वर्ष 2017 में भारत के लिए 5 बड़ी चुनौतियां
फोटो सौजन्य- घड़ी की सुई की दिशा में उपर से बाएं : रायटर / अहमद मसूद, रायटर / रेइनहार्ड क्रुआसे, आईएएनएस, रायटर / अजय वर्मा
वर्ष 2015 में इंडियास्पेंड ने वर्ष 2016 के लिए भारत के सामने आने वाली पांच मुख्य चुनौतियों के संबंध में बताया था - कृषि के क्षेत्र में धीमी गति से विकास, जलवायु परिवर्तन और सूखे का खतरा, कुपोषण, अशिक्षा और कम वृद्धि एवं व्यापार पुर्वानुमान। वर्ष 2016 की समाप्ति के साथ हमने इन पांच चुनौतियों का फिर से विश्लेषण किया है, जो वर्ष 2017 के लिए भी चुनौतियां हैं।
1. कृषि क्षेत्र में सुधार, लेकिन नोटबंदी के बाद लाभ अनिश्चित
वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान, कृषि में 4 फीसदी की वृद्धि होगी। यह अनुमान एक शोध एजेंसी क्रिसिल का है। यहां यह जान लेना जरूरी है कि भारत में 70 करोड़ लोग कृषि पर निर्भर हैं। कृषि पिछले दो वर्षों से लगातार पड़ रहे सूखे से अभी उबर नहीं पाया है। कई जगहों पर तो लगातार तीन वर्षों से सूखा पड़ रहा है। वर्ष 2015-16 की दूसरी तिमाही की तुलना में 2016-17 की इसी अवधि के दौरान कृषि क्षेत्र में 3 फीसदी की वृद्धि हुई है।
तीन महीने के अनुसार कृषि में विकास
Source: Key Economic Indicators, Office of the Economic Advisor
कृषि मंत्रालय के अनुमान के अनुसार वर्ष 2016-17 में 93.8 मिलियन टन चावल और 8.7 मिलियन टन दाल के साथ गर्मियों की फसल का रिकॉर्ड उत्पादन होगा।
वर्ष 2016-17 में चावल और दलहन के रिकॉर्ड उत्पादन का अनुमान
Source: Key Economic Indicators, Office of the Economic Advisor
लेकिन नवंबर 2016 में 500 और 1,000 रुपए के नोट को बंद किए जाने से मुख्य रुप से नकद पर ही चलने वाले ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका लगा है। हम बता दें कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर 80 करोड़ या भारत की 65 फीसदी आबादी निर्भर है।
इंडियास्पेंड ने देश के विभिन्न क्षेत्रों का दौरा किया और पाया कि महाराष्ट्र में ग्रामीण बाजार यार्ड में प्रवेश करने वाले वाहनों में गिरावट हुई है। साथ ही देश के सबसे बड़े प्याज बाजार में प्याज की कीमतें आधी हुई हैं। गोवा में मछली पकड़ने की अर्थव्यवस्था में तमाम बाधाएं आ रही हैं, और मध्य प्रदेश में फूल किसानों को भारी नुकसान हो रहा है।
उत्तर प्रदेश, ओडिशा और देश के अन्य भागों से आ रही इसी तरह की रिपोर्ट से लगता है कि वर्ष 2016 में उज्ज्वल कृषि की संभावनाएं फीकी पड़ रही हैं। लाईव मिंट की रिपोर्ट के अनुसार, ऐसी उम्मीद है कि लंबे वक्त के बाद नकद का दबाव कम होगा और ग्रामीण अर्थव्यवस्था सामान्य हो पाएगी।
2. अच्छा मानसून; भारत का जलवायु परिवर्तन समझौते पर हस्ताक्षर; सबसे ज्यादा जहरीली हवाओं वाले विश्व के 20 शहरों में से आधे भारत में
मानसून आने से ठीक पहले जून में 11 राज्यों (पंजाब, हरियाणा, गुजरात और केरल को छोड़कर ) में गंभीर सूखे के साथ,वर्ष 2016 में भारत में सामान्य बारिश हुई है। राजस्थान, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में सामान्य से 20 फीसदी अधिक बारिश हुई है।
कुल मिलाकर, पिछले दशक में वर्षा का पैटर्न ज्यादा अनियमित हुआ हैं। ‘क्लच ऑफ इंडिया एंड ग्लोबल स्टडीज’ के मुताबिक मध्य भारत में चरम वर्षा की घटनाएं बढ़ रही हैं और मध्यम वर्षा कम हो रही है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने जनवरी 2016 में बताया है।
वर्ष 2016 में, भारत ने पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किया है, जिसके तहत कई देशों ने 2100 तक पृथ्वी का तापमान को दो डिग्री सेल्सियस तक कम करने के लिए पर्याप्त कदम उठाने के लिए सहमती जताई है।
हाइड्रोफ्लोरोकार्बन (एचएफसी) गैस के उत्पादन और खपत को कम करने के लिए भारत ने एक अंतरराष्ट्रीय समझौते पर हस्ताक्षर किया है, जो 2028 से शुरु होगा। कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में इस गैस में ग्लोबल वार्मिंग की क्षमता 12,000 गुना ज्यादा है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने अक्टूबर 2016 में विस्तार से बताया है।
फिर भी, भविष्य में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से खुद को तैयार रखने के लिए भारत को ज्यादा तैयारी की जरुरत है। लोकसभा में पर्यावरण मंत्रालय द्वारा दिए गए एक जवाब के अनुसार, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित एक अध्ययन ने वर्ष 2030 से वर्ष 2050 के बीच भारत में जलवायु परिवर्तन की वजह से 136.000 मौतों का अनुमान लगाया है।
यहां तक कि, विश्व में सीओ2 के सघनता का स्तर हमारी जिंदगी में 400 पीपीएम से ऊपर हो गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा निर्धारित सुरक्षित स्तर से 45 गुना ऊपर होते हुए विषाक्त कणों की सघनता के साथ देश की राजधानी और अन्य उत्तरी राज्य मोटी धुंध के साथ घिरे हुए हैं।
वर्ष 2016 के विश्व बैंक के आंकड़ों पर इंडियास्पेंड द्वारा किए गए विश्लेषण के अनुसार, 1.4 करोड़ से ऊपर की आबादी वाले महानगरों की तुलना में वर्ष 2011 से वर्ष 2015 के बीच दिल्ली में वायु-प्रदूषण का स्तर बीजिंग और शंघाई से भी बदतर था। डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के अनुसार, दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से आधे भारत में हैं।
3. विश्व में सबसे ज्यादा अविकसित बच्चे भारत में, संख्या 4 करोड़ के आस-पास
बच्चों के बीच कुपोषण दर में गिरावट के बाद भी, भारत में अविकसित (स्टन्टिड) बच्चों की संख्या 4 करोड़ है। ये आंकड़े विश्व से सबसे ज्यादा हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने जनवरी 2016 में विस्तार से बताया है। अविकसित का मतलब अपने आयु की तुलना में कम कद से है। 2016 ग्लोबल न्यूट्रीशन की रिपोर्ट के अनुसार, वेस्टिंग या उम्र की तुलना में कम कद और वजन के बच्चों के संबंध में, 130 देशों में से भारत का स्थान 120वां है।
भारतीय उपमहाद्वीप में कुपोषण
Source: Global Nutrition Report 2016
रिपोर्ट कहती है कि कुपोषण में गिरावट की वर्तमान दरों पर भारत 2030 तक घाना या टोगो और 2055 तक चीन की वर्तमान स्टंटिंग दरों तक पहुंच जाएगा। वर्तमान में भारत में कुपोषण में गिरावट की दर कई गरीब अफ्रीकी देशों से पीछे है।
भारत में उन सूचकों की भी खराब स्थिति है, जो कुपोषण कम करने में सहायक हो सकते हैं। उदाहरण के लिए मां के बेहतर स्वास्थ्य और पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में बौनेपन के कम प्रसार के बीच एक रिश्ता होता है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने जनवरी 2016 में बताया है। गोवा और केरल जैसे राज्य जहां 99 फीसदी संस्थागत प्रसव होते हैं, देश में बौनेपन के सबसे कम मामले देखे गए। लेकिन उत्तर प्रदेश और बिहार राज्य में बौनेपन के मामले बहुत ज्यादा देखे गए हैं। इन राज्यों में 65 फीसदी ही संस्थागत प्रसव होते हैं।
बेहतर साफ-सफाई भी बच्चों के स्वास्थ्य पर प्रभाव डालता है, जैसा कि मिजोरम में देखा गया है। मिजोरम में घरों में शौचालयों की पहुंच में 10 फीसदी सुधार के बाद दस साल के भीतर आयु के बच्चों में वेस्टिंग प्रसार में 13 फीसदी और कम वजन में 5 फीसदी की गिरावट हुई है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने जनवरी 2016 में विस्तार से बताया है। भारत के ग्रामीण इलाकों में अब भी 9.31 करोड़ घर ऐसे हैं, जहां शौचालयों की पहुंच नहीं है।
4. शिक्षा के बजट में 4.8 फीसदी की वृद्धि, लेकिन लाखों छात्र माध्यमिक विद्यालय से पहले छोड़ देते हैं पढ़ाई
पिछले साल, हमने आपको बताया था कि कैसे भारत ने अपनी शिक्षा बजट कम किया है, जबकि देश में 28.2 करोड़ लोग अनपढ़ हैं (इंडोनेशिया की आबादी के बराबर) और 18 फीसदी ऐसे हैं जो स्कूल गए, लेकिन माध्यमिक विद्यालय की पढ़ाई पूरा करने में असमर्थ रहे।
वित्त वर्ष 2016-17 के लिए केन्द्र सरकार ने स्कूल शिक्षा, , उच्च शिक्षा और वयस्क साक्षरता कार्यक्रम के लिए 72394 करोड़ रुपए का बजट बनाया है। 2015-16 की तुलना में यह आंकड़े 4.8 फीसदी ज्यादा हैं।
आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2016-17 की बजट राशि 2014-15 के बजट अनुमान की तुलना में 12.5 फीसदी कम है। सरकार ने 2014-15 में 82,771 करोड़ रुपए के बजट के मूल राशि से 16 फीसदी कम खर्च किया है।
शिक्षा बजट, 2014-2017
Source: Union Budget, Ministry of Finance
इसके अलावा, स्कूल में छात्रों को नियमित बनाए रखने की चुनौती अब भी खतरे में है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने मई 2016 की रिपोर्ट में बताया है।
शिक्षा डेटा के लिए जिला सूचना प्रणाली के अनुसार, प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में नेट नामांकन (कुल प्राथमिक स्कूल उम्र की आबादी के अनुपात के रूप में स्कूल में दाखिल किए गए प्राथमिक स्कूल उम्र के बच्चों की संख्या) स्थिर बनी हुई: वर्ष 2014-15 में 87.4 फीसदी की तुलना में 2015-16 में 87.3 फीसदी है।
माध्यमिक विद्यालयों में नामांकन में थोड़ी वृद्धि हुई है । यह 48.5 फीसदी से बढ़ कर 51.3 फीसदी हुआ है, जिससे पता चलता है कि कई छात्र माध्यमिक विद्यालय से पहले स्कूल छोड़ देते हैं।यहां तक कि वर्ष 2015-16 में उच्च माध्यमिक विद्यालय में नामांकन भी कम यानी 32.3 फीसदी ही रहा है।
5. विकास की दर में मंदी की संभावना , लेकिन इस पर सब एकमत नहीं
वर्ष 2016 के लिए, 2015 की तुलना में व्यापार और विकास दर का पूर्वानुमान कम था, जबकि थोक मुद्रास्फीति में गिरावट उपभोक्ताओं को पारित नहीं किया था, जैसा कि इंडियास्पेंड ने दिसंबर 2015 की रिपोर्ट में बताया है।
8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री, नरेंद्र मोदी द्वारा 500 और 1,000 रुपए के नोट बंद करने की घोषणा के बाद 2017 में आर्थिक गतिविधियां धीमी होने की संभावना है, लेकिन कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि यह दावे अतिरंजित हैं।
7 दिसंबर 2016 को जारी किए गए भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने अपने पांचवें द्विमासिक मौद्रिक नीति बयान में कहा कि, नोटबंदी के कारण वित्त वर्ष 2016-17 के लिए सकल मूल्य संवर्धित (जीवीए) विकास पहले किए गए 7.6 फीसदी के अनुमान से संशोधित कर 7.1 फीसदी किया गया है। नोटबंदी से नकदी संचालित क्षेत्रों जैसे कि खुदरा और परिवहन प्रभावित होने और प्रतिकूल धन के प्रभाव के कारण मांग में कमी होने की संभावना है।
एक वित्तीय सेवा फर्म,एंबिट कैपिटल ने मौजूदा वर्ष के लिए वृद्धि अनुमान 330 आधार अंकों से घटा कर 3.5 कर दिया है, जैसा कि BloombergQuint की 19 दिसंबर, 2016 की रिपोर्ट में बताया गया है।
अब यहां दूसरा पक्ष है:
एचडीएफसी बैंक के प्रबंध निदेशक, आदित्य पूरी ने 30 नवंबर, 2016 को बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि " सकल घरेलू उत्पाद में गिरावट पर अर्थशास्त्री फालतू बातें कर रहे हैं।"
आरबीआई कहती है कि उपभोक्ता मुद्रास्फीति एकल अंक में रहने की संभावना है (दिसंबर 2016-मार्च 2017 तिमाही में 5 फीसदी), लेकिन वैश्विक स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव, वित्तीय बाजारों में अशांति में हुई वृद्धि और नोटबंदी के प्रभाव के कारण इसमें जोखिम है, जिसमें वृद्धि हो सकती है।
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 30 दिसंबर 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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