हिमालय के छोटे राज्य सिक्किम ने ग्रोथ के लिए लगाया बढ़ा दांव, त्रासदी का खतरा
देश में गुजरात के अलावा शायद ही कोई राज्य ग्रोथ के लिए मॉडल के रुप में जाना जाता है। लेकिन पूर्वोत्तर भारत का एक छोटा सा राज्य सिक्किम है जो अपने मॉडल के आधार पर सबसे तेज ग्रोथ करने वाले राज्यों में से एक बन चुका है। सिक्किम आकार में गोवा से करीबा दोगुना बड़ा है। यह राज्य हिमालय क्षेत्र के राज्यों में सबसे ज्यादा आधुनिक, शिक्षित, स्वस्थ , संपन्न और साफ-सुथरा है। यही नहीं इस साल सिक्किम देश का ऐसा पहला राज्य बन गया है, जहां सभी घरों में शौचालय है। राज्य की यह प्रगति बहुत कम चर्चा में रहने और पांच बार से सिक्किम के मुख्यमंत्री रह चुके पवन चामलिंग के 20 साल के कार्यकाल का गवाह रहा है। हालांकि इस दौरान चामलिंग विवादों के साये में भी रहे हैं। साल 2007-2012 के दौरानसिक्किम की विकास दर 22 फीसदी के करीब रही ही है। जबकि इसी अवधि में भारत की औसतन ग्रोथ 8 फीसदी रही है। पिछले 6 साल में राज्य में गरीबी 20 फीसदी कम होकर 8.19 फीसदी पर आ गई है। अगले दो सालों में चामलिंग ने वादा किया है कि उनका राज्य गरीबी से मुक्त हो जाएगा।
टेबल-साल 2010-11 से 2013-14 के बीच सबसे ज्यादा विकास दर हासिल करने वाले राज्य
Source: Planning commission, GSDP:Gross State Domestic Product, Figures in %
सिक्किम में बेरोजगारी एक अहम समस्या है। राज्य में 15-29 साल की उम्र का हर चार में से एक युवा बेरोजगार है। राज्य की 35 फीसदी आय का स्रोत पानी है।
साल 2015 तक चामलिंग सरकार का लक्ष्य है कि वह राज्य की प्रमुख नदी तीस्ता के 175 किलोमीटर लंबे क्षेत्र से सालाना करीब 900 करोड़ रुपये की कमाई बिजली उत्पादन के जरिए करे। जल विद्युत से होने वाले कमाई में राज्य की हिस्सेदारी 12-15 फीसदी के करीब है। जो कि उत्पादन कर रहे या फिर निर्माणरत कुल 26 विद्युत परियोजनाओं की तुलना में है।
टेबल- सिक्किम में निर्माणधीन जल विद्युत परियोजनाएं
Source: Affidavit reply from Sikkim power and energy department to a PIL
इन प्रोजेक्ट में सरकार की हिस्सेदारी 12-26 फीसदी है, जबकि बाकी की हिस्सेदारी निजी कंपनियों की है। सिक्किम साल 2012 तक राज्य की कुल बिजली मांग 409 मेगावॉट को पूरी करने के बाद 175 मेगावॉट अतिरिक्त बिजली को उत्तरी ग्रिड को बेच चुका है। चल रही परियोजनाओं के जो आंकड़े दिए गए हैं, उसके अनुसार 26 प्रोजेक्ट को पूरा करने के बाद राज्य करीब 4190 मेगावॉट बिजली का उत्पादन कर सकेगा। इस महत्वाकांक्षा को पूरा होने के रास्ते में पारिस्थतिकी और पर्यावरणीय संबंध विवाद अड़चने पैदा कर रहे हैं। साल 2011 में आए भयंकर भूकंप की वजह से सिक्किम पहले से ही अपनी 1500 करोड़ रुपये की कमाई की संभावना को खोकर 900 करोड़ रुपये पर आ चुका है। एक अन्य मुद्दा जो तेजी से उभर रहा है कि जल विद्युच प्रोजेक्ट में देरी होने से जहां प्रोजेक्ट की लागत बढ़ी है वहीं उस पर कर्ज भी बढ़ रहा है। इस मामले पर सिक्किम के पूर्व मुख्य सचिव सोनम पी.वांगडी ने कहा कि आप में मुझे बताओं की इतनी सारी बाधाओं को देखते हुए कौन प्रोजेक्ट में रुचि लेगा। ऐसे में बिजली की बहुत थोड़ी-मात्रा में ही खरीद-फऱोख्त की संभावना है। बैंकों को ऐसा लग रहा है कि कई प्रोजेक्ट में लगी उनकी पूंजी गैर निष्पादित संपत्तियों में तब्दील हो जाएगी।
विवाद, कर्ज और अड़ियल रवैया
उत्तरी सिक्किम में तीस्ता-3 जल विद्युत प्रोजेक्ट का निर्माण पीपीपी मॉडल के तहत तीस्ता ऊर्जा लिमिटेड राज्य सरकार के साथ मिलकर किया जा रहा है। जिसको लेकर एक विवाद अक्टूबर में साल 2014 के दौरान सामने आया। यह प्रोजेक्ट सिक्कित के लिए गले की फांस बनता जा रहा है। इस प्रोजेक्ट में राज्य सरकार के अलावा कई भारतीय और विदेशी कंपनियों की पूंजी लगी है। जिसमें मार्गेन स्टेनले, गोल्डमैन सैक्स और एवरस्टोन कैपिटल शामिल हैं। इस प्रोजेक्ट के जरिए सिक्किम को अपनी ऊर्जा जरुरतों के लिए केवल 15 फीसदी बिजली की जरूरत होगी। जबकि बाकी बिजली , ऊर्जा संकट से जूझ रहे उत्तर भारत के राज्यों में सुदूर राजस्थान तक पहुंचाई जाएगी। तीस्ता -3 की होल्डिंग कंपनी वरूणा इनवेस्टमेंट ने प्रोजेक्ट में हो रही देरी , उस कारण बढ़ती लागत को देखते हुए केंद्रीय बिजली मंत्री पीयूष गोयल से भी पूरे मामले में दखल देने की अपील की है। सिक्किम सरकार ने इस मामले पर अपना जवाब देते हुए कहा है कि अगर दूसरे साझेदार प्रोजेक्ट से अलग होना चाहते हैं, तो राज्य सरकार प्रोजेक्ट में अपनी हिस्सेदारी 26 फीसदी से बढ़ाकर 100 फीसदी करने के लिए तैयार है। सिक्किम पॉवर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इंडिया स्पेंड को बताया कि राज्य सरकार प्रोजेक्ट को साल 2015 तक पूरा करने के लिए कटिबद्ध है। ऐसी परिस्थिति में जब दूसरे साझेदार अपनी हिस्सेदारी को नहीं बरकरार रखना चाहते हैं, राज्य सरकार पूरी हिस्सेदारी लेने के लिए तैयार है। राज्य सरकार का यह रैवया अड़ियल जान पड़ता है। खास तौर पर जब राज्य पहले ही पॉवर फाइनेंस कॉरपोरेशन के 800 करोड़ रुपये के कर्ज तले दबा है। राज्य की जिन 6 प्रोजेक्ट्स में करीब 1500 करोड़ रुपये की हिस्सेदारी है। उसका 75-80 फीसदी हिस्सा कर्ज के रूप में है। जिसे उसे चुकाना है। ऐसे में राज्य सरकार के लिए प्रोजक्ट में हिस्सेदारी बढ़ना करीब-करीब नामुमकिन है। ऐसा तभी संभव है जब वह नए कर्ज ले सके। राज्य में चल रहे कुल 26 प्रोजेक्ट में से केवल 6 में राज्य सरकार की बड़ी हिस्सेदारी है।
इस मुद्दे पर चामलिंग ने इंडिया स्पेंड को साक्षात्कार नहीं दिया, जब राज्य के ऊर्जा सचिव एम.के.सुब्बा ने कहा कि इसकी जानकारी सूचना के अधिकार से ली जा सकती है। संसद में दिए गए लिखित जवाब में केंद्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने तीस्ता-3 प्रोजेक्ट को साल 2015 में पूरा होने की बात कही है। लगातार दे हो रहा प्रोजेक्ट पूरा होने की कगार पर है। ऐसे में क्या सिक्किम हर साल पानी से क्या 900 करोड़ रुपये की कमाई कर सकता है, इस रास्ते में यह समस्याएं हैं-
900 करोड़ रुपये की सालाना कमाई के लिए सिक्किम को हर सला करीब 300 करोड़ यूनिट बिजली बेचनी होगी। यदि ऐसा माना जाय, कि सिक्किम इस प्रोजेक्ट के जरिए अपनी 15 फीसदी बिजली की हिस्सेदारी प्राप्त कर सकेगा। ऐसे में प्रोजेक्ट से सालाना 2000 करोड़ यूनिट बिजली का उत्पादन करना होगा। औसतन भारत में जल विद्युत प्रोजेक्ट से 1 मेगावाट बिजली उत्पादन के लिए 33.2 लाख यूनिट बिजली की जरूरत होती है। ऐसे में 2000 करोड़ यूनिट के लिए सिक्किम को करीब 6000 मेगावॉट बिजली उत्पादन क्षमता की जरूरत है। यदि राज्य सरकार अपनी कमाई का आधा हिस्सा यानी 450 करोड़ की कमाई बिजली की बिक्री से पाने की उम्मीद करें, तो भी सिक्किम को अभी भी लक्ष्य पाने के लिए 3000 मेगावाट क्षमता की जरूरत होगी। जो कि साल 2020 से पहले पूरी नहीं हो सकेगी।
वादा औऱ तीस्ता की हकीकत
सिक्किम की आर्थिक हकीकत की तस्वीर इन आंकड़ो से सामने आती है- तीस्ता के जरिए करीब 4248 मेगावॉट बिजली का उत्पादन किया जा सकता है। जिसमें से 669 मेगावॉट बिजली की उत्पादन पहले से किया जा रहा है। जबकि 2322 मेगावॉट क्षमता निर्माणधीन हैं। लेकिन यह सभी प्रोजेक्ट देरी होने से अपनी लागत से कही ज्यादा पहुंच चुके हैं। केंद्रीय विद्युत नियामक की सितंबर 2014 की रिपोर्ट के अनुसार केवल तीस्ता -3 प्रोजेक्ट की ही लागत प्रोजेक्ट में देरी होने से दोगुनी होकर 5702 से बढ़कर 11382 करोड़ हो गई है। नौ और प्रोजेक्ट जो पिछड़ चुके हैं, उनकी मूल लागत और मौजूदा लागत में कोई बदलाव नहीं दिखाया गया है, इसका मतलब है कि उनकी मौजूदा लागत नहीं आंकी गई है। तीस्ता-4 प्रोजेक्ट जिसे लांको बना रही है, वह प्रोजेक्ट पिछड़ जाने से बैंकों का कर्ज नहीं लौटा पा रही है। तीस्ता -4 प्रोजेक्ट को पूरा होने का वास्तविक समय 2012-13 था, जो कि अब 2016-17 पहुंच चुका है। लेकिन सीईए की सूची में उसकी लागत अभी भी 3282.08 करोड़ रुपये ही दिखाई जा रही है। जबकि प्रोजेक्ट की खुद की वेबसाइट उसे साल 2011-12 में कमीशन होने की बात कह रही है। इस तरह की अव्यवस्था के कारण ही रेटिंग एजेंसी इक्रा ने भी तीस्ता-3 प्रोजेक्ट को सबसे ज्यादा जोखिम वाले प्रोजेक्ट की श्रेणी में रखा है। डैंस एनर्जी के आपरेशंस डायरेक्टर पी.बी, प्रवीण कुमार का कहना है कि जल विद्युत कारोबार हमेशा से उच्च जोखिम वाला रहा है। अमूमन एक प्रोजेक्ट को पूरा होने में 8 साल का समय लगता है। लेकिन महंगाई, क्लीयरेंस ब्याज दरों में बदलाव और प्राकृतिक आपदाओं की आशंकाओं को देखते हुए लागत में बढ़ोतरी हो जाती है।
बढ़ रहा है खतरा
जैसा कि इंडिया स्पेंड ने पहले भी रिपोर्ट किया है कि सिक्किम एक भूकंप से प्रभावित और उसके जोखिम वाला क्षेत्र हैं, ऐसे में तीस्ता नदीं पर निर्माणधीन प्रोजेक्ट से खतरा भी बढ़ रहा है। तीस्त-3 जैसे प्रोजेक्ट में बिजली का उत्पादन नदी के प्रवाह से उत्पन्न होने वाले ताकत से किया जा रहा है। इसका मतलब है कि हम नदी को एक सुरंग के जरिए गुजार रहे हैं। सरकार का आंकलन है कि जब प्रोजेक्ट्स की सुरंग तैयार हो जाएंगी तीस्ता को करीब 52 किलोमीटर जमीन के अंदर जाना होगा। जो कि सिक्किम की कुल लंबाई का करीब एक तिहाई होगा। ऐसे में साफ है कि सिक्किम में भूकंप का जोखिम और बढ़ जाएगा।
सवाल जो लगातार बने हुए हैं-
उत्तरी सिक्किम से लेकर दक्षिण सिक्क्मि के बीच तीस्ता की लंबाई 175 किलोमीटर है। मात्रा 175 किलोमीटर के बीच 25 जल विद्युत प्रोजेक्ट बनाने की मंजूरी देने पर बड़े पैमाने पर आलोचना की जा रही है। यहां तक की केंद्र सरकार की सलाहकार समूह ने भी इस फैसले की आलोचनी की थी। नेशनल बोर्ड ऑफ वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट कमेटी ने साल 2013 में सिक्किम में बांध बन रहे स्थलों का दौरा किया, तो उसने कहा है कि नदी क्षेत्र में जल विद्युत प्रोजेक्ट बनाने के लिए किसी भी तरह के पारिस्थितिकी पहलुओं का ध्यान नहीं रखा गया है। कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार तीस्ता-3 प्रोजेक्ट पर हमने काफी खतरनाक परिस्थितियों में निर्माण कार्यों को देखा है। निर्माण की वजह से लगातार निकल रहे मलबे की वजह से भयानक आपदा की आशंका बढ़ती जा रही है। तीस्ता के दोहन का जो तरीका चामलिंग ने जो तरीका अपनाया है, वह बहुत बड़ा जुआ है। यही नहीं अब लिए कर्ज की देनदारी भी बढ़ती जा रही है। ऐसे में सिक्किम का खास मॉडल इस समय सबसे ज्यादा सवालों के घेरे में है।
अपडेट—लेख में इस्तेमाल किए गए टेबल में तीस्ता-4 औऱ तीस्ता-5 प्रोजेक्ट का मौजूदा स्टेट्स संशोधित किया गया है।
सौमिक दत्ता गंगटोक के रहने वाले पत्रकार है। वह कई वर्षों से पर्यावरण और ऊर्जा मुद्दो पर लिखते रहे हैं। उनसे संपर्क के लिए इस ई-मेल आई डी पर कांटैक्ट किया जा सकता है।dattauni@gmail.com
Image Credit: Anandoart | Dreamstime.com
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