2022 के पोषण लक्ष्य से क्यों चूक सकता है भारत?
नई दिल्ली: वैसे तो नेशनल न्यूट्रिशन मिशन(एनएनएम) यानी राष्ट्रीय पोषण मिशन का मुख्य उद्देश्य है 2022 तक भारत में कुपोषण को कम करना, लेकिन जिस दर से भारत में कुपोषण कम हो रहा है, उसे देखते हुए ऐसा लगता है कि एनएनएम के लिए लक्ष्य हासिल करना मुश्किल है। एक नए अध्ययन में ऐसी बात कही गई है। हालांकि पिछले 27 वर्षों से 2017 तक भारत में कुपोषण में कमी आई है, लेकिन 2022 तक का लक्ष्य हासिल करने की संभावना काफी कम है।
2017 और 2022 के बीच, एनएनएम या पोषण अभियान ने कई छोटे-छोटे लक्ष्य भी रखे हैं। जैसे जन्म के समय कम वजन के बच्चों के प्रसार में वार्षिक 2 % की कमी का लक्ष्य, अविकसित कद , यानी उम्र की तुलना में कम कद वाले बच्चों में 25% की कमी का लक्ष्य और पांच साल से कम उम्र के बच्चों और महिलाओं में एनीमिया के प्रसार में 3 % अंक की वार्षिक गिरावट का लक्ष्य।
17 सितंबर, 2019 को द लांसेट चाइल्ड एंड अडोलेसेंट हेल्थ में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। उस रिपोर्ट में कहा गया है कि 2022 के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए अगर एनएमएम मौजूदा से रफ्तार से चलता है, तो जन्म के समय कम वजन वाले बच्चों की संख्या में 8.9%, अविकसित में 9.6%, कम वजन वाले बच्चों की संख्या में 4.8%, बच्चों के बीच एनीमिया में 11.7% और महिलाओं में एनीमिया में 13.8% ज्यादा प्रसार होगा।
रिपोर्ट के शोधकर्ताओं का मानना है कि 2017 में सभी भारतीय राज्यों में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों के बीच मृत्यु का एक मुख्य कारण कुपोषण था। आंकड़ों में देखें तो इस आयु वर्ग में कुल मौतों में से 68.2% मौतें कुपोषण के कारण हुई हैं।
इसके अलावा, सभी आयु वर्ग के बच्चों में खराब स्वास्थ्य का कारण कुपोषण रहा है और 17.3% कुल विकलांगता-समायोजित जीवन वर्ष (DALYs) के लिए जिम्मेदार है। विकलांगता-समायोजित जीवन वर्ष स्वास्थ्य का एक सारांश है, जो आबादी की सेहत में बीमारी के प्रभाव, अपंगता और मृत्यु दर को भी जोड़ता है।
इंडियास्पेंड ने दिसंबर 2018 की रिपोर्ट में बताया है कि भारत अपने 2025 पोषण लक्ष्य ( जीरो हंगर) को हासिल करने के रास्ते पर भी नहीं है।
लैंसेट मेंपर प्रकाशित रिपोर्ट पर काम करने वाले शोधकर्ताओं ने बच्चे और मातृ कुपोषण के कारण रोग के बोझ और हर भारतीय राज्य में 1990 से 2017 तक कुपोषण के संकेतकों में रुझान का विश्लेषण किया है। यह अध्ययन, इंडिया-स्टेट लेवल डिजीज बर्डन इनिशिटिव मॉलन्यूट्रिशन का हिस्सा था, जिसे इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च, पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया और 100 से अधिक भारतीय संस्थानों के विशेषज्ञों के साथ स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के सहयोग से,इन्स्टिटूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्युएशन द्वारा आयोजित किया गया था।
अध्ययन में पाया गया कि 2017 में पांच साल से कम उम्र के आयु वर्ग में कुपोषण व्यापक रुप से फैला हुआ था।10 में से चार स्टंड थे, प्रतिशत में देखें तो 39.3। 10 में तीन कम वजन के थे, यानी 32.7% और लगभग 59.7%, पांच में से तीन एनीमिक थे। इसके अलावा भी एक नई पोषण समस्या का संकेत अधिक वजन में दिखाई दिया। प्रत्येक 10 बच्चों में से एक अधिक वजन का था, यानी 11.5%।
अध्ययन में उन कारणों पर प्रकाश डाला गया है, जिससे बच्चों में कुपोषण बढ़ता है, जैसे कि जन्म के समय कम वजन और खराब स्तनपान। पांच बच्चों में से एक बच्चे (21.4%) का जन्म कम जन्म या 2.5 किलोग्राम से कम वजन के साथ हुआ है। कुल बच्चों में से केवल आधे बच्चों को विशेष रूप से स्तनपान कराया गया था। स्तनपान कराए गए बच्चे का प्रतिशत है 53.3%।
इन आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर ठोस और प्राप्त करने योग्य लक्ष्य निर्धारित करने की आवश्यकता है। इंडिया-स्टेट लेवल डिसीज बर्डन इनिशिएटिव के निदेशक ललित दंडोना ने एक बयान में कहा है कि, "यह अध्ययन बताता है कि भारत में कुपोषण कम हो गया है, लेकिन अभी भी कुपोषण बाल मृत्यु के लिए प्रमुख जोखिम कारक बना हुआ है। बाल मृत्यु दर के मुद्दे को हल करने से पहले कुपोषण को खत्म करना जरूरी हो गया है।"
ललित दंडोना ने अपने बयान में इस बात पर जोर दिया कि भारत में जन्म के समय कम वजन वाले बच्चों के लिए विशेष रणनीति की जरूरत है, क्योंकि अगर वास्तविकता पर नजर डालें तो बाल मृत्यु दर को बढ़ाने में जन्म के समय कम वजन एक बड़ा कारण है, लेकिन इसकी गिरावट की दर सबसे कम है।
दुनिया भर के पांच साल से कम आयु वर्ग के 15.6 करोड़ अविकसित कद वाले बच्चे हैं। उनमें से हर तीन में से एक भारत से हैं। 2016 में, यह अनुमान लगाया गया था कि भारत में पांच साल से कम उम्र के जितने बच्चे अल्प-पोषण के शिकार हैं, उसकी लागत 37.9 बिलियन डॉलर है। अगर इस रकम को दूसरी तरह से देखें तो यह शिक्षा के लिए केंद्र के 2019-20 के बजट का लगभग तीन गुना यानी 2.7 लाख करोड़ रुपए है।
उत्तर प्रदेश, बिहार, असम और राजस्थान का सबसे खराब प्रदर्शन
राज्यों को सोशियो-डेमग्रैफिक इंडेक्स (एसडीआई) के संदर्भ में विभाजित किया गया था-कम, मध्यम और उच्च । यह विभाजन प्रति व्यक्ति आय, शिक्षा और 25 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं में प्रजनन दर के आधार पर किया गया था।
अन्य समूह की तुलना में कम एसडीआई राज्यों में कुपोषण DALY दर बहुत ज्यादा थी। यह दर 2017 में राज्यों में छह से आठ के बीच थी। एक अध्ययन के अनुसार, उत्तर प्रदेश, बिहार, असम और राजस्थान में यह दर सबसे ज्यादा थी।
कम एसडीआई राज्यों में कुपोषण की दर मध्य एसडीआई समूह की तुलना में 1.8 गुना ज्यादा थी और उच्च एसडीआई समूह की तुलना में 2-4 गुना ज्यादा थी।
Source: The Lancet Child and Adolescent Health
कुपोषण में कमी 'मामूली'
2017 में पांच वर्ष से कम आयु के बीच मरने वाले 1.04 मिलियन बच्चों में से 706,000 या 68.2% बच्चों की मौत कुपोषण के कारण हुई है। अध्ययन में बताया गया है कि 1990 से 2017 तक, कुपोषण के कारण पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर में मामूली सी कमी आई थी। पहले 70.4% था जो घटकर 68.2% तक आया। इसी तरह, कुपोषण के कारण पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में DALYs 70.1% से घटकर 67.1% हुआ है।
लगभग सभी संकेतकों पर, 2022 के लिए अनुमानित गिरावट की दर एनएनएम लक्ष्यों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं थी। 2010-17 के दौरान भारत के हर राज्य में अविकसित कद के बच्चों का प्रसार काफी कम हुआ है, लेकिन यह गिरावट एनएनएम 2022 लक्ष्य तक पहुंचने के लिए आवश्यक 8.6% की वार्षिक कमी से पीछे थी। इसी तरह, वेस्टेड, कम वजन और एनीमिया के लिए, वर्तमान दर से एनएनएम लक्ष्यों को हासिल करने की संभावना नहीं है।
जैसा कि हमने पहले कहा है, 2022 के लक्ष्य के सापेक्ष में बच्चों में जन्म के समय कम वजन, अविकसित कद, कम वजन और एनीमिया का प्रसार ज्यादा होगा।
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ठोस और हासिल होने योग्य लक्ष्य
अध्ययन में कहा गया है कि एनएनएम द्वारा 2022 के लिए निर्धारित कुपोषण सूचक लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए आवश्यक सुधार की दर बहुत कम है। यही वजह है कि लक्ष्य को कम समय में हासिल करना "मुश्किल" हो सकता है। अध्ययन में कहा गया है, "सुधार की इस धीमी गति को तेज करने की जरूरत है, ताकि भविष्य में कुपोषण के संकेतकों की व्यापकता हमारे अनुमानों से बेहतर हो।"
वैश्विक स्तर पर पहले ही लक्ष्यों को ठीक किया गया है या उन्हें फिर से निर्धारित किया गया है। 2005 में, वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन ने 2025 तक प्राप्त होने वाले छह संकेतकों के लिए अपना वैश्विक पोषण लक्ष्य निर्धारित किया था। लेकिन 2018 की समीक्षा में यह स्पष्ट हो गया कि ये लक्ष्य बहुत ज्यादा थे और यदि लक्ष्य बहुत ज्यादा हो और उस दिशा में निवेश कम और कार्रवाई धीमी हो तो उस लक्ष्य को अवास्तविक कहा जा सकता है।” इसलिए लक्ष्यों को 2030 के लिए फिर से निर्धारित किया गया था।
पेपर में कहा गया है कि, एनएनएम 2030 के लिए ‘साहसिक लेकिन प्राप्त करने लायक लक्ष्यों’ को निर्धारित कर सकता है। रुझानों के विश्लेषण के आधार पर कुपोषण को कम करने के लिए राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय कई लक्ष्य हो सकते हैं।
भारत में जन्म के समय कम वजन वाले ज्यादा बच्चे
पेपर में यह भी उल्लेख किया गया है कि जन्म के समय कम वजन ,कम गर्भ काल या समय से पहले जन्म कुपोषण रोगों के बोझ को सबसे ज्यादा बढ़ाते हैं। दक्षिण एशिया के सबसे बड़े घटक के रूप में भारत को देखें तो यहां किसी भी क्षेत्र की तुलना में
जन्म के समय कम वजन वाले बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा मिलेगी। इससे केवल बचपन ही प्रभावित नहीं होता, बल्कि बाद के वर्षों में यानी जिंदगी के आगे के वर्षों में बीमारी के खतरे को भी बढ़ाता है।
हालांकि 2010-17 के दौरान भारत के 14 राज्यों में जन्म के समय कम वजन वाले बच्चों की संख्या में कमी आई है, लेकिन इस कमी की दर 1.14% सालाना है। यह दर एनएनएम 2022 लक्ष्य के लिए आवश्यक 11.8% वार्षिक गिरावट की तुलना में बहुत कम है।
जन्म के समय कम वजन विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है: मां का पोषण, गर्भाशय में बच्चे का विकास, जन्म के समय और मां और बच्चे की उम्र के बीच का अंतर।
लेकिन अगर तुलनात्मक रूप से अपने देश क देखें तो उप-सहारा अफ्रीका की तुलना में भारत में ज्यादा महिलाएं कम वजन वाली हैं । यहां हर पांच में से एक महिला कम वजन की हैं और यह भारत में जन्म के समय कम वजन वाले बच्चों की संख्या के बढ़ने का एक बड़ा कारण भी है। माताओं में पुराने कुपोषण का परिणाम अपरिपक्व बच्चे के जन्म के रूप में और कम वजन वाले बच्चों के रुप में होता है। बच्चों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए, भारत में मां के पोषण में निवेश करना होगा।
इस संबंध में इंडियास्पेंड ने इससे पहले भी रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी, जिसे यहां और यहां पढ़ा जा सकता है।
( यदवार विशेष संवाददाता हैं और इंडियास्पेंड के साथ जुड़ी हैं। )
यह आलेख लत: 19 सितंबर 2019 को IndiaSpend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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