीयों की संख्या बहुत ज्यादा है। इस संबंध में इंडियास्पेन्ड ने 21 मार्च, 2018 की रिपोर्ट में बताया है। भारत में अपने घरों में रहने वाले करीब लगभग 163 मिलियन लोगों को स्वच्छ पानी नहीं मिल पाता है। यह संख्या इथियोपिया की संख्या से ढाई गुना ज्यादा है, जो सुरक्षित पानी तक पहुंच के बिना लोगों की सूची में दूसरे स्थान पर है।
81,168 करोड़ रुपये खर्च हुए और लक्ष्य से चूक गए
अगस्त 2017 की संसद में सरकारी प्रतिक्रिया के मुताबिक, “2017 तक अंतरिम लक्ष्य सभी ग्रामीण परिवारों में से 50 फीसदी को पाइप से जल आपूर्ति करना था। 2022 तक, लक्ष्य 90 फीसदी ग्रामीण परिवारों को पाइप पानी की आपूर्ति के साथ कवर करना है।” सभी ग्रामीण आवास, सरकारी स्कूल और आंगनवाड़ी (सरकारी संचालित डे-केयर सेंटर) को सुरक्षित पेयजल प्रदान करने का लक्ष्य था। पाइप द्वारा पानी की आपूर्ति से पीने योग्य पानी (55 एलपीसीडी) के साथ ग्रामीण आबादी का 50 फीसदी और घरेलू कनेक्शन के साथ ग्रामीण परिवारों का 35 फीसदी। 2013 की एक एनआरडीडब्ल्यूपी दिशा निर्देश कहती है, आधे ग्रामीण आबादी के लिए 55 एलपीसीडी लक्ष्य ‘घरेलू परिसर में या 100 मीटर से अधिक की क्षैतिज या ऊर्ध्वाधर दूरी पर’ सामाजिक या वित्तीय भेदभाव की बाधाओं के बिना प्रदान किया जाना था।
पेयजल और स्वच्छता की 2011-2022 रणनीतिक योजना मंत्रालय के लक्ष्यों में से एक यह थी कि प्रत्येक ग्रामीण भारतीय का अपने घरेलू परिसर में या 50 मीटर तक की क्षैतिज या ऊर्ध्वाधर दूरी पर 70 एलपीसीडी तक पहुंच होगी।
कैग रिपोर्ट कहती है, "दिसंबर 2017 तक, केवल 44 फीसदी ग्रामीण आवास और 85 फीसदी सरकारी स्कूलों और आंगनवाड़ी को सुरक्षित पेयजल मिल सका है। केवल 18 फीसदी ग्रामीण आबादी को पाइप से पीने योग्य पेयजल प्रदान किया गया और केवल 17 फीसदी ग्रामीण परिवारों को घरेलू कनेक्शन प्रदान किए गए थे।"
2012-17 की अवधि के दौरान 81,168 करोड़ रुपये खर्च करने के बाद सुरक्षित पेयजल का इस्तेमाल करने वाले ग्रामीण घरों के अनुपात में 40 एलपीसीडी पर 8 फीसदी और 55 एलपीसीडी पर 5.5 फीसदी की वृद्धि हुई है।
कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि कार्यक्रम के लिए प्रदान किए गए 89,956 करोड़ रुपये (43,691 करोड़ रुपये केंद्र का हिस्सा और 46,265 करोड़ रुपये राज्य का हिस्सा) इस अवधि में खर्च किया गया था। 2014-15 में उच्चतम व्यय (84 फीसदी) था।
राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम, 2012-2017 के तहत उपलब्ध निधि और व्यय
रिपोर्ट में कहा गया है कि कामों के खराब निष्पादन और कमजोर अनुबंध प्रबंधन की वजह से अधूरी जल आपूर्ति परियोजनाएं, छोड़ दिए गए और काम रोक दिए गए, उपकरणों पर अनुत्पादक व्यय, गैर-कार्यात्मक स्थिरता संरचनाएं और अनुबंध प्रबंधन के अंतराल में 2,212.44 करोड़ रुपये का कुल वित्तीय निहितार्थ था। पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के सचिव परमेस्वरन अय्यर ने 5 अक्टूबर, 2018 को प्रकाशित एक साक्षात्कार में इंडियास्पेंड को बताया, "हाल ही में, एनआरडीडब्लूपी को दक्षता में सुधार के लिए पुनर्गठित किया गया है।"
"एनआरडीडब्लूपी में हुए सुधारों ने कार्यक्रम को प्रभावी कार्यान्वयन, मजबूत निगरानी तंत्र, और प्रतिस्पर्धी और चैलेंज मोड फंडिंग के लिए तैयार किया है।(निजी क्षेत्र द्वारा दिए जाने वाले सामाजिक परिणामों को प्राप्त करने के लिए वित्तीय योगदान प्रदान करना।)”
नवंबर 2017 की एक सरकारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि यूनियन कैबिनेट ने एनआरडीडब्लूपी पुनर्गठन को मंजूरी मिलने के बाद के दो साल यानी 2020 तक कार्यक्रम के लिए 23,050 करोड़ रुपये मंजूर किए हैं।
हालांकि सरकार कार्यक्रम का पुनर्गठन कर रही है लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि लक्ष्य को पूरा करना अभी भी मुश्किल हो सकता है।
केवल पानी की पहुंच होना पर्याप्त नहीं
अशोक ट्रस्ट फॉर रिसर्च इन इकोलोजी एंड एन्वार्यनमेंट में फेलो, वीणा श्रीनिवासन ने इंडियास्पेंड को बताया कि, "यह एक बढ़ रही चिंता है कि पानी तक पहुंच उपलब्धता में नहीं बदल रहा है। उन्होंने आगे कहा,"मैं कैग की रिपोर्ट में शामिल मुद्दों से सहमत हूं। आम तौर पर, स्वतंत्र निगरानी और मूल्यांकन पर खर्च बहुत कम होता है और निगरानी और मूल्यांकन बजट शायद ही कभी खर्च किए जाते हैं। " एक गैर सरकारी संगठन, वाटरएड इंडिया के चीफ एक्जीक्यूटिव वीके माधवन ने इंडियास्पेंड को बताया, "सरकार के अनुसार, पाइप से पानी की आपूर्ति के माध्यम से घरों का वर्तमान कवरेज केवल 17 फीसदी है।"
"यह एक बड़ी चुनौती है। ग्रामीण भारत के अधिकांश हिस्सों में पानी के स्रोत के बावजूद, गर्मियों के महीनों में पानी की उपलब्धता नाटकीय रूप से घट जाती है, क्योंकि पानी के स्तर में गिरावट और सतह के स्रोत सूख जाते हैं। "
2025 में, भारत की अनुमानित प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1,341 घन मीटर (सीयूएम) होगी। जल संसाधन मंत्रालय द्वारा 2017 के आकलन के अनुसार, यह 2050 में 1,140 cu.m तक गिर सकता है, जिससे पानी और दुर्लभ हो जाएगा, जैसा कि इंडियास्पेन्ड ने 30 दिसंबर, 2017 की रिपोर्ट में बताया है। 2011 के अंत में, भारत में पानी की उपलब्धता में 15 फीसदी की कमी आई है। श्रीनिवासन ने कहा कि, ऐसेट के बावजूद पानी की अनुपलब्धता के संदर्भ में सरकार द्वारा साझा किया गया डेटा, ‘सूखी पाइप लाइन समस्या’ बहुत ‘धंधला’ है - विशेष रूप से मौसमी, क्योंकि कई गांवों में लोग टैंकरों पर निर्भर करते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को गुणवत्ता और विश्वसनीयता के लिए पानी की मात्रा से परे देखने की जरूरत है।
वाटसन प्रोग्राम अरघ्यम के मैनेजर कार्तिक सेशन ने इंडियास्पेंड को बताया कि, "जब तक हम पानी की सुरक्षा के उपाय के रूप में गुणवत्ता, मात्रा, पहुंच और विश्वसनीयता को देखते हैं, तब तक यह केवल संपत्ति बनाने जैसा होगा।।" सेशन ने कहा, सरकार की सूचना प्रणाली पर डेटा वास्तविकता को प्रतिबिंबित नहीं करता है। सेशन कहते हैं, "उदाहरण के लिए, हमने पाया है कि, पश्चिम चंपारण जिले (उत्तर पश्चिमी बिहार में) के कुछ क्षेत्रों में आर्सेनिक प्रदूषण है। वहां हमने कुछ शोध किया है। वहां प्रति बिलियन 10 भागों (पीपीबी) के निर्धारित मानक से काफी अधिक है; कुछ मामलों में 397 पीपीबी (पश्चिम चंपारण में खाप टोला) तक उच्च है। लेकिन आईएमआईएस (एकीकृत प्रबंधन सूचना प्रणाली) में, इन क्षेत्रों को भी आर्सेनिक प्रभावित के रूप में पहचाना नहीं जाता है। " सरकारी आंकड़ों के मुताबिक "जल-गुणवत्ता से प्रभावित होने वाले आवासों की संख्या 69,258 हैं, जो लगभग 46 मिलियन लोगों का घर है। ये आंकड़े ओडिशा की आबादी के बराबर है।
राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम के तहत जल गुणवत्ता से प्रभावित आवास
Source: Lok Sabha (Unstarred question no.450)
वाटर एड के माधवन कहते हैं, "पानी की गुणवत्ता के परीक्षण के लिए हमारा बुनियादी ढांचा बहुत खराब है।" "अधिकांश जिला प्रयोगशालाओं में उपकरण और लोगों की कमी है।" फरवरी 2017 में पेयजल मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया राष्ट्रीय जल गुणवत्ता उप-मिशन, लगभग 28,000 आर्सेनिक- और फ्लोराइड प्रभावित निवासियों में स्वच्छ पेयजल के लिए ‘तत्काल आवश्यकता’ पर ध्यान देगा। नवंबर 2017 की सरकारी प्रेस विज्ञप्ति में उल्लेख है कि केंद्र को मार्च 2021 तक चार साल में 12,500 करोड़ रुपये का योगदान देना होगा।
( पालियथ विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 26 नवंबर, 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित किया गया है।
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