1,000 में से सिर्फ एक भारतीय को साफ हवा उपलब्ध: नया अध्ययन
एक नए अध्ययन के मुताबिक, वर्ष 2015 में, 1000 भारतीयों में से केवल एक ऐसे इलाके में रहते थे, जहां पीएम 2.5 का प्रदूषण स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानक के सुरक्षित स्तर से नीचे था।
इसी तरह भारत में 21 राज्यों और छह केंद्र शासित प्रदेशों की आबादी के लिए वर्ष 2015 में पीएम 2.5 का स्तर भारतीय वार्षिक मानकों ( या सुरक्षित स्तर ) से ऊपर था, जैसा कि ‘इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी-बॉम्बे’ (आईआईटी-बी), ‘हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट’ (हेइ) और ‘इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन’ (आईएचएमई), के नेतृत्व में किए गए अध्ययन, ‘बर्डन ऑफ डिजिज एट्रिब्युटेबल टू मेजर एयर पॉल्युशन सोर्सेज इन इंडिया’ में बताया गया है।
वर्ष 2015 में, पीएम 2.5 ( महीन कण जो मानव बाल से 30 गुना ज्यादा बारीक होता है और हमारे शरीर को नुकसान पहुंचा सकता है ) प्रति घन मीटर (माइक्रोग्राम / एम 3) पर 74 माइक्रोग्राम था। यह डब्ल्यूएचओ के वार्षिक मानक 10 μg / m3 की तुलना में सात गुना ज्यादा है और भारतीय मानक 40 μg / m3 की तुलना में दो गुना ज्यादा है।
वर्ष 2015 में, भारत में पर्टिकुलेट प्रदूषण से होने वाले चार मौतों में से एक घर में कारण बायोमास का जलना था, जैसा कि अध्ययन में बताया गया है। प्रदूषण संबंधित मौतों में से 15 फीसदी बिजली संयंत्रों और उद्योगों में कोयला जलाने के कारण हुई है। वर्ष 2015 में इन स्रोतों ने 437,000 लोगों की जान ली है, जिनमें से ज्यादातर ग्रामीण इलाकों से हैं।
वर्ष 2015 को आधार वर्ष के रूप में लेकर, तीन साल के अध्ययन में वायु प्रदूषण के सभी प्रमुख स्रोतों से पीएम 2.5 एक्सपोजर को समझने की कोशिश की गई है और ‘ग्लोबल बोर्ड ऑफ डिसीज’ (जीबीडी) डेटा पर आधारित करके उनके स्वास्थ्य प्रभावों का अनुमान लगाने की कोशिश की गई है।
अध्ययन का नेतृत्व करने वाले चन्द्र वेंकटरमन ( आईआईटी-बी में जलवायु अध्ययन कार्यक्रम के रासायनिक अभियांत्रिकी और संयोजक के प्रोफेसर ) कहते हैं कि "सभी स्रोतों से उत्सर्जन के इस व्यवस्थित विश्लेषण से पता चलता है कि परिवेश वायु प्रदूषण को स्थानीय स्रोतों (जैसे परिवहन और ईंट भट्टों) से, क्षेत्रीय स्रोतों (जैसे आवासीय बायोमास, कृषि अवशेषों और औद्योगिक कोयला) से बढ़ावा मिलता है।"
वर्ष 2015 में, भारत में 1.09 मिलियन लोगों की मृत्यु पीएम 2.5 प्रदूषण के कारण हुई थी, जैसा कि जीबीडी के आंकड़ों से पता चलता है। यहां तक कि एक 'आकांक्षात्मक' परिदृश्य के तहत सबसे सक्रिय कटौती के साथ यह अनुमान लगाया गया है कि 2050 में पीएम 2.5 एक्सपोजर से 2.5 मिलियन लोगों की मृत्यु हो सकती है।
पर्टिकुलेट प्रदूषण का मुख्य कारण धुआं और धूल
जैसा कि हमने कहा है, पीएम 2.5 एक्सपोजर से होने वाली चार मौतों में से एक मौत आवासीय बायोमास जलाने से हुई है। साथ ही 2015 में कुल पीएम 2.5 तक 74 माइक्रोग्राम / एम 3 के एक्सपोजर में 24 फीसदी का योगदान रहा है।
उद्योग से आने वाले 7.7 फीसदी और बिजली उत्पादन से 7.6 फीसदी के साथ कोयला दहन अगला सबसे बड़ा योगदानकर्ता रहा है। एंथ्रोपोजेनिक धूल यानी मानव गतिविधियों से संबंधित धूल, सड़कों के धूल, कोयला जलाए जाने के बाद के राख जैसी चीजों ने लगभग 9 फीसदी उत्सर्जन का योगदान दिया है।
कुछ उत्तरी और मध्य भारतीय राज्यों तक अभ्यास सीमित होने के बावजूद पीएम2.5 के राष्ट्रव्यापी जोखिम स्तर में कृषि जलावन का 5 फीसदी से अधिक का योगदान रहा है।
भात में पीएम 2.5 के एक्सपोजर से होने वाली मौत, वर्ष 2015
Source: Burden of Disease Attributable to Major Air Pollution Sources in India
अध्ययन में यह भी अनुमान लगाया गया था कि वर्ष 2015 के समय में कुल पीएम 2.5 एक्सपोजर में हवा से उड़ने वाली खनिज धूल ( ज्यादातर भारत के बाहर के स्रोतों से ) की 30 फीसदी की हिस्सेदारी है।
अध्ययन में प्राकृतिक धूल के बारे में स्पष्ट किया गया है कि " हवा से उड़ने वाले धूल भी यकीनन मानव गतिविधियों से हिस्सों में आती है, जो मरुभूमि में योगदान देते हैं, उद्हारण के लिए या तो सीधे कृषि या वानिकी पद्धतियों के माध्यम से या अप्रत्यक्ष रूप से जलवायु पर प्रभाव के माध्यम से। "
प्राकृतिक धूल से पीएम 2.5 उत्सर्जन को मापना ‘बहुत अनिश्चित’ है, जैसा कि वेंकटरमन ने इंडियास्पेंड को बताया है। वह आगे कहते हैं, "यदि आप दो अलग-अलग वायु गुणवत्ता मॉडल्स चलाते हैं, तो आपको दो अलग-अलग मात्रा में उत्सर्जन मिलेगा, क्योंकि यहां हवा की गति, मिट्टी के प्रकार, मिट्टी की नमी को ध्यान में रखना पड़ता है। इसलिए इस संख्या को बिल्कुल ठीक समझना कठिन है। " अध्ययन में पाया गया है कि, वर्ष 2015 में, पीएम 2.5 एक्सपोज़र के कारण करीब 75 फीसदी मौते ग्रामीण इलाकों में हुई हैं।
जीबीडी एमएपीएस के कार्य समूह के सह-अध्यक्ष माइकल ब्रूर कहते हैं, "यह स्पष्ट रूप से साबित होता है कि वायु प्रदूषण पूरे भारत की समस्या है, न कि सिर्फ देश के शहरी इलाकों की।"
'आकांक्षात्मक' परिदृश्य में, 2050 में पीएम 2.5 एक्सपोजर के कारण 2.5 मिलियन भारतीयों की मृत्यु होने की संभावना है।यह देखने के लिए कि 2050 में उत्सर्जन और उनके स्वास्थ्य प्रभाव से संबंधित प्रवृत्त कैसे सामने आएंगे अध्ययन में, ऊर्जा उपयोग और प्रदूषण नियंत्रण के लिए अलग-अलग नीतियों के साथ तीन भविष्य के परिदृश्यों का मूल्यांकन किया गया है ( आरईएफ, महत्वाकांक्षी परिदृश्य (एस 2) और आकांक्षात्मक परिदृश्य (एस 3) )।
Source: Burden of Disease Attributable to Major Air Pollution Sources in India
कम से कम आक्रामक नियंत्रण उपायों के साथ, आरईएफ परिदृश्य 2050 में पीएम 2.5 एक्सपोज़र स्तर बढ़कर 106.3 माइक्रोग्राम / एम 3 होगा। और इस तरह 2050 में 3.6 मिलियन लोगों की मौत होने की संभावना है।
यहां तक कि एस-2 ( एक महत्वाकांक्षी परिदृश्य जिसके लिए निरंतर आर्थिक विकास के चेहरे में उत्सर्जन में कमी को प्रमुख प्रतिबद्धताओं की आवश्यकता होगी ) का अनुमान है कि 2050 तक पीएम 2.5 में 10 फीसदी की वृद्धि (81.6 माइक्रोग्राम / एम 3) होनी चाहिए, जिससे कि 2050 में 3.2 मिलियन लोगों की मौत हो सकती है।
वर्ष 2050 तक केवल महत्वाकांक्षी परिदृश्य (एस 3) में आने वाले सबसे सक्रिय कटौती के तहत काफी कम होने का अनुमान है। एस-3 परिदृश्य में पीएम 2.5 एक्सप्लोजर 48.5 माइक्रोग्राम / एम 3 तक कम करने का अनुमान है यानी 2015 की तुलना में 34 फीसदी से अधिक की गिरावट का अनुमान है। इस परिदृश्य में भी 2050 में 2.5 मिलियन लोगों की मौत होने की संभावना है।
टेबल: पीएम 2.5 भविष्य के परिदृश्य में स्तर
table,th,td{
font-size: 12px;
font-family: arial;
border-collapse: collapse;
border: 1px solid black;
}
table{
width:580px;
}
th,td{
text-align:center;
padding:2px;
}
th.center{
text-align:center;
}
tr:nth-child(odd) {
background-color: #f9f9f9;
}
tr:nth-child(even) {
background-color:#fff;
}
th {
background-color: #1f77b4;
color: #FFFFF0;
font-weight: bold;
}
Table: PM 2.5 Levels In Future Scenarios | ||||
---|---|---|---|---|
2015 | REF (2050) | S2 (2050) | S3 (2050) | |
PM 2.5 (µg/m3) | 74 | 106.3 | 81.6 | 48.5 |
Source: Burden of Disease Attributable to Major Air Pollution Sources in India
अध्ययन के अनुसार, “पीएम 2.5 के कारण मृत्यु की संख्या के संदर्भ में रोग का बोझ भविष्य बढ़ने की आशंका है, क्योंकि लोगों की उम्र बढ़ने के साथ वे वायु प्रदूषण के प्रति अतिसंवेदनशील होते चले जाते हैं।”
(भास्कर प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 18 जनवरी 2018 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
हम फीडबैक का स्वागत करते हैं। हमसे respond@indiaspend.org पर संपर्क किया जा सकता है। हम भाषा और व्याकरण के लिए प्रतिक्रियाओं को संपादित करने का अधिकार रखते हैं।
__________________________________________________________________
"क्या आपको यह लेख पसंद आया ?" Indiaspend.com एक गैर लाभकारी संस्था है, और हम अपने इस जनहित पत्रकारिता प्रयासों की सफलता के लिए आप जैसे पाठकों पर निर्भर करते हैं। कृपया अपना अनुदान दें :