1901 से 6 सबसे गर्म वर्ष के बाद अब 2019 के लिए चेतावनियां
मुंबई: मौसम विभाग द्वारा 1 अप्रैल, 2019 को हीटवेव चेतावनी जारी करने से पहले, गर्मियों की शुरुआत में, मार्च 2019 में तापमान पूरे भारत में असामान्य रूप से उच्च स्तर तक बढ़ गया था। हाल के निम्नलिखित रिपोर्टों को देखें:
- 1 मार्च, 2019 से राज्य में 288 सनबर्न / सनस्ट्रोक के मामले सामने आने के बाद केरल को हाई अलर्ट पर रखा गया था। महीने में सनस्ट्रोक से होने वाली मौतों के चार संदिग्ध मामले थे और पलक्कड़ के उत्तरी जिले में तापमान 40 डिग्री सेल्सियस (डिग्री सेल्सियस) तक पहुंच गया था, जैसा कि द इंडियन एक्सप्रेस ने 28 मार्च, 2019 की रिपोर्ट में बताया है।
- बेंगलुरु में, एक शहर जहां औसत गर्मी का तापमान शायद ही कभी 26 डिग्री सेल्सियस के पार जाता है, मार्च 2019 में लगभग 37 डिग्री सेल्सियस तापमान में बढ़ती गर्मी के कारण पक्षी आसमान से नीचे गिरने लग गए, जैसा कि ‘द न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ के इस रिपोर्ट में कहा गया है। मध्य कर्नाटक के अन्य क्षेत्र - जैसे कालाबुरागी (40.6 ° C), बल्लारी (40 ° C) और रायचूर (39 ° C) - भी गंभीर तापमान की सूचना दे रहे हैं।
- मुंबई में 25 मार्च, 2019 को शहर का अधिकतम तापमान, सामान्य से सात डिग्री ज्यादा, 40.3 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया।
- उत्तर भारत में उच्च तापमान – 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर - अनुभव किया गया, विशेष रूप से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के आसपास के क्षेत्रों में। 22 मार्च, 2019 को 39 डिग्री सेलसियस पर, दिल्ली ने नौ वर्षों में मार्च में सबसे गर्म दिन का अनुभव किया है।
इन घटनाओं ने 2018 की गर्मियों की उन घटनाओं की याद दिला दी, जिन्हें 1901 के बाद से छठा सबसे गर्म वर्ष घोषित किया गया था, जैसा कि 6 फरवरी, 2019 को एक लोकसभा में दिए एक जवाब से पता चलता है।
देश भर में 2018 में औसत सतह का तापमान 1981 और 2010 के बीच देखे गए औसत से 0.39 डिग्री सेल्सियस अधिक था। इस मौसम में अप्रैल और जून के दौरान औसतन अधिकतम तापमान मध्य भारत के अधिकांश मौसम संबंधी उपखंडों और उत्तर पश्चिम भारत के कुछ उपखंडों में 0.5 डिग्री सेल्सियस सामान्य से अधिक रहने की संभावना है, जैसा कि 1 अप्रैल 2019 को भारत के मौसम विभाग (IMD) की विज्ञप्ति में कहा गया है।
Heat wave Warning issued on 01st April 2019. pic.twitter.com/Jq7NcqFGXm
— IMD-Weather (@IMDWeather) April 1, 2019
भारत भर को प्रभावित करने वाली हीटवेव से 2010 और 2018 के बीच 6,167 मौतों की सूचना दी गई थी। लोकसभा में एक जवाब के अनुसार, वर्ष 2015 में सबसे ज्यादा मौतें हुई थीं - 2,081 या कुल का 34 फीसदी। (इन वर्षों के लिए गर्मी के कारण होने वाले घातक वितरण का राज्यवार वितरण केवल 2017 और 2018 के लिए उपलब्ध है।)
हीट-वेव से हुई मौतें- 2010-2018
हीटवेव और मौतें
1901 से भारत में पांच सबसे गर्म वर्षों में, 2016 (+ 0.72 ° C) में उच्चतम औसत तापमान दर्ज किया गया, इसके बाद 2009 (+ 0.56 ° C), 2017 (+ 0.55 ° C), 2010 (+ 0.54 ° C) और 2015 (+ 0.42 ° C) में दर्ज किया गया।
पश्चिमी राजस्थान के फलोदी में 2016 में पारा 51 ° C तक पहुंचा था। यह तापमान, देश के किसी भी हिस्से की तुलना में सबसे ज्यादा है। इससे पहले अलवर में 1956 सबसे ज्यादा 50.6 ° C का उच्च तापमान दर्ज किया गया था। 1901 से भारत में सबसे गर्म वर्षों में से ग्यारह 2004 और 2018 के बीच थे, जैसा कि आधिकारिकआंकड़ों से पता चलता है। ‘मिनिस्ट्री ऑफ अर्थ साइंस’ के मंत्री हर्षवर्धन ने लोकसभा को बताया, "भारत ने 1971, 1987, 1997, 2001, 2002, 2013 और 2015 जैसे वर्षों में हीटवेव्स के दौरान इंसानों की मृत्यु में कई गुना वृद्धि का अनुभव किया है।"
हीटवेव को अलग-अलग इलाकों के लिए अलग-अलग रूप से परिभाषित किया जाता है। मैदानी इलाकों में, अधिकतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक होना चाहिए; तटीय क्षेत्रों में, 37 ° C या अधिक; और भारत के मौसम विभाग (IMD) के अनुसार, पर्वतीय क्षेत्रों में, 30 ° C या अधिक। भारत में, हीटवेव की स्थिति आमतौर पर मार्च और जुलाई के बीच होती है, जिसमें अप्रैल और जून के बीच तीव्र हीटवेव की घटनाएं होती हैं।
जलवायु परिवर्तन के कारण उच्च तापमान पूरे भारत के लोगों के जीवन और आजीविका को प्रभावित कर रहा है। लोगों को जलवायु परिवर्तन की इस स्थिति के अनुकूल होने के लिए कई तरह के जोखिम लेने पड़ते हैं, जैसा कि इंडियास्पेंड के छह आलेखों की श्रृखला में बताया गया है।
एक्शन प्लान
2013 में, अहमदाबाद नगर निगम ने अहमदाबाद के लिए एक हीट एक्शन प्लान लॉन्च किया, जिसे ‘राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण’ (NDMA) ने सभी राज्यों को अपनी योजनाओं के लिए एक टेम्पलेट के रूप में उपयोग करने की सलाह दी।
प्रमुख घटकों में गर्मी के महीनों के दौरान सात दिन का पूर्वानुमान, नागरिकों के लिए एक रंग-कोडित चेतावनी प्रणाली और एक बड़े पैमाने पर सार्वजनिक जागरूकता अभियान शामिल था। 2015 से, भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने 100 शहरों में पांच-दिवसीय शहर-विशिष्ट गर्मी के पूर्वानुमान प्रदान करना शुरू कर दिया।
वर्ष 2017 तक, 11 राज्यों ( ओडिशा, तेलंगाना, बिहार, महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्र प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश ) और 17 शहरों ने गर्मी कार्रवाई योजनाओं को अपनाया या वे इसे विकसित कर रहे थे। 300 से अधिक शहरों में अब पूर्वानुमान प्रदान किए जा रहे हैं, जैसा कि हर्षवर्धन ने 4 फरवरी, 2019 को एक अन्य लोकसभा जवाब में कहा है।
6 फरवरी, 2019 को लोकसभा में एक और जवाब में कहा गया है कि हीटवेव की मौतों में दो साल में 97फीसदी की गिरावट आई है। यह आंकड़े 2016 में 700 से 2018 में 20 तक पहुंचे हैं और इसका कारण बेहतर पूर्वानुमान और गर्मी को लेकर कार्य योजना है।
दिल्ली स्थित ‘काउंसिल ऑन एनर्जी ‘एनवायरनमेंट एंड वाटर’ के वरिष्ठ शोध सहयोगी हेम ढोलकिया ने इंडियास्पेंड को बताया, "यह सच है कि मौतों को कम करने में हीट-हेल्थ वार्निंग सिस्टम ने बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसे बड़े पैमाने पर करने की जरूरत है।"
वह आगे कहते हैं, “ घातक परिस्थितियों में उतार-चढ़ाव, उन लोगों के स्वास्थ्य से भी जुड़ा हो सकता है जो हीटवेव का सामना करते हैं। 2014 के हीटवेव की कल्पना कीजिए। अगर सही समय पर सही ढंग से चेतावनी जारी हो जाए तो लोग गर्मी की लहर से बच सकते हैं।" ‘टीईआरआई स्कूल ऑफ एडवांस स्टडीज’ की वाइस चांसलर लीना श्रीवास्तव ने 4 दिसंबर, 2018 को एक साक्षात्कार में इंडियास्पेंड को बताया था, "सबसे बड़ी बात यह है कि हम जिन चरम घटनाओं के बारे में बात कर रहे हैं, वे आवृत्ति और तीव्रता दोनों में बढ़ रही हैं। इसलिए, मुस्तैदी से काम करने के लिए हम ऐतिहासिक अनुभवों को नहीं देख सकते हैं; बल्कि, हमें जो होने की आशंका है उसके लिए तैयारी करनी होगी। लेकिन यह कुछ ऐसा है, जो हम नहीं कर रहे हैं।"
ढोलकिया कहते हैं कि चरम मौसम की घटनाओं का प्रभाव सामाजिक परिवर्तनों पर भी निर्भर करता है। वह बताते हैं, " अधिक लोग शहरी क्षेत्रों में जाते हैं, वहां हमारे पास अपेक्षाकृत कम जगह में लोगों की एक बड़ी एकाग्रता है - इसलिए लोगों और अर्थव्यवस्था पर ऐसी घटनाओं का प्रभाव अधिक है। हम अपने शहरों को जिस तरह से डिजाइन करते हैं, उससे लोगों का अनुभव भी आकार लेता है। हरियाली कम होने के साथ-साथ जल निकाय शहरी माइक्रॉक्लाइमेट को प्रभावित करते हैं।"
आने वाले समय के लिए विचार
ढोलकिया कहते हैं कि तापमान में वृद्धि और जान के नुकसान को कम करने के लिए दो आवश्यक शर्तें हैं। सबसे पहले, वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक कम करने के लिए प्रयास हो , जैसा कि 2015 के पेरिस समझौते द्वारा वकालत किया गया था। ढोलकिया आगे कहते हैं, "अधिक महत्वाकांक्षी वैश्विक शमन प्रयास इस तरह के चरम सीमाओं की संभावना को कम कर देंगे।" राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर इस तरह के चरम मौसम की घटनाओं की आशंका और प्रतिक्रिया देने के लिए पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित करना अन्य उपाय हैं।
“हालांकि, जानकारी का आभाव प्लांनिंग के कार्यान्वयन को ढीला करता है-जैसे भारत के लिए एक जलवायु जोखिम एटलस विकसित करना, निरंतर जोखिम आकलन, राष्ट्रीय- राज्य और स्थानीय स्तरों पर क्षमता निर्माण में अंतराल को हल करना और वित्तीय तबाही- जैसे दुर्घटना बांड, बीमा उपकरण और वित्तीय नुकसान को भरने और आजीविका की रक्षा करने के लिए अलग ढंग के वित्तीय सिस्टम बनाने पर ध्यान देना चाहिए। "
( मल्लापुर वरिष्ठ नीति विश्लेषक हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़े हैं। )
यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 3 अप्रैल, 2019 को indiaspend.com के साथ प्रकाशित किया गया है।
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