2 वर्षों में केंद्र के शिक्षा, स्वास्थ्य पर खर्च में गिरावट
दो वर्षों के दौरान, केन्द्र प्रायोजित सामाजिक योजनाएं - समेकित बाल विकास सेवा (आईसीडीएस), सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन - के लिए आवंटित राशि में 10 फीसदी, 7.5 फीसदी और 3.6 फीसदी की कमी हुई है।
इसी अवधि के दौरान, स्वच्छ भारत अभियान के लिए आंवटित राशि में करीब तीन गुना की वृद्धि हुई है।
आईसीडीएस, सर्व शिक्षा अभियान और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन पिछली सरकार द्वारा चलाई गई थी। स्वच्छ भारत मिशन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किया गया है।
सामाजिक - कल्याण वित्त पोषण में कटौती हस्तांतरण सुधारों का हिस्सा है जिसका लक्ष्य, बिना दिल्ली द्वारा लगाए व्यय शर्तों के राज्यों को अधिक राशि प्रदान करना है।
हालांकि राज्य, केंद्र वित्त पोषण का मेल नहीं कर सकता है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने, दो साल पहले से उपलब्ध ताजा आंकड़ों का उपयोग करते हुए, फरवरी में विस्तार से बताया है।
स्वास्थ्य, शिक्षा एवं स्वच्छता योजनाओं पर खर्च, (करोड़ रु)
भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार ने पिछले वर्ष, केंद्र प्रायोजित योजनाओं के लिए राशि में 19 फीसदी की कटौती की है एवं इस वर्ष बजट घोषणाओं में भी प्रवृत्ति को जारी रखा है।
हालांकि, पिछले वर्ष के दौरान, एनएचएम और सर्व शिक्षा अभियान के लिए राशि में 2 फीसदी की वृद्धि हुई है लेकिन यह फिर भी पहले के मुकाबले कम है।
बिना किसी शर्त के, राज्यों को हस्तांतरित होने वाली राशि में 55 फीसदी की वृद्धि हुई है। इस संबंध में भी, एकाउंटीबिल्टी इनिशिएटिव, दिल्ली में एक थिंक टैंक, द्वारा की गई अध्ययन के आधार पर विस्तार से बताया है। लेकिन कुछ राज्यों को हस्तांतरण के स्थानान्तरण से पहले की तुलना में कम राशि मिली है।
राशि जारी होने की धीमी गति से निधीकरण में कटौती तेज़
- 12 वीं पंचवर्षीय योजनामें आईसीडीएस के लिए 123,580 करोड़ रुपए आवंटित किया गया है। हालांकि, वित्त वर्ष 2016-17 तक, योजना का अंतिम वर्ष, केंद्र सरकार ने नियोजित आईसीडीएस बजट का केवल 63 फीसदी आवंटित किया है।
- वित्त वर्ष 2015-16 में, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) के लिए आंवटन राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन का केवल 79 फीसदी था, जिसका एनआरएचएम एक हिस्सा है।
- सितंबर 2015 तक, केंद्रीय सरकार ने आवंटित सर्व शिक्षा अभियान के बजट का 57 फीसदी प्रदान किया है। राज्यों की हिस्सेदारी में से, औसतन, सितंबर 2015 तक 27 फीसदी से अधिक जारी नहीं किया गया है।
एकाउंटीबिल्टी इनिशिएटिव के बजट सारांश के अनुसार, राशि जारी होने की धीमी गति और पोषण में कटौती से कार्यान्वयन की समस्याएं हो रही हैं।
आईसीडीएस, मातृ एवं शिशु देखभाल के लिए दुनिया का सबसे बड़ा कार्यक्रम, के लिए राशि में कटौती की गई है, वो भी तब जब भारत में 42 फीसदी बच्चों का वज़न एवं 40 फीसदी बच्चों का कद सामान्य से कम है। इस संबंध में इंडियास्पेंड ने पहले भी अपने खास रिपोर्ट में बताया है।
बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए राष्ट्रीय पोषण मिशन के लिए 850 करोड़ रुपए (130 मिलियन डॉलर) दिए गए हैं जोकि 2015-16 के मुकाबले दोगुना है।
13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण - 4 (एनएफएचएस 4) के पहले दौर के आंकड़ों से मातृ एवं शिशु के स्वास्थ्य में सुधार का पता चलता है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने पहले भी बताया है। देश के सबसे पिछड़े राज्य जैसे कि ओडिशा, झारखंड और उत्तर प्रदेश के आंकड़े अब तक जारी नहीं किया गया है।
स्वच्छ भारत मिशन के राशि का केवल 1 फीसदी नज़रिया में बदलाव लाने पर हुआ खर्च
एकाउंटीबिल्टी इनिशिएटिव के अध्ययन के अनुसार,अप्रैल 2015 से फरवरी 2016 के बीच, स्वच्छ भारत मिशन के तहत 97 फीसदी राशि, व्यक्तिगत शौचालय निर्माण खर्च पर हुआ है।
स्वच्छता और सफाई के लिए, सूचना, शिक्षा और संचार पर हुए खर्च की हिस्सेदारी 1 फीसदी है, जो कि 2014-15 से तीन प्रतिशत अंक कम है। लोगों के नज़रिए में बदलाव होना महत्वपूर्ण है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने पहले बताया है।
एकाउंटीबिल्टी इनिशिएटिव के जिला सर्वेक्षण के अनुसार, पिछले दो वर्षों के दौरान, शौचालय निर्माण अनुदान के लिए आवेदन करने वाले परिवारों में से आधे से भी कम परिवारों को अनुदान प्राप्त हुआ है।
शिक्षा के लिए केवल 23 फीसदी राशि वास्तव में हुआ है खर्च
सितंबर 2015 तक, सार्वभौमिक शिक्षा कार्यक्रम के लिए मंजूर की गई राशि में से 23 फीसदी से अधिक खर्च नहीं हुआ है।
एकाउंटीबिल्टी इनिशिएटिव द्वारा सर्वेक्षण किए गए पांच राज्यों के 10 ज़िलों में से कम से कम 31 फीसदी स्कूलों को दिसंबर 2015 तक वार्षिक अनुदान प्राप्त नहीं हुआ है।
जैसा कि इंडियास्पेंड ने पहले भी बताया है कि भारत में प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट हो रही है।
शिक्षा पर 2014 वार्षिक स्थिति रिपोर्ट के अनुसार, कक्षा तीन के सभी छात्रों में से केवल एक-तिहाई छात्र ही कक्षा दो की किताबें ठीक प्रकार पढ़ पाते हैं, पिछले पांच वर्षों में यह 5 फीसदी से अधिक की गिरावट है।
(तिवारी इंडियास्पेंड के साथ विश्लेषक हैं।)
यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 16 मार्च 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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