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2008 में जब, तत्कालीन महिला एवं बाल विकास मंत्री, रेणुका चौधरी, ने धनलक्ष्मी योजना की शुरुआत की तब यह उम्मीद व्यक्त की थी कि लड़कियों को शिक्षित करने के लिए उनके परिवारों को प्रोत्साहन मिलेगा। धनलक्ष्मी योजना के तहत यदि लड़कियों का विवाह 18 वर्ष की आयु से पहले नहीं होता है तो बीमा के रूप में 1,00,000 रुपए दी जाती है।

हालांकि, संयुक्त राष्ट्र के वित्त पोषित सर्वेक्षण में पूछे गए दो-तिहाई उत्तरदाताओं – 69 फीसदी – ने कहा कि वे प्रोत्साहन के रुप में मिली राशि का इस्तेमाल शादी के खर्चे को पूरा करने के लिए करेंगे जबकि केवल 26 फीसदी उत्तरदाताओं ने कहा कि वे प्रोत्साहन का उपयोग शिक्षा के लिए करेंगे।

संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, कम से कम 47 फीसदी भारतीय लड़कियों की शादी 18 वर्ष की आयु से पहले हुई है। चयनात्मक गर्भपात के माध्यम से कई लड़कियों को दुनिया में आने से पहले ही मार दिया जाता है और शिक्षित परिवारों में इसकी उच्च दर है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने पहले भी बताया है।

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष से रिपोर्ट (यूएनएफपीए) भारत संकेत देती है कि, धनलक्ष्मी के दुरुपयोग के बावजूद, योजनाएं समाज में बालिका के जन्म के प्रति नकारात्मक सोच एवं बालिका के प्रति भेदभाव एवं उपेक्षापूर्ण व्यवहार को बदलने में सहायक हो सकती हैं। पिछले महीने जारी हुए सर्वेक्षण में, शिक्षा पर शादी की वरीयता की निराशाजनक प्रवृत्ति देखी गई, जो उन अभिभावकों के बीच और अधिक प्रगतिशील नजरिए पाया गया जिंहोंने अब- निष्क्रिय योजना का इस्तेमाल किया है।

रिपोर्ट कहती है कि,“अध्ययन से पता चलता है कि मौजूदा लिंग बाधाओं को दूर करने में और लड़कियों को माता-पिता पर ‘दायित्व’ समझने की धारणा को कम करने में वित्तीय प्रोत्साहन एक अहम भूमिका निभाता है।”

यह सर्वेक्षण यूएनएफपीए के सहयोग से इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन स्टडीज़, मुबंई द्वारा आयोजित किया गया था। धनलक्ष्मी, एक सशर्त नकद हस्तांतरण (सी सी टी) योजना, मार्च 2008 में सात राज्यों में 11 पिछड़े ब्लॉकों में एक पायलट के रूप में, भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया था। लड़कियों राज्य सरकारों द्वारा लिए "और अधिक आकर्षक" योजनाओं के पक्ष में इसे वित्तीय वर्ष 2013-14 से बंद कर दिया गया है।

राज्य सरकार योजनाओं में से कुछ, कर्नाटक में भाग्यलक्ष्मी शामिल हैं जो गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों में लड़कियों की आवश्यकताओं का ध्यान रखता है और दिल्ली में लाडली योजना है जो लड़कियों की शिक्षा में सुधार के उदेश्य से लागू किया गया है। कर्नाटक सरकार के अनुसार, वित्त वर्ष 2015-16 में, भाग्यलक्ष्मी योजना से 183,000 लड़कियां लाभान्वित हुई हैं।

धनलक्ष्मी के तहत लड़कियों के परिवारों के जीवन के विभिन्न चरणों पर नकद राशि दी जाती है: जन्म पंजीकरण के बाद 5000 रुपए, टीकाकरण के बाद 1,250 रुपए, प्राथमिक स्कूल के माध्यम से 3,500 रुपए, इत्यादि – आठवीं कक्षा पूरी होने तक प्रोत्साहन के कुल 13,500 रुपए दी जाती है।

धनलक्ष्मी इस्तेमाल करने वाले परिवारों की सबसे प्रगतिशील मानसिकता

2010 में योजना आयोग के लिए किया गया अध्ययन, सीसीटी योजनाओं के परिचालन में चुनौतियों पर प्रकाश डालता है लेकिन कहा जाता है कि, “यह स्पष्ट नहीं है कि सीसीटी द्वारा लड़कियों के प्रति परिवारों की धारणा और नज़रिए को बदलने में कितना सफल हुआ है।”

यूएनएफपीए सर्वेक्षण सितंबर 2013 और फरवरी 2014 के बीच आयोजित किया गया था जिसमें पंजाब, बिहार, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और झारखंड में 2,150 लाभार्थी और 1,806 गैर-लाभार्थी शामिल थे।

एक परिवार से कम से कम एक लड़की का धनलक्ष्मी योजना में नामांकन होने से उन्हें लाभार्थी के रुप में परिभाषित किया गया जबकि गैर-लाभार्थी के रुप में उन्हें परिभाषित किया गया जिस परिवार में लड़की थी लेकिन वे योजना के तहत नामंकित नहीं हैं।

अन्य परिवारों की तुलना में लभार्थी परिवारों (23 फीसदी) की लैंगिक समानता की वकालत करने की संभावना 1.7 गुना अधिक है। यह लैंगिक समानता और महिला शिक्षा से संबंधित सात बयानों के सेट पर आधारित है। माता पिता, जिन्होंने दृढ़ता से बयानों पर सहमति व्यक्त की, उनकी संख्या दर्ज की गई है।

लैंगिक समानता पर अभिभावकों की दृढ़ता से सहमति का प्रतिशत

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Source: United Nations Population Fund (UNFPA)

लड़कियों की शिक्षा से संबंधित सात बयानों के लिए "दृढ़ता से सहमत" आंकड़े गैर लाभार्थियों के लिए 29 फीसदी और लाभार्थी परिवारों के लिए 33 फीसदी थे।

महिला शिक्षा पर अभिभावकों की दृढ़ता से सहमति का प्रतिशत

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Source: United Nations Population Fund (UNFPA)

इसके अलावा, परिवारों की दो श्रेणियों के बीच बयान का अंतर सात प्रतिशत अंक था, “लड़की अपनी शादी का फैसला ले सकती है”, बयान के लिए, और 11 प्रतिशत अंक, “लड़की फैसला ले सकती है कि शादी कब करनी है” - दोनों लाभार्थी परिवारों के पक्ष में हैं।

लड़कियों की शादी पर अभिभावकों की दृढ़ता से सहमति का प्रतिशत

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Source: United Nations Population Fund (UNFPA)

अध्ययन कहती है कि, “हालांकि, अध्ययन से मिले प्रमाण हमें आत्मविश्वास या निर्णायक रुप से यह कहने की अनुमति नहीं देते हैं कि नकद हस्तांतरण अभिभावकों को बेटियों को स्वेच्छा से स्वीकार करने के लिए प्रेरित करते हैं।”

2011 की जनगणना के बाद, भारत में बाल लिंग अनुपात बुरा है: प्रति 1,000 लड़कों पर 919 लड़कियां, जोकि 943 की औसत लिंग अनुपात से कम है। हालांकि, पंजाब के सरहिंद में, 11 ब्लॉकों में से एक जहां धनलक्ष्मी नियंत्रित होने वाला था, वहां शिशु लिंग अनुपात 2001 में 766 से बेहतर हो कर 2011 में 843 हुआ है। फतेहगढ़ साहिब जिला जहां सरहिंद स्थित है, वहां 2001 की जनगणना में भारत का सबसे खराब बाल लिंग अनुपात दर्ज किया गया है।

अब भी करना है लंबा रास्ता तय

लाभार्थी और गैर लाभार्थी परिवारों के नजरिए में अंतर स्पष्ट है, लेकिन निरपेक्ष संख्या उल्लेखनीय नहीं है। लाभार्थियों में भी, करीब 80 फीसदी लोगों ने लड़कियों के किससे शादी करने के निर्णय पर सहमती नहीं जताई है। और 74 फीसदी लोग, लड़कियों के कब शादी करने के निर्णय के सवाल पर ठीक जवाब देने की स्थिति में नहीं थे।

लड़कियों के अंतिम संस्कार संस्कार से संबंधित प्रश्न पर सबसे कम संख्या दर्ज किए गए हैं: 42 फीसदी लाभार्थी अभिभावक एवं 29 फीसदी गैर लाभार्थी अभिभावकों ने दृढ़ता से महसूस किया कि वे ऐसा कर सकते हैं।

(सुकुमार एक स्वतंत्र पत्रकार है, एवं इन्होंने एक पुरस्कृत व्यंग्य वेबसाइट की स्थापना भी की है।)

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 16 जून 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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