वर्ष 2017 के अब तक के 7 महीने में गाय से संबंधित हिंसा के 26 मामले
1 अप्रैल, 2017 को 55 वर्ष के पहलू खान गुस्साई भीड़ का शिकार हुए और जान चली गई।इसके बाद के 118 दिनों में गाय से संबंधित हिंसा की 26 घटनाएं हुईं हैं। यह जानकारी भारत में इस तरह की हिंसा का रिकॉर्ड रखने वाले इंडियास्पेंड के डेटाबेस पर किए गए विश्लेषण में सामने आई है। हमने पाया है कि पिछले आठ वर्षों से अब तक गाय से संबंधित हिंसा के लगभग 70 मामले हुए हैं।
अंग्रेजी मीडिया के रिपोर्टों के संग्रह और सामग्री के विश्लेषण के आधार पर बनाए गए डेटाबेस से पता चलता है कि मई, 2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार के सत्ता में आने के बाद से इस तरह की 97 फीसदी ( 70 में से 68 ) घटनाएं दर्ज की गई हैं।
27 जुलाई, 2017 तक दर्ज हिंसा के मामलों पर किए गए हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि आधे से ज्यादा या 54 फीसदी ( 70 मामलों में से 38 ) गाय से संबंधित हिंसा के मामले भारतीय जनता पार्टी द्वारा शासित राज्यों में से थे।
आंकड़े बताते हैं कि करीब आठ वर्षों में यानी वर्ष 2010 से 2017 के दौरान गायों के मामलों पर केंद्रित हिंसा के 51 फीसदी मामलों (70 में से 36) में निशाने पर मुसलमान रहे हैं।
इसके साथ ही 70 घटनाओं में मारे जाने वालों में से 86 फीसदी ( 28 में से 24 ) मुसलमान थे।
इन हमलों में कम से कम 136 लोग घायल हुए हैं और इंडियास्पेंड के डेटाबेस के विश्लेषण से पता चलता है कि इन हमलों में आधे से ज्यादा, करीब 54 फीसदी, अफवाहों की वजह से घटित हुए।
गोजातीय मुद्दों से संबंधित हिंसा में वृद्धि के बावजूद, विशेष रूप से पिछले तीन वर्षों में गृह मंत्रालय ‘लिंचिंग’ पर डेटा एकत्रित नहीं करता है, जैसा कि 25 जुलाई, 2017 को लोकसभा को दिए गए इस सरकारी बयान से पता चलता है।
गाय-संबंधित हमलों या लिंचिंग और सामान्य हिंसा में राष्ट्रीय या राज्य अपराध डेटा अंतर नहीं करता है। इसलिए इस तरह के हिंसा पर बढ़ते राष्ट्रीय बहस के लिए इंडियास्पेंड डेटाबेस पहला ऐसा सांख्यिकीय दृष्टिकोण है।
करीब 49 फीसदी मामलों में पुलिस ने पीड़ितों के खिलाफ मुकदमा दायर किया
आठ वर्षों के दौरान, 70 हमलों में 68 मोदी की सरकार सत्ता में आने के बाद (2014-2017) के बाद हुए हैं। प्रतिशत में देखें तो लगभग 97 फीसदी। वर्ष 2016 में गाय से संबंधित हिंसा की घटनाओं की संख्या 26 रही है । यह संख्या वर्ष 2017 के पहले सात महीनों की संख्या के बराबर है।
दर्ज किए मामलों में करीब आधा यानी 49 फीसदी (34 हमलों) में पुलिस ने पीड़ितों / बचे लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया है, जैसा कि हमारे गाय-संबंधित-हिंसा डेटाबेस के विश्लेषण से पता चलता है।
पुलिस की ये कार्रवाई गाय के नाम पर हिंसा के खिलाफ प्रधानमंत्री मोदी के हालिया बयान के खिलाफ जाता है।
लंदन और न्यूयॉर्क के द्वारा सरकार की धीमी प्रतिक्रिया पर एक किस्म के विरोध, देश में मुस्लिम और दलितों के खिलाफ राष्ट्रव्यापी हमलों पर चुप्पी के खिलाफ शहरों में विरोध प्रदर्शन के एक दिन बाद बाद, 29 जून, 2017 को गुजरात के साबरमती आश्रम के शताब्दी समारोह में मोदी ने कहा: "गौ भक्ति के नाम पर लोगों को मारना अस्वीकार्य है। यह कुछ ऐसा है जो महात्मा गांधी स्वीकार नहीं करेंगे।
कोई भी व्यक्ति को अपने हाथों में कानून लेने का अधिकार नहीं है। हम अहिंसा के देश में हैं। हिंसा किसी भी समस्या का समाधान नहीं है।
गायों की सुरक्षा के संबंध में किसी ने भी महात्मा गांधी और आचार्य विनोबा भावे से ज्यादा नहीं बताया है। हमें वैसा ही करना चाहिए।"
अपने भाषण के अंत में प्रधानमंत्री ने कहा था-“ हम सब एक साथ काम करते हैं। आइए... एक ऐसा भारत बनाते हैं, जिस पर हमारे स्वतंत्रता सेनानियों को गर्व हो।"
No one spoke about protecting cows more than Mahatma Gandhi and Acharya Vinoba Bhave. Yes. It should be done: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) June 29, 2017
No person in this nation has the right to take the law in his or her own hands in this country: PM @narendramodi
— PMO India (@PMOIndia) June 29, 2017
Let's all work together. Let's create the India of Mahatma Gandhi's dreams. Let's create an India our freedom fighters would be proud of: PM
— PMO India (@PMOIndia) June 29, 2017
15 जुलाई, 2017 को संसद में मानसून सत्र की शुरूआत से एक दिन पहले भाजपा की अखिल भारतीय बैठक थी। उसमें प्रधान मंत्री ने एक बार फिर गाय संबंधित हिंसा की आलोचना की और राज्य सरकारों को उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई करने का दायित्व दिया। उन्होंने कहा:
गाय को हमारे यहां माँ मानते हैं,लोगों की भावनाएं जुड़ी हैं। लेकिन यह समझना होगा कि गौ रक्षा के लिए कानून हैं और इन्हें तोड़ना विकल्प नहीं है
— Narendra Modi (@narendramodi) July 16, 2017
गौरक्षा को कुछ असामाजिक तत्वों ने अराजकता फैलाने का माध्यम बना लिया है। इसका फायदा देश में सौहार्द बिगाड़ने में लगे लोग भी उठा रहे हैं।
— Narendra Modi (@narendramodi) July 16, 2017
देश की छवि पर भी इसका असर पड़ रहा है। राज्य सरकारों को ऐसे असामाजिक तत्वों पर कठोर कार्रवाई करनी चाहिए।
— Narendra Modi (@narendramodi) July 16, 2017
पिछले तीन वर्षों में विभिन्न समुदायों के बीच वैमनस्य को बढ़ावा देने के अपराध में 41 फीसदी वृद्धि
वर्ष 2014 से 2016 के बीच भारतीय दंड संहिता की धारा 153 ए (धर्म, जाति, जन्म स्थान आदि) और 153 बी (अभिप्राय, राष्ट्रीय एकता के प्रति झुकाव का दावा) के तहत विभिन्न समूहों के बीच वैमनस्य को बढ़ावा देने के कम से कम 1,235 मामले दर्ज हुए हैं। 25 जुलाई, 2017 को ‘लिन्चिंग’ पर लोकसभा को दिए एक एक सवाल के जवाब में भी यह जानकारी सामने आई है।
"राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) भारतीय दंड संहिता की धारा 153 ए और 153 बी के तहत धर्म, जाति, जन्म स्थान आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच आपसी सौहार्द को खत्म कर देने वाले अपराधों पर डेटा रखता है। ... हालांकि, यह गाय पर सतर्कता, गाय व्यापार और तस्करी से संबंधित मामलों पर डेटा नहीं रखता है ," गृह राज्य मंत्री हंसराज गंगाराम अहीर ने लोकसभा में दिए एक जवाब में ऐसा कहा है।
पिछले तीन वर्षों से 2016 तक, ‘विभिन्न समुदायों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के अपराध’ में 41 फीसदी की वृद्धि हुई है। ये आंकड़े 336 से बढ़कर 475 हुए हैं।
भारत के सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में 346 फीसदी की वृद्धि दर्ज करते हुए सबसे अधिक (202) मामलों की सूचना है।
यह आंकड़े वर्ष 2014 में 26 थे। बढ़कर वर्ष 2016 में 116 हुए । तीन वर्षों में, उत्तर प्रदेश के बाद केरल (151), कर्नाटक (114), तेलंगाना (104) और महाराष्ट्र (103) का स्थान रहा है।
देश भर में उत्तराखंड में भी मामलों के दर में तेजी से वृद्धि हुई है। उत्तराखंड में यह वृद्धि दर 450 फीसदी है। आंकड़े वर्ष 2014 में चार थे। बढ़ कर वर्ष 2016 में 22 हुए हैं।
Source: IndiaSpend database
विभिन्न समूहों के बीच वैमनस्य को बढ़ावा देने वाले अपराध, 2015
सरकार ने यह भी कहा कि ‘लिंचिंग’ के खिलाफ कानून बनाने का कोई प्रस्ताव नहीं है।
गाय सुरक्षा के नाम पर जन हिंसा को देखकर नागरिक समाज के सदस्यों की एक समिति ‘नेशनल कैम्पेन अगेंस्ट मॉब लिंचिंग’ (एनसीएएमएल) ने एक नया कानून प्रस्तावित किया है। इस ‘मानव सुरक्षा कानून’ (मसुका) में ‘मॉब लिंचिग’ के आरोपी भीड़ को जमानत न देने, दोषी व्यक्तियों के लिए आजीवन कारावास और संबंधित स्टेशन गृह अधिकारी के तत्काल निलंबन का सुझाव देता है। मासुका की मांग के लिए एक ऑनलाइन याचिका में लगभग 34,000 से अधिक हस्ताक्षर जुड़ चुके हैं।
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 28 जुलाई,2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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