वर्ष 2025 तक टीबी के मामले 79 फीसदी तक होंगे कम, चार गुना अधिक राशि की मांग
टीबी उन्मूलन के लिए एक मजबूत तैयारी नेशनल स्ट्रटीजिक प्लान (एनएसपी ) के तहत अगले आठ वर्षों में नए टीबी (तपेदिक) संक्रमण को करीब 80 फीसदी कम करने का प्रस्ताव दिया गया है। इस योजना के सुझाव के अनुसार, भारत को निजी क्षेत्र में कार्यक्रम का विस्तार करना चाहिए। साथ ही रोगियों को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण प्रदान करने की भी जरूरत है। रोगियों की निगरानी और निगरानी में सुधार और मौजूदा टीबी नियंत्रण कार्यक्रम के लिए धन में वृद्धि करने का सुझाव भी दिया गया है।
एनएसपी के मुताबिक, भारत में टीबी के खिलाफ चल रहे कार्यक्रम अपर्याप्त है। पिछले तीन वर्षों में टीबी के नियंत्रण के लिए आवंटित धन से पांच गुना अधिक राशि की जरूरत भी बताई गई है।
कनाडा में ‘मैकगिल विश्वविद्यालय’ में ‘मैकगिल इंटरनेशनल टीबी सेंटर’ के सहयोगी निदेशक मधुकर पाई कहते हैं, “यदि नया एनएसपी पूरी तरह से वित्त पोषित होता है, और पूरी तरह से लागू किया जाता है, तो यह भारत के लिए काफी फायदेमंद हो सकता है।अगर वर्ष 2025 तक टीबी के समाप्त होने की संभावना नहीं है, तो देश कम से कम 2035 के अंत तक टीबी के खिलाफ रणनीति सीमा के करीब पहुंच जाएगा। ”
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का टीबी के खिलाफ लक्ष्य नए मामलों में प्रति वर्ष प्रति 100,000 पर 10 व्यक्तियों का है।
डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के अनुसार, 28 लाख के आंकड़ों के साथ, वर्ष 2015 में दुनिया के नए टीबी मामलों में भारत की हिस्सेदारी 27 फीसदी है। टीबी का उपचार संभव है, लेकिन डब्ल्यूएचओ का अनुमान है कि टीबी का इलाज भारत के 41 फीसदी अनुमानित मरीजों तक नहीं पहुंचता है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने अक्टूबर 2016 को अपनी रिपोर्ट में बताया है।
प्रस्तावित एनएसपी योजना एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य को साथ लेकर चल रही है।
वर्ष 2015 में प्रति 100,000 लोगों पर 217 नए मामलों से प्रति 100,000 लोगों पर 44 मामले तक लाना है। यानी एक दशक में 79.7 फीसदी की गिरावट। इसकी तुलना में, पिछले एक दशक से वर्ष 2015 तक भारत में टीबी के मामलों में 22 फीसदी की गिरावट हुई है।
भारत में टीबी के उपचार का लाभ किसी से छुपा नहीं है। फरवरी 2017 के अध्ययन के अनुसार, वर्ष 1997 से 2016 तक, भारत के टीबी नियंत्रण कार्यक्रम ने सीधे और अप्रत्यक्ष रूप से, टीबी के संक्रमण फैलाव को रोककर कम से कम 77.5 लाख लोगों को बचाया है।
एनएसपी कहती है, “ वर्ष 2020 तकसस्टैनबल डिवेलप्मन्ट गोल हासिल करने और वर्ष 2035 तक टीबी समाप्ति के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए टीबी के मामले कम होने की दर सुस्त है।” साथ ही यह भी कहा गया है कि पूर्व प्रयास जारी नहीं रखे जा सकते हैं और एक नई रणनीति की आवश्यकता है।
2005 से 2015 के बीच भारत में टीबी के मामलों में 22 फीसदी गिरावट
Source: World Health Organization
एनएसपी लक्ष्यों को प्राप्त करने की कुंजी: अधिक धन राशि
एनएसपी ने वर्ष 2017 से 2020 तक, तीन साल की अवधि के लिए 16,649 करोड़ रुपए का प्रस्ताव दिया है। ये आंकड़े पिछले तीन वर्षों में मिली राशि (3,323 करोड़ रुपए ) की तुलना में पांच गुना ज्यादा है।
तीन वर्षों में एनएसपी को टीबी फंडिंग में 400 फीसदी वृद्धि की आवश्यकता
Source: Draft National Strategic Plan for TB Elimination 2017-2025; * - upto Jan 2017, ** - projections
पाई कहते हैं, “अगर संसाधन एनएसपी का सहयोग नहीं करते हैं, तो मुझे डर है कि वास्तविक प्रगति पाने का एक और मौका व्यर्थ न हो जाए। ”
केन्द्रीय टीबी कार्यक्रम, जिसे संशोधित राष्ट्रीय क्षय रोग नियंत्रण कार्यक्रम (आरएनटीसीपी) के नाम से जाना जाता है, को अनुरोध की तुलना में कम धन प्राप्त हुआ है। यदि फंडिंग में वृद्धि नहीं होती है, तो राष्ट्रीय टीबी नियंत्रण कार्यक्रम को एनएसपी से प्रस्तावित कार्यक्रमों की संख्या या पैमाने को कम करना होगा।
भारत के राष्ट्रीय टीबी कार्यक्रम को अनुरोध से कम राशि प्राप्त
Source: Annual TB Report 2016, Draft National Strategic Plan for TB Elimination 2017-2025Note: In 2016-17, the figure for budget is not available and the figure for expenditure is upto January 2017
एनएसपी वर्ष 2025 तक नए टीबी मामलों में 80 फीसदी गिरावट का लक्ष्य रखता है। एनएसपी का मानना है कि "सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में देखभाल की बढ़ती सुविधा से एक दशक के दौरान देश में टीबी के मामलों में आधी की गिरावट होगी"। जिसका मतलब है कि वर्ष2025 तक प्रति 100,000 लोगों पर लगभग 109 मामलों तक कमी होगी।
नई योजना में महत्वाकांक्षी लक्ष्य: नई टीबी मामलों में 79 फीसदी कमी
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Source: Draft National Strategic Plan for TB Elimination 2017-2025
टीबी की रोकथाम के लिए निजी क्षेत्र तक पहुंच
चुनौती: पिछले दो सालों में कुछ पायलट परियोजनाओं को छोड़कर, आरएनटीसीपी ने केवल उन मरीजों पर ध्यान केंद्रित किया है, जो सरकारी व्यवस्था में आते हैं, भले ही भारत में निजी क्षेत्र अनुमानित 22 लाख टीबी के मामलों का इलाज करता है।
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के महानिदेशक सौम्या स्वामीनाथन कहती हैं, “अगर हम उन्मूलन के बारे में बात कर रहे हैं, तो हम केवल सार्वजनिक क्षेत्र के बारे में बात नहीं कर सकते, उन सबको शामिल किया जाना चाहिए जिन्हें टीबी है। ”
निजी क्षेत्र को शामिल करने से सरकार टीबी के मामलों का ट्रैक रख सकती है। साथ ही मरीजों को सही उपचार प्राप्त करने में भी मदद कर सकता है। उदाहरण के तौर पर, एनएसपी के मुताबिक वर्ष 2015 में, सिर्फ तीन जिलों-पटना, मुंबई और मेहसाना- ने निजी क्षेत्र को शामिल करने के लिए एक पायलट कार्यक्रम को लागू किया। कुल दर्ज मामलों में से 18 फीसदी तीन जिलों में दर्ज किए गए थे। ( पायलट कार्यक्रम के बारे में विस्तार से पढ़ें )
समाधान प्रस्तावित: एनएसपी में हर टीबी रोगियों की देखभाल का लक्ष्य है और उन तक पहुंचने के लिए कार्यक्रम के विस्तार की सिफारिश की गई है।
एनएसपी कहता है कि “सबसे पहले दृनिजी स्वास्थ्य प्रदाताओं के बीच टीबी नोटिफिकेशन को स्थापित कर पहले सभी टीबी रोगियों की पहचान करना होगा और फिर देखभाल की गुणवत्ता में सुधार करना होगा। ”
वर्ष 2012 तक, जब सरकार ने निजी डॉक्टरों के लिए सरकार को मामलों की रिपोर्ट करना अनिवार्य किया था, कोई भी सरकारी या निजी एजेंसी ने राष्ट्रव्यापी ट्रैक नहीं रखा कि कितने रोगियों का निदान निजी क्षेत्र में सफलतापूर्वक किया गया। वर्ष 2012 के बाद से, निजी क्षेत्र में अधिक से अधिक टीबी मामले दर्ज किए गए हैं – जिन्हें नोटिफिकेशन कहा जाता है।
कार्यक्रम में सभी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और फार्मासिस्टों को एक मैप पर लाने की योजना है। साथ ही निजी क्षेत्र के रोगियों को मुफ्त दवाओं और निदान भी प्रदान करने की बात भी कही गई है।
एनएसपी निजी क्षेत्र के स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को प्रोत्साहन देने का भी प्रस्ताव देता है । टीबी के मामले दर्ज करने पर 250 रुपये, उपचार के हर महीने के पूरा होने पर 250 रुपये, और टीबी के इलाज के सभी चरण पूरे होने पर 500 रुपये का प्रस्ताव है।
टीबी रोगी के बारे में सूचित करने,उसके इलाज का प्रबंध करने और दवा के द्वारा उसके संक्रमण का इलाज करने के लिए एनएसपी ने निजी स्वास्थ्य प्रदाता को 2,750 रुपये का प्रोत्साहन देने का भी प्रस्ताव दिया है, और 24 महीने के उपचार के लिए 6,750 रुपए देने का प्रस्ताव भी है।
निजी क्षेत्र तक टीबी सेवाएं विस्तारित करने की योजना
Source: Draft National Strategic Plan for TB Elimination 2017-2025
ड्रग-प्रतिरोधी टीबी, जो कई प्रकार के हो सकते हैं, बीमारी का एक अधिक शक्तिशाली रूप है जिसमें टीबी बैक्टीरिया एक या अधिक ज्ञात टीबी दवाओं के प्रतिरोधी हो जाते हैं। एक मरीज को राइफैम्पिसिन प्रतिरोधी समझा जाता है, जब वे टीबी की मुख्य दवाओं के प्रति प्रतिरोधी होते हैं, और बहु औषधि प्रतिरोधी तब होते हैं, जब वे किसी भी अन्य टीबी दवाइयों, राइफैम्पिसिन और आइसोनियाजिड के प्रतिरोधी होते हैं।
एनएसपी के मसौदे के मुताबिक, इन प्रोत्साहनों के बाद भी, "निजी क्षेत्र को शामिल करने की लागत लगभग समान है या सार्वजनिक क्षेत्र की लागत से मामूली रूप से अधिक है"।
आईसीएमआर के स्वामीनाथन कहती हैं कि जिनके लिए हर रोगी महत्वपूर्ण है ऐसे छोटे चिकित्सकों के लिए ये प्रोत्साहन बहुत मायने रखते हैं। वह कहती हैं, “बड़े चिकित्सक और अस्पताल रिपोर्ट करने के लिए आसान प्रणाली बना सकते हैं, जिससे नॉटिफिकेशन के प्रति सख्त होने में मदद मिलेगी।” जो टीबी के मामलों को सरकार के साथ पंजीकृत नहीं कराते, उनके लिए एनएसपी में कड़े नियमों के साथ दंड की सिफारिश है।
निजी क्षेत्र तक पहुंचने के लिए कुशल कर्मचारियों की संख्या महत्वपूर्ण
चुनौती: स्वामीनाथन ने कहा कि भारत में बड़े अस्पतालों के आयुष (आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध) चिकित्सकों से लेकर निजी क्षेत्र के स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ने के लिए, विभिन्न स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं की निगरानी और काम करने के लिए प्रशिक्षित लोगों की "सेना" की जरूरत है। इसके लिए अतिरिक्त प्रशिक्षण और एक बड़े कार्यबल की आवश्यकता होगी, क्योंकि स्वास्थ्य कर्मचारी आज की तारीख में सार्वजनिक क्षेत्र से बाहर काम करने के लिए तैयार नहीं हैं।
एनसीपी के मसौदे में कहा गया है कि निजी क्षेत्र से जुड़ने के लिए समन्वयक के 764 पदों में से केवल 295 भरे गए हैं। यह भी कहा गया है कि न केवल समन्वयकों की क्षमता की कमी है, उनकी क्षमता बढ़ाने के लिए सीमित प्रयास किए गए हैं।
बेहतर निदान और सार्वभौमिक दवा-प्रतिरोध स्क्रीनिंग
चुनौती: डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, वर्ष 2015 में, भारत में दवा प्रतिरोधी टीबी (मल्टी-ड्रग प्रतिरोधी सहित) के 130,000 अनुमानित मामले थे। करीब 2.5 फीसदी नए टीबी के मामले रिफाम्पिसिन-प्रतिरोधी या बहु-औषधि प्रतिरोधी थे। इसके अलावा, 16 फीसदी पूर्व उपचारित टीबी मामले मल्टी-ड्रग प्रतिरोधी थे। दवा प्रतिरोधी टीबी के उपचार में लंबा समय लगता है और यह नियमित टीबी के इलाज के मुकाबले अधिक महंगा होता है।
एनएसपी ड्राफ्ट के अनुसार “सार्वजनिक क्षेत्र के भीतर, एक असंवेदनशील नैदानिक परीक्षण पर भारी निर्भरता होती है जो दवा प्रतिरोधी टीबी का निदान नहीं कर सकता है। ”
समाधान: एनएसपी ने तेजी से आण्विक परीक्षणों के स्केलिंग का प्रस्ताव रखा है, जो ड्रग प्रतिरोध को बेहतर तरीके से निदान करता है। यह कहता है कि टीबी निदान के सभी रोगियों को रिफाम्पिसिन के प्रतिरोध के लिए परीक्षण किया जाना चाहिए। एनएसपी के मुताबिक, वर्ष 2016 में सरकार के 520,000 रोगियों के साथ पंजीकृत लोगों में से 2 9.7 फीसदी रोगियों के लिए परीक्षण किया गया था।
एनसीपी उन सभी लोगों का पता लगाने का सुझाव देता है जो दवा प्रतिरोधी रोगी के संपर्क में रहे हैं और उन्हें दवा प्रतिरोधी टीबी के लिए परीक्षण कराने का भी प्रस्ताव देता है।
क्योंकि टीबी के लिए कई लोग उपचार नहीं करते हैं इसलिए टीबी से संक्रमित लोगों की तलाश कर उन्हें इलाज के लिए सक्रिय बनाना भी आवश्यक है।
एनसीपी कमजोर आबादी, जैसे कि मलिन बस्तियों, जेलों, बुजुर्ग घरों, शरणार्थी शिविरों और आदिवासी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के साथ-साथ निर्माण श्रमिकों, बेघर, सड़क के बच्चों और खादानों के श्रमिकों की सामुदायिक जांच के लिए स्वास्थ्य सेवा कर्ताओं को सक्रिय रूप से भेजने का प्रस्ताव देता है।
पूर्ण उपचार, ट्रैकिंग उपचार और जेब व्यय कम
चुनौती: सरकारी प्रणाली तक पहुंचने वाले मरिजों में से ( वर्ष 2013 में भारत के कुल टीबी मामलों का 72 फीसदी ) दस लाख से अधिक रोगियों को या तो ठीक से निदान नहीं किया गया है, या निदान किया गया है लेकिन इलाज के लिए पंजीकृत नहीं है। इंडियास्पेंड ने नवंबर 2016 में इस पर एक रिपोर्ट की थी।
इसके अलावा, टीबी के उपचार के लिए दर्ज कराया गया हर मरीज ठीक नहीं होता है। उदाहरण के तौर पर, वर्ष 2016 की वार्षिक टीबी रिपोर्ट के आंकड़ों के मुताबिक, 2014 में, 37 फीसदी ऐसे रोगी, जिनका फिर से इलाज किया गया, उनका पहले या तो ठीक से उपचार नहीं हुआ था या गलत इलाज किया गया।
आंशिक रूप से इलाज वाले लोग इस बीमारी को दूसरों तक फैला सकते हैं और संभावित रूप से इस रोग के दवा प्रतिरोधी रूपों को बढ़ा सकते हैं।
हालांकि 'टीबी केयर के लिए मानक', (भारत में टीबी उपचार के लिए एक स्वास्थ्य मंत्रालय की मार्गदर्शिका) उपचार पूरा करने के 6 और 12 महीनों के बाद रोगियों की फिर से जांच कराने की सिफारिश करता है। आरएनटीसीपी इस बात पर डेटा नहीं प्रदान करता है कि भी टीबी रोगियों को इलाज पूरा करने के एक साल बाद भी टीबी से मुक्त थे या नहीं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने नवंबर 2016 में अपनी रिपोर्ट में बताया है।
एनएसपी ड्राफ्ट में कहा गया है कि सफलतापूर्वक उपचार पूरा कर लेने वाले एक मरीज को अगर छह महीने बाद फिर से टीबी का हमला होता है तो टीबी कार्यक्रम इससे अनजान होगा।
इलाज में उच्च आर्थिक लागत की वजह से भी मरीज या उनके घरवाले इलाज पूरा नहीं कराते। कभी-कभी मरीज इलाज कराना बंद कर देते हैं, क्योंकि वे बेहतर महसूस करते हैं और इलाज को पूरा करने की आवश्यकता नहीं समझते हैं।
समाधान: वर्ष 2020 तक, एनएसपी टीबी रोगियों को सुनिश्चित करने का प्रस्ताव करता है और रोग का इलाज करने या रोगी की देखभाल के लिए उनके परिवारों पर कोई आर्थिक खर्च का बोझ नहीं डालने का सुझाव देता है। इसके लिए, इस कार्यक्रम में उपचार के दौरान रोगियों के पोषण संबंधी सहायता के लिए 2,000 रुपए का लाभ हस्तांतरण को भी प्रस्तावित किया गया है।
उपचार पूरा करने के लिए प्रोत्साहन के रुप में, कार्यक्रम 500 रुपए का मासिक समर्थन भी देगा।
इसके अलावा रोगी की जरूरतों को पूरा करने वाली एक उपचार योजना, रोगी और उनके परिवार के लिए नियमित परामर्श, प्रशिक्षित लोगों द्वारा उपचार की निगरानी, साथ ही पोषण और मनोवैज्ञानिक-सामाजिक समर्थन की जरूरत पर भी एनसीपी ने जोर दिया है।
यह कार्यक्रम रोगियों के सरकार द्वारा जारी पहचान संख्या, आधार संख्या और फोन नंबरों को उनके उपचार के स्तर को ट्रैक करने के लिए एकत्रित करने का सुझाव देता है। यह प्रोग्राम के स्केलिंग का सुझाव भी देता है जो उपयोगकर्ता के अनुकूल निजी रिपोर्टिंग और रोगी मॉनिटरिंग के लिए कॉल सेंटर का उपयोग करते हैं।
इसके अलावा, एनएसपी मल्टीड्रग-प्रतिरोधी टीबी के लिए डब्ल्यूएचओ द्वारा अनुशंसित 9-11 महीने के उपचार को लागू करने का प्रस्ताव देता है। यह वर्तमान के 24-27 महीने के उपचार से कम है, जिसे पूरा करना कठिन है। एनएसपी के अनुसार वर्ष 2017 तक उपचार की छोटी अवधि, मुख्य एंटी-टीबी दवा, सभी टीबी रोगी को प्रदान किया जाएगा।
निवारक नजरिया, अधिक शोध और लिंग फोकस
कम से कम 40 फीसदी भारतीय आबादी माइकोबैक्टीरियम तपेदिक से संक्रमित है। माइकोबैक्टीरियम ट्यूबर्क्युलोसिस रोग पैदा करने वाला एक जीवाणु है, इससे तपेदिक या क्षय रोग होता है। इसकी खोज सर्वप्रथम रॉबर्ट कोच ने 1882 में किया था। यह एक खतरनाक जीवाणु है जो स्तनधारी जीवों के फेफड़ों के प्रभावित करता है।
एनएसपी कहता है, "यह भारत में इन सभी लोगों को खोजने के लिए आर्थिक रूप से निषेधात्मक और तर्कसंगत रूप से मुश्किल होगा"। साथ ही एचआईवी के साथ रहने वाले, टीबी रोगियों के संपर्क में आने वाले बच्चे, सिलिकोसिस वाले रोगियों, सिलिका के निरंतर संपर्क के कारण एक फेफड़ों की बीमारी वाले लोग और अन्य कमजोर समूह की आबादी पर उपचार के लिए ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है।
स्वामीनाथन कहती हैं, “टीबी उन्मूलन के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए हमें लोगों को अब से 40 साल तक टीबी होने से रोकना होगा। यह एक ऐसी रणनीति के साथ संभव है, जो न केवल सक्रिय टीबी के मामलों का इलाज करे, बल्कि बीमारी या निवारक दवाओं के लिए नए टीके विकसित करे और नए शोध को तरजीह दे। ”
स्वामीनाथन का कहना है कि इसके अलावा टीबी कार्यक्रम में महिलाओं पर ध्यान केंद्रित करने की भी जरूरत है। खासकर, उन राज्यों में जहां उच्च लिंग असमानता है, जहां महिलाओं को कुपोषित होने की संभावना है और साथ ही टीबी के इलाज की संभावना कम है। यही नहीं, अगर देखा जाए तो महिलाएं परिवार में किसी सदस्य के टीबी से ग्रस्त होने पर ठीक से देखभाल भी कर सकती हैं। इसके अलावा, महिलाओं में पल्मोनरी टीबी की संभावना ज्यादा होती है और उसका निदान कठिन है।स्वामीनाथन का मानना है कि टीबी के मामले में महिलाओं को जागरूक करने से लक्ष्य की ओर बढ़ने में मदद मिलेगी।
(साह लेखक/संपादक है और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 23 मार्च 17 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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