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पिछले तीन सालों में दिल्ली ने केंद्र द्वारा संचालित 234 सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों (पीएसयू) की सब्सिडी दोगुनी कर दी है। यह आंकड़े अब 1.73 लाख करोड़ रुपए ( 30 बिलियन डॉलर ) तक पहुंच गए हैं। लेकिन कंपनियों के वित्त पर की गई एक नई विश्लेषण, स्थिर मूल्यों पर मुनाफे में 4 फीसदी गिरावट एवं शून्य विकास का संकेत देती है।

यह सब्सिडी छह वित्तीय वर्षों के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना ( मनरेगा) निधि या तीन साल के लिए भारत की रक्षा खरीद के भुगतान के लिए पर्याप्त हैं।

विभिन्न वित्तीय संकेतकों में गिरावट ओर इशारा करते हुए सार्वजनिक उपक्रम विभाग ( डीपीई) की ओर से जारी एक वार्षिक सर्वेक्षण कहती है कि इनमें से अधिकतर कंपनियों का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है इस लिए कंपनियों का बारीकी निरीक्षण एवं मंथन आवश्यक है।

निजी प्रतियोगियों की तुलना में पीएसयू तंग हो सकते हैं लेकिन नई कंपनियों का जन्म होना जारी है – इस सामान्य उम्मीद के विपरीत कि वर्तमान में जहां निजी व्यवसाय अच्छी तरह हो रहे रहे हैं, वहां सरकार को कारोबार में नहीं होना चाहिए: सर्वेक्षण के अनुसार विभिन्न क्षेत्रों में कम से कम 56 केंद्र द्वारा संचालित पीएसयू स्थापित की गई है।

वर्ष 1998 से शुरु की गई अपनी छह साल की व्यवस्था में अपनी पिछली विनिवेश पर नीति के विपरीत वर्ष 2014 के चुनावी घोषणा पत्र में बीजेपी ने सार्वजनिक क्षेत्र के विनिवेश या निजीकरण के विषय में कुछ नहीं कहा है।

डीपीई सर्वेक्षण के कुछ महत्वपूर्ण निष्कर्ष :

  • वर्ष 2006-07 एवं 2014-15 के बीच वार्षिक औसत दर के साथ मुनाफे में 6 फीसदी की वृद्धि दर्ज हुई है (71 पीएसयू को हुए 20,000 करोड़ रुपए ( 3.5 बिलियन डॉलर ) के घाटे को हटाने के बाद), 60,000 करोड़ रुपये से 1.3 लाख करोड़ रुपये ( 10 बिलियन डॉलर से 22 बिलियन डॉलर ) । लेकिन 234 काम करने वाले पीएसयू पर सरकार के आंकड़ों के अनुसार स्थिर मूल्यों के संदर्भ में लाभ में 4 फीसदी गिरावट हुई है।

शुद्ध लाभ वृद्धि, वित्तीय वर्ष 2007 से वित्तीय वर्ष 2014

Source: Department of Public Enterprises

  • कंपनी के वित्तीय स्वास्थ्य का सूचक, राजस्व के लिए शुद्ध मुनाफे का गिरता अनुपात एवं नियोजित पूंजी की बिक्री के साथ पिछले सात वर्षों में सभी महत्वपूर्ण वित्तीय अनुपात पर गिरावट हुई है। उच्च अनुपात एक स्वस्थ कंपनी का संकेत देता है।

  • वित्त वर्ष 2013-14 के दौरान 234 केन्द्र द्वारा संचालित पीएसयू के कुल बिक्री में 100 फीसदी की वृद्धि हुई, 9.6 लाख करोड़ से बढ़ कर 20 लाख करोड़ की हुई है लेकिन स्थिर बाज़ार कीमतों पर कुल बिक्री विकास शून्य है।

टर्नओवर विकास, वित्तीय वर्ष 2007 से वित्तीय वर्ष 2014

Source: Department of Public Enterprises

  • कुल राजस्व के प्रतिशत के रुप में शुद्ध लाभ में गिरावट हुई है। वर्ष 2006-07 में यह आंकड़े 8.4 फीसदी थे जबकि 2013-14 में यह गिरकर 6.26 फीसदी दर्ज की गई है। उच्च अनुपात व्यापार के मामलों के कुशल प्रबंधन इंगित करता है।

  • इसी समय अवधि के दौरान, नियोजित पूंजी के प्रतिशत के रूप में कुल बिक्री में करीब 25 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। यह अनुपात परिसंपत्तियों का उपयोग करके बिक्री उत्पन्न करने के लिए फर्म की क्षमता का आकलन करती है । उच्च अनुपात स्पृहणीय है। अन्य सभी वित्तीय अनुपात में भी गिरावट आई है

वित्तीय अनुपात, वित्त वर्ष 2007- वित्त वर्ष 2014

Source: Department of Public Enterprises

कैसे बढ़ा साम्राज्य

केंद्र द्वारा संचालित पीएसयू को दी जाने वाली सब्सिडी की तुलना में मिलने वाला प्रतिफल कम है।

राघवेंद्र प्रसाद , प्रौद्योगिकी के गेट्स संस्थान, आंध्र प्रदेश के साथ सहायक प्रोफेसर के अनुसार, “कम मुनाफे के पीछ कई कारण हैं, और दक्षता कम होने के लिए अकेले पीएसयू को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है।” प्रसाद ने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के कामकाज का अध्ययन करते हैं।

प्रसाद ने कहा कि सार्वजनिक कंपनियों पर लाभ कमाने के अलावा कई अन्य जिम्मेदारियां भी हैं इसलिए मुनाफे के आधार पर निर्णय करना अनुचित होगा। प्रसाद ने आगे कहा कि 2008 के वैश्विक सब-प्राइम संकट के दौरान जब निजी कंपनियों के कर्मचारियों को बर्खास्त किया जा रहा था तब पीएसयू ने न केवल रोजगार उपलब्ध कराया है बल्कि वेतन में भी वृद्धि की है।

वर्ष 2013-14 में इन पीएसयू को सरकार की ओर से उत्पाद/सेवाएं (प्रति यूनिट का भुगतान सब्सिडी का उत्पादन या सरकार की ओर से की गई सेवा ) नकद , ब्याज और अन्य योगदान के रुप में 1.73 लाख करोड़ रुपये ( 30 बिलियन डॉलर ) की सब्सिडी दी गई है।

सीपीएसई द्वारा प्राप्त सब्सिडी

Source: Department of Public Enterprises

केंद्रा द्वारा संचालित सभी पीएसयू में वित्तीय निवेश (इक्विटी प्लस लंबी अवधि के ऋण ), 31 मार्च 2014 तक, करीब 10 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। सीपीएसयू को और अधिक पेशेवर बनने की जरूरत है क्योंकि इन्हें काफी महत्वपूर्ण राजस्व स्रोत समझा जाता है, सरकार के लिए गैर-कर राजस्व का लगभग 35 फीसदी।

1950 में सात सीपीएसयू से बढ़ कर आज की तारीख में केंद्र सरकार 234 कंपनियों की मालिक है।

सीपीएसयू की संख्या
काम करने वाले कुल सीपीएसयू

Source: Department of Public Enterprises

केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उद्यमों ( सीपीएसई ) की स्थापना माल और सेवाओं के उत्पादन में आत्मनिर्भरता, भुगतान और स्थिर कीमतों के संतुलन में सामंजस्य सहित उच्च आर्थिक विकास के व्यापक वृहद आर्थिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए की गई थी।

वर्ष 1991 में आर्थिक उदारीकरण के बाद कई क्षेत्र जिन्हें सार्वजनिक क्षेत्र उद्यमों से अलग किया गया था, निजी क्षेत्र में आरंभ किए गए। इस कदम से निजी कंपनियों के साथ कड़ी प्रतिस्पर्धा की ओर बढ़ना पड़ा और जो पीएसयू इसका सामना करने में विफल रहे उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा है।

घाटे में 60 फीसदी हिस्सेदारी दो कंपनियों की

वर्ष 2013-14 में 71 पीएसयू द्वारा दिखाए गए 20,000 करोड़ रुपये नुकसान में करीब 60 फीसदी हिस्सेदारी दो कंपनियां – बीएसएनएल एवं एयर इंडिया की है।

घाटे में चल रही सीपीएसयू का शुद्ध घाटा

Source: Department of Public Enterprises

इन कंपनियों को फिर से जीवित करने से सरकारी खजाने को हो रहे नुकसान को कम किया जा सकता है।

लाभ और नुकसान करने वाली पीएसयू

Source: Department of Public Enterprises

इन दोनों कंपनियों द्वारा नुकसान की हिस्सेदारी पिछले तीन साल के लिए निरंतर बनी हुई है।

यह तीन भाग श्रृंखला का पहला भाग है। दूसरे लेख में हम बीएसएनएल कंपनी में होने वाले नुकसान पर चर्चा करेंगे।

( पाटिल नई दिल्ली स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं। पाटिल इकोनोमिक्स टाइम्स, डीएनए और न्यू इंडियन एक्सप्रेस के साथ काम कर चुके हैं। )

यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 16 सितंबर 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।


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