शराब, सोशल मिडिया, स्त्री, संस्कृति और सुब्रमण्या के आंकड़े
दक्षिणी कर्नाटक का सुब्रमण्या शहर
एक समृद्ध, अत्यधिक साक्षर छोटे से शहर के कॉलेज की दो लड़कियों को निलंबित करना देश में नारी स्वतंत्रता के संघर्ष के साथ-साथ कार्यस्थल पर उनकी कम उपस्थिति के कारण एवं संकेत को भी दर्शाता है।
एक फोटो जिससे तटीय कर्नाटक पर बसे, मंदिरों के शहर, सुब्रमण्य में हड़कंप मच गयावह अपने सादेपन के लिए ही जाना जाता है।
दो दुबली-पतली, युवा महिलाएं... टी-शर्ट, स्लैक्स एवं जूते पहने हुए, आधी तैयार हुई इमारत के नीचे, एक-दूसरे के काफी करीब बैठी हैं। इमारत के पीछे अच्छा-खासा जंगल है। उनके पास ही सस्ती बीयर की एक बोतल एवं प्लास्टिक की ग्लासें पड़ी है। दोनों ही शांत दिखाई देती हैं...मुस्कुराती हुई...अपनी ही ख्वाबों में गुम...एक-दूसरे के साथ निजी पल साझा कर रही हैं।
लेकिन इन युवा महिलाओं के निजी पल अधिक देर तक निजी नहीं रह पाते। दोनों युवा महिलाओं की निजी क्षण की एक तस्वीर ( इंडियास्पेंड के पास वह तस्वीर है लेकिन हम उस तस्वीर को निजी मामला समझते हुए उसे साझा नहीं करेंगें ) ने मोबाईल के वॉट्सएप्प के ज़रिए पूरे मैंगलोर ज़िले में हाहाकार मचा दिया है।
मैंगलोर के नैतिक अभिभावक
मंगलौर अक्सर हिंदू और मुस्लिम के सजग समूहों के लिए जाना जाता है। इन समूह का निशाना आमतौर पर किसी पब में गए या एक घर में रहने वाले या साथ आईसक्रीम पार्लर जाने वाले हिंदु एवं मुस्लमान धर्मों के मिश्रितपुरुष एवं महिलाएं समूह बनती हैं।यहां तक कि वॉट्सएप्प पर चंचल एवं मज़ाकिया फोटो डालने वाले स्कूल के लड़के एवं लड़कियां भी इनके निशाने पर ही रहते हैं।
पिछले साल हिंदु संगठनों के“लव जिहाद” के विरोध में शुरु किए गए“प्रेम केसरी” को रोकने के लिए मुस्लिम डिफेंस फोर्स नामक एक मुस्लिम समूह को बनाया गया है। गौरतलब है कि ‘लव जिहाद’ का जन्म छह साल पहले केरल सीमा से ही हुई थी। दोनों समूहों का मूल दर्शन एक ही है –महिलाओं को दूसरे धर्म के पुरुषों के साथ मेलजोल बढ़ाने एवं विवाह करने से रोकना।
सुब्रमणय में हुई घटना में युवा लड़कियों का हिंदु या मुसलमान होने से कोई संबंध नहीं है। और न ही मुसलमान युवती के पिता का भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता होने से कोई ताल्लुक है।
इस घटना से हाहाकार मचने का कारण है इन युवा महिलाओं का शराब, बीयर की बोतल के साथ जंगल में पाए जाना। यदि इसी तरह की घटना में महिलाओं की जगह पुरुष होते तो निश्चित तौर पर इतना हंगामा नहीं बरपा होता। दोनों युवा महिलाएं बी.कॉम दूसरे साल की, मंदिरों के शहर, सुब्रमण्य के 32 साल पुराने कुक्के श्री सुब्रमण्येश्वरा कॉलेजकी छात्राएं हैं। घटना से पता चलता है कि दोनों महिलाएं सुकून से पार्टी मना रही थी और यही ज़िले के नैतिक अभिभावकों को मंजूर नहीं है। यहां नैतिक अभिभावक होने का श्रेय अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ( एबीवीपी ), बीजेपी की छात्र इकाई, को जाता है।
एबीवीपी कार्यकर्ताओं द्वारा युवा महिलाओं की तस्वीर को पुलिस के संज्ञान में लाया गया। मामले को सार्वजनिक रुप देते हुए कॉलेज के प्रिंसिपल, दिनेश कामत, पर दोनों लड़कियों के खिलाफ निर्णय लेने का दबाव डाला गया और परिणामस्वरुप दोनों युवा महिलाओं को कॉलेज से निलंबित कर दिया गया।
इंडियास्पेंड से बात करते हुए दिनेश कामत ने बताया कि लड़कियों को अस्थाई रुप से निलंबित किया गया है। कामत ने कहा कि पूरा तथ्य सामने आने तक लड़कियों का कॉलेज में प्रवेश बंद रहेगा। कामत ने इस बात की पुष्टी की कि लड़कियों का फोटो कॉलेज कैंपस में नहीं लिया गया है। उन्होंने संभावना जताई कि शायद यह फोटे दो साथ पहले पास के ही कॉफी उगाने वाली ज़िले, कोडागू में ली गई है जब यह दोनों महिलाएं किसी अन्य दोस्त के साथ घूमने गई थीं। हालांकि खबर मिली है कि 18 अगस्त को इन महिलाओं का निलंबन रद्द कर दिया गया है।
इंडियास्पेंड ने मुद्दे से जुड़ी एक और महत्वपूर्ण प्रश्न कामत से पूछा किइस तरह की अत्यधिक साक्षर राज्य में किशोर हार्मोन एवं आज़ादी के लिए तड़प जैसे मुद्दों से एक कॉलेज का प्रिंसिपलहोने के नाते कैसे निपटते हैं?
कामत ने बताया कि “सक्षरता दर कुछ भी हो...कुछ व्यक्तिगत कमज़ोरियां होती हैं। हम भारत में कुछ भी कर सकते हैं, है कि नहीं? हमारा संविधान हमें स्वतंत्रता की आज़ादी देता है...है न...?”। थोड़ा रुक कर कामत फिर कहते हैं, “क्या किसी प्रकार की सीमा नहीं होनी चाहिए ?”“हमें अपनी सीमा पता होनी चाहिए। क्या माता-पिता को सीमा के विषय में बच्चों को बताना नहीं चाहिए?”
बात करते हुए कामत ने संकेत दिया कि युवा लड़कियों का निलंबन रद्द कर दिया जाएगा। इन दिनों ऐसी घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। महिलाओं के व्यस्कता की ओर कदम रखने से पहले ही उन्हें उनकी सीमाओं एवं प्रतिबंधों की जानकारी दे देनी चाहिए।
क्या सचमुच लड़कियों के विकास के लिए यह उचित जगह है?
यदि आंकड़ों पर नज़र डालें तो साफ होता है कि महिलाओं के उभरते विकास के लिए दक्षिण कन्नड़ उचित जगह हो सकती है। 2011 की जनगणना के अनुसार,प्रति 1,000 पुरुष के लिए 1,020 महिलाओं का लिंग अनुपात भारत में सर्वश्रेष्ठ है, ( भारत का औसत : 940 )।
महिलाओं की साक्षरता दर यहां 78 फीसदी है जोकि महिलाओं की राष्ट्रीय औसत से 13 प्वाइंट उपर है। राज्य के स्वास्थ्य आंकड़ों के मुताबिक जिले में कई साल पहले से ही महिलाओं के लिए शादी की औसत उम्र 24 साल है। ग्रामीण इलाकों की महिलाओं के लिए भी शादी की यही उम्र होती है।
ज़िले में नियमित तौर पर लड़कियां परिक्षा में टॉप आ रही हैं। ज़िले की कई लड़कियां पेशेवर दुनियां में बेहतर स्थान बना रही हैं और राज्य के विकास में महत्वपूर्ण साबित हुई है। पिछले 30 सालों में दक्षिण कन्नड़ की कुल प्रजनन दर में आधी से अधिक की गिरावट दर्ज की गई है। ज़िले की मौजूदा प्रजनन दर 1.4 दर्ज की गई है। वर्तमान में राज्य का प्रजनन दर जपान के बराबर एवं स्वीज़रलैंड से नीचे दर्ज की गई है।
यदि यह अंदरुनी विस्थापन न होता तो शायद ज़िले की जनसंख्या में गिरावट होती। शिशु मृत्यु दर प्रति 100,000 जीवित जन्मों पर 35 मृत्यु दर्ज किया गया है, ( भारत : 43 )। यह आंकड़े ईरान जैसे समृद्ध एवं विकसित देश से बेहतर हैं।
Key Demographic Indicators: Dakshina Kannada District, Karnataka | ||
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Indicators | 2001 | 2011 |
Population | 18,97,730 | 20,89,649 |
Decadal Growth Rate (2001-11) | - | 10.1 |
Rural Population | 61.6 | 52.3 |
Urban Population | 38.4 | 47.7 |
Sex Ratio | 1022 | 1020 |
Child Sex Ratio | 952 | 947 |
Literacy (total) | 83.4 | 84.1 |
Literacy (male) | 89.7 | 89.6 |
Literacy (female) | 77.2 | 78.4 |
Work Participation Rate | 49.9 | 42.3 |
Female Work Participation | 41.7 | 25 |
Source: NRHM-PIP Monitoring for Dakshina Kannada District, Karnataka
दक्षिण कन्नड़ में नारी मुक्ति के लिए मुख्य रुप से तीन संकेत दिखाई देते हैं –शादी की सही आयु, शिशु मृत्यु दर एवं कार्यस्थल के आंकड़े।
पहला संकेत : ग्रामीण इलाकों की तुलना में शहरों में शादी करने की आयु कम है। आंकड़ों के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्रों में शादी की औसत आयु 24 है जबकि शहरी इलाकों में 23.5 है। आंकड़ों से साफ है कि लड़कियों पर शादी का अधिक दवाब शहरी इलाकों पर होता है।
दूसरा संकेत : साल 2011 में दक्षिण कन्नड़ में शिशु लिंग अनुपात ( प्रति 1,000 लड़कों पर छह साल की आयु तक की लड़कियों की संख्या ) 947 दर्ज की गई थी। इसी वर्ष में देश के लिए यह आंकड़े 918 दर्ज की गई है। ज़िले में 2001 की तुलना में शिशु लिंग अनुपात में गिरावट ( 952 ) दर्ज की गई है। लड़कियों पर लड़कों को जन्म देने का दबाव भी देखा गया है। कुछ आंकड़े बताते हैं कि मैंगलोर में बच्चियों की संख्या कम हुई है।
साल 2014 में मैंगलोर में किए एक अध्ययन में देखा गया कि 90 फीसदी से अधिक महिलाएं, केवल एक को छोड़ कर सभी साक्षर, पूर्व लिंग चयन के विषय में जागरुक हैं। हालांकि 75 फीसदी महिलाओं को पता था कि यह एक अपराध है लेकिन फिर भी अधिकतर महिलएं जन्म से पहले ही अपने बच्चे का लिंग जानने की इच्छुक थीं।
तीसरा संकेत कार्यस्थल पर मौजूद महिलाओं की उपस्थिति के आंकड़ो से पता चलता है। सामाजिक संस्थान और आर्थिक परिवर्तन , बंगलौर से 2013 में निकाले गए एक पेपर के मुताबिक महिलाओं के काम में भागीदारी दर में कमी देखी गई है। साल 2001 में महिलाओं के काम में भागीदारी 42 फीसदी दर्ज की गई थी जबकि साल 2011 में यह आंकड़े 25 फीसदी दर्ज की गई है। विश्व स्तर पर यह असामान्य प्रवृति नहीं है: जब समाज में गरीबी होती है, अधिक महिलाएं काम करती हैं; जैसे आमदनी बढ़ती है वह काम करना बंद कर देती हैं।
शिक्षित युवा महिलाओं के पैरों में समाजिक बेड़ियां
कार्यस्थल पर महिलाओं की भागीदारी का मामला में भारत की छवि बुरी है।
2015 अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष काम पर प्रकाशित पेपर के अनुसार “भारत में श्रमिक शक्ति में महिलाओं की भागीदारी अन्य उभरती हुई बाजार अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में कम है। 2000 के मध्य के बाद इसमें और गिरावट ही हो रही है।”
इंडियन इंस्ट्यूट ऑफ हेबीटैट सेटलमेंट के ज्योति कोडुगंटी एवं श्रेया आंनद ने पिछले दिनों इंडियास्पेंड में लिखा था कि इस जनसांख्यिकीय के भीतर भारत के शहरी क्षेत्रों में स्नातक एवं उच्च शिक्षा प्राप्त महिलाओं में सबसे अधिक बेरोज़गारी दर दर्ज की गई है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक उच्च शिक्षा प्राप्त महिलाओं में– जो देश की अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में सहायक हैं- से हरेक पांचवी महिला नौकरी ढ़ूंढ़ने में असमर्थ है।
क्या है समस्या :जबकि भारतीय कंपनियां पदों को भरने के लिए संघर्ष करती हैं, स्नातक एवं उच्च डिग्री प्राप्त महिलाएं नौकरियां नहीं ढ़ूंढ़ पाती हैं। इसके लिए कोई आंकड़े मौजूद नहीं हैं लेकिन हमारी सामाजिक वैज्ञानिकों की प्रेक्षण के साथ हमारी परिकल्पना कहती है कि यहां तक कि उच्च शिक्षित भारतीय महिलाओं को परिवार एवं समाज की परंपरा एवं बंधन को तोड़ने में बड़ा संघर्ष करना पड़ता है।
हमारे संवाददाताओं ने अपने घर से दूर रह रही कई महिलाओं से मुलाकात की है। महिलाएं भले ही अपने घरों से दूर रह रही हैं लेकिन अब भी परिवार, पड़ोसियों , शिक्षकों , मालिकों और यादृच्छिक अजनबियों की उम्मीदों और नियमों से बंधकर कर रही हैं। कई महिलाएं नियमों से मुक्त होती हैं लेकिन कई नहीं तोड़ पाती हैं।
यह अब तक स्पष्ट नहीं है कि सुब्रमणया की उन दो युवा महिलाओं के साथ क्या होगा लेकिन एक बात तो पूरी तरह साफ है कि बचाव की बजाए भारतीय संस्कृति का पाठ पूरी तरह पढ़ाया जाएगा।
के. बाएरप्पा, मंगलौर विश्वविद्यालय के कुलपति ने अंग्रेज़ी अखबार बंगलोर मिरर से बात करते हुए कहा कि, “वाट्सएप्प हमारी संस्कृति एवं शिक्षा को नुकसान पहुंचा रहा है। कॉलेज में इसके इस्तेमाल पर रोक लगानी चाहिए...हमें उच्च शिक्षा की गरिमा को बनाए रखनी है। भारत उत्कृष्ट शिक्षा के लिए जाना जाता है। खई विदेशी विश्वविद्यालय भारतीय शिक्षा प्रणाली का अनुसरण भी कर रहे हैं। इसलिए आंख बंद कर पश्चिम की नकलकरना सही नहीं है।”
(हलर्नकर IndiaSpend.org एवं FactChecker.in के संपादक है )
यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 20 अगस्त 15 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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