हिंदी बोलने वालों की संख्या में 10 करोड़ की बढ़ोतरी
मुंबई: 2001-2011 के बीच 100 मिलियन नए लोगों ने हिंदी बोलना शुरु किया और इस संख्या के जुड़ने के बाद 25.19 फीसदी की दर से हिंदी भारत में सबसे तेजी से बढ़ती भाषा रही।
नई जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक कश्मीरी (22.97 फीसदी), गुजरात (20.4 फीसदी), मणिपुरी (20.07 फीसदी), और बंगाली (16.63 फीसदी) दूसरी, तीसरी चौथी और पांचवी सबसे तेजी से बढ़ती भाषाएं हैं।
हिंदी बोलने वाले 520 मिलियन लोग हैं और बंगाली बोलने वाले 97 मिलियन लोग हैं । ये दोनों देश भर में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली और भाषा बनी हुई हैं।
देश में 260,000 लोग हैं, जो अंग्रेजी को अपनी मातृभाषा के रुप में मानते हैं। यह आंकड़े 2001 में 226,000 थे,यानी 14.67 फीसदी की वृद्धि हुई है।
सबसे ज्यादा अंग्रेजी बोलने वाले लोग महाराष्ट्र में हैं, करीब 104,000 और इसके बाद तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे राज्य हैं, जहां अंग्रेजी बोलने वाले अधिक संख्या में हैं।
बोलने वालों की 24,821 संख्या के साथ अनुसूचित भाषाओं (आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त) में संस्कृत सबसे कम बोली जाने वाली भाषा है, हालांकि, 2001 से इसमें 76 फीसदी की वृद्धि हुई है।
दो निर्धारित भाषाओं में बोलने वालों की संख्या में गिरावट देखी गई है जो उन्हें मातृभाषा के रुप में मानते हैं। उर्दू में 1.58 फीसदी और कोंकणी में 9.54 फीसदी की गिरावट आई है।
99 अनुसूचित भाषाओं में से, भिली/भीलोदी को बोलने वालों की संख्या लगातार बढ़ रही है। 104 मिलियन लोगों ने इसे अपनी मातृभाषा के रूप में चिह्नित किया । 2001 में इसे बोलने वालों की संख्या 95 मिलियन थी।
29 मिलियन बोलने वालों के साथ गोंडी अभी भी दूसरे स्थान पर है। वर्ष 2001 में इसे बोलने वालों की संख्या 27 मिलियन थी।
भिली/भिलोदी मुख्य रूप से भील लोगों द्वारा बोली जाती है जो गुजरात, राजस्थान और मध्य प्रदेश के मूल निवासी हैं।
गोंडी उन गोंडों द्वारा बोली जाती है जो मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश तेलंगाना, महाराष्ट्र, बिहार और कर्नाटक में रहते हैं।
उत्तर भारत के अधिकांश राज्यों में तमिल (-5 फीसदी) और मलयालम (-10 फीसदी) बोलने वालों की आबादी गिर रही है, हालांकि, तमिलनाडु और केरल में हिंदी, बंगाली, असमिया और ओडिया बोलने वालों की संख्या में 33 फीसदी की वृद्धि हुई है, जो पिछले दशकों से उलटा प्रवासन प्रवृति का संकेत देता है जब दो दक्षिणी राज्यों के लोग बड़ी संख्या में उत्तर में स्थानांतरित हुए थे, जैसा कि टाइम्स ऑफ इंडिया ने 28 जून, 2018 की रिपोर्ट में बताया है।
भाषा अनुसंधान और प्रकाशन केंद्र के संस्थापक गणेश देवी ने इंडियास्पेंड से बातचीत करते हुए कहा, "जनगणना डेटा के आधार पर किसी विशेष भाषा के देशी वक्ताओं की संख्या को जांचना भ्रामक हो सकता है।"
वह कहते हैं, " प्रवास (घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर) जैसे कारक हैं जो आंकड़ों को तोड़ते-मड़ोरते हैं। इसके अलावा, जनगणना में एक भाषा चुनने के संबंध में लोगों को सीमित विकल्प मिलता है। इसलिए, एक निर्धारित भाषा के तहत बोलने वालों की अधिक संख्या असामान्य नहीं है, जबकि वास्तव में वे एक गैर-निर्धारित भाषा बोल सकते हैं। इसी प्रकार, सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले लोगों को अपनी मूल भाषा के रूप में चुनने के लिए केवल एक विकल्प दिया जाता है, भले ही उनके पास एक से अधिक भाषा हो।"
संविधान के आठवें अनुसूची के तहत आर्टिकल 344 (1) और 351 में 22 भाषाओं की सूची दी गई है (नीचे दी गई तालिका में दिखाया गया है)।
केंद्र सरकार अनुसूचित भाषाओं के प्रचार के लिए जिम्मेदार है। अंग्रेजी, भिली / भिलोदी और गोंडी जैसी गैर-निर्धारित भाषाएं सूची में शामिल नहीं हैं।
2001 के 96.52 फीसदी की तुलना में, 2011 में, अनुसूचित भाषाओं के वक्ताओं की भारत की आबादी में 96.77 फीसदी की हिस्सेदारी थी, हालांकि, 2001-2011 के बीच गैर अनुसूचित भाषा वक्ताओं की संख्या में 13 फीसदी की वृद्धि हुई है।
हिंदी और बंगाली के बाद 83 मिलियन बोलने वालों के साथ मराठी ने तेलुगू (81 मिलियन) को तीसरी सबसे आम मातृभाषा से विस्थापित कर दिया है।
गुजराती, जो 46 मिलियन वक्ताओं के साथ 2001 में सातवें स्थान पर था, 2011 में 55 मिलियन वक्ताओं के साथ छठे स्थान पर कब्जा करने के लिए उर्दू से आगे आया है।
उर्दू 2001 में छठे स्थान से (51 मिलियन वक्ताओं) 2011 में सातवें स्थान पर आया है। 2011 में 50 मिलियन लोगों ने उर्दू को अपनी मातृभाषा बताया है।
37 से 43 मिलियन की संख्या पर पहुंचने के साथ कन्नड़ आठवें स्थान पर स्थिर है।
हिंदी, बंगाली सबसे लोकप्रिय भाषाएं रही
बोलने वालों की संख्या में एक दश्क में परिवर्तन
कर्नाटक और केरल में कोंकणी बोलनेवाले कोंकणी से अलग जाकर कन्नड़ / मलयालम को अपनी मातृभाषा के रूप रख सकते हैं, जिसे कोंकणी बोलने की संख्या में गिरावट के कारण के रूप में देखा जा सकता है, जैसा कि देवी कहते हैं।
देवी कहते हैं, "आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक पृष्ठभूमि को देखते हुए, उर्दू बोलने वाले इसे अपनी मातृभाषा घोषित करने में अनिच्छुक हो सकते हैं। इसलिए 2001 और 2011 के बीच मुस्लिम आबादी में 30 मिलियन की बढ़ोतरी के बावजूद देशी उर्दू वक्ताओं की संख्या में गिरावट हुई है। "
देवी की मानें तो मणिपुरी बोलने वालों में वृद्धि के लिए अंतरराष्ट्रीय आप्रवासन को जिम्मेदार माना जा सकता है। मणिपुर में विदेशी बसते हैं और और भारतीय पासपोर्ट प्राप्त करने की उम्मीद में मणिपुरी सीखते हैं।और 2007 में चुनावी घोटाले के कारण गुजराती वक्ताओं की संख्या अधिक रिपोर्ट हो सकती है, जिसमें बड़ी संख्या में फर्जी मतदाता पहचान पत्रों की सूचना मिली थी।
देवी कहते हैं, "किसी भाषा की उपस्थिति को आंकने का एक बेहतर तरीका उस भाषा में इंटरनेट पर वेबसाइटों की संख्या को देखना है।"
(पल्लापोथू ‘सिम्बियोसिस स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स’से एक एमएससी छात्र हैं और इंडियास्पेंड में इंटर्न है।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 28, जून 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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