Mathura: A view of the busy Delhi-Agra highway engulfed in smog, in Mathura on Oct 24, 2018. (Photo: IANS)

बोस्टन: यातायात को आसान बनाने, आवागमन के समय को बचाने और सड़कों पर ट्रैफिक जाम के बाद कारों और अन्य वाहनों से उत्सर्जित होने वाले प्रदूषण को कम करने के वादे के साथ दिल्ली ने पिछले महीने में कम से कम दो नई सड़क परियोजनाओं की आधारशिला रखी है ( 170 किलोमीटर लंबा सहारनपुर राष्ट्रीय राजमार्ग गलियारा और 27.6 किलोमीटर लंबा उत्तरी परिधीय सड़क या द्वारका एक्सप्रेस वे )।

भीड़-भाड़ को कम करने के लिए बड़ी सड़कों के निर्माण के तर्क ने दुनिया भर में चक्करदार फ्लाईओवर और एक्सप्रेस वे दिए हैं। लेकिन जब हम कारों के लिए अधिक स्थान बनाते हैं, ट्रैफ़िक बढ़ जाता है-अक्सर यात्रा में लगने वाला समय अपरिवर्तित या यहां तक ​​कि बढ़ जाता है। इसे ‘इन्डूस्ट डिमांड ’ की तरह देखा जा सकता है। अधिक सड़कें अस्थायी रुप से ट्रैफिक की गति को तेज तो करता ही है, यह यात्रा को भी "सस्ता" बनाता है। इससे यात्राएं अधिक होती हैं और लोग अन्य सड़कों की तरफ आसानी से निकल पड़ते हैं। भीड़-भाड़ पहले की तरह रहती हैं। उदाहरण के लिए न्यूयॉर्क शहर के ट्रिबोरो ब्रिज को देखें। 1977 में रॉबर्ट कैरो की ओर से लिखी गई शहरी योजनाकार रॉबर्ट मूसा की जीवनी के अनुसार, 1936 में ट्रिबोरो ब्रिज के शुरु होने से पहले स्थानीय अधिकारियों का मानना ​​था कि इसके बन जाने के बाद भीड़ आधी कम हो जाएगी। लेकिन एक महीने के भीतर ही ट्रिबोरो एक ऐसी जगह थी, जिसे स्थानीय अखबारों ने "क्रॉस-कंट्री ट्रैफिक जैम " कहा।

यहां तक ​​कि चीन का 50-लेन राजमार्ग भी इससे अछूता नहीं है। 2010 में तो यहां 12 दिन का जाम था। ‘इन्डूस्ट डिमांड ’ के प्रभाव के अनुमान भिन्न होते हैं, लेकिन 1983 और 2003 के बीच टोरंटो विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्री गिल्स डुरंटन और मैथ्यू टर्नर द्वारा अमेरिकी शहरों के एक विश्लेषण में पाया गया कि सड़कों पर वाहनों की संख्या बनी हुई थी। दूसरे शब्दों में, हम भारी ट्रैफिक के बीच से अपना रास्ता नहीं बना सकते।

दिल्ली पहले भी इस तरह की जाल में फंस चुकी है।

दिल्ली में 2016 में यातायात में कमी लाने के लिए शहरी विकास मंत्रालय की उच्चाधिकार प्राप्त समिति ने कहा, “ सड़कों के चौड़ीकरण के माध्यम से सड़क नेटवर्क और सड़क की लंबाई बढ़ाने के बावजूद… ट्रैफिक में निरंतर वृद्धि हुई है”। फिर भी, जिस तरह से दिल्ली के नीति निर्माता बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए नई परियोजनाओं की घोषणा कर रहे हैं, वे इस गलती को दोहरा रहे हैं।

और ट्रैफिक तो सिरदर्द की तरह है। कुछ अनुमानों के मुताबिक, 30 फीसदी तक दिल्ली में खतरनाक पार्टिकुलेट मैटर परिवहन से संबंधित है और वाहन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के एक तिहाई के लिए जिम्मेदार हैं, जैसा कि सरकार की 2016 की उत्सर्जन सूची से पता चलता है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट द्वारा 2017 के विश्लेषण से पता चला कि दिल्ली का ट्रैफिक पूरे 12 घंटे की अवधि के लिए ‘चरम’ पर था, जिसे उन्होंने मापा था- यहां भीड़-भाड़ वाला समय कभी खत्म नहीं होता। यूनाइटेड नेशन के डेटा पर ‘इंटरनेश्नल एसोसिएशन ऑफ पब्लिक ट्रांसपोर्ट’ के विश्लेषण के अनुसार, 2028 तक दिल्ली दुनिया का सबसे बड़ा शहर बन जाएगा, जहां 2035 तक 1.1 करोड़ लोग और जुड़ेंगें।

यदि यह उन्हें समायोजित करने के लिए अधिक सड़कों के निर्माण की कोशिश करता है, तो हमारे रास्ते पर और भी अधिक स्मॉग से भरे ग्रिडलॉक होंगे।

यदि इसके बजाय दिल्ली के नीति निर्माता अधिक कुशल, स्वच्छ और सुरक्षित परिवहन प्रणाली के बारे में गंभीर हैं, जो आने वाले वर्षों में लाखों अतिरिक्त लोगों को समायोजित कर सकते हैं।

बसें, साइकिल और पैदल पथ अधिक उपयोगी, अधिक सुगम और प्रदूषण से भी बचत

बसों के लिए समर्पित लेन उपलब्ध कराने या तेज बस परिवहन से (दिल्ली के पिछले सबक को ध्यान में रखते हुए) कम से कम चार गुणा ज्यादा सक्षम और भरोसेमंद परिवहन व्यवस्था बन सकती है, क्योंकि एक बड़ी संख्या में लोग मंहगे परिवहन साधन से बचते हैं। अधिक बसों को खरीदने के लिए दिल्ली की वर्तमान योजना एक अच्छी शुरुआत है, लेकिन बसों को कई लोगों के लिए व्यवहार्य विकल्प बनाने के लिए इसका विस्तार जरूरी है।अनुमानों के मुताबिक, कार की तुलना में आज बाइक लेन एक घंटे में तीन या चार गुना अधिक लोगों को स्थानांतरित कर सकती है और नई ई-बाइक और इलेक्ट्रिक स्कूटर की शुरूआत के साथ और भी अधिक कुशल हो जाएगा।दिल्ली के फुटपाथ भी अधिक लोगों को ले जा सकते हैं, लेकिन दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के मुताबिक फुटपाथों के आधे हिस्से बाधित रहते हैं, जिससे पैदल चलने वालों को बहुत मुश्किलें होती हैं।

बाइक और पैदल यात्री के लिए बुनियादी ढांचे में निवेश से कम या बिना प्रदूषण उत्सर्जन के और आवागमन के लिए बहुत कम भुगतान के साथ दिल्लीवासी अधिक स्वतंत्र रूप से आ-जा सकते हैं। अंत में, दिल्ली अपनी सड़कों पर मूल्य निर्धारण रणनीतियों का उपयोग करके आगे बढ सकता है, जिनमें लोगों को कार पूल जैसी चीजों के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। अधिक लोगों को ढोने की झमता वाले वाहन ने वास्तव में जकार्ता, इंडोनेशिया में भीड़ को कम करने में मदद की थी, जैसा कि एमआईटी के सह-लेखक के साथ हार्वर्ड कैनेडी स्कूल में एविडेंस फॉर पालिसी डिजाइन के सह-निदेशक रेमा हन्ना की रिपोर्ट में कहा गया है। लंदन के कंजेशन चार्ज के एक अन्य विश्लेषण में भीड़-भाड़ में 30 फीसदी की कमी पाई गई। कुछ शहर, जैसे ओस्लो और मैड्रिड, यहां तक ​​कि अपने शहरी कोर से कारों को हटाने की कोशिश कर रहे हैं, लोगों को सड़क लौटा रहे हैं।

रॉबर्ट मूसा की जीवनी के अनुसार, 1939 में एक नए राजमार्ग को देखते हुए, न्यूयॉर्क शहर के अधिकारी "समझ नहीं पाए कि वे कार कहां से आई थीं।" जिन सड़कों को उन्होंने राहत देने का प्रयास किया था, वे "बस हमेशा की तरह जाम हो गईं"।

(सुतर हार्वर्ड कैनेडी स्कूल के ‘एविडेंस फॉर पॉलिसी डिजाइन’ में एक वरिष्ठ कार्यक्रम प्रबंधक हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 27 फरवरी, 2019 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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