11.1 करोड़ लोगों को रोज़गार देने वाले छोटे व्यवसाय क्यों फंस रहे हैं कर्ज के जाल में
नई दिल्ली: वित्त वर्ष 2019-20 के बजट में माइक्रो, स्मॉल और मिडियम एन्टर्प्राइजेज (एमएसएमई) को सरकारी एजेंसियों से होने वाले उनके बिलों के भुगतान और भुगतान की ऑनलाइन ट्रैकिंग के लिए एक नए प्लेटफ़ॉर्म का प्रस्ताव किया गया। लेकिन इस नए प्लेटफ़ॉर्म को प्रभावी बनाने के लिए, मौजूदा मौजूदा ऑनलाइन सिस्टम में आने वाली कुछ समस्याओं को हल किया जाना चाहिए।
एमएसएमई के तहत वो इकाइयां आती हैं जिनका निवेश मैनुफ़ेक्चरिंग क्षेत्र में 10 करोड़ रुपये और सर्विस के क्षेत्र में 5 करोड़ रुपये से कम है।एमएसएमई वार्षिक रिपोर्ट 2018-19 में दिए गए नेशनल सेंपल सर्वे के आंकड़ों के अनुसार, 2015-16 में भारत में 6.34 करोड़ एमएसएमई थे जिन पर 11.1 करोड़ लोगों का रोज़गार टिका था। एमएसएमई की भारत के मैनुफ़ेक्चरिंग आउटपुट में 45% और निर्यात में 49% की भागीदारी है। देश के कुल कुल श्रमबल का 30% का रोज़गार एमएसएमई पर निर्भर है। नेशनल सेंपल सर्वे यानी एनएसओ के डेटा पर किए गए हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि देरी से होने वाले भुगतान की वजह से एमएसएमई कर्ज़ के जाल में फंस जाते हैं और ये इकाइयां बीमार या असफ़ल की श्रेणी में आ जाती है्ं।
"अनइन्कॉर्पोरेटेड नॉन एग्रीकल्चर एन्टर्प्राइज़ेज़” पर नेशनल सेंपल सर्वे के 67वें और 73वें राउंड के आंकड़ों का जब हमने विश्लेषण किया तो सामने आया कि एमएसएमई में लंबित भुगतान 2010-11 में 8.61% था जो 2015-16 में बढ़कर 9.5% हो गया। यह एमएसएमई की दूसरी सबसे गंभीर समस्या है। पहली समस्या मांग में लगातार आ रही गिरावट है। हालांकि, एमएसई (माइक्रो और स्मॉल एंटरप्राइजेज) के लिए मौजूदा प्लेटफॉर्म (एमएसएमई समाधान और ट्रेड रिसिवेब्लस डिस्काउंटिंक सिस्टम (TReDS)) में कईं समस्याएं हैं, जिसकी वजह से एमएसएमई के बकाये के भुगतान में देरी होती है।
एमएसएमई के लिए कैशफ़्लो का ज़रिया सप्लायर्स और ठेकेदारों को होने वाला सरकारी भुगतान है। भुगतान में देरी को दूर करने से एमएसएमई की आर्थिक हालत सुधरेगी जिससे वो बेहतर मार्केटिंग के साथ उचित निवेश के फ़ैसले आसानी से ले पाएंगें ।
भुगतान व्यवस्थित करने की कोशिश
सभी 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने एमएसएमई विकास अधिनियम 2006 के तहत अनिवार्य रूप से लंबित भुगतानों पर विवादों के निपटारे के लिए माइक्रो एंड स्मॉल एंटरप्राइजेज फसिलिटेशन कांउसिल (एमएसईएफसी) का गठन किया है। यदि माल / सेवा प्राप्त होने या स्वीकृति की तारीख के 45 दिन के अंदर भुगतान नहीं किया जाता है तो भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) की तय की गई बैंक दर से तीन गुना अधिक मासिक चक्रवृद्धि ब्याज का भुगतान ख़रीदार को करना होगा। यह भुगतान सप्लायर को किया जाता है।
नवंबर 2018 में जारी एमएसएमई मंत्रालय की अधिसूचना के अनुसार, जो कम्पनियां, भुगतान में देरी करेंगी, उन्हें कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय (एमसीए) में छमाही रिटर्न दाखिल करना होगा। उस रिटर्न में में बकाए का विवरण और देरी के कारण बताने होंगे। जनवरी 2019 में, MCA ने ऐसी सभी कंपनियों को एक फॉर्म, MSME-I दाखिल करने का निर्देश दिया, जिसमें सभी माइक्रो और स्मॉल उद्यमों के सप्लायर्स का विवरण था। लेकिन ये प्रावधान मीडियम उद्यमों पर लागू नहीं होते हैं जिनकी MSME में 0.01% की हिस्सेदारी है।
थोड़ी सी राहत
सरकारी निकायों के देरी से भुगतान के मामलों को सीधे रजिस्टर करने में सूक्ष्म और लघु उद्यमों को सशक्त बनाने के लिए, एमएसएमई मंत्रालय ने 30 अक्टूबर, 2017 को लंबित भुगतान पोर्टल, एमएसएमई समाधान पोर्टल शुरु किया।
एमएसएमई समाधन पोर्टल के अनुसार, अब तक माइक्रो और स्मॉल एंटरप्राइजेज (एमएसई) ने 7,212.23 करोड़ रुपये के बकाये के 27,693 आवेदन दायर किए गए हैं। हालांकि, इनमें से माइक्रो एंड स्मॉल एंटरप्राइजेज फसिलिटेशन कांउसिल (एमएसईएफसी) ने केवल 1,532 आवेदनों का निपटारा किया गया है, जबकि 4,474 आवेदन खारिज़ कर दिए गए हैं। इसके अलावा, 2,241 मामले खरीरदारों के साथ बातचीत से सुलझा लिए गए हैं जबकि 7,447 मामले एमएसईएफसी के पास विचाराधीन हैं।
जैसा कि हमने पहले भी बताया है कि मीडियम एंटरप्राइजेज को समाधान पोर्टल में शिकायत दर्ज कराने का अधिकार नहीं है। और केवल उद्योग आधार नंबर (यूएएन) वाले एमएसई ही पोर्टल पर शिकायत कर सकते हैं। यूएएन एक विशिष्ट पहचान संख्या है, जो उद्योग आधार मेमोरैंडम (यूएएम) के रजिस्ट्रेशन के बाद मिलती है।
यूएएम के लिए एमएसएमई का रजिस्ट्रेशन सितंबर 2015 में शुरू हुआ था। लेकिन अभी तक लगभग 7 लाख एमएसई ने ही रजिस्ट्रेशन कराया है। जबकि एमएसएमई 6.33 करोड़ हैं। इसका मतलब ये है कि अभी केवल 12% एमएसएमई ही समाधान पोर्टल पर शिकायत दर्ज कर सकते हैं।
एमएसएमई सप्लायर्स के बिल और चालान में छूट की सुविधा के लिए, आरबीआई ने भी मार्च 2014 में एक ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म TReDS शुरु किया था। यह एक वित्तीय व्यवस्था है जिसमें, बकाये से पहले, छूट / शुल्क का भुगतान करने के बाद, विक्रेता एक वित्तीय मध्यस्थ से बिल की राशि वसूल कर सकता है।
पहला TReDS प्लेटफ़ॉर्म,रिसीवबल एक्सचेंज ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (RXIL), 26 फरवरी, 2016 को शुरु किया गया था। नीति आयोग के ‘स्ट्रैटेजी फॉर न्यू इंडिया @ 75’ में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि डिपार्टमेंट ऑफ पब्लिक एंटरप्राइजेज को TReDS पोर्टल पर सभी सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों का पंजीकरण सुनिश्चित करना चाहिए।
इस सिस्टम में तीन पक्ष शामिल हैं - एमएसएमई सप्लायर, कॉर्पोरेट खरीदार और फाइनेंसर। कॉर्पोरेट खरीदार द्वारा एमएसएमई सप्लायर की तरफ़ से अपलोड किए गए इनवॉइस और बिल को ख़रीदार की सहमति के बाद, फाइनेंसर बिल में छूट को मंज़ूरी देता है।
हालांकि, यह कुछ हद तक लंबी प्रक्रिया है, क्योंकि इसमें तीनों पक्षों के बीच कई स्तर और बातचीत शामिल होती है।
इसके अलावा, छूट और वित्तीय ख़र्च एमएसएमई सप्लायर को उठाने पड़ते हैं, जिससे उनकी आमदनी कम हो जाती है। यह कई एमएसएमई को TReDS पोर्टल का इस्तेमाल करने से रोकता है और उन्हें बिल में छूट के लिए अनौपचारिक फाइनेंसरों के पास जाने के लिए मजबूर करता है जो जहां उसे तुरंत ही भुगतान मिल जाता है।
2 नवंबर, 2018 को,एमएसएमई मंत्रालय की अधिसूचना के अनुसार, केवल कंपनी अधिनियम 2013 के तहत रजिस्टर्ड कंपनियों और 500 करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार (सभी केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम) करने वाली कंपनियां, TReDS प्लेटफ़ॉर्म का इस्तेमाल कर सकती हैं। इस नियम की वजह से भी कई एमएसएमई इससे बाहर हो जाती हैं।
समस्या का हल
केंद्र और राज्य सरकारों ने एमएसएमई को बढ़ावा देने के लिए अच्छी तरह से प्रचारित योजनाओं की घोषणा की है । उदाहरण के लिए, पीएमईजीपी, जो परियोजना लागत को आंशिक रूप से पूरा करने के लिए सरकारी सब्सिडी प्रदान करता है । मुद्रा योजना का उद्देश्य सूक्ष्म उद्यमों को विकसित करना है, जिसमें एमएसएमई के कर्ज़ को 59 मिनट के अंदर मंजूरी देने सहित कई तरह की सहायता दी जा रहा हैं। एमएसएमई समाधान पोर्टल भी है, जिसका उद्देश्य सरकारी एजेंसियों से भुगतान में हो रही देरी की समस्या को हल करना, TReDS पोर्टल हैं जिसका काम लंबित भुगतान के मामले में मध्यस्थ की भूमिका निभाना है।
हालांकि, एमएसएमई की आर्थिक समस्यों को हल करने में इन योजनाओं की अपनी समस्याएं हैं। इससे लाभार्थियों के साथ-साथ कार्यान्वयन एजेंसियों के बीच भ्रम पैदा होता है। इससे प्रशासनिक लागत भी बढ़ जाती है, क्योंकि प्रत्येक योजना को लाभार्थियों से निपटने के लिए अपने ख़ुद के कर्मचारियों और सेटअप की ज़रूरत होती है। इसलिए, इन योजनाओं और नीतियों को सरल बनाने की ज़रूरत है।
इन्स्टीट्यूट फॉर स्टडीज़ इन इंडस्ट्रीयल डवेलेपमेंट में की गई हमारी रिसर्च बताती है कि ऑनलाइन भुगतान, बिल में छूट और लम्बित भुगतान में सुधार को सिंगल विंडो सल्यूशन के तहत लाकर सरकार और मार्केट प्लेयर्स- दोनों की तरफ से होने वाले लंबित भुगतान की समस्या से निपटा जा सकता है।
खरीदार और विक्रेता दोनों ऑनलाइन भुगतान प्लेटफॉर्म पर रजिस्ट्रेशन कर सकते हैं। एक व्यापारिक लेन-देन और विक्रेता के बिल अपलोड करने के बाद, अगर ख़रीदार से तय समय सीमा में भुगतान नहीं मिला तो एमएसएमई बिल से छूट का विकल्प चुन सकता है।
इसके अलावा, अगर दिशा-निर्देशों के अनुसार भुगतान में कोई देरी होती है, तो ये मामला अपने आप ही समाधान पोर्टल पर चला जाना चाहिए। ख़रीददार और सप्लायर दोनों को इसका अलर्ट भेजा जाना चाहिए।
कई एमएसएमई ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से अनजान हैं, इसलिए जागरूकता अभियान चलाये जाने की भी जरूरत है।
अगर सभी एमएसएमई को रजिस्ट्रेशन का पात्र बनाया और इसकी प्रक्रिया तेज़ और आसान होगी तभी ये सिस्टम सबसे अच्छा काम करेगा।
(अखिलेश नई दिल्ली के ‘इंस्टीट्यूट फॉर स्टडीज़ इन इंडस्ट्रीयल डवेलेपमेंट ’में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं।)
यह आलेख मूलत: अंग्रेजी में 01 नवंबर 2019 को IndiaSpend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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