133 (25 फीसदी) सीटों पर वन अधिकार तय कर सकते हैं चुनाव परिणाम
( उत्तरी छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के कुडकेल गांव में अधिकांश घरों को 2006 के कानून के तहत अभी तक वन अधिकार प्राप्त नहीं हुए हैं। ग्रामीण कहते हैं, इन अधिकारों के बिना वे जीविका-खेती से आगे बढ़ ही नहीं सकते हैं। )
नई दिल्ली: 2019 के आम चुनावों में 543 संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के लगभग एक चौथाई (133) में वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) का बद्तर कार्यान्वयन निर्णायक कारक हो सकता है। यह जानकारी एनजीओ नेटवर्क ‘कम्युनिटी फॉरेस्ट रिसोर्स-लर्निंग एंड एडवोकेसी’ (सीएफआर-एलए) के विश्लेषण में सामने आई है। आदिवासियों के एक बड़े अनुपात के साथ 133 निर्वाचन क्षेत्रों में 2014 के आम चुनावों के परिणामों का विश्लेषण से पता चलता है कि एफआरए (वन अधिकार कानून) के तहत भूमि अधिकार के हकदार मतदाताओं की संख्या 95 फीसदी से अधिक सीटों में जीत के मार्जिन से अधिक है ।
इसका मतलब यह है कि कोई भी राजनीतिक दल, जो एफआरए के प्रभावी तरीके से लागू और जनजातियों के भूमि अधिकारों की रक्षा करने वाले अन्य कानून का वादा करती है, वह इन निर्वाचन क्षेत्रों में बीजेपी को हरा सकती है।
बीजेपी सरकार की अदालतों में सुनवाई के दौरान आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा नहीं करने के लिए आलोचना की गई है, जिसके कारण सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि संबंधित राज्य सरकारों द्वारा जिन आदिवासियों के दावे को खारिज कर दिया गया था, उन्हें बेदखल किया जाए। बाद में आदेश पर रोक लगाया गया था।
सीएफआर-एलए ने अपने तर्क का समर्थन करने के लिए मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में 2018 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी की हार का हवाला दिया है।
एफआरए, जो 2006 में वन-वासियों के भूमि अधिकारों को वैध बनाता है, कम से कम 20 करोड़ भारतीयों ( ब्राजील की जनसंख्या के बराबर ) के अधिकारों और आजीविका के लिए महत्वपूर्ण है, जिनमें से 9 करोड़ (45 फीसदी) आदिवासी हैं। अधिनियमन के बाद से ही एफआरए वन-निवासियों और सरकारों के बीच विवाद का एक बिंदु रहा है, जिसके परिणामस्वरूप 550,000 हेक्टेयर से अधिक भूमि पर भूमि विवाद हुआ है, जो दिल्ली राज्य का चार गुना क्षेत्र है। भारत भर में शोधकर्ताओं और पत्रकारों का एक स्वतंत्र नेटवर्क, लैंड कंफ्लिक्ट वॉच द्वारा एकत्र आंकड़ों के अनुसार, ये संघर्ष 60 लाख से अधिक लोगों के जीवन को प्रभावित करते हैं।
कैसे बदल सकता है वोटिंग पैटर्नसीएफआर-एलए द्वारा विश्लेषण किए गए सभी 133 निर्वाचन क्षेत्रों में 10,000 हेक्टेयर से अधिक वन क्षेत्र एफआरए के तहत कवरेज के योग्य हैं और उनसे संबंधित निर्वाचक मंडल के 20 फीसदी से अधिक लोग कानून से प्रभावित हैं।
2014 के आम चुनावों में, सत्तारूढ़ बीजेपी ने इन 133 सीटों में से 59 फीसदी सीटों पर जीत हासिल की थीं। कांग्रेस ने 4 फीसदी सीटों पर जीत हासिल की थी, हालांकि 62 फीसदी सीटों पर उपविजेता रही थी।
छत्तीसगढ़ में 2018 के विधानसभा चुनाव के लिए अपने घोषणापत्र में, कांग्रेस ने एफआरए को लागू करने का वादा किया। 2013 के विधानसभा चुनावों की तुलना में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी-एसटी) के लिए आरक्षित कुल 39 सीटों में से 68 फीसदी से अधिक सीटें जीतीं, जबकि सीएफआर-एलए के विधानसभा चुनाव विश्लेषण के अनुसार बीजेपी ने 75 फीसदी सीटों का नुकसान देखा।
विश्लेषण कहता है, '' वन अधिकार के इर्द-गिर्द बीजेपी बेहद कमजोर बनी हुई है।''मध्यप्रदेश और राजस्थान में, जहां कांग्रेस बड़े अंतर से नहीं जीत पाई, पार्टी ने जमीन के अधिकार के मुद्दे पर जोर नहीं दिया। जबकि छत्तीसगढ़ में जीत बड़ी हुई, जैसा कि विश्लेषण में कहा गया है।
विश्लेषण के अनुसार, महाराष्ट्र और कुछ हद तक गुजरात के अलावा झारखंड, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे भाजपा शासित राज्यों में एफआरए कार्यान्वयन घटिया ढंग से किया गया है।
Read IndiaSpend’s coverage of FRA violations from across the country:
Story 4: $6.5bn Afforestation Fund Has Pitted Forest Depts Against Tribals, Again
Story 5: Conflicts Across India As States Create Land Banks For Private Investors
कम से कम 4 करोड़ हेक्टेयर वन भूमि ( भारत के वन क्षेत्र के 50 फीसदी से अधिक और उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ के क्षेत्रफल से बड़ा ) एफआरए और वन-निवासियों और आदिवासियों के अधिकारों और आजीविका से संबंधित मुद्दों पर कवर किया गया है।
विश्लेषण के अनुसार, कम से कम 170,000 यानी देश के एक-चौथाई गांव एफआरए के तहत अधिकारों के पात्र हैं।सीएफआर-एलए ने लक्षद्वीप, अंडमान और निकोबार, जम्मू और कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्यों में निर्वाचन क्षेत्रों को शामिल नहीं किया है, जिनमें बड़ी संख्या में जनजातीय आबादी है, लेकिन जिनके लिए संभावित अधिकार धारकों के डेटा उपलब्ध नहीं हैं।
2019 के आम चुनावों के लिए कोर एफआरए संभावित सीटें
Core FRA Potential Seats For 2019 General Elections | |||||||
---|---|---|---|---|---|---|---|
Value Of FRA As An Electoral Factor | Of Seats | BJP | INC | Others | |||
Won | 2nd | Won | 2nd | Won | 2nd | ||
Critical Value | 30 | 21 | 3 | 0 | 21 | 9 | 5 |
High Value | 20 | 12 | 7 | 1 | 9 | 7 | 4 |
Good Value | 35 | 18 | 2 | 2 | 22 | 15 | 11 |
Medium Value | 48 | 28 | 4 | 2 | 31 | 18 | 14 |
Total constituencies where FRA is a core factor (at least 20% voters are also potential Forest Rights Act right-holders) | 133 | 79 | 16 | 5 | 83 | 49 | 34 |
Source: Community Forest Resource-Learning and Advocacy
इस डेटाबेस को एक साथ रखने के लिए, सीएफआर-एलए ने दो स्रोतों का इस्तेमाल किया है - 2014 में मतदान करने वाले संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के परिणामों पर भारत के चुनाव आयोग के आंकड़े और एफआरए के लिए पात्र निर्वाचन क्षेत्रों पर जनगणना 2011 के आंकड़े। इन 133 संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में वन भूमि अधिकारों को गलत ढंग से अस्वीकार करने की उच्च दर है, जिससे आदिवासी और वनवासी बड़े पैमाने पर बेदखली के शिकार हो रहे हैं, जैसा कि ओडिशा के एक शोधकर्ता और सीएफआर-एलए के सदस्य तुषार दास कहते हैं। उन्होंने बताया कि, इन निर्वाचन क्षेत्रों में वन समुदायों ने पहले ही एफआरए के खराब कार्यान्वयन और वन अधिकारों का बड़े पैमाने पर उल्लंघन, वन विभागों द्वारा जबरन वृक्षारोपण और भूमि बैंकों के निर्माण के लिए भूमि हड़प लेने की सूचना दी है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद, कांग्रेस प्रमुख राहुल गांधी ने कांग्रेस शासित राज्यों के सभी मुख्यमंत्रियों से कहा कि वे आदिवासियों और अन्य वनवासियों के सामूहिक उत्पीड़न के खिलाफ एक समीक्षा याचिका दायर करें। उन्होंने पहले मांग की थी कि आदिवासी अधिकारों को प्रभावित करने वाली पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा लाए गए सभी बदलावों को कांग्रेस के मुख्यमंत्री पूर्ववत रखे। उन्होंने अदालत में सुनवाई के दौरान एफआरए के तहत जनजातियों के अधिकारों की रक्षा नहीं करने के लिए केंद्र में बीजेपी सरकार को "मूक दर्शक" कहा।
I have spoken to all CMs of BJP ruled states in the situation arising out of Supreme Court's order on eviction of Tribals living in Forest Areas. The states will be soon filing review petition and care will be taken to safeguard the rights of our tribals and prevent eviction.
— Chowkidar Amit Shah (@AmitShah) February 25, 2019
जब राहुल गांधी ने कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों को पत्र भेजा तो के दो दिन बाद, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भी अपनी पार्टी द्वारा शासित राज्यों में मुख्यमंत्रियों को इसी तरह के निर्देश भेजे।
"राज्य जल्द ही समीक्षा याचिका दायर करेंगे और हमारे आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा और निष्कासन को रोकने के लिए कदम उठाए जाएंगे।"इसके बाद, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अस्थायी रोक लगाने की मांग की, जिसमें कहा गया कि इस प्रक्रिया में खामियां हैं, जिसके कारण भूमि के सही दावों की अस्वीकृति की उच्च दर है। अदालत ने अपने आदेश पर रोक लगा दी और राज्यों को केंद्र के आरोपों पर हलफनामा दाखिल करने के लिए चार महीने का समय दिया।
चुनाव परिणाम कैसे प्रभावित हो सकते हैं?कांग्रेस की अगुवाई वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार थी, जिसने 2006 में वन अधिकार कानून बनाया था। लेकिन 2014 के आम चुनावों में, पार्टी ने संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में खराब प्रदर्शन किया, जहां एफआरए एक मुख्य मुद्दा था, जैसा कि सीएफआर-एलए के विश्लेषण से पता चलता है। हालाँकि, कांग्रेस 133 वन-संपन्न निर्वाचन क्षेत्रों (62 फीसदी) में से 83 में रनर-अप के रूप में उभरी।
133 में से 68 सीटों पर जहां कांग्रेस और बीजेपी सीधे मुकाबले में थीं, कांग्रेस ने केवल तीन सीटें जीतीं।विश्लेषण कहते हैं कि, "कोई भी सुरक्षित रूप से कह सकता है, कि ये 68 निर्वाचन क्षेत्र अगले सरकार के गठन को प्रभावित करने में निर्णायक हो सकते हैं।"
68 मुख्य निर्वाचन क्षेत्रों के राज्यवार ब्रेकअप जहां बीजेपी और कांग्रेस में मुकाबला है।
हालांकि, नौ राज्यों में से चार में जहां भाजपा और कांग्रेस इन 68 सीटों के लिए सीधे मुकाबले में थीं, वहां की निवर्तमान भाजपा राज्य सरकार को 2018 के विधानसभा चुनावों में वोट दिया गया था, जैसा कि विश्लेषण से पता चलता है।
( त्रिपाठी प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं. ) यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 20 मार्च 2019 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।हम फीडबैक का स्वागत करते हैं। हमसे respond@indiaspend.org पर संपर्क किया जा सकता है। हम भाषा और व्याकरण के लिए प्रतिक्रियाओं को संपादित करने का अधिकार रखते हैं।
"क्या आपको यह लेख पसंद आया ?" Indiaspend.com एक गैर लाभकारी संस्था है, और हम अपने इस जनहित पत्रकारिता प्रयासों की सफलता के लिए आप जैसे पाठकों पर निर्भर करते हैं। कृपया अपना अनुदान दें :( उत्तरी छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के कुडकेल गांव में अधिकांश घरों को 2006 के कानून के तहत अभी तक वन अधिकार प्राप्त नहीं हुए हैं। ग्रामीण कहते हैं, इन अधिकारों के बिना वे जीविका-खेती से आगे बढ़ ही नहीं सकते हैं। )
नई दिल्ली: 2019 के आम चुनावों में 543 संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के लगभग एक चौथाई (133) में वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) का बद्तर कार्यान्वयन निर्णायक कारक हो सकता है। यह जानकारी एनजीओ नेटवर्क ‘कम्युनिटी फॉरेस्ट रिसोर्स-लर्निंग एंड एडवोकेसी’ (सीएफआर-एलए) के विश्लेषण में सामने आई है। आदिवासियों के एक बड़े अनुपात के साथ 133 निर्वाचन क्षेत्रों में 2014 के आम चुनावों के परिणामों का विश्लेषण से पता चलता है कि एफआरए (वन अधिकार कानून) के तहत भूमि अधिकार के हकदार मतदाताओं की संख्या 95 फीसदी से अधिक सीटों में जीत के मार्जिन से अधिक है ।
इसका मतलब यह है कि कोई भी राजनीतिक दल, जो एफआरए के प्रभावी तरीके से लागू और जनजातियों के भूमि अधिकारों की रक्षा करने वाले अन्य कानून का वादा करती है, वह इन निर्वाचन क्षेत्रों में बीजेपी को हरा सकती है।
बीजेपी सरकार की अदालतों में सुनवाई के दौरान आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा नहीं करने के लिए आलोचना की गई है, जिसके कारण सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि संबंधित राज्य सरकारों द्वारा जिन आदिवासियों के दावे को खारिज कर दिया गया था, उन्हें बेदखल किया जाए। बाद में आदेश पर रोक लगाया गया था।
सीएफआर-एलए ने अपने तर्क का समर्थन करने के लिए मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में 2018 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी की हार का हवाला दिया है।
एफआरए, जो 2006 में वन-वासियों के भूमि अधिकारों को वैध बनाता है, कम से कम 20 करोड़ भारतीयों ( ब्राजील की जनसंख्या के बराबर ) के अधिकारों और आजीविका के लिए महत्वपूर्ण है, जिनमें से 9 करोड़ (45 फीसदी) आदिवासी हैं। अधिनियमन के बाद से ही एफआरए वन-निवासियों और सरकारों के बीच विवाद का एक बिंदु रहा है, जिसके परिणामस्वरूप 550,000 हेक्टेयर से अधिक भूमि पर भूमि विवाद हुआ है, जो दिल्ली राज्य का चार गुना क्षेत्र है। भारत भर में शोधकर्ताओं और पत्रकारों का एक स्वतंत्र नेटवर्क, लैंड कंफ्लिक्ट वॉच द्वारा एकत्र आंकड़ों के अनुसार, ये संघर्ष 60 लाख से अधिक लोगों के जीवन को प्रभावित करते हैं।
कैसे बदल सकता है वोटिंग पैटर्नसीएफआर-एलए द्वारा विश्लेषण किए गए सभी 133 निर्वाचन क्षेत्रों में 10,000 हेक्टेयर से अधिक वन क्षेत्र एफआरए के तहत कवरेज के योग्य हैं और उनसे संबंधित निर्वाचक मंडल के 20 फीसदी से अधिक लोग कानून से प्रभावित हैं।
2014 के आम चुनावों में, सत्तारूढ़ बीजेपी ने इन 133 सीटों में से 59 फीसदी सीटों पर जीत हासिल की थीं। कांग्रेस ने 4 फीसदी सीटों पर जीत हासिल की थी, हालांकि 62 फीसदी सीटों पर उपविजेता रही थी।
छत्तीसगढ़ में 2018 के विधानसभा चुनाव के लिए अपने घोषणापत्र में, कांग्रेस ने एफआरए को लागू करने का वादा किया। 2013 के विधानसभा चुनावों की तुलना में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी-एसटी) के लिए आरक्षित कुल 39 सीटों में से 68 फीसदी से अधिक सीटें जीतीं, जबकि सीएफआर-एलए के विधानसभा चुनाव विश्लेषण के अनुसार बीजेपी ने 75 फीसदी सीटों का नुकसान देखा।
विश्लेषण कहता है, '' वन अधिकार के इर्द-गिर्द बीजेपी बेहद कमजोर बनी हुई है।''मध्यप्रदेश और राजस्थान में, जहां कांग्रेस बड़े अंतर से नहीं जीत पाई, पार्टी ने जमीन के अधिकार के मुद्दे पर जोर नहीं दिया। जबकि छत्तीसगढ़ में जीत बड़ी हुई, जैसा कि विश्लेषण में कहा गया है।
विश्लेषण के अनुसार, महाराष्ट्र और कुछ हद तक गुजरात के अलावा झारखंड, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे भाजपा शासित राज्यों में एफआरए कार्यान्वयन घटिया ढंग से किया गया है।
Read IndiaSpend’s coverage of FRA violations from across the country:
Story 4: $6.5bn Afforestation Fund Has Pitted Forest Depts Against Tribals, Again
Story 5: Conflicts Across India As States Create Land Banks For Private Investors
कम से कम 4 करोड़ हेक्टेयर वन भूमि ( भारत के वन क्षेत्र के 50 फीसदी से अधिक और उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ के क्षेत्रफल से बड़ा ) एफआरए और वन-निवासियों और आदिवासियों के अधिकारों और आजीविका से संबंधित मुद्दों पर कवर किया गया है।
विश्लेषण के अनुसार, कम से कम 170,000 यानी देश के एक-चौथाई गांव एफआरए के तहत अधिकारों के पात्र हैं।सीएफआर-एलए ने लक्षद्वीप, अंडमान और निकोबार, जम्मू और कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्यों में निर्वाचन क्षेत्रों को शामिल नहीं किया है, जिनमें बड़ी संख्या में जनजातीय आबादी है, लेकिन जिनके लिए संभावित अधिकार धारकों के डेटा उपलब्ध नहीं हैं।
2019 के आम चुनावों के लिए कोर एफआरए संभावित सीटें
Core FRA Potential Seats For 2019 General Elections | |||||||
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Value Of FRA As An Electoral Factor | Of Seats | BJP | INC | Others | |||
Won | 2nd | Won | 2nd | Won | 2nd | ||
Critical Value | 30 | 21 | 3 | 0 | 21 | 9 | 5 |
High Value | 20 | 12 | 7 | 1 | 9 | 7 | 4 |
Good Value | 35 | 18 | 2 | 2 | 22 | 15 | 11 |
Medium Value | 48 | 28 | 4 | 2 | 31 | 18 | 14 |
Total constituencies where FRA is a core factor (at least 20% voters are also potential Forest Rights Act right-holders) | 133 | 79 | 16 | 5 | 83 | 49 | 34 |
Source: Community Forest Resource-Learning and Advocacy
इस डेटाबेस को एक साथ रखने के लिए, सीएफआर-एलए ने दो स्रोतों का इस्तेमाल किया है - 2014 में मतदान करने वाले संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के परिणामों पर भारत के चुनाव आयोग के आंकड़े और एफआरए के लिए पात्र निर्वाचन क्षेत्रों पर जनगणना 2011 के आंकड़े। इन 133 संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में वन भूमि अधिकारों को गलत ढंग से अस्वीकार करने की उच्च दर है, जिससे आदिवासी और वनवासी बड़े पैमाने पर बेदखली के शिकार हो रहे हैं, जैसा कि ओडिशा के एक शोधकर्ता और सीएफआर-एलए के सदस्य तुषार दास कहते हैं। उन्होंने बताया कि, इन निर्वाचन क्षेत्रों में वन समुदायों ने पहले ही एफआरए के खराब कार्यान्वयन और वन अधिकारों का बड़े पैमाने पर उल्लंघन, वन विभागों द्वारा जबरन वृक्षारोपण और भूमि बैंकों के निर्माण के लिए भूमि हड़प लेने की सूचना दी है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद, कांग्रेस प्रमुख राहुल गांधी ने कांग्रेस शासित राज्यों के सभी मुख्यमंत्रियों से कहा कि वे आदिवासियों और अन्य वनवासियों के सामूहिक उत्पीड़न के खिलाफ एक समीक्षा याचिका दायर करें। उन्होंने पहले मांग की थी कि आदिवासी अधिकारों को प्रभावित करने वाली पूर्ववर्ती सरकारों द्वारा लाए गए सभी बदलावों को कांग्रेस के मुख्यमंत्री पूर्ववत रखे। उन्होंने अदालत में सुनवाई के दौरान एफआरए के तहत जनजातियों के अधिकारों की रक्षा नहीं करने के लिए केंद्र में बीजेपी सरकार को "मूक दर्शक" कहा।
I have spoken to all CMs of BJP ruled states in the situation arising out of Supreme Court's order on eviction of Tribals living in Forest Areas. The states will be soon filing review petition and care will be taken to safeguard the rights of our tribals and prevent eviction.
— Chowkidar Amit Shah (@AmitShah) February 25, 2019
जब राहुल गांधी ने कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों को पत्र भेजा तो के दो दिन बाद, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भी अपनी पार्टी द्वारा शासित राज्यों में मुख्यमंत्रियों को इसी तरह के निर्देश भेजे।
"राज्य जल्द ही समीक्षा याचिका दायर करेंगे और हमारे आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा और निष्कासन को रोकने के लिए कदम उठाए जाएंगे।"इसके बाद, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अस्थायी रोक लगाने की मांग की, जिसमें कहा गया कि इस प्रक्रिया में खामियां हैं, जिसके कारण भूमि के सही दावों की अस्वीकृति की उच्च दर है। अदालत ने अपने आदेश पर रोक लगा दी और राज्यों को केंद्र के आरोपों पर हलफनामा दाखिल करने के लिए चार महीने का समय दिया।
चुनाव परिणाम कैसे प्रभावित हो सकते हैं?कांग्रेस की अगुवाई वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार थी, जिसने 2006 में वन अधिकार कानून बनाया था। लेकिन 2014 के आम चुनावों में, पार्टी ने संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों में खराब प्रदर्शन किया, जहां एफआरए एक मुख्य मुद्दा था, जैसा कि सीएफआर-एलए के विश्लेषण से पता चलता है। हालाँकि, कांग्रेस 133 वन-संपन्न निर्वाचन क्षेत्रों (62 फीसदी) में से 83 में रनर-अप के रूप में उभरी।
133 में से 68 सीटों पर जहां कांग्रेस और बीजेपी सीधे मुकाबले में थीं, कांग्रेस ने केवल तीन सीटें जीतीं।विश्लेषण कहते हैं कि, "कोई भी सुरक्षित रूप से कह सकता है, कि ये 68 निर्वाचन क्षेत्र अगले सरकार के गठन को प्रभावित करने में निर्णायक हो सकते हैं।"
68 मुख्य निर्वाचन क्षेत्रों के राज्यवार ब्रेकअप जहां बीजेपी और कांग्रेस में मुकाबला है।
हालांकि, नौ राज्यों में से चार में जहां भाजपा और कांग्रेस इन 68 सीटों के लिए सीधे मुकाबले में थीं, वहां की निवर्तमान भाजपा राज्य सरकार को 2018 के विधानसभा चुनावों में वोट दिया गया था, जैसा कि विश्लेषण से पता चलता है।
( त्रिपाठी प्रमुख संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं. ) यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 20 मार्च 2019 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।हम फीडबैक का स्वागत करते हैं। हमसे respond@indiaspend.org पर संपर्क किया जा सकता है। हम भाषा और व्याकरण के लिए प्रतिक्रियाओं को संपादित करने का अधिकार रखते हैं।
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