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नई दिल्ली: वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम शुरू करने के लगभग एक महीने बाद, देश भर के शहरों ( दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से 14 ) में साल 2018-19 की सर्दियों के दौरान जहरीली हवा में सांस लेना जारी रहा है।

‘सेंट्रल पॉल्युशन कंट्रोल बोर्ड’ ( सीपीसीबी ) द्वारा मूल्यांकन किए गए 74 शहरों में से केवल पटियाला ने 4 फरवरी, 2019 को राष्ट्रीय सुरक्षित वायु मानकों को पूरा किया है, जैसा कि सीपीसीबी की दैनिक बुलेटिन में कहा गया है।

17 जनवरी, 2019 को, राजधानी दिल्ली के बॉर्डर पर एक औद्योगिक शहर, गाजियाबाद ने विषाक्त पार्टिकुलेट मैटर (पीएम-2.5) के लिए 24-घंटे औसत की सूचना दी है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) के सुरक्षित मानक से 14 गुना अधिक था।

गाजियाबाद में उस दिन का पीएम 2.5 औसत भारत के अपने अधिक उदार, सुरक्षित-वायु मानक से भी छह गुना अधिक था। हमारा राष्ट्रीय मानक डब्ल्यूएचओ की तुलना में 2.4 गुना अधिक उच्च स्तर के पार्टिकुलेट मैटर की अनुमति देता है। राष्ट्रीय मानक डब्ल्यूएचओ की तुलना में 2.4 गुना अधिक उच्च स्तर के कण की अनुमति देता है। दुनिया के सबसे प्रदूषित महानगर दिल्ली ( 2 करोड़ लोगों का घर ) में हवा की गुणवत्ता नवंबर-2018 और जनवरी- 2019 के पहले सप्ताह के बीच लगभग हर दिन सुरक्षित सीमा से ऊपर रहा, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 17 जनवरी, 2019 की रिपोर्ट में बताया है। इस प्रदूषण संकट को ठीक करने के लिए, भारत सरकार ने 10 जनवरी, 2019 को राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) नामक अपना पहला राष्ट्रीय फ्रेमवर्क शुरू किया है।

वित्तीय वर्ष 2018-19 और 2019-20 के लिए 300 करोड़ रुपये ( प्रति शहर करीब 2.9 करोड़ ) के बजट के साथ कार्यक्रम 102 प्रदूषित भारतीय शहरों पर ध्यान केंद्रित करेगा। योजना का लक्ष्य, अगले पांच वर्षों से 2024 तक, देश के समग्र वार्षिक प्रदूषण स्तर को 20-30 फीसदी नीचे लाना है। योजना-2017 को आधार वर्ष के रूप में गिनती है।

वायु प्रदूषण के लिए एक राष्ट्रीय स्रोत सूची की परिकल्पना करने वाला कार्यक्रम इनडोर वायु प्रदूषण के लिए दिशानिर्देश जारी करेगा, शहरों में और गांवों में वायु गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क का विस्तार करेगा और वायु प्रदूषण का स्वास्थ्य पर प्रभाव के लिए अध्ययन आयोजित करेगा।

एनसीएपी, हालांकि, एक त्रुटिपूर्ण योजना है, जिस पर हम बाद में बात करेंगे, क्योंकि इसमें कानूनी जनादेश का अभाव है। इसकी कार्ययोजना के लिए स्पष्ट समयसीमा नहीं है और यह विफलता के लिए जवाबदेही तय नहीं करता है।

भारत में प्रदूषित हवा के कारण वर्ष 2017 में 12.4 लाख मौतें हुईं है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 7 दिसंबर, 2018 की रिपोर्ट में बताया है।

4 फरवरी, 2019 को कुछ सबसे खराब प्रदूषित शहरों में पीएम 2.5 स्तर

Source: Central Pollution Control Board

एक महत्वपूर्ण बदलाव लानेके लिए लक्ष्य पर्याप्त नहीं

सीपीसीबी द्वारा 4 फरवरी, 2019 को मूल्यांकन किए गए भारत के 74 शहरों (लगभग 38 फीसदी) में से अट्ठाईस शहरों ने सांस लेने के लिए संघर्ष किया गया। लखनऊ, वाराणसी, उज्जैन, पटना, दिल्ली, कोलकाता और सिंगरौली जैसे शहरों में 'खराब' और 'बहुत खराब' वायु गुणवत्ता दर्ज की गई।

जयपुर, कलबुर्गी, जालंधर, मुंबई और पुणे सहित अन्य 35 शहरों को मध्यम ’प्रदूषित हवा’ का सामना करना पड़ा।

जबकि मध्यम प्रदूषित हवा से उन लोगों को भी सांस लेने में तकलीफ हो सकती है, जिन्हें अस्थमा, फेफड़े या दिल की बीमारियां हैं। गंभीर रूप से प्रदूषित हवा स्वस्थ लोगों को भी बीमार कर देती है।

प्रदूषित वायु से स्वास्थ्य पर असर

Source: Central Pollution Control Board

एनसीएपी के तहत, इन शहरों में से अधिकांश की अगले पांच वर्षों में वायु प्रदूषण को रोकने के लिए अपनी खुद की योजना बनाने की उम्मीद है। एनसीएपी में शहर स्तर के किसी भी लक्ष्य की घोषणा नहीं की गई थी। लेकिन भले ही शहरों को 20-30 फीसदी के राष्ट्रीय लक्ष्य से अपने प्रदूषण के स्तर को कम करना था, फिर भी वे सुरक्षित हवा में सांस नहीं ले पाएंगे। उदाहरण के लिए उन 14 शहरों को लें, जो वैश्विक स्तर पर सबसे खराब सूची में हैं। एनसीएपी के राष्ट्रीय लक्ष्यों के अनुरूप प्रदूषण को कम करने के बावजूद, उनमें से कोई भी शहर वर्ष 2024 तक पीएम 2.5 के लिए राष्ट्रीय मानकों को पूरा नहीं करेगा।

एनसीएपी के लक्ष्य के बाद भारत से दुनिया के 14 सबसे प्रदूषित शहरों में संभावित पीएम 2.5 का स्तर

Source: Annual Averages For 2017: World Health Organization, Annual Averages in 2024: Reporter’s Calculations

लक्षित प्रदूषण में कटौती के बाद भी, इन 14 शहरों में पीएम 2.5 का स्तर डब्ल्यूएचओ की सुरक्षित सीमा से 7-12 गुना और राष्ट्रीय सुरक्षित सीमा से 2-3 गुना अधिक होने की संभावना है।

एनसीएपी एजेंडा: यह कैसे काम करेगा

सरकार की विज्ञप्ति में,एनसीएपी को एक विकसित ‘सक्रिय’ पंचवर्षीय कार्य योजना के रूप में वर्णित किया गया है और 2024 में मध्यावधि समीक्षा के बाद इसे और बढ़ाया जा सकता है। यह उन 102 शहरों में लागू किया जाएगा, जो पांच साल से 2015 तक स्वच्छ हवा के वार्षिक राष्ट्रीय मानकों को पूरा नहीं करते थे। हालांकि, इन मानदंडों में 130 से अधिक प्रदूषित शहर शामिल नहीं हैं।

पर्यावरण मंत्रालय द्वारा निर्देशित यह कार्यक्रम, सड़क परिवहन और राजमार्ग, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस, नवीकरणीय ऊर्जा, भारी उद्योग, आवास और शहरी मामलों, कृषि और स्वास्थ्य जैसे अन्य मंत्रालयों की मदद से लागू किया जाएगा।

शमन कार्यों के प्रस्ताव में अत्यधिक प्रदूषित क्षेत्रों में वृक्षारोपण अभियान, सड़क की धूल का प्रबंधन, कड़े प्रदूषण के दिशा निर्देशों का विद्युत क्षेत्र के द्वारा अनुपालन और स्टबल बर्निंग पर प्रतिबंध शामिल हैं।

दिल्ली के थिंक-टैंक, काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर ( सीईईजब्लू) के वरिष्ठ शोध सहयोगी हेम ढोलकिया ने इंडियास्पेंड को बताया,“अच्छी बात यह है कि यह एक तरह से व्यापक है और पूरे भारत को देख रहा है न कि केवल दिल्ली-एनसीआर को, जो कि प्रदूषण संबंधी चर्चाओं के लिए केंद्र में होते हैं।” उन्होंने कहा कि एनसीएपी में शुरु किए गए निगरानी प्रणाली का प्रमाणन और प्रदूषण पूर्वानुमान प्रणालियों की स्थापना भी अच्छे विचार हैं। ढोलकिया ने सुझाव दिया है कि पीएम 2.5 की तुलना में महीन कणों सहित अन्य प्रदूषकों के लिए मानकों की घोषणा करने के लिए राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों की समीक्षा करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा, "जैसा कि हम प्रदूषण को नियंत्रित करने के उपायों में लाते हैं, प्रदूषकों की प्रकृति, उनकी संरचना और योगदान में परिवर्तन होता है।"

दिल्ली और गुरुग्राम में नवंबर और दिसंबर 2018 में किए गए वायु गुणवत्ता परीक्षणों ने भारी धातुओं जैसे मैंगनीज, निकल और सीसा का खतरनाक स्तर पाया गया। इनमें से, भारत में मैंगनीज के लिए मानक भी नहीं हैं।

बिना टाइमलाइन के योजना

जुलाई 2018 में सार्वजनिक किए गए मसौदे के विपरीत, अंतिम एनसीएपी में 20-30 फीसदी प्रदूषण में कमी का राष्ट्रीय लक्ष्य है। लेकिन विशेषज्ञों ने इसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में कमी पाया है।

एनसीएपी के बाद, पर्यावरण मंत्रालय की ओर से कुछ वर्षों के लिए बड़े पैमाने पर वायु प्रदूषण में कमी के प्रयास की घोषणा करने की संभावना नहीं है। दिल्ली स्थित थिंकटैंक सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (सीपीआर) के साथी संतोष हरीश ने कहा कि इस परिदृश्य में, एनसीएपी को कुछ बड़े क्षेत्रीय बदलावों और सूचीबद्ध स्पष्ट समयसीमाओं को इंगित करना चाहिए था।

ढोलकिया ने कहा, "एनसीएपी को परिवहन, बिजली और निर्माण जैसे क्षेत्रों के लिए कार्यों, लक्ष्यों और समय सीमा के आसपास स्पष्टता होनी चाहिए। कार्यक्रम की निगरानी के लिए एक स्पष्ट मैट्रिक्स इसकी प्रभावकारिता की जांच करने के लिए आवश्यक है।"

एक गैर-लाभकारी संस्था, ग्रीनपीस इंडिया के वरिष्ठ प्रचारक, सुनील दहिया ने इंडियास्पेंड के साथ बात करते हुए बताया कि, "जब तक पालन करने के लिए स्पष्ट लक्ष्य नहीं हैं, तब तक प्रदूषण को कम करने के लिए निकायों को विनियमित करने वाले रास्ते कैसे मिल सकते हैं?"

"यह और भी अधिक आवश्यक है, क्योंकि एनसीएपी में राज्यों पर कोई कानूनी बंधन नहीं है - यह सिर्फ एक केंद्रीय योजना है।"

एनसीएपी ‘कठोर प्रवर्तन’ के बारे में बात करता है। हरीश कहते हैं कि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (एसपीसीबी) द्वारा कानूनों को लागू करने में असफल होने का एक बड़ा कारण है, क्योंकि मौजूदा पर्यावरण नियम उन्हें पर्याप्त रास्ता नहीं दिखाता है।

" शासन को समस्या की मान्यता देते हुए,एनसीएपी एक चीज कर सकती थी, वह यह है कि नियामक संरचनाओं (एयर एक्ट एंड एनवायरमेंट प्रोटेक्शन एक्ट के तहत) को सुधारने के लिए कुछ प्रकार की प्रतिबद्धता दिखाए," ऐसा उनका सुझाव है।

दिल्ली की प्रदूषण नियंत्रण रणनीति क्यों विफल रही?

वर्तमान में, पूरे देश भर में केवल राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली है, जहां वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए सक्रिय दीर्घकालिक व्यापक कार्य योजना (सीएपी), और एक आपातकालीन प्रतिक्रिया योजना, ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (जीआरएपी) है। सीएपी उपायों में यातायात प्रबंधन, क्लीनर ईंधन का उपयोग और वाहनों का विद्युतीकरण शामिल है। दूसरी ओर जीआरएपी, जब शहर में प्रदूषण खतरनाक स्तर को पार कर जाता है तो प्रदूषण में कटौती के लिए आपातकालीन उपाय शामिल हैं - कचरा जलाने पर प्रतिबंध और शहर में ट्रकों के प्रवेश और बिजली संयंत्रों, ईंट भट्टों और स्टोन क्रशर को बंद करना।

लेकिन जीआरएपी विफल हो गया है, क्योंकि परिवहन विभाग, पर्यावरण मंत्रालय, दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन सहित 12 जिम्मेदार एजेंसियां... ​​जो एनसीआर और पड़ोसी राज्यों में काम करती हैं, एक साथ काम नहीं कर सकती हैं। जीआरएपी बैठकों में, जिम्मेदार एजेंसियों की उपस्थिति 39 फीसदी से कम थी, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 18 जनवरी, 2019 की रिपोर्ट में बताया है।

उच्च जोखिम की बात यह है कि अन्य शहरों ने दिल्ली के सीएपी के आसपास तैयार की गई प्रदूषण योजनाओं को समाप्त कर दिया है। यह ढांचा त्रुटिपूर्ण है क्योंकि इसमें 90 से अधिक एक्शन बिंदुओं की लंबी सूची है, जो टाइमलाइन पर खरे नहीं उतरे हैं।

यदि वे दिल्ली से प्राप्त जानकारी का उपयोग करते हैं तो एनसीएपी की शहर-विशिष्ट योजनाएं अधिक प्रभावी हो सकती हैं।

उदाहरण के लिए, दिल्ली के लिए स्रोत अध्ययन, अन्य शहरों के लिए टेम्पलेट के रूप में आसानी से उपलब्ध हैं। दहिया ने कहा कि एनसीएपी स्पष्ट समय सीमा के साथ परिवहन और उद्योगों जैसे स्रोतों के लिए विशिष्ट प्रदूषण घटाने के लक्ष्य सुझा सकता है।

एनसीएपी में क्षेत्रीय और बाउन्ड्री कार्रवाई योजनाओं का भी उल्लेख है, लेकिन क्या किया जाएगा, इसके बारे में कोई स्पष्टता नहीं दी गई है। हरीश कहते हैं कि एनसीएपी में स्पष्ट रूप से उल्लेखित एक एयरशेड प्रबंधन योजना को देखना, वास्तव में मददगार होगा। एयरशेड प्रबंधन एक भौगोलिक क्षेत्र में प्रदूषण का मुकाबला करता है, जहां स्थानीय स्थलाकृति और मौसम विज्ञान प्रदूषकों के फैलाव को रोकता करता है।

ढोलकिया कहते हैं, "एयरशेड मैनेजमेंट प्लान की अनुपस्थिति में ... शहर प्रदूषण से निपटने की योजना बना सकते हैं, लेकिन हो सकता है कि उन कार्यों को पूरा करने के लिए उनके पास साधन न हो, जो कई स्रोत उनके दायरे से बाहर हो सकते हैं।"

शहरों द्वारा प्रस्तुत और ग्रीनपीस द्वारा देखी की गई कुछ योजनाएं केवल नगर पालिका सीमाओं तक सीमित हैं, और वे केवल परिवहन प्रबंधन और सड़क और फ्लाईओवर निर्माण के बारे में बात करते हैं।

दहिया कहते हैं कि वायु प्रदूषण से निपटने के लिए अपने एक्शन पॉइंट का पता लगाते हुए, शहरों के लिए अपनी निगाहें ऊंची करना और प्रदूषण के स्रोतों, जैसे औद्योगिक कलस्टर, ईंट भट्टे, उनके अधिकार क्षेत्र के बाहर स्थित बिजली संयंत्र आदि से निपटने के लिए अपनी परिधि से बाहर देखना बहुत महत्वपूर्ण है।

ग्रामीण भारत के लिए कोई ठोस कार्रवाई नहीं

भारत में वर्ष 2015 में वायु प्रदूषण के कारण हुई 10.9 लाख मौतों में से लगभग 75 फीसदी ग्रामीण क्षेत्रों हुईथीं, जैसा कि इंडियास्पेंड ने 18 जनवरी, 2018 की रिपोर्ट में बताया है।

ढोलकिया कहते हैं,एनसीएपी में, सरकार ने पहली बार ग्रामीण इलाकों में वायु गुणवत्ता की निगरानी के बारे में बात की है। दहिया कहते हैं कि योजना शमन रणनीति के बारे में और कुछ नहीं कहती है, जो बेहद निराशाजनक है।वित्त भी एनसीएपी के लिए एक समस्या हो सकती है। इसकी प्रस्तावित लागत अगले पांच वर्षों में लगभग 638 करोड़ रुपये है। लेकिन सीईईडब्लू के शोध में पाया गया कि देश की हवा को साफ करने के लिए सिर्फ राष्ट्रीय मानकों को पूरा करने के लिए, भारत के वार्षिक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 1.1 से 1.5 फीसदी की आवश्यकता होगी, जैसा कि ढोलकिया बताते हैं।

दहिया कहते हैं कि , "ये सुझाव परिवर्तनशील हैं। मुझे उम्मीद है कि योजना के विकसित होते ही ये सारी चीजें तय हो जाएंगी।"

(त्रिपाठी प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 06 फरवरी, 2019 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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