लगभग तय: सिंगल पेरेंट्स, समलैंगिकों, लिव-इन कपल्स के लिए सरोगेसी बैन
मुंबई: सरकार की नजर में सरोगेट मदर की परिभाषा बदल गई है। संतान की चाह रखने वालों के करीबी रिश्तेदार ही सरोगेट मदर बन सकती हैं। सरोगेट मां का भी विवाहित होना जरूरी है। उसका कम से कम अपना एक बच्चा पहले से होना चाहिए। उसकी उम्र 25 से 35 वर्ष की आयु हो और अपने जीवनकाल में केवल एक बार ही सरोगेट हो सकती है।
5 अगस्त, 2019 को, जब पूरे पूरे देश का ध्यान जम्मू और कश्मीर के लिए विशेष दर्जे समाप्त किए जाने पर केंद्रित था, संसद के निचले सदन, लोकसभा में लगभग बिना किसी बहस के सरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2019 भी पारित किया।
नया सरोगेसी बिल- सिंगल पेरेंट्स, समान-लिंग वाले जोड़े, तलाकशुदा या विधवा व्यक्तियों, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों, लिव-इन भागीदारों और विदेशी नागरिकों को सरोगेट मां का उपयोग करने से रोकता है। जबकि सिंगल पेरेंट्स और विदेशी नागरिक बच्चा गोद ले सकते हैं, दूसरों के लिए यह विकल्प अस्पष्ट है। इसके बारे में हम बाद में चर्चा करेंगे।
लोकसभा द्वारा जून और अगस्त के 37 दिनों में पारित 35 नए बिलों में से एक यह बिल वाणिज्यिक सरोगेसी पर प्रतिबंध लगाता है और ‘परोपकारी सरोगेसी’ की अनुमति देता है,यानी चिकित्सा खर्च और बीमा कवरेज को छोड़कर कोई शुल्क या मौद्रिक प्रोत्साहन की अनुमति नहीं। विधेयक को अब उच्च सदन यानी राज्य सभा द्वारा स्वीकृति का इंतजार है।
विशेषज्ञों और कार्यकर्ताओं ने कहा कि व्यावसायिक सरोगेसी पर प्रतिबंध लगाने से उन महिलाओं की आजीविका भी छिन जाएगी, जिन्होंने अपनी कोख किराए पर दी और यह बिल अपने स्वयं के शरीर पर महिलाओं के अधिकारों को भी खत्म कर देगा।
हालांकि कोई सटीक डेटा नहीं है, भारत अब वाणिज्यिक सरोगेसी के लिए एक वैश्विक केंद्र के रूप में उभरा है जो 17 साल की शुरुआत के बाद अब प्रति वर्ष लगभग 2.3 बिलियन डॉलर (16,465 करोड़ रुपये) का अनुमानित उद्योग है और देश भर में 3,000 से अधिक क्लीनिकों में कई हजार लोगों को रोजगार देता है।
जब कोई रेगुलेशन नहीं था, तो सिंगल, लिव-इन रिलेशनशिप में, समान-लिंग वाले जोड़े - भारत और विदेशों से-भारत में एक बच्चे को गर्भ धारण करने के लिए एक गर्भ को किराए पर ले सकते थे। यह अब शादीशुदा भारतीय हेट्रोसेक्सुअल जोड़ों तक ही सीमित है।
विशेषज्ञों ने कहा कि उन्होंने वास्तव में बिल में सुधार का सुझाव दिया था, लेकिन ‘एक पूर्ण प्रतिबंध’ नहीं चाहा था, जैसा कि महिला और लड़कियों के अधिकारों की वकालत करने वाले सेंटर फॉर सोशल रिसर्च (CSR) में रिसर्च एंड नॉलेज मैनेजमेंट की हेड मानसी मिश्रा कहती हैं। वह कहती हैं, "निगरानी में नागरिक समाज की भागीदारी एक बेहतर विकल्प हो सकती है"।
मानसी मिश्रा ने कहा, "इस पर प्रतिबंध लगाने से यह (उद्योग) गायब हो जाएगा।"
महिलाओं और स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दों से संबंधित काम करने वाले संसाधन समूह, सामा में जेंडर राइट्स लॉयर , गार्गी मिश्रा कहती हैं, "लिव-इन रिलेशनशिप पर सुप्रीम कोर्ट के जुरिस्प्रूडन्स [यहां और यहां] को ध्यान में रखते हुए, लिव-इन जोड़ों के बच्चों को वैध माना जाता है। अब, इन समूहों - सिंगल पेरेंट्स, समलैंगिकों, ट्रांसजेंडर - इन समूहों को सरोगेसी से इनकार करते हुए - आप उन्हें उनके अधिकारों से वंचित कर रहे हैं, यह एक सीमित दृष्टिकोण ।"
मिश्रा ने आगे कहा कि, सरोगेसी से उन लोगों के लिए बड़ी राहत थी , जो बच्चे नहीं कर सकते थे।
सरोगेट माताओं के लिए नई परिभाषा
नए बिल में सरोगेसी को एक ऐसी प्रथा के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसमें एक महिला अपने करीबी रिश्तेदार के लिए बच्चा कोख में धारण करती है और जन्म देती है और जन्म के बाद बच्चे को इच्छुक दंपति को सौंप देती है।
प्रमाणित बांझपन के साथ ‘इच्छुक जोड़ों’ को सरोगेसी की अनुमति है; उन्हें भारतीय नागरिक होना चाहिए, कम से कम पांच साल से विवाहित हों, उनका कोई संतान (जैविक हो, गोद लिया गया या सरोगेट किया गया) न हो ।महिला की उम्र 23 से 50 वर्ष और पुरुष की उम्र 26 से 55 वर्ष होनी चाहिए।
सीएसआर की मानसी मिश्रा ने कहा कि निदान चिकित्सा शर्तों के माध्यम से बांझपन वास्तव में सरोगेसी की अनुमति देने का एकमात्र मापदंड होना चाहिए। उन्होंने कहा कि, "हम अमीर, प्रसिद्ध और मशहूर हस्तियों को कॉस्मेटिक कारणों की वजह से बच्चों को सरोगेट करने की अनुमति नहीं दे सकते हैं और सिर्फ इसलिए कि वे इसे वहन कर सकते हैं।"
बिल कहता है, इच्छुक जोड़े को "प्रमाण पत्र की अनिवार्यता" और "पात्रता प्रमाणपत्र" जारी करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें एक ‘उपयुक्त प्राधिकारी’ की नियुक्ति करेंगी। यह एक राष्ट्रीय सरोगेसी बोर्ड और राज्य सरोगेसी बोर्ड के लिए प्रदान करता है, जो सरकार को नीतिगत मुद्दों पर सलाह देगा, सरोगेसी क्लीनिक के लिए आचार संहिता की निगरानी और निर्धारित करेगा।
यह बिल एक सरोगेट मदर को ‘निकट संबंधी’ के रूप में परिभाषित करता है, जो आनुवांशिक रूप से ‘इच्छुक दंपति’ से संबंधित है। सरोगेट मां का भी विवाहित होना जरूरी है. उसका कम से कम अपना एक बच्चा पहले से होना चाहिए, जिसकी उम्र 25 वर्ष से 35 वर्ष के बीच हो और वह अपने जीवनकाल में केवल एक बार ही सरोगेट बन सकती है।
आनुवंशिक बच्चे, पारंपरिक परिवार पर ध्यान
यदि विधेयक कानून बन जाता है, तो समान-लिंग वाले जोड़े, सिंगल पेरेंट्स और लिव-इन जोड़ों को सरोगेसी का विकल्प चुनने की अनुमति नहीं होगी, जैसा कि वे वर्तमान में कर सकते हैं।
सोशल मीडिया पर बिल की आलोचना स्पष्ट है:
Two bills also passed today were the Surrogacy and the Transgender Persons (protection of rights) bills that seek to keep in place the Great Indian Family: the former ensures that same-sex couples, single parents, and live-in couples cannot adopt; 1/2
— Dhamini (@dhamini) August 5, 2019
The #SurrogacyBill is extremely regressive. It does not allow LGBTQ couples to become parents, makes no provision for singles to become a parent & it's policing a women's autonomy over her own body. Why not build laws on safe surrogacy for all the parties involved instead?
— Naina Rai (@nrnainarai) August 7, 2019
The #LokSabha, again denies #women agency over their own bodies. The #surrogacybill 2019, seeks to outlaw commercial surrogacy, allows only altruistic surrogacy for couples of proven conditions of infertility.
— Srujana Botcha (@SrujanaBotcha) August 7, 2019
Women’s bodies are regulated, policed & legislated into dependence.
Just finished reading the draft bill on surrogacy passed by LS today @drharshvardhan ji. No provision for surrogacy for a single parent. Why? Also if surrogate has to be from related family members will this not even allow greedy relatives to target property of childless?
— Smita (@DikshitSmita) August 6, 2019
The Surrogacy bill that got passed ensures that same-sex couples or single folks or live-in couples cannot adopt, thus keeping the idea of the traditional family intact. Did anyone notice that? #regression #surrogacybill #family
— Sohini Bhattacharya (@SohiniBee) August 6, 2019
अशोका विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर स्टडीज इन जेंडर एंड सेक्सुएलिटी की निदेशक माधवी मेनन ने इंडियास्पेंड को बताया कि, "ये प्रतिबंध विधेयक में लिखे गए हैं, इसलिए वे वास्तव में प्रभावी होंगे।"
सीएसआर से मानसी मिश्रा ने कहा कि भारत में व्यावसायिक सरोगेसी ने बच्चों को पीडोफाइल, अंग-प्रत्यारोपण रैकेट और तस्करी के लिए संवेदनशील बना दिया था।
मानसी मिश्रा ने कहा, "दूसरी ओर, हम यह सवाल उठा सकते हैं: सरोगेसी के माध्यम से आनुवांशिक संतान होने के बारे में इतना जुनून क्यों है? वे जोड़े, जो हताश हो चुके हैं, सरोगेसी की बजाय गोद लेने को प्राथमिकता क्यों नहीं देते हैं? क्या यह दोहरा रवैया नहीं है? "
'नैतिक नियंत्रण की जरूरत'
अशोक विश्वविद्यालय के मेनन ने कहा, सरोगेसी उद्योग गैर-कानूनी नहीं था, लेकिन गैर-विनियमित था। लेकिन, अगर नया बिल कानून बन जाता है, तो यह अवैध होगा, क्योंकि अब केवल परोपकारी सरोगेसी की अनुमति होगी।
मेनन कहते हैं, "सभी व्यवसायों की तरह, सरोगेसी को भी विनियमित करने की आवश्यकता है। लेकिन हमें जो दो सवाल पूछने की ज़रूरत है, वे हैं: सरोगेसी को रेग्युलेट करने की बजाए इस पर प्रतिबंध क्यों? दूसरी बात यह है कि जब भारत का हर एक पेशा शोषण में डूबा है और नियमन की जरूरत है, तो केवल सरोगेसी का नियमन क्यों?”
मेनन ने कहा, " मुझे लगता है कि इन दोनों सवालों का जवाब, डेमोग्राफी की प्रकृति में शामिल है। सत्ता में सरकारें हमेशा महिलाओं और उनके शरीर को नियंत्रित करना पसंद करती हैं।"
“बिल बड़े पैमाने पर नैतिक नियंत्रण और सामाजिक इंजीनियरिंग है। सरोगेसी पर प्रतिबंध से महिलाएं की आजीविका का एक और साधन खत्म होगा । ” मेनन ने 6 अगस्त, 2019 को स्क्रॉल.इन में लिखा, "महिलाओं को किसी तरह के भुगतान के बिना, सिर्फ भलाई के लिए अपने शरीर का उपयोग करने के लिए कहा जा रहा है। मातृत्व को पवित्र के रूप में देखा जाएगा, और महिलाओं स्वतंत्र होने के लिए दंडित होंगी।"
कुछ लोगों ने कहा कि गोद लेने की प्रक्रियाओं में संशोधन के बाद प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए, ताकि सिंगल पेरेंट्स और समलैंगिक जोड़ों के बच्चे हो सकें।
जेंडर और एलजीबीटीक्यू अधिकार हरीश अय्यर ने कहा, "लेकिन इसका पालन नहीं किया जाता है। वाणिज्यिक सरोगेसी पर प्रतिबंध लगाकर उन्होंने समलैंगिकों पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि यह भारतीय लोकाचार के खिलाफ है ... समलैंगिक लोगों के साथ भेदभावपूर्ण है।"
क्या समान जेंडर वाले जोड़े, लिव-इन पार्टनर, सिंगल पेरेंट्स गोद सकते हैं?
भारत में बाल गोद लेने की नोडल एजेंसी, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का सेंट्रल अडाप्शन रीसोर्स अथॉरिटी (सीएआरए) के अनुसार, एक सिंगल अभिभावक बच्चा गोद ले सकता है। हालांकि, एक एकल पुरुष एक बालिका को गोद नहीं ले सकता है, जबकि एक अकेली महिला किसी भी लिंग के बच्चे को गोद ले सकती है, पात्रता मानदंड के अनुसार, "कोई भी भावी दत्तक माता-पिता, वैवाहिक स्थिति के परे और चाहे उसका जैविक पुत्र या पुत्री हो या नहीं, इन मानदंडों के आधार पर कोई बच्चा गोद ले सकता है"।
11 अक्टूबर, 2018 को एक सर्कुलर के माध्यम से, अधिकृत विदेशी दत्तक ग्रहण एजेंसियों ’को संबोधित करते हुए, सीएआरए ने चार महीने पहले किए गए एक फैसले को,जिसमें एक लंबी अवधि के रिश्ते में एक लिव-इन पार्टनर के साथ एक एकल माता-पिता द्वारा गोद लेने को अस्वीकार किया गया था, वापस ले लिया।
महाराष्ट्र स्टेट अडॉप्शन रिसोर्स एजेंसी, गवर्नमेंट काउंसिल के सदस्य और चाइल्ड केयर और गोद लेने वाली एजेंसी, बाल आशा ट्रस्ट के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर, सुनील अरोड़ा कहते हैं, "बच्चे को गोद लेने की नीति यह नहीं कहती है कि एक समान लिंग वाला दंपति गोद नहीं ले सकता है और न ही नीति यह कहती है कि वे ऐसा कर सकते हैं।"
अरोड़ा ने तर्क दिया कि चूंकि सीएआरए के माध्यम से गोद लेना एक ऑनलाइन प्रक्रिया है और एकल महिलाएं गोद ले सकती हैं, इसलिए उनके यौन अभिविन्यास का पता नहीं चलता है।उन्होंने कहा कि प्रतीक्षा सूची संख्या के आधार पर, एक जोड़े या एक माता-पिता की परवाह किए बिना, प्रणाली स्वचालित रूप से एक बच्चे को आवंटित करती है।
8 अगस्त, 2019 को, इंडियास्पेंड ने सीएआरए को एक ईमेल भेजा था, जिसमें पूछा गया कि क्या यह लिव-इन और एक ही जेंडर वाले जोड़ों द्वारा गोद लेने की अनुमति है? यदि हम उनकी प्रतिक्रिया प्राप्त करते हैं तो हम इस कहानी को अपडेट करेंगे।
अय्यर ने कहा,, "हालांकि यह उल्लेख नहीं है, लेकिन यह अनकहे रुप से है कि यदि आप एक समलैंगिक अभिभावक हैं, आप गोद नहीं ले सकते हैं, तो यह मुश्किल है। यदि आप एक समलैंगिक पिता हैं, तो वे मानते हैं कि आप बच्चे के साथ दुर्व्यवहार करेंगे। इसलिए जब वे फैमिली स्क्रीनिंग करते हैं (जो कि सीएआरए के सिस्टम द्वारा एक बच्चे को आवंटित किए जाने के बाद आता है), तो मामला वहीं अटक जाता है। ”
(मल्लापुर वरिष्ठ विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)
यह आलेख मूलत: अंग्रेजी में 28 अगस्त 2019 को IndiaSpend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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