हरियाणा विधानसभा चुनाव: पिछले दस साल में सबसे कम महिला विधायक चुनी गईं
बेंगलुरु: 90 सदस्यीय हरियाणा विधानसभा में इस बार नौ महिलाएं होंगी। पिछली विधानसभा के मुक़ाबले चार कम। पिछली विधानसभा में 13 महिलाएं चुनकर आईं थीं। अगर पिछले 10 वर्षों पर नज़र डाली जाए तो यह संख्या सबसे कम है। राज्य के 56 निर्वाचन क्षेत्रों से कुल 104 महिला उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा था।
इससे पहले सबसे कम महिला विधायक 2000 में चुनी गई थी, जब चार महिलाओं को राज्य के विधानसभा के लिए मतदाताओं ने चुनकर भेजा था। हाल तक, देश में हरियाणा राज्य का नाम जन्म के समय के सबसे खराब लिंगानुपात में शामिल था और 2017 में राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं के खिलाफ अपराध की चौथी सबसे ज़्यादा दर यहां दर्ज की गई थी।
मनोहर लाल खट्टर की अगुवाई वाली सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने इस विधानसभा चुनाव में 40 सीटों पर जीत हासिल की है। 2014 में जीती गई 47 सीटों से इस बार सात सीटें कम मिली हैं। कांग्रेस ने 31 सीटों पर जीत दर्ज की है। जो पिछली बार के मुक़ाबले 16 सीटें ज़्यादा हैं।
भारत के 29 राज्यों में से 15 में बीजेपी सत्ता मेंं है, जिसमें महाराष्ट्र भी शामिल है, जहां पार्टी ने 105 सीटों पर जीत हासिल की है। उसके सहयोगी दल शिवसेना ने 288 सदस्यीय विधानसभा में 56 सीटों पर जीत हासिल की है।
हरियाणा चुनाव के नतीजों से राज्य में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है, जिसका मतलब है कि निर्दलीय और जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) ( दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय लोकदल का एक अगल हुआ दल ) अगली सरकार बनाने में निर्णायक भूमिका निभाएंगे। हालांकि बीजेपी सरकार बनाने का दावा कर रही है।
2019 के आम चुनाव में, बीजेपी ने राज्य की सभी 10 लोकसभा सीटें जीती थीं। इन दस लोकसभा सदस्यों में से केवल एक महिला थीं- सुनीता दुग्गल।
बीजेपी से 12 महिला उम्मीदवार थीं, कांग्रेस से 10
कांग्रेस की 10 महिला उम्मीदवारों की तुलना में बीजेपी ने इस साल हरियाणा में 12 महिलाओं को टिकट दिया।
बीजेपी की तीन महिला उम्मीदवारों ने बाजी मारी। यह संख्या 2014 में पार्टी से चुनी गई 8 महिला विधायकों की तुलना में पांच कम है। कांग्रेस से पांच महिला उम्मीदवारों ने जीत हासिल की है।
इस बार, जेजेपी ने सात महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा। उनमें से, दुष्यंत चौटाला की मां, नैना सिंह चौटाला ने जीत हासिल की है।
2014 में, हरियाणा विधान सभा में 14% सदस्य (एमएलए) महिलाएं थी, जो कि 2009 की तुलना में 4% ज्यादा है। लेकिन यह 2009 में पेश महिला आरक्षण बिल में संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए प्रस्तावित 33% से कम है।
2014 में, हरियाणा में 13 महिला विधायक थीं। यह संख्या 2000 के बाद से दो दशकों में सबसे ज्यादा थी। 13 में से 4 ने 2014 में फिर से जीत हासिल की थी और 2019 में तीसरे कार्यकाल के लिए वे चुनाव मैदान में थीं। इस बार इनमें से तीन ने जीत हासिल की है।
Women’s Representation In Haryana Assembly Lowest Since 2004 | ||||
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Year | Women candidates | Total candidates | Women elected (out of 90 seats) | Women MLAs (As % of total MLAs) |
2000 | 49 | 965 | 4 | 4.44% |
2005 | 60 | 983 | 11 | 12.22% |
2009 | 69 | 1222 | 9 | 10.00% |
2014 | 116 | 1351 | 13 | 14.44% |
2019 | 104 | 1169 | 9 | 10% |
Source: PRS Legislative And Election Commission Of India |
कुल मिलाकर, मौजूदा महिला विधायकों में से आठ ने 2019 में फिर से चुनाव लड़ा है। उनमें से दो, शकुंतला खटकड़ ने कलानौर से और गीता भुक्कल ने झज्जर क्षेत्र से चुनाव लड़ा। दोनों निर्वाचन क्षेत्र अनुसूचित जाति (एससी) के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं।
बीजेपी की कविता जैन, सोनीपत से लगातार तीसरे कार्यकाल के लिए चुनाव लड़ रही थीं, वे लगभग 33,000 वोटों से हार गईं।
सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के फेलो राहुल वर्मा ने इंडियास्पेंड को बताया, "कितनी महिलाएं जीतती हैं, इस आधार पर महिला राजनीति का आंकलन करना मुश्किल है। सामाजिक विकास में पिछड़ा होने के बावजूद, हरियाणा की राजनीति में महिलाओं का बड़ा प्रतिनिधित्व है। लेकिन ज़्यादातर महिला उम्मीदवार या तो राजनीतिक परिवारों से हैं या फिर मशहूर हस्तियां हैं।"
अशोक विश्वविद्यालय में त्रिवेदी सेंटर फॉर पॉलिटिकल डेटा के को-डायरेक्टर और राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख गिलेस वर्नियर्स, वर्मा से सहमत थे। उन्होंने इंडियास्पेंड को बताया कि "इस परिणाम तक, हरियाणा में विधानसभाओं में महिलाओं का सबसे अधिक प्रतिनिधित्व था। यह अक्सर महिलाओं के कल्याण को लेकर राज्य की मानसिकता को एक अलग ढंग से सामने लाता है, लेकिन हमने पाया कि भारत में, बेहतर संकेतक वाले राज्यों की तुलना में महिला कल्याण से संबंधित सबसे खराब आंकड़ों (जैसे कि लिंगानुपात, अशिक्षा, शिशु मृत्यु दर ) वाले राज्यों में अधिक महिला राजनीति में सामने आती हैं।"
वर्नियर्स कहते हैं, "इसका एक कारण उन राज्यों में वंशवादी राजनीति है, जो महिलाओं को आगे बढ़ाने के लिए अवसर पैदा करती है। भारत के कुछ हिस्सों की तुलना में पारंपरिक, रूढ़िवादी, उत्तर भारतीय राजनीतिक परंपरा राजनीतिक वंशवाद की एक प्रचलित संस्कृति है।"
हरियाणा में महिलाओं के खिलाफ अपराध की चौथी सबसे बड़ी दर
सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा जारी 2017 के आंकड़ों के अनुसार, पांच वर्षों से 2017 तक, राज्य विधानसभाओं में महिला प्रतिनिधित्व बिहार और राजस्थान के साथ-साथ हरियाणा (14%) में सबसे अधिक था।
हरियाणा देश में सबसे कम लिंग अनुपात वाले राज्यों में से एक रहा है। 2011 में जन्म के समय प्रति 1,000 लड़कों पर 833 लड़कियां थीं। लेकिन अब एक दशक से, राज्य ने जन्म के समय अपने लिंगानुपात में लगातार सुधार दिखाया है, और अगस्त 2019 में प्रति1,000 लड़कों पर 920 लड़कियां है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने 20 अक्टूबर, 2019 की रिपोर्ट में भी बताया है।
‘द गार्जियन’ ने मार्च 2018 में बताया कि विषम लिंगानुपात के कारण गांवों में कुछ ही बच्चियां रह गई हैं। पैसे के बदले दुल्हनें खरीदी जा रही हैं, क्योंकि पुरुषों के लिए विवाह के लिए बहुत कम स्थानीय महिलाएं हैं, और राज्य में जबरन विवाह का प्रचलन है।
2017 के अपराध आंकड़ों के अनुसार, राज्य में महिलाओं के खिलाफ अपराध की चौथी सबसे बड़ी दर थी - प्रति 100,000 महिलाओं पर 88.7 अपराध का आंकड़ा है। महिला साक्षरता दर 75.4% है, जो राष्ट्रीय औसत के 68.4% से ऊपर है, और राज्य की लगभग 46% लड़कियों ने 10 साल से अधिक की स्कूली शिक्षा पूरी की है। यह आंकड़ा भी 35.7% के राष्ट्रीय औसत से ऊपर है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने 12 अगस्त, 2017 की अपनी रिपोर्ट में बताया है।
प्रति वर्ष, 2.3 लाख रुपये (वर्तमान कीमतों पर) की प्रति व्यक्ति आय के साथ राज्य देश के सबसे समृद्ध राज्यों में से एक है। हरियाणा के 2018-19 के आर्थिक सर्वेक्षण में बताया गया है कि यह आंकड़ा 1.3 लाख रुपये के अखिल भारतीय प्रति व्यक्ति आय से लगभग 77% ज्यादा है।
मई, 2019 में सरकार द्वारा जारी 2017-18 के पिरीआडिक लेबर फोर्स सर्वे के अनुसार, हरियाणा में 15 वर्ष या उससे अधिक आयु वर्ग (श्रम सीमा में एलएफपीआर या प्रतिशत व्यक्तियों में आबादी) में श्रम बल की भागीदारी दर ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिए 45.5% है, जो राष्ट्रीय औसत से 4.3 प्रतिशत कम है। रिपोर्ट के आधार पर भारत की बेरोजगारी 45 साल के उच्च स्तर 6.1% पर आंकी गई थी।
महिलाओं की एलएफपीआर और भी कम थी - ग्रामीण क्षेत्रों में 14.7% (महिलाओं के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण एलएफपीआर से लगभग 10 प्रतिशत कम) जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 13.7% (राष्ट्रीय शहरी महिला एलएफपीआर से 6.7 प्रतिशत कम) था।
वर्नियर्स कहते हैं, "बेरोजगारी मतदान का एक मुद्दा हो सकता है या नहीं हो सकता है। महिलाएं हरियाणा में पुरुषों को पछाड़ती हैं। ठीक वैसे ही जैसा कि वे हिंदी पट्टी के कई राज्यों में करती हैं। लेकिन रोजगार तक पहुंच में कमी का मतलब घर तक सीमित रहना है, जो सार्वजनिक क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी के लिए बड़ी बाधा है।”
चुनाव विश्लेषक और स्वराज इंडिया पार्टी के अध्यक्ष, योगेन्द्र यादव ने इंडियास्पेंड के साथ इंटरव्यू में बताया, “परेशानी यह है कि बाधा इतनी ऊंची है कि साधारण क्षमता और साधारण महत्वाकांक्षा से अधिक वाले ही राजनीति में प्रवेश कर सकते हैं, लेकिन महिलाओं को राजनीति में प्रवेश करने में सक्षम होने के लिए कई सीमाएं पार करनी होंगी।” उनकी पार्टी ने 27 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, जिनमें पांच महिला उम्मीदवार थीं, जिनमें से सभी को हार का सामना करना पड़ा।
यादव ने कहा, "यदि आप हरियाणा विधानसभा में महिलाओं को राजनीतिक परिवारों को फ़िल्टर करते हैं, तो आपको एहसास होगा कि उनकी संख्या [महिलाओं का प्रतिनिधित्व] शून्य के करीब है।"
वर्नियर्स के अनुसार महिलाओं के लिए कई बाधाएं हैं, क्योंकि पार्टियां अभी भी सोचती हैं कि वे कमजोर उम्मीदवार हैं, या वे एक निर्वाचित प्रतिनिधि से अपेक्षित कार्यों को नहीं कर सकते हैं। “कुछ राज्यों में, जैसे कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में, मतदाता महिला उम्मीदवारों के खिलाफ चले जाते हैं, उन्हें पुरुषों की तुलना में कम वोट देते हैं। स्व-चयन का एक मुद्दा है जहां चुनावों को अक्सर पुरूषत्व और क्रूरता के मैदान के रूप में देखा जाता है, जो महिलाओं के लिए हतोत्साहित करने वाला हो सकता है। और फिर चुनावों की जो लागत है, वह महिलाओं के लिए अनुकूल नहीं है। ”
इस रिपोर्ट के प्रकाशन के समय, राज्य के संयुक्त मुख्य निर्वाचन अधिकारी इंदरजीत ने बताया कि "कुछ कमियों" के कारण, पांच बूथों पर- नटनाउल, कोसली, बेरी, उचाना कलां और पृथला-में फिर से मतदान का आदेश दिया गया, जैसा कि एनडीटीवी की रिपोर्ट में बताया गया है।
( पलियथ विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड से जुड़े हैं। )
यह आलेख मूलत: अंग्रेजी में 24 अक्टूबर 2019 को IndiaSpend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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