सबकी जेब में नहीं आ पाती भारत में उच्च शिक्षा की कहानी
नेशनल सैंपल सर्वे (एनएसएस)- 2014 के आंकड़ों के अनुसार, 18 से 24 आयु वर्ग के बीच कम से कम 44.81 मिलियन (16.6 फीसदी पुरुष और 9.5 फीसदी महिलाएं) भारतीय अंडर ग्रेजुएट छात्रों की माली ऐसी नहीं है कि वे उच्च शिक्षा के लिए खर्च कर सकें।
उच्च शिक्षा–अध्ययन बीच में छोड़ने का कारण
Source: National Sample Survey report, 2014; figures in percentage
वर्ष 2014-15 में, कम से कम 34.2 मिलियन छात्रों ने उच्च शिक्षा संस्थानों में दाखिला लिया। ये आंकड़े मानव संसाधन और विकास (एमएचआरडी) मंत्रालय की उच्च शिक्षा पर वर्ष 2016 में ऑल इंडिया सर्वे ऑन हायर एजुकेशन (एआईएसएचई) में सामने आए हैं। लगभग 22 मिलियन छात्र (65 फीसदी) निजी संस्थानों में विभिन्न पाठ्यक्रम पढ़ रहे हैं।
उच्च शिक्षा और नामांकन के प्रबंधन के लिहाज से संस्थानों के शेयर
Source: * 12th Five Year Plan , # All India Survey on Higher Education 2014-15 report ; figures in percentage
एआईएसएचई 2014-15 की रिपोर्ट के आंकड़ों पता चलता है कि उच्च शिक्षा संस्थानों में निजी क्षेत्रों की हिस्सेदारी 76 फीसदी है।देश भर में 712 केंद्रीय और राज्य विश्वविद्यालय, 36,671 कॉलेज और 11,445 डिप्लोमा देने वाले संस्थान हैं।
हालांकि, वर्ष 2006-07 से 2011 के बीच सरकार के स्वामित्व वाली उच्च शिक्षा संस्थाओं की संख्या में 14 फीसदी की वृद्धि हुई है। संख्या 11,239 से बढ़कर 16,768 हुई है। जबकि इसी अवधि के दौरान निजी क्षेत्र के संस्थानों में 63 फीसदी की वृद्धि हुई है। यदि आंकड़ों को देखा जाए तो निजी संस्थानों की संख्या 29,384 से बढ़ कर 46,430 हुआ है। यह जानकारी पूर्व योजना आयोग की 12 वीं पंचवर्षीय योजना के दस्तावेज में सामने आई है।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा चलाए जा रहे कार्यक्रम ‘राष्ट्रीय उच्च शिक्षा मिशन’ (इसे राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान के रुप में भी जाना जाता है) के दस्तावेज के अनुसार, 21 वीं सदी के पहले दशक में उच्च शिक्षण संस्थानों में विस्तार हुआ था।
निजी संस्थानों में नामांकन, एक लाचारी
वर्ष 2014 एनएसएस की रिपोर्ट के अनुसार, करीब 53 फीसदी कॉलेज के छात्रों का नामांकन निजी संस्थानों में है। इसका कारण पर्याप्त संख्या में सार्वजनिक उच्च शिक्षण संस्थानों का न होना है।
निजी संस्थान छात्रों की भी पसंद
Source: National Sample Survey Report, 2014; figures in percentage
जल्द रोजगार की संभावना को देखते हुए छात्र भी कम अवधि के डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स का चुनाव करते हैं। आंकड़ों से पता चलता है कि ऐसे पाठ्यक्रम चलाने वाले सार्वजनिक संस्थानों की भारी कमी है।
एनएसएस रिपोर्ट के अनुसार, सरकारी संस्थानों की तुलना में 63 फीसदी छात्र निजी संस्थानों में डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स के लिए दाखिला लेते हैं।
जबकि सार्वजनिक उच्च शिक्षण संस्थानों की भारी मांग है। सरकार इस मांग को पूरा करने में विफल रही है। यही कारण है कि छात्र महंगे और कई बार, कम गुणवत्ता वाले निजी शिक्षा संस्थानों की ओर जाते हैं।
शिक्षा का बाजारीकरण और निवारण
वर्ष 2007-08 और वर्ष 2014 में प्रकाशित शिक्षा पर दो एनएसएस रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2007-08 में सामान्य पाठ्यक्रमों के लिए शिक्षा पर निजी व्यय प्रति छात्र 2,461 रुपए थे। वर्ष 2014 में यह खर्च बढ़ा और प्रति छात्र 6788 रुपए हो गया। प्रतिशत में देखें तो यह वृद्धि 175.8 फीसदी है।
शिक्षा के प्रकार अनुसार, प्रति छात्र व्यय
Source: National Sample Survey report, 2014
वर्ष 2016 में प्रस्तुत की गई नई शिक्षा नीति पर टी.एस.आर. सुब्रमण्यम समिति की रिपोर्ट में स्वीकार किया गया है कि अनियंत्रित निजीकरण का ही परिणाम है कि उच्च शिक्षा के लिए निजी संस्थानों का प्रसार होता चला गया। रिपोर्ट के अनुसार, इनमें से अधिकांश संस्थान डिग्री देने वाले दुकानों की तरह ही हैं- "हालांकि कुछ संस्थान हैं, जो काफी अच्छे और प्रतिष्ठित हैं।
लेकिन सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में, औसत दर्जे के संस्थानों की बड़ी संख्या है, इनमें से कुछ को 'डिग्री की दुकान' कहा जा सकता है।"
एनएसएस रिपोर्ट के अनुसार सरकारी संस्थानों की तुलना में निजी संस्थानों में फीस दोगुनी होती है। लाभ कमाने पर प्रतिबंध के बावजूद निजी संस्थान शिक्षा के लिए फीस बहुत ज्यादा रखते हैं। ग्लोबल ऑडिटिंग एंड कंसल्टिंग एजेंसी ‘अर्न्स्ट एंड यंग’ का अनुमान है कि भारतीय उच्च शिक्षा का बाजार 46,000 करोड़ रुपए के आसपास है और इसका सालाना 18 फीसदी की दर से विस्तार हो रहा है। ‘मिंट’ में यह खबर 10 सितंबर, 2013 को छपी है।
शैक्षणिक सत्र 2014-15 के लिए प्रति छात्र औसत खर्च
Source: National Sample Survey report, 2014
एनएसएस रिपोर्ट के अनुसार, मांग ज्यादा होने के कारण तकनीकी और व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के नामांकन में निजी क्षेत्रों की हिस्सेदारी 74 फीसदी है। लेकिन दूसरी ओर अंडर ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट पाठ्यक्रमों में यह हिस्सेदारी घटकर 39 फीसदी हो जाती है।
निजीकरण की वजह से उच्च शिक्षा में नामांकन कम
दुनिया में अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत में उच्च शिक्षा में ग्रोस एनरॉलमेंट रेशीओ यानी जीईआर(सकल नामांकन अनुपात) का कम होना एक चिंता का विषय है।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, उच्च शिक्षा का जीईआर 2004 में 10 फीसदी से बढ़ कर 2014 में 23.6 फीसदी हुआ है। विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, वृद्धि के बावजूद, भारत की जीईआर मात्र 23.6 फीसदी है, जो कि कम है। दूसरे देशों से तुलना करें तो ब्राजील की 46 फीसदी, चीन की 30 फीसदी, रूस की 78 फीसदी और दक्षिण अफ्रीका की 20 फीसदी है। हमारा देश पीछे है।
क्या यह वजह नहीं है कि 16 से 17 साल के बीच आयु वर्ग के बीच के आधे से अधिक छात्र स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद आगे की शिक्षा के लिए दाखिला नहीं लेते हैं।
सरकारों का तर्क है कि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में निजी क्षेत्र की अनुमति से नामांकन ज्यादा होंगे। इसी उद्देश्य के साथ राज्य और केंद्र सरकारों, दोनों ने पिछले 10 वर्षों में निजी शिक्षण संस्थानों के विस्तार की अनुमति दी है।
यह सच है कि इस अवधि के दौरान, उच्च शिक्षा में जीईआर में वृद्धि हुई है, लेकिन निजीकरण के कारण उच्च शिक्षा की लागत बढ़ जाने से लाखों लोग शिक्षा से वंचित रहे हैं।
रूसा के मिशन दस्तावेज के अनुसार, उच्च शिक्षा में जीईआर के उच्च स्तर का सार्वजनिक वित्त पोषण के साथ प्रत्यक्ष संबंध है। रूसा के मिशन दस्तावेज अनुसार, कुछ राज्यों में, उच्च शिक्षा पर प्रति व्यक्ति व्यय से जीईआर बेहतर हुई है। उदाहरण के लिए, गोवा की प्रति व्यक्ति व्यय 14634 रुपए और जीईआर 33.2 फीसदी है। इसी तरह, त्रिपुरा के जीईआर 32.9 फीसदी है और प्रति व्यक्ति व्यय 13,104 रुपए है। आंध्र प्रदेश के जीईआर 28.4 फीसदी और प्रति व्यक्ति खर्च 5,892 रुपए है। रूसा के मिशन दस्तावेज के अनुसार, वैश्विक अनुभव से भी पता चलता है कि शिक्षा के क्षेत्र में उच्च सार्वजनिक निवेश से सकारात्मक परिणाम मिलते हैं।
(पाणिग्रही नई दिल्ली के ‘राजीव गांधी इंस्टीट्यूट फॉर कन्टेम्परेरी स्टडीज’ में फेलो हैं । इसी संस्थान में सिंह एसोसिएट फेलो हैं।).
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 9 दिसंबर 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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