11 वर्षों में, भारत के शिशु मृत्यु दर में 42 फीसदी गिरावट, फिर भी वैश्विक औसत से ज्यादा
नई दिल्ली: 30 मई, 2019 को जारी नवीनतम सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 11 वर्षों में, भारत में शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) में 42 फीसदी की कमी आई है– 2006 में, प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर 57 मृत्यु से 2017 में 13 तक पहुंचा है।
मृत्यु दर में कमी के बावजूद, 2017 में भारत का आईएमआर 29.4 के वैश्विक आंकड़ों से ज्यादा रहा है, जो कि पश्चिम अफ्रीकी देश सेनेगल के बराबर है और पाकिस्तान और म्यांमार को छोड़कर अधिकांश दक्षिण एशियाई पड़ोसियों की तुलना में अधिक है।
आईएमआर को देश के समग्र स्वास्थ्य परिदृश्य का एक मोटा संकेतक माना जाता है। नवीनतम डेटा सैंपल रजिस्ट्रेशन सर्वे (एसआरएस) बुलेटिन से आया है, जो गृह मंत्रालय के रजिस्ट्रार जनरल और जनगणना आयुक्त के कार्यालय द्वारा जारी किया गया है। आखिरी एसआरएस बुलेटिन सितंबर 2017 में जारी किया गया था।
2017 में, भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में, आईएमआर 37 और शहरी क्षेत्रों में 23 था, जो 2005 के बाद से इस अंतर को कम करने के लिए एक नेशनल रूलर हेल्थ मिशन के बावजूद स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता और पहुंच में अंतर का खुलासा करता है।
भारतीय राज्यों में, मध्य प्रदेश ने 2017 में एक से कम उम्र के बच्चों की सबसे अधिक मौतें (आईएमआर- 47) दर्ज कीं, इसके बाद असम (44) और अरुणाचल प्रदेश (42) का स्थान रहा। मध्य प्रदेश का आईएमआर पश्चिम अफ्रीकी देश नाइजर के बराबर था, जिसका 80 फीसदी भू-भाग सहारा रेगिस्तान में है और जो 2018 में संयुक्त राष्ट्र के मानव विकास सूचकांक में सबसे आखिरी स्थान पर था।
जैसा कि अच्छा प्रदर्शन करने वाले भारतीय राज्यों के लिए, नागालैंड ने सबसे कम आईएमआर, 7 दर्ज कराया ( कुवैत और लेबनान के बराबर )। इसके बाद गोवा-9 और केरल -10 का स्थान रहा है। इसके करीब पुदुचेरी-11, सिक्किम-12 और मणिपुर-12) रहे, (सभी छोटे राज्य या संघ प्रशासित क्षेत्र हैं, जिनकी एक करोड़ से कम जनसंख्या है।
कुछ राज्यों में बड़ा सुधार
आईएमआर के लिए 2006 के एसआरएस आंकड़ों की तुलना में, भारत के बड़े राज्यों (1 करोड़ से अधिक की आबादी के साथ), नई दिल्ली और तमिलनाडु में दोनों ने शिशु मृत्यु दर को 57 फीसदी घटाया है - 2006 में 37 से 2017 में 16 तक। अन्य राज्य जो इसी तरह की गिरावट दर्शाते थे, वे हैं - जम्मू-कश्मीर (-56 फीसदी), हिमाचल प्रदेश (-56 फीसदी) और पंजाब (-52 फीसदी)।
छोटे राज्यों में, नागालैंड में सबसे ज्यादा कमी -65 फीसदी देखी गई है। यह आंकड़े 2006 में 20 से 2017 में 7 तक पहुंचे हैं। इसके बाद छोटा राज्य सिक्किम (-64 फीसदी) और केंद्र शासित प्रदेश दादरा और नगर हवेली (-63 फीसदी) और पुदुचेरी (-61 फीसदी) का स्थान रहा है।
दूसरे राज्यों में कम बदलाव
इसी तरह, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश राज्य ऐसे हैं, जहां आईएमआर 2006 और 2017 के बीच क्रमशः 11 से 12 और 40 से 42 के बीच बढ़ा।
2006 और 2017 के बीच,उत्तराखंड (-5 फीसदी), पश्चिम बंगाल (-15.8 फीसदी) और त्रिपुरा (-19.4 फीसदी) में, आईएमआर में सबसे धीमी गिरावट देखी गई हैं।
Source: World Bank
अधिकांश पड़ोसी देशों की तुलना में भारत का आईएमआर बदतर
जैसा कि हमने पहले कहा है भारत का 33 का आईएमआर, नेपाल (28), बांग्लादेश (27), भूटान (26), श्रीलंका (8) और चीन (8) की तुलना में खराब रहा, लेकिन पाकिस्तान (61) और म्यांमार (30) की तुलना में बेहतर है।
घर की आर्थिक स्थिति और मातृ शिक्षा शिशु और बाल मृत्यु दर में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अधिक शिक्षित महिलाओं वाले राज्यों में बच्चों के लिए बेहतर स्वास्थ्य परिणाम दिखाई देते हैं। इस संबंध में, इंडियास्पेंड ने 20 मार्च 2017 की रिपोर्ट में विस्तार से बताया है।
इंडियास्पेंड ने जनवरी 2018 की रिपोर्ट में बताया कि सबसे कम स्ट्रैटम में पैदा हुए बच्चे की तुलना में, धन सूचकांक के उच्चतम स्तर पर एक घर में पैदा होने वाले बच्चे के शुरुआती बचपन में जीवित रहने की संभावना लगभग तीन गुना अधिक होती है।
भारत में, केवल एक तिहाई महिलाओं (35.7 फीसदी) के पास दस साल से अधिक की स्कूली शिक्षा है। जबकि आर्थिक स्थिति को लेकर उच्च असमानता है, जहां नौ व्यक्ति के पास देश के 50 फीसदी लोगों के बराबर संपत्ति है।
(यदवार प्रमुख संवाददाता है और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 2 जून 2019 को IndiaSpend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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