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अरुणांचल प्रदेश के नए क्षेत्रों में सेना को बचाव प्रदान करने वाले विशेष कानून के लागू होने के 10 दिन के बाद ही राज्य के सबसे ज्यादा आबादी वाले जिले की तीन महिलाओं को शारीरिक रूप से प्रताड़ित एवं यौन उत्पीड़न करने का आरोप 12 सैनिकों पर लग चुका है |

इस कानून ने अरुणांचल प्रदेश में नए हिंसा के दौर की संभावनाएं पैदा कर दी हैं-जैसे पहले जम्मू और कश्मीर और मणिपुर में देखा जा चुका है-अब अरुणांचल प्रदेश में 14 में से 12 जिले “अशांत” घोषित जिलों में आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट (AFSPA) को लागू किया गया है, जिससे सेना के जवान दो मुख्य अलगाववादी संघटनों से निपट सकें |

वर्ष 1991 से 2015 के­­­­ बीच अरुणांचल के पीड़ित लोगों ने केंद्र सरकार को उक्त अन्तराल- में लगभग 24 वर्ष के दौरान सैनिकों के खिलाफ मुकदमा दायर करने के लिए 38 प्रार्थना पत्र दिए, जिनमे से 30 निरस्त हो गए, और 8 पुनः विचार के लिए लंबित हैं, इनमे से एक पिछले बीस वर्षों से लंबित है | यह जानकारी इण्डियास्पेंड ने संसद में रखी गई एक रिपोर्ट के आंकड़ों से हासिल की है |

उक्त आरोपित 12 सैनिकों की अब तक पहचान नहीं हो पाई है- अरुणांचल टाइम्स की खबर के अनुसार, जिन्होंने 16 अप्रैल, 2015 को लोवर तरासो गाँव, जिला पापंम्पेयर में आक्रामक रूप से पहुंचे और एक विधवा तेचीके के घर को निशाना बनाया |

विधवा तेचीके ने अरुणांचल टाइम्स को बताया कि वो लोग मेरे घर में अचानक जबरदस्ती घुस आये | उन्होंने कोई बात भी नहीं की और उन्होंने मच्छदानी फाड़ दी और मेरे चेहरे और दूसरी अंगों को छूने लगे |

सैनिकों ने अगला निशाना एक विवाहित जोड़े के घर को बनाया | उस महिला के पति ने बताया, “हम लोग सो रहे थे जबकि सेना के जवान हमारे कमरे में घुसे और पत्नी से दुर्व्यवहार करने लगे और जब हमने उनका प्रतिरोध किया तो उन लोगों ने मुझे घर से घसीट कर बाहर कर दिया, वो लोग लगभग 12 थे और हँसते हुए हमारे कंपाउंड से बाहर चले गए |

स्थानीय पुलिस ने प्राथिमिकी दर्ज कराने के बाद जांच पड़ताल प्रारम्भ की |

AFSPA का पहिले प्रयोग केवल पूर्वी अरुणांचल प्रदेश के तीन जिलों ‘तिरप, चांगलांग और लोंग्डिंग’ जिनकी सीमाए 20 किलोमीटर तक आसाम और म्यांमार से सटी हैं, यह तीनों जिले हिंसक अलगाववादियों के गढ़ हैं, यही वो जिले हैं जहाँ पर उपरोक्त अधिनियम लागू हुआ था

उक्त घटनाओं के विरोध में अरुणांचल प्रदेश में प्रदर्शन फूट पड़ा और असंतोष के स्वर इस विशेष अधिनियम के खिलाफ उभरना शुरू हो गए |

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जिला अधिकारी, पासीघाट के कार्यालय के बाहर आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर्स एक्ट के खिलाफ धरना देते लोग | फोटो क्रेडिट :द अरुणांचल टाइम्स

राजधानी दिल्ली में तो टू स्टार आर्मी जनरल भी निजी सुरक्षा अधिकारी को साथ लेकर बाहर नहीं निकलता, लेकिन AFSPA अधिनियमित क्षेत्र में एक सेना का कैप्टन भी चीखते साइरन और एक सैन्य सुरक्षा गाड़ी के साथ बाहर निकलता है चाहे वह रात में किसी शराब की पार्टी से क्यों न लौट रहा हो–IGNOU के पूर्वी सेंटिनल के क्षेत्रीय निदेशक मि० जोसेफ क्यूबा ने व्यक्त किया कि AFSPA के अधिनियम केवल दुश्मनों की तरफ पीठ दिखाने का कार्य कर रहे हैं | क्या हमने 1962 की शर्मनाक हार से कुछ भी नहीं सीखा?

उपरोक्त तरह के समानार्थक विचार अन्य लोगों ने भी व्यक्त किये और आगे कहा कि उक्त AFSPA के अधिनियम आर्मी का ध्यान अरुणांचल आदि के अंदरूनी भागों की ओर ही आकर्षित किये रहेंगे और मुख्य दुश्मन देश चाइना की तरफ ध्यान कम जाएगा | एक पूर्व सांसद तकम संजय ने AFSPA अधिनियम को लागू करने को 1962 की लड़ाई के बाद सबसे बड़ी भूल बताया |

आल अरुणांचल प्रदेश स्टूडेंट्स यूनियन के बैनर तले सैकड़ों छात्रों ने अरुणांचल की राजधानी ईटानगर में उग्र प्रदर्शन किया |

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अरुणांचल प्रदेश के नए क्षेत्रों में आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पॉवर एक्ट लागू करने के विरोध में ईटानगर में प्रदर्शन करते छात्र |फोटो क्रेडिट:द अरुणांचल टाइम्स

लम्बे दौर से समस्त आरोप लम्बित हैं : AFSPA की कार्यप्रणाली

AFSPA राज्य के राज्यपाल या केंद्र सरकार को अधिकार देता है कि राज्य के किसी भी क्षेत्र को “अशांत” घोषित कर सकें, ऐसा क्षेत्र जिसमे सैन्य बलों को स्थापित किया जा सके | जैसा इस टिप्पणी में व्यक्त किया गया है |

AFSPA सैन्य बलों (आर्मी, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल और राज्य पुलिस) को कानूनी निरीक्षण से रक्षा प्रदान करता है | यहाँ तक कि विभिन्न परिस्थितियों में हत्या इत्यादि आरोपों से भी रक्षित करता है | उक्त अधिनियमों के तहत बिना वारंट के गिरफ्तार करने और ऐसे शरणागाहों को जहाँ विद्रोही शरण लेते हैं या जिसकी सम्भावना हो, उन ठिकानों को भी ध्वस्त करने का कानूनी अधिकार सैन्य बलों को मिल जाता है |

AFSA के द्वारा मिली असाधारण स्शाक्तियों की हमेशा से ही आलोचना होती रही है | राज्यसभा में रखी गयी रिपोर्ट के अनुसार भारतीय सेना के पास वर्ष 2010-12 के बीच हिरासत में मौत, यातना और मानवाधिकार के उल्लंघन के 127 शिकायतें आयीं | इनमे से 84 प्रतिशत उत्तर पूर्वी राज्यों और जम्मू एंड कश्मीर से आयीं |

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Source: Rajya Sabha

जैसा कि हमने पहले ही बताया है कि केंद्र सरकार ने कभी आरोपों के खिलाफ अभियोजन की अनुमति नहीं दी |

राज्य सभा में पेश किये गए 8 आरोपों/प्रार्थनापत्रों जो कि जम्मू कश्मीर राज्य के हैं- जून 16, 1991 और 24 फरवरी 2015 (सबसे पुराना प्रार्थनापत्र) के बीच, यह सभी आज तक लंबित हैं उसमें से सबसे पुराना 22 वर्ष पहले जम्मू और कश्मीर राज्य का है |

हमारे सैन्य बलों का इस सन्दर्भ में कहना है कि AFSPA हमारे काउंटर इसरजेंसी आपरेशन में बहुत मददगार है– ऐसा कहना है नम्रता गोस्वामी का, जोकि दिल्ली के इंस्टिट्यूट आफ डिफेन्स स्टडीज एंड एनालिसिस में एक शोधकर्ता हैं,-लेकिन जिन क्षेत्रों में उक्त AFSPA के अधिनियमों को लागू किया गया है वहां के निवासियों का रुख इसके प्रति सकारात्मक नहीं है | उनका मानना है कि हम एक प्रजातंत्रात्मक देश के वासी हैं, इसलिए ऐसे कानून का लगना अनुचित है | अतः अगर स्थानीय अरुणांचली जनता इस अधिनियम के कारण देश की मुख्य धारा से क्रमशः दूर चली जाए और हिंसा की तरफ मुड़ जाये तो हमको आश्चर्य नहीं करना चाहिए, जैसा कि हम मणिपुर में देख चुके हैं |

AFSPA को अरुणाचल में क्यों लागू किया गया ?

भारत की उत्तरी पूर्वी क्षेत्रों में अरुणाचल को एक शांतिप्रिय क्षेत्र के रूप में जाना जाता है लेकिन हाल में यह हिंसक अलगाववादी लोगों का स्वर्ग बन गया है जोकि सीमान्त प्रदेशों से आते जाते रहते हैं |

4 अप्रैल, 2015 को दक्षिणी अरुणांचल के तिरप जिले में संदिग्ध नागा विद्रोहियों से मुठभेड़ में 3 सुरक्षा बल सैनिकों की मौत और चार अन्य घायल हो गए थे | यह राज्य में सरकार द्वारा विशेष सैन्य बल सुरक्षा अधिनियम (AFSPA) को लागू करने का कारण हो सकता है |

भारत के गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार विभिन्न हिंसक अलगाववादी ग्रुप जैसे-आसाम नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट (सोंग्बिजित) या NDFB (S), यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट आफ आसाम (इंडिपेंडेंट) और ULFA- परेश बरुआ गुट अरुणांचल प्रदेश को एक शरणगाह और म्यांमार के लिए आने जाने के एक केंद्र के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं |

रक्षाशोध विश्लेषक शोधकर्ता गोस्वामी ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश और सीमांत आसाम की सीमाओं पर विशेष सुरक्षा बलों की संख्या में वृद्धि एक न्यायसंगत और जरुरी कार्य कहा जा सकता है |

शोधकर्ता गोस्वामी ने कहा कि ULFA (1) गुट के नेता परेश बरुआ और NDFB (S) ने अरुणांचल प्रदेश के सीमांत जिलों में इसलिए घुसपैठ की ताकि वो लोग आसाम के सोनितपुर जिले में आक्रामक हमले कर सकें, यह वह जिला है जिसमें हाल के महीने में काफी हिंसा देखी है |

वह आरोप लगा रही हैं कि अरुणांचल में इनकी उपस्थिति पुलिस और सेना पर दबाव बनाने के लिए है |

‘ऑपरेशन आल आउट’ समस्त भारतीय सुरक्षा बलों सेना सहित एक ऐसा अभियान है जो आसाम में इस समय चलाया जा रहा है जिसके कारण हिंसक अलगाववादी अपेक्षाकृत शांत अरुणाचल प्रदेश में घुसने का प्रयास कर रहे हैं |

भारत के अन्य हिंसाग्रस्त राज्य जहाँ पर AFSPA लागू नहीं है |

माओवादी हिंसाग्रस्त राज्यों में सेना नहीं लगाई गई है, क्योंकि वहां पर AFSPA लागू नहीं है

फिर भी जैसा की निम्न आंकड़े बोलते हैं कि हमारे सुरक्षा बल के अधिकतम सैनिक छत्तीसगढ़ और झारखंड में मारे जा चुके हैं |

पिछले चार वर्षों में 330 सुरक्षा बल के जवान छत्तीसगढ़ और झारखंड में मारे गए, यह संख्या उत्तर पूर्वी राज्यों और जम्मू – कश्मीर में मारे गए सुरक्षा कर्मियों की संख्या से 29% अधिक है |

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Source: South Asian Terrorism Portal Link 1 and Link 2, Lok Sabha/Data for 2011

फोटो क्रेडिट : फ्लिकर/जोए अथिले

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