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पिछले महीने केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत की सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता दोगुना करने का निर्णय लिया है। 50 सौर पार्क स्थापित कर यह क्षमता 20 गीगावॉट से 40 गीगावॉट तक करने का निर्णय लिया गया है। ये सौर पार्क एक क्षेत्र में 500 मेगावाट या उससे अधिक उर्जा उत्पन्न करेंगे।लेकिन अतिरिक्त 20 गीगावॉट का मतलब कम से कम 80,000 एकड़ जमीन का अधिग्रहण, जो जयपुर के क्षेत्र का तीन गुना है। कम भूमि वाले एक देश में इतनी जमीन का अधिग्रहण एक समस्या और चुनौती भी है। इस बारे में इंडियास्पेंड ने जनवरी 2017 में विस्तार से बताया है। इंडियास्पेंड की रिपोर्ट में नहर की लंबाई के उपर सौर पैनलों के लगाने की बात भी है, जिससे लगात में कमी आ सकती है और भूमि अधिग्रहण की समस्या से भी बचा सकता है।

अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण से संबंधित तीन मामलों में टकराव की कहानी किसी से छिपी नहीं है। भारत भर में भूमि अधिग्रहण विवाद के लिए ऑनलाइन मैप लेंड कान्फ्लिक्ट वॉच के अनुसार, इसमें से एक 500 मेगावाट क्षमता वाला सोलर पार्क पश्चिमी आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले में है। भूमि अधिग्रहण में देरी से परियोजना की लागत बढ़ जाती है और इसे देखते हुए डेवलपर्स निवेश से कतराने लगते हैं।

सौर ऊर्जा उत्पादन में भारत का रिकॉर्ड हमें आशावादी नहीं बनाता। वित्त वर्ष 2016-17 के लगभग अंत तक भारत अब भी अपने लक्ष्य का 70 फीसदी प्राप्त नहीं कर पाया है, जबकि आगामी वर्षों के लक्ष्य और भी अधिक हैं।

अब नवीनतम योजना सौर पार्क और अल्ट्रा मेगा सौर ऊर्जा परियोजनाओं से 2022 तक भारत के 100 गीगावॉट के सौर अक्षय लक्ष्य का 40 फीसदी उत्पन्न करना है। नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) के बयान के मुताबिक बढ़ी हुई सौर उर्जा भंडार जब पूरी क्षमता पर काम करगें तो प्रति वर्ष 64 बिलियन यूनिट बिजली उत्पन्न होगी, जो अपने जीवन चक्र में प्रति वर्ष 55 मिलियन टन CO2 की कटौती करेगा।

बिजली मंत्रालय की ओर से जारी लोड जनरेशन बैलेंस रिपोर्ट के अनुसार प्रति वर्ष बिजली की 64 बिलियन यूनिट दिल्ली जैसे दो शहरों के लिए पर्याप्त होगी, जिसे वर्ष 2016-17 के दौरान 31.1 बिलियन यूनिट बिजली की आवश्यकता थी। यह रिपोर्ट आगामी वर्ष के लिए देश में ऊर्जा की आवश्यकता और उपलब्धता की जानकारी देता है।

वर्तमान में भारत के पास दुनिया का सबसे बड़ा नवीनीकरण विस्तार कार्यक्रम है। ‘इंटेंडेट नेशनली डिटर्मिन्ड कंट्रीव्यूशन’ (आईएनडीसी) के अनुरूप वर्ष 2022 तक भारत का लक्ष्य 175 गीगावॉट क्षमता स्थापित करना है जोकि 50 गीगावॉट की वर्तमान क्षमता से तीन गुना अधिक है। आईएनडीसी, तेजी से गर्म हो रही इस दुनिया को बचाने के लिए वायुमंडल को ठंडा करने का की उदेश्य से वर्ष 2015 के पेरिस समझौते द्वारा सुझाए गए वैकल्पिक ऊर्जा उत्पादन के वादे पर टिका हुआ है।

लक्ष्य से 70 फीसदी कम 2016-17 की उपलब्धि

जनवरी 2017 तक, सभी स्रोतों से भारत की संचयी स्थापित सौर क्षमता 9 गीगावॉट से अधिक थी और मार्च में 10 गीगावॉट पार किया था। लक्ष्य हासिल करने के लिए आने वाले पांच वर्षों में देश को 90 गीगावॉट अधिक उत्पादित करना होगा। इस लक्ष्य को प्राप्त करना कठिन है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने फरवरी 2017 में अपनी रिपोर्ट में बताया है।

वर्तमान में लक्ष्य और उपलब्धियों के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर है उदाहरण के लिए, वर्ष 2016-17 में 12,000 मेगावाट की सौर क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य था, जबकि जनवरी 2017 तक, केवल 2,472 मेगावाट स्थापित किए गए थे।

महत्वाकांक्षी सौर लक्ष्य, लेकिन 2016-17 में हुई कम प्रगति

Source: Ministry of New and Renewable Energy

छत सौर संयत्र को लेकर संघर्ष

भारत में सौर ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत अब छत सौर संयत्र (40 फीसदी) और बड़े सौर पार्क (40 फीसदी) होंगे। ऑफ-ग्रिड सौर स्थापनाओं से बहुत छोटे प्रतिशत के साथ अंतिम 20 फीसदी यूटिलिटी स्केल सोलर प्रोजेक्ट से आएगा।

छत सौर उर्जा की क्षमता में वृद्धि धीमी गति से हो रही है। इस पर इंडियास्पेंड ने जनवरी 2017 में विस्तार से बताया है। दिसंबर 2016 में एमएनआरई के इस अपडेट के अनुसार, नवंबर 2016 तक, केवल 0.5 मेगावाट छत सौर उर्जा क्षमता स्थापित की गई थी, जबकि योजना के तहत 3 गीगावॉट की मंजूरी दी गई थी।

नई दिल्ली स्थित शोध संस्थान ‘काउंसिल ऑन एनर्जी एनवायरर्नमेंट एंड वॉटर’ (सीईईई) में वरिष्ठ कार्यक्रम प्रमुख अभिषक जैन कहते हैं, “छत सौर उर्जा इंस्टालेशन की विकेंद्रीकृत प्रकृति प्रगति को कठिन बना देती है, क्योंकि 1 मेगावाट तक पहुंचने के लिए आपको औसतन लगभग 500 उपभोक्ताओं को शामिल करने की आवश्यकता होती है, ऐसा तब संभव है जब एक घर में औसत 2-वॉट क्षमता का संयत्र स्थापित हो। इसलिए इस योजना में प्रशासनिक प्रक्रिया अधिक महंगा हो जाता है। ”

भारत का छत सौर कार्यक्रम: लक्ष्य और प्रगति

सौर पार्क की मंजूरी और आधारिक संरचना

बड़े सौर पार्क स्वतंत्र उत्पादकों के लिए कई लाभ लेकर आते हैं, जैसे भूमि की मंजूरी, सड़कों और ट्रांसमिशन सिस्टम जैसे बुनियादी ढांचे का विकास और पानी की उपलब्धता।

वर्ष 2016 के मध्य तक, 21 राज्यों में कुल 34 सौर पार्क को मंजूरी दी गई थी। इनकी कुल क्षमता 20 गीगावॉट थी। पार्कों के लिए राज्यवार प्रभाग का विवरण दिखाता है कि आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात और कर्नाटक में सबसे ज्यादा परियोजनाएं थीं। इस बारे में इंडियास्पेंड ने 1 दिसंबर, 2016 को ट्वीट के जरिए बताया था।

सौर पार्क का हिस्सा बनने का मतलब यह भी है कि पार्क के भीतर अलग-अलग उत्पादकों के लिए कम लागत का निवेश आसान है।

राज्य अनुसार, मंजूर किए गए सौर पार्क की क्षमताएं

अतिरिक्त 20 गीगावॉट के साथ, सौर पार्कों की संख्या बढ़कर 83 हो जाने का अनुमान है। इन अतिरिक्त पार्कों को किन क्षेत्रों में बनाया जाएगा या इंस्टालेशन का क्या करीका होगा, इसके बारे में अभी तक कोई जानकारी नहीं है।

सौर टैरिफ में गिरावट, लेकिन अभी भी समस्याएं

वर्ष 2010 के बाद से भारत में सौर टैरिफ में गिरावट हो रही है। बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दिसंबर 2010 में 10.95 रुपये प्रति किलोवाट की दर थी। पिछले महीने मध्यप्रदेश के 750 मेगावाट वाले रीवा सौर पार्क परियोजना की दर 3.30 रुपये प्रति किलोवाट की थी।

रिपोर्ट के अनुसार संचरण अनिश्चितताओं के कारण जोखिम बढ़ता है। नीतियों की घोषणा में होने वाली देरी अनिश्चितता पैदा करती है। इसके अलावा नवीकरणीय खरीद दायित्व के प्रवर्तन की भी तत्काल आवश्यकता है। नहीं तो नवीकरणीय शक्ति का उत्पादन नहीं किया जा सकता है। देर से भुगतान भी समस्या है।

सौर पार्क शायद वर्तमान में अक्षय ऊर्जा का उत्पादन करने का सबसे अच्छा तरीका है, क्योंकि वे छोटे उत्पादकों की समस्याओं का ख्याल रखते हैं। लेकिन इसमें उत्पादित बिजली के साथ जुड़ी गैर-विश्वसनीयता और भूमि अधिग्रहण की समस्याएं भी शामिल हैं

सीईईड के सीनियर प्रोग्राम लीड कनिका चावला ने इंडियास्पेंड से बात करते हुए बताया कि, “भूमि अधिग्रहण निर्माताओं के लिए एक चुनौती है, लेकिन निर्माताओं को भूमि, मंजूरी और बुनियादी ढांचे तक आसान पहुंच के लिए आवश्यक कदम उठाए जा रहे हैं। हाल ही में रीवा सौर पार्क की बोली में आप इसे देख सकते हैं। कटौति का जोखिम भी राज्य सरकार द्वारा 100 फीसदी भुगतान गारंटी देकर कम किया गया है।”

सामान्य तौर पर एक मेगावाट वाले जमीन पर स्थापित सौर प्रतिष्ठानों को चार एकड़ जमीन की आवश्यकता होती है। लेकिन सौर सेल प्रौद्योगिकी में नई तकनीक के आने के बाद पांच एकड़ जरूरी हैं। इस बारे में इंडियास्पेंड ने पहले बताया है।

चावला कहती हैं, “ क्षमता को चाहे यूटिलिटी स्केल प्रोजेक्ट के साथ जोड़ें या बड़े सौर पार्क के साथ, उनके लिए एक ही तरह की जमीन की जरूरत होगी। सौर पार्कों का आर्थिक पैमाने पर परिणाम निकासी बुनियादी ढांचे और प्रणाली का संतुलन है जिससे सौर ऊर्जा की प्रति इकाई लागत में कमी आती है। ”

(पाटिल विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 27 मार्च 2017 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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