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नोटबंदी से पहले प्याज के दाम प्रति क्विंटल 1,000-1,200 रुपए था। नोटबंदी के बाद यह दाम घट कर प्रति क्विंटल 600-700 रुपया हो गया है। महाराष्ट्र के नासिक जिले के प्याज किसान बाजार में नोटबंदी के कारण बढ़ते घाटे और समस्याओं से निपटने की कोशिश कर कर रहे हैं।

पिंपलगांव / लासलगांव, नासिक (महाराष्ट्र): 26 वर्षीय दीपक पाटिल एक प्याज किसान हैं। पाटिल भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई से 300 किलोमीटर उत्तर में बसे मालेगांव तालुका से सटे वालवाड़ी गांव के रहने वाले हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्री मोदी गांव के इस किसान देख कर जरूर खुश हो सकते हैं। सफेद शर्ट और जींस पहनने वाले पाटिल के पास मोबाईल फोन है। बैंक खाता है। यही नहीं, पाटिल अपना कारोबार चेक से भी करते हैं। पाटिल अपने प्याज पिंपलगांव में बेचते हैं। पिंपलगांव महाराष्ट्र का एक बड़ा बाजार है और इसे भारत में आप ‘प्याज का गढ़’ भी कह सकते हैं।

देश के कुल प्याज उत्पादन का एक तिहाई पिंपलगांव में ही होता। लेकिन प्रधानमंत्री भले ही पाटिल को देख कर खुश हों, पाटिल इस नोटबंदी से खुश नहीं हैं। पाटिल डरे हुए हैं। लगता है कि इनका काम कैशलेस होने से नहीं चल सकता है।

8 नवंबर 2016 को 500 और 1,000 रुपए के नोट अमान्य करार दिए जाने के बाद सरकार कैशलेस लेन-देन और डिजिटल भुगतान के प्रति लोगों को प्रोत्साहित कर रही है। वैसे, पाटिल के पास फोन है, जिसके जरिए वह फोन बैंकिंग का उपयोग कर सकते हैं । कैशलेस लेन-देन की ओर बढ़ सकते हैं। लेकिन एक सच यह भी है कि जहां वह रहते हैं, वहां इंटरनेट की पहुंच नहीं है। उनके गांव से निकटतम एटीएम के बीच कम से कम 25 किलोमीटर का फासला है। सबसे नजदीक जो राष्ट्रीयकृत बैंक है, उसकी दूरी 15 किलोमीटर है। सबसे बड़ी बात यह कि फिलहाल सरकार ने जिला सहकारी बैंक पर रोक लगा रखी है, जहां पाटिल का खाता है।

नासिक जिले के लासलगांव और पिंपलगांव भारत के सबसे व्यस्त और बड़े प्याज बाजारों में से हैं। वर्ष 2014 के आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, ये दो बाजार महाराष्ट्र के सकल राज्य घरेलू उत्पाद में 10.4 फीसदी का योगदान करते है। यह राज्य में किसी भी कृषि जिले से ज्यादा है।

बैंकिंग प्रणाली और नासिक की ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर विमुद्रीकरण के प्रभाव के साथ पाटिल का डर और कश्मकश यह बताने के लिए काफी है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर निर्भर करने वाले 80 करोड़ भारतीय नोटबंदी से किस प्रकार फ्रभावित हुए हैं।

बैंकों की कतारों में कई घंटे, हाथों में केवल 2,000 रु

भारतीय रिजर्व बैंक ने नासिक जिला केंद्रीय सहकारी बैंक (एनडीसीसी), और अन्य सभी जिला केंद्रीय सहकारी बैंकों (डीसीसीबी) पर 100 रुपए से पुराने नोटों या 500 और 1,000 रुपए के नए नोटों के बदलने पर रोक लगा दी है। जिस बैंक में पाटिल का खाता है वहां भी रोक है।

पाटिल ने अपने एनडीसीसी खाते में चेक द्वारा 21,000 रुपए इस उम्मीद से जमा कराए थे कि खेतों पर काम करने वाले मजदूरों के भुगतान, कुछ उधार चुकाने के लिए और घर के लिए किराने का सामानों के लिए कुछ रुपए वापस मिल जाएंगे। लेकिन ऐसा हो नहीं पाया।पाटिल कहते हैं, “हम इंतजार के अलावा कुछ नहीं कर सकते हैं।” खाते में पैसे होने के बावजूद पाटिल के लिए पैसे निकालना आसान नहीं है।

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प्याज किसान पाटिल के पास मोबाईल फोन और बैंक खाता है। लेकिन एक सच यह भी है कि जहां वह रहते हैं, वहां इंटरनेट की पहुंच नहीं है। उनके गांव से निकटतम एटीएम के बीच कम से कम 25 किलोमीटर का फासला है। सबसे नजदीक जो राष्ट्रीयकृत बैंक है, उसकी दूरी 15 किलोमीटर है। सबसे बड़ी बात यह कि फिलहाल सरकार ने जिला सहकारी बैंक पर रोक लगा रखी है, जहां पाटिल का खाता है।

पाटिल का किसी अन्य बैंक में खाता नहीं है। वह कहते हैं, “मुझे बैंक की कतार में सुबह 10 बजे से शाम के 5 बजे तक खड़ा रहना पड़ता है और बदले में एक 2000 रुपए का नोट मिलता है।” पाटिल को अपने मजदूरों के भुगतान के लिए 4,500 रुपए और प्याज को बाजार पर पहुंचाने वाले ट्रक के लिए 4,000 रुपए की जरुरत है। इन दिनों पाटिल पास की दुकान से घर का सामान उधार पर खरीद रहे हैं।

पाटिल ऐसे कई किसानों में से एक हैं, जिनका खाता जिला सहकारी बैंकों में है। नेशनल फेडरेशन ऑफ स्टेट कोपरेटिव बैंक की वार्षिक रिपोर्ट-2015 के अनुसार, देश भर के कम से कम 371 बैंकों के 140,000 से अधिक शाखाएं 25 लाख खाताधारकों को बैंकिंग सुविधाएं प्रदान करते हैं।

एनीडीसीसी के निर्देशक और पूर्व अध्यक्ष शिरीष कोतवाल कहते हैं, “नासिक जिले में 70 फीसदी किसानों का खाता एनडीसीसी के साथ है।”

जिला बैंक आरबीआई के दायरे में नहीं हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने आशंका जताई कि ऐसे बैंकों का इस्तेमाल काले धन को प्रणाली में वापस लाने के लिए हो सकता है, जैसा कि ‘इंडियन एक्सप्रेस’ ने दिसंबर 2016 की रिपोर्ट में बताया है। 500 और 1,000 रुपए के नोटों के विमुद्रीकरण की घोषणा के 72 घंटे बाद डीसीसीबी ने राष्ट्रीयकृत बैंकों की तुलना में आठ गुना ज्यादा पुराने नोट जमा होने की सूचना दी है।

छह सदस्यों के परिवार में पाटिल अकेला कमाने वाला है। पाटिल के पास आने-जाने के लिए कोई गाड़ी नहीं है और एक वजह यह भी है कि पाटिल ने अपना खाता अपने सबसे नजदीकी बैंक में खुलवाया है। उसके गांव से निकटतम राष्ट्रीयकृत बैंक 15 किमी दूर है। सहकारी बैंक की दूरी 10 किमी है।

ग्रामीण इलाकों में नहीं है इंटरनेट की पहुंच

83 फीसदी भारतीयों के पास स्मार्ट फोन नहीं है। पाटिल के फोन में इंटरनेट कनेक्शन नहीं है। इसलिए, इनके पास खाता होने के बावजूद वह इंटरनेट आधारित बैंकिंग सेवाओं का उपयोग नहीं कर सकते हैं।

इंडियास्पेंड ने जब उनसे पूछा कि क्या उनके पास एटीएम कार्ड है तो उन्होंने हंसते हुए जवाब दिया कि, “निकटतम एटीएम 40 किमी की दूरी पर है।”( इंडियास्पेंड ने निकटतम एटीएम 25 किमी की दूरी पर पाया, हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि एटीएम काम करता है या नहीं। )

प्याज के दाम हुए आधे, ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर दबाव

लाल प्याज से लदे ट्रक के बाद मिनी ट्रक ने लासलगांव के प्याज बाजार में प्रवेश किया। यह एशिया का सबसे बड़ा प्याज बाजार है। बाजार में प्रवेश करते ही किसानों के चेहरे पर उदासी दिखने लगती है। नीलामी में व्यापारी प्याज की कीमत तय करते हैं और किसान चुपचाप कोने में खड़े रहते हैं।

पाटिल कहते हैं, “नोटबंदी के बाद प्याज की कीमतें आधी हो गई हैं।” नोटबंदी से पहले प्याज के दाम प्रति क्विंटल 1,000-1,200 रुपए था। अब यह दाम घट कर प्रति क्विंटल 600-700 रुपया हो गया है।

नोटबंदी के दस दिन बाद तक कोई नीलामी नहीं हुई थी, क्योंकि बाजार में मान्य नोटों की कमी थी। बाजार में संग्रहीत प्याज बिक नहीं पाया । जब बाजार खुला तो प्याज की नई खेप आ गई।इससे प्याज के दाम घट गए।

किसानों के पास कम दामों में लाल प्याज बेचने के अवाला दूसरा कोई विकल्प नहीं है, क्योंकि गुलाबी प्याज की तरह इसे ज्यादा दिनों तक संग्रह कर नहीं रखा जा सकता है।

माधवराव थोराट भी किसान हैं। खेतों में प्याज की बुवाई के कारण इनके पास बैंकों के बाहर कतार में खड़े होने का वक्त नहीं है। थोराट मुंबई से 200 किमी उत्तर देवगांव में रहते हैं। उनके गांव से निकटतम राष्ट्रीयकृत बैंक 8 किलोमीटर दूर और निकटतम एटीएम 15 किलोमीटर दूर है। नकद की कमी के कारण वे अपने खेत पर काम करने वाले मजदूरों को भुगतान नहीं कर पाए हैं।

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खेतों में प्याज की बुवाई के कारण माधवराव थोराट पास बैंकों के बाहर कतार में खड़े होने का वक्त नहीं है। थोराट मुंबई से 200 किमी उत्तर देवगांव में रहते हैं।

अच्छा मानसून, अच्छी फसल, कीमत कम

अच्छे मानसून के कारण इस साल प्याज की फसल भी अच्छी हुई है। अत्यधिक प्याज उत्पादन की वजह से दाम और भी कम हुए हैं। कीमतों में गिरावट का असर विशेष रूप से, सीमांत और छोटे किसानों पर होता है, जो पाटिल की ही तरह दो हेक्टेयर से कम या 4.94 एकड़ जमीन के मालिक हैं। महाराष्ट्र के सभी भूमि जोत में ऐसे किसान 78.6 फीसदी के मालिक हैं।

पाटिल के पास चार एकड़ जमीन है, जहां वे अपने भाईयों के साथ काम करते हैं। प्याज की कीमतों में गिरावट के कारण पाटिल को 30,000 रुपए का नुकसान हुआ है। वह कहते हैं, “हम जैसे छोटे किसानों के लिए खेती असहनीय हो गया है।”

वर्ष 2015 में, अप्रैल से अगस्त के बीच,नासिक के आसपास के जिलों से प्याज किसानों ने लासलगांव (कृषि उपज मंडी समिति यानी एपीएमसी) के कृषि बाजार को 0.4 मिलियन मीट्रिक टन प्याज दिया है। लासलगांव एपीएमसी के अनुसार, 2016 में इसी अवधि के दौरान, लाए प्याज में 150 फीसदी से 1 मिलियन मेट्रिक टन की वृद्धि हुई है।

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लासलगांव कृषि उत्पादन बाजार समिति एशिया की सबसे बड़ी प्याज बाजार है, और ज्यादातर भारतीय प्याज इसी बाजार से निर्यात होते हैं। पिछले वर्ष के अप्रैल से अगस्त के बीच की तुलना में, इस साल लाए प्याज में 150 फीसदी से 1 मिलियन मीट्रिक टन की वृद्धि हुई है। इससे प्याज की कीमतों में और गिरावट हुई है।

लासलगांव एपीएमसी में एकाउंटेंट का काम कर रहे एनएस वाधवने कहते हैं, “हरियाणा और कर्नाटक में प्याज का पर्याप्त उत्पादन हुआ है, जिससे देश भर में मांग और कीमतों में और गिरावट हुई हैं।”

"मैं खेती छोड़ना चाहता हूं..."

पिछले कुछ वर्षों में लागत तीन गुना ज्यादा हो गई है और कृषि से होने वाले मुनाफे में गिरावट हुई है, जैसा कि इंडियास्पेंड ने मार्च 2016 में बताया है। नोटबंदी से हुई नकद में कमी और गिरती कीमतों के कारण पाटिल खेती छोड़ने के लिए तैयार हैं।

पाटिल ने कॉलेज में दाखिला लिया था, लेकिन अपनी कॉलेज डिग्री पूरी नहीं की। वह कहते हैं, “यदि मुझे अच्छा विकल्प मिले तो मैं नौकरी करने बाहर चला जाऊं।”

पाटिल आगे अपनी व्यथा सुनाते हैं, “फिलहाल मेरे पास दूसरा कोई विकल्प नहीं है। मेरे भाई की जिम्मेदारी भी मुझ पर है। लेकिन बहुत जल्द ही मैं खेती छोड़ कर दूसरी नौकरी तलाश करुंगा।”

(यदवार प्रमुख संवाददाता हैं, इंडियास्पेंड से जुड़ी हैं।)

यह लेख मूलत: अंग्रेजी में 16 दिसंबर 2016 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।

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