नई दिल्ली/बेंगलुरुः सरकार ने कहा है कि नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिज़ंस (एनआरसी) में नागरिकता साबित करने के लिए जन्म तिथि और जन्म स्थान से संबंधित कोई भी दस्तावेज़ जमा कराया जा सकता है, लेकिन इंडियास्पेंड ने अपने विश्लेषण में पाया कि बड़ी संख्या में भारतीयों, ख़ासतौर पर बुज़ुर्ग नागरिकों के पास जन्म प्रमाण पत्र नही हैं।

नेशनल फ़ैमिली हेल्थ सर्वे (एनएफएचएस-4) के मुताबिक़, 2015-16 में पांच साल से कम उम्र के हर पांच में से तीन बच्चों (62.3%) के जन्म को रजिस्टर कराया गया और उनके पास जन्म प्रमाण पत्र था, यह इस बारे में उपलब्ध ताज़ा डेटा है। 2005-06 में यह आंकड़ा 26.9% था।.

इन आंकड़ों से पता चलता है कि 2005 से पहले जन्मे बच्चों के पास जन्म प्रमाण पत्र (एक व्यक्ति की क़ानूनी पहचान का पहला प्रमाण) होने की संभावना कम है क्योंकि पंजीकरण की दरों में सुधार, हाल के कुछ साल में हुआ है। हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि सबसे ग़रीब तबकों, अनुसूचित जातियों और आदिवासियों या फिर अशिक्षित परिवारों के बच्चों के पास जन्म प्रमाण पत्र होने की संभावना और कम है।

असम के एनआरसी में जन्म प्रमाण पत्र का सबसे ज़्यादा इस्तेमाल हुआ

सरकार ने कहा है कि जन्म प्रमाण पत्र नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिज़ंस (एनआरसी) के संबंध में जन्म की तिथि और स्थान के लिए एक प्रमाण के तौर पर ‘मान्य’ है। यह उन अन्य दस्तावेज़ों की एक लिस्ट में शामिल है जिनमें वोटर कार्ड, पासपोर्ट, आधार, ड्राइविंग लाइसेंस, बीमा के कागज़ात, स्कूल लीविंग सर्टिफ़िकेट और ज़मीन/घर के दस्तावेज़ “शामिल होने की संभावना” है।

यह जानकारी 20 दिसंबर, 2019 को जारी प्रेस इनफ़ार्मेशन ब्यूरो (पीआईबी) की एक विज्ञप्ति में दी गई थी। यह केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक इंटरव्यू में कही गई बात के विपरीत है कि आधार, वोटर कार्ड और पासपोर्ट नागरिकता को साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।

“अगर आपके पास अपने जन्म के विवरण नहीं हैं, तो आपको अपने माता-पिता के बारे में समान विवरण उपलब्ध कराने होंगे। लेकिन माता-पिता की ओर से या उनका कोई दस्तावेज़ जमा करने की कोई बाध्यता नहीं है,” पीआईबी की विज्ञप्ति में कहा गया था।

“यह (जन्म प्रमाण पत्र) एनआरसी में बच्चों के लिए मान्य सबसे लोकप्रिय दस्तवेज़ों में से एक था,” असम के गुवाहाटी में रहने वाले मानवाधिकार अधिवक्ता, अमन वादुद ने हाल ही में राज्य में हुए एनआरसी के बारे में बताया। “जिन बच्चों की उम्र 18 से कम है या जिनके पास कोई बोर्ड (स्कूल परीक्षा) प्रमाण पत्र नहीं है, उनके लिए जन्म प्रमाण पत्र माता-पिता के साथ उनका रिश्ता बताने का इकलौता दस्तावेज़ है।”

बहुत से जन्म और मृत्यु का अभी भी पंजीकरण नहीं

अभी भी देश में सभी जन्म और मृत्यु का पंजीकरण नहीं होता है। थिंक-टैंक, ब्रूकिंग्स इंडिया में रिसर्च डायरेक्टर, शमिका रवि और इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टीट्यूट (आईएसआई) में एसोसिएट प्रोफ़ेसर, मुदित कपूर ने 26 दिसंबर, 2019 को इंडियन एक्सप्रेस में लिखा था कि जिन राज्यों में नवजात शिशुओं की मृत्यु के पंजीकरण की व्यवस्था ख़राब है वहां नवजात शिशुओं की मृत्यु दर भी बहुत अधिक है।

उन्होंने लिखा था कि देश में जन्म और मृत्यु के पंजीकरण में मौजूदा अंतर को देखते हुए, “एनआरसी शुरू करने के लिए वर्तमान सरकारी सुविधाएं पर्याप्त नहीं हैं। इससे गड़बड़ी, भ्रम की स्थिति बनेगी।”

18 साल से कम उम्र के बच्चों के पास मतदाता पहचान पत्र नहीं होता है। अगर उन्होंने कक्षा 10 या 12 की बोर्ड परीक्षा नहीं दी है (तो उनके पास वह प्रमाण पत्र भी नहीं हैं), इसके बाद जन्म प्रमाण पत्र ही जन्म के स्थान का इकलौता सबूत है।

शिक्षा का अधिकार कानून में स्कूल में एडमिशन के लिए किसी दस्तावेज़ की आवश्यकता नहीं होने के स्पष्ट करने के बावजूद, देशभर में बिना जन्म प्रमाण पत्र वाले बच्चों को (इनमें से अधिकतर कमज़ोर तबके के हैं) प्राइवेट स्कूलों में एडमिशन लेने में मुश्किलें आती हैं, डा. बी आर अंबेडकर यूनिवर्सिटी, दिल्ली में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर दीपा सिन्हा ने बताया। “नागरिकता जितनी महत्वपूर्ण चीज़ के साथ जन्म के सबूत को जोड़ना काफ़ी परेशान करने वाला होगा,” उनका कहना था।

बिना पंजीकरण वाले अदृश्य बच्चे

जन्म और मृत्यु पंजीकरण कानून, 1969 के तहत जन्म और मृत्यु का पंजीकरण 21 दिन के अंदर कराना अनिवार्य है; हालांकि, रजिस्ट्रार जनरल ऑफ़ इंडिया के सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम की ओर से दिए गए हाल के आंकड़ों से पता चलता है कि 2017 में जन्म के 84.9% और मृत्यु के 79.6% का ही पंजीकरण हुआ था।

जिन बच्चों के जन्म का पंजीकरण नहीं हुआ है उनके बारे में कोई भी जानकारी नहीं मिलती, यूनिसेफ़ के मुताबिक़

दुनियाभर में ऐसे 16.6 करोड़ बच्चे ऐसे हैं जिनके जन्म का पंजीकरण नहीं हुआ है। भारत उन पांच देशों (डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कांगो, इथोपिया, नाइजीरिया और पाकिस्तान) में से एक है जहां ऐसे आधे बच्चे रहते हैं। यूनिसेफ़ की 2019 की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, भारत में पिछले पांच साल में पांच साल से कम उम्र के लगभग 2.44 करोड़ बच्चों के जन्म का पंजीकरण नहीं हुआ है।

जन्म का पंजीकरण एक बच्चे को क़ानूनी मान्यता देता है और जन्म प्रमाण पत्र इस प्रक्रिया का सुबूत है, अक्सर यह बच्चे के लिए क़ानूनी पहचान का पहला और एकमात्र सुबूत होता है। किसी बच्चे के जन्म को बिना जन्म प्रमाण पत्र के भी पंजीकृत किया जा सकता है।

जन्म के समय एक बच्चे का पंजीकरण नहीं होने पर उसकी बाद में भी गणना हो सकती है। “जनगणना में उनकी गिनती तभी होगी अगर वह बच जाते हैं,” इंडियन स्टैटिस्टिकल इंस्टीट्यूट (आईएसआई) के मुदित कपूर ने बताया। “शिशु मृत्यु दर (इन्फ़ेंट मोर्टेलिटी रेट) यानी आईएमआर और पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर अधिक होने के कारण, बहुत से बच्चों की शायद कभी गिनती नहीं होती।”

“जन्म पंजीकरण में तेज़ी 2000 के दशक में अस्पतालों और स्वास्थ्य केंद्रों में बच्चों के जन्म के बढ़ने के बाद ही आई है,” डा बी. आर. अंबेडकर यूनिवर्सिटी, दिल्ली की सिन्हा ने बताया। “उससे पहले अधिकतर जन्म घरों या ऐसे स्वास्थ्य केंद्रों में होते थे जिनका जन्म पंजीकरण के साथ तालमेल नहीं था,” उन्होंने बताया।

साल 2000 से पहले जन्मे बहुत से लोगों के पास जन्म प्रमाण पत्र या स्कूल लीविंग सर्टिफ़िकेट नहीं होंगे, या उनके पास एक से अधिक दस्तावेज़ ऐसे भी हो सकते हैं जिनमें अलग-अलग जन्म तिथियां हों। “इसका कारण कोई ग़लत इरादा नहीं है, बल्कि उनके माता-पिता के पास उनके जन्म प्रमाण पत्र नहीं होने के कारण ऐसा है,” सिन्हा ने कहा।

सभी जन्मों का पंजीकरण क्यों नहीं होता?

अगर एक चिकित्सा अधिकारी के प्रभार वाले एक स्वास्थ्य केंद्र में जन्म होता है तो जन्म के पंजीकरण की प्रक्रिया आसान होती है। म्युनिसिपैलिटी और पंचायत के स्तर पर भी स्थानीय प्रशासन जन्म का पंजीकरण कर सकता है। सामुदायिक कर्मी भी जन्म की सूचना रजिस्ट्रार को दे सकते हैं। जन्म से 21 दिन की निर्धारित अवधि के बाद भी घर पर हुए जन्म के पंजीकरण के भी प्रावधान हैं।

जैसा हमने पहले बताया है, सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (सीआरएस) के आंकड़ों के मुताबिक़, भारत में 2017 में जन्म पंजीकरण 84.9% था, जो 2008 के 76.4% से अधिक है।

साल 2000 में यह दर 56.2% थी, जिसका अर्थ है कि साल 2000 में जन्मे बच्चों में से आधे से कुछ अधिक के जन्म का पंजीकरण हुआ है।

नौ राज्य और केंद्र शासित प्रदेश ऐसे हैं जिनमें जन्म के पंजीकरण की दर राष्ट्रीय दर से कम है। इनमें से चार बड़े राज्य हैं। यह दर उत्तर प्रदेश में 61.5%, बिहार में 73.7%, मध्य प्रदेश में 74.6% और तत्कालीन जम्मू और कश्मीर राज्य में 78.8% है।

2017 सीआरएस रिपोर्ट में केवल 20 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने जन्म और मृत्यु प्रमाण पत्रों को जारी करने के बारे में जानकारी दी थी। जानकारी नहीं देने वाले राज्यों ने इसके पीछे कर्मचारियों की कमी, सॉफ़्टवेयर और नेटवर्क में समस्याएं जैसे कारण बताए थे।

एनएफ़एचएस-4 के मुताबिक़, 2015-16 तक पांच साल से कम उम्र के 79.4% बच्चों के जन्म का पंजीकरण हुआ था, लेकिन इसमें पांच बच्चों में से केवल तीन (62.3%) के पास जन्म प्रमाण पत्र के तौर पर उस पंजीकरण का सबूत था। इससे पता चलता है कि पांच साल से कम उम्र के हर छह बच्चों में से एक (17.4%) के जन्म का पंजीकरण तो हुआ था, लेकिन उनके पास जन्म प्रमाण पत्र नहीं था।

जन्म पंजीकरण नहीं होने के कई कारण हैं -- कुछ देशों में सुविधाओं की कमी है या परिवार निकट के पंजीकरण केंद्र तक जाने में सक्षम नहीं हैं।

इसके साथ ही, सरकार की ओर से उपलब्ध कराई जाने वाली सामाजिक सेवाओं के लिए जन्म प्रमाण पत्र की आवश्यकता नहीं होती। “कमज़ोर तबके के अधिकतर बच्चे दूर दराज़ के क्षेत्रों में रहते हैं जहां पंजीकरण केंद्र कम हैं,” यूनिसेफ़ में सोशल पॉलिसी के प्लानिंग, मॉनिटरिंग और इवैल्यूएशन के विशेषज्ञ ने इंडियास्पेंड को ईमेल पर बताया।

“हम किसी प्रकार के पंजीकरण (जन्म या मृत्यु) पर ध्यान नहीं देते। यही कारण है कि हमें ग़ायब हुई कम उम्र की लड़कियों के बारे में जानकारी नहीं है,” एक वरिष्ठ सरकारी स्वास्थ्य अधिकारी ने अपना नाम ज़ाहिर नहीं करने की शर्त पर बताया। “जब तक आप जन्म पंजीकरण नहीं करते तब तक आपको वृद्धि दर, परिवार नियोजन कार्यक्रमों की सफ़लता या मृत पैदा होने वाले शिशुओं की संख्या का पता नहीं चलता,” उन्होंने बताया।

अगर जन्म पंजीकरण नहीं हुआ है और परिवार को बाद में जन्म प्रमाण पत्र की आवश्यकता होती है, तो जन्म का बाद में पंजीकरण कराया जा सकता है, कपूर ने बताया।

एनआरसी की संभावना के साथ महाराष्ट्र के नासिक की मालेगांव म्युनिसिपैलिटी में जन्म प्रमाण पत्रों के आवेदन की संख्या में छह गुना बढ़ोत्तरी हुई है; इसी तरह की बढ़ोत्तरी गुजरात के सूरत और मोदासा और कोलकाता में देखी गई है, जैसा कि इंडियन एक्सप्रेस ने 29 दिसंबर, 2019 की रिपोर्ट में बताया था।

असम में भी जन्म प्रमाण पत्र के लिए आवेदन बढ़े हैं। “आवेदन करने पर जन्म प्रमाण पत्र दिए गए थे, जन्म के 15 साल बाद भी,” गुवाहाटी से मानवाधिकार अधिवक्ता वादुद ने बताया। लेकिन बहुत से मामलों में निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया, इसके कारण बाद में प्रमाण पत्र रद्द कर दिए गए और लोग एनआरसी से बाहर हो गए।

निर्धन, कमज़ोर तबके के पास जन्म प्रमाण पत्र नहीं होने की अधिक संभावना

भारत में शहरी क्षेत्रों में रहने वाले पांच साल से कम उम्र के सभी बच्चों में से 77% के जन्म का पंजीकरण हुआ था और उनके पास जन्म प्रमाण पत्र थे, एनएफ़एचएस-4 के मुताबिक़। इसकी तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में यह आंकड़ा 56.4% था। परिवार की संपत्ति के मुताबिक़ भी इस आंकड़े में बड़ा अंतर हैः सबसे धनी समूह में पांच साल से कम उम्र के 82.3% बच्चों के जन्म का पंजीकरण हुआ था और उनके पास जन्म प्रमाण पत्र था, जबकि सबसे निर्धन समूह में यह आंकड़ा केवल 40.7% का था।

इसके अलावा, सबसे निर्धन समूह से संबंधित प्रत्येक चौथे बच्चे (23%) के जन्म का पंजीकरण होने के बावजूद उसके पास जन्म प्रमाण पत्र नहीं था, इसकी तुलना में सबसे धनी समूह में यह आंकड़ा 10.5% था, जैसा कि एनएफ़एचएस-4 के आंकड़ों से पता चलता है।

अनुसूचित जातियों में 60.2% और अनुसूचित जनजातियों में 55.6% के जन्म का पंजीकरण हुआ था और उनके पास जन्म प्रमाण पत्र थे। इसकी तुलना में समाज में बेहतर दर्जे वाली ‘अन्य’ जातियों में यह आंकड़ा 71.9% था।

इसके साथ ही, अशिक्षित मांओं वाले पांच में से केवल दो (41.4%) बच्चों के जन्म का पंजीकरण हुआ था और उनके पास जन्म प्रमाण पत्र था। इसकी तुलना में जिन बच्चों की मांओं के पास 12 साल या अधिक की शिक्षा थी उनमें चार में से तीन (77.6%) के पास जन्म प्रमाण पत्र था।

“जन्म प्रमाण पत्र की संख्या कम होने का कारण भारत में माता-पिता या अभिभावकों की (जन्म) प्रमाण पत्र, दूसरी ज़रूरतों के लिए बाद में लेने की आदत हो सकता है,” इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन स्टडीज़, मुंबई के प्रोफ़ेसर, चंद्र शेखर ने बताया। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह उनकी व्यक्तिगत राय है। उन्होंने बताया कि कुछ राज्यों में जन्म का पंजीकरण पहले ही 99% है और अगर सर्वे से एक या दो साल पहले जन्मे बच्चों का विश्लेषण किया जाए तो यह और अधिक होगा।

(स्वागता, इंडियास्पेंड/हेल्थचेक के साथ स्पेशल कॉरेसपॉन्डेंट हैं और दिशा, इंडियास्पेंड के साथ एक रिपोर्टिंग फेलो हैं।)

यह रिपोर्ट मूलत: अंग्रेज़ी में 3 जनवरी 2020 को IndiaSpend पर प्रकाशित हुई है।

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