30 पंचायतों में लड़कों से अधिक लड़कियों का जन्म - राजस्थान
दौलतपुर, कोटडा , जयपुर, राजस्थान की राजधानी के 35 किमी उत्तर –पूर्व, में माली देवी अपनी दूसरी बेटी खुशी के साथ। यह उन 30 पंचायतों में से एक है जहां पिछले एक साल में लड़कों के मुकाबले लड़कियों का जन्म अधिक हुआ है। यह राजस्थान जैसे राज्य के लिए ऐतिहासिक उपलब्धि है जहां शिशु लिंग अनुपात बद्तर है।
दौलतपुर, कोटडा, राजस्थान – जयपुर से 35 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम इलाके में स्थित, कोटडा ज़िले के दौलतपुर गांव में रहने वाली 27 वर्ष की माली देवी दिहाड़ी का काम करती हैं। माली का विवाह 13 वर्ष की उम्र में कर दिया गया लेकिन गौना प्रथा के अनुसार 18 वर्ष की होने के बाद ही अपने पति के साथ ससुराल गई।
वार्षिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2012-13 के अनुसार, देवी की तरह ही राजस्थान में 51.2 फीसदी महिलाओं ( जिनकी उम्र 20 से 24 वर्ष के बीच की है ) की शादी 18 वर्ष यानि कि कानूनी रुप से शादी के लिए वैद्ध उम्र से पहले हुई है।
22 वर्ष की आयु में माली देवी से अपने बच्ची, सोनू को जन्म दिया। पहली बच्ची होने पर देवी को अपने ससुराल में खासा ताना सुनने मिला और दूसरे बच्चे के लिए दवाब बनाया जाने लगा। दो साल बाद देवी ने फिर से मां बनी। लेकिन दूसरी बाद भी लड़की ही हुई। देवी ने अपनी बच्ची का नाम खुशी रखा है।
देवी की बच्ची ने जन्म लिया और नाम खुशी रखा गया। लेकिन संभव है कि खुशी को इस दुनिया में आने ही नहीं दिया जाता।
खुशी का गर्भपात कराया जा सकता था, भूखे मारा जा सकता था, सीमित पोषण दिया जा सकता था, और अंत में धीरे-धीरे उसका स्वास्थ्य गिर कर, एक सामान्य बच्चे से अलग हो सकता था। देवी पर लड़का पैदा करने के लिए दवाब बनाया जा सकता था। देवी और खुशी के साथ यह तमाम संभावनाएं मुमकिन थी।
882 के आंकड़ो के साथ राजस्थान का शिशु लिंग अनुपात ( 0 से 6 वर्ष की आयु के बीच प्रति 1000 लड़कों पर लड़की की संख्या ) नीचे से पांचवे स्थान पर है। राजस्थान उन दो राज्यों में से एक है जहां वर्ष 2001 से 2011 के बीच शिशु लिंग अनुपात में गिरावट दर्ज की गई है। राजस्थान के अलवा दूसरा राज्य जम्मू कश्मीर दर्ज की गई है।
इसी अवधि के दौरान हरियाणा, पंजाब एवं उत्तर प्रदेश में शिशु लिंग अनुपात में वृद्धि दर्ज की गई है।
बुरे शिशु लिंग अनुपात वाले टॉप पांच राज्य
इंडियास्पेंड ने पहले ही अपनी रिपोर्ट में बताया है कि यदि इसी तरह शिशु लिंग अनुपात में गिरावट होती रही तो वर्ष 2040 में 20 से 49 वर्ष की आयु के बीच की 23 मिलियन लड़कियों की कमी हो जाएगी।
देवी के घर में लड़कियों की कमी नहीं है। आज देवी और खुशी दोनों ही बेहतर स्थिति में हैं। अन्य लड़कियों के विपरीत खुशी का जन्म पंजिकृत किया गया है, सारी बिमारियों से लड़ने का टीका भी लगाया गया है एवं खुशी नियमित रुप से स्कूल भी जाती है।
देवी और उनकी लड़कियों की कहानी इस बात का संकेत है कि किस प्रकार राजस्थान में लड़के और लड़कियों के बीच होने वाले भेदभाव की मानसिकता बदल रही है। लेकिन हमारा आज का लेख बताता है कि इस बदलाव के पीछ किसी जादू की छड़ी का कमाल नहीं है, इसके पीछे कमाल है तो ढेर सारा काम, विश्वास, गांव के अधिकारियों के बीच सहयोग, स्वास्थ्य कार्यकर्ता, राज्य सरकार एवं यहां के लोग।
कड़ी मेहनत से आया यह बदलाव
वर्ष 2010 में राजस्थान सरकार ने महिलाओं की विकास के लिए 20 योजनाएं एवं बच्चियों के विकास के लिए आठ योजनाएं पंचायत समिति द्वारा प्रशासित करने की घोषणा की थी। इसका मतलब यह हुआ कि प्रशासन और कार्यक्रमों को आकार देने के लिए धन राशि का हस्तांतरित पंचायत द्वारा किया जाएगा।
द सेंटर फॉर एडवोकेसी एंड रिसर्च ( सीएफएआर ), राजस्थान के छह ज़िलों - जयपुर, जालोर , दौसा, पाली , सीकर और जोधपुर – में 180 ग्राम पंचायतों की क्षमताओं मजबूत बनाने के लिए तीन साल की परियोजना पर सरकार के साथ काम करने वाली संस्था - बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा और लड़कियों और महिलाओं के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए काम करती है।
राजस्थान के 6 ज़िलों में शिशु लिंग अनुपात
परियोजना के परिणाम में, अप्रैल 2014 से मार्च 2015 के दौरान, 30 ग्राम पंचायतों में उल्लेखनिय कार्य किया गया है – दौलतपुर कोटडा सहित प्रत्येक पंचायतों में बेहरत जीवित जन्म दर्ज की गई है : 1,460 लड़कों पर 1,620 लड़कियां।
S.No. | Name of Gram Panchayat | No. of Boys | No. of Girls | District |
---|---|---|---|---|
1 | Didwana | 33 | 37 | Dausa |
2 | Guda Katla | 44 | 48 | Dausa |
3 | Badagaon | 22 | 27 | Dausa |
4 | Dolatpura Kotda | 65 | 80 | Jaipur |
5 | Kukas | 48 | 56 | Jaipur |
6 | Mundiya Ramsar | 53 | 57 | Jaipur |
7 | Machwa | 84 | 87 | Jaipur |
8 | Dantli | 56 | 64 | Jaipur |
9 | Goner | 54 | 61 | Jaipur |
10 | Leta | 55 | 57 | Jalore |
11 | Sankarna | 35 | 36 | Jalore |
12 | Samtipura | 39 | 43 | Jalore |
13 | Elana | 67 | 71 | Jalore |
14 | Bishangarh | 41 | 49 | Jalore |
15 | Sanphada | 54 | 67 | Jalore |
16 | Tikhi | 35 | 38 | Jalore |
17 | Ahore | 39 | 43 | Jalore |
18 | Chandrai | 29 | 33 | Jalore |
19 | Gura Balotan | 58 | 65 | Jalore |
20 | Mokheri | 47 | 51 | Jodhpur |
21 | Lohawat Bisnawas | 179 | 188 | Jodhpur |
22 | Bithu | 28 | 31 | Pali |
23 | Khandi | 27 | 29 | Pali |
24 | Kharda | 20 | 24 | Pali |
25 | Atbara | 57 | 62 | Pali |
26 | Basna | 32 | 36 | Pali |
27 | Dhakri | 23 | 24 | Pali |
28 | Sojat Road (CT) | 28 | 37 | Pali |
29 | Dolatpura | 59 | 64 | Sikar |
30 | Dujod | 49 | 55 | Sikar |
Total | 1460 | 1620 |
Source: CFAR
कैसे हुआ यह संभव?
ग्रामीण इलाकों में पांचायत शासन का सबसे निचला स्तर है एवं स्थानीय समुदायों के लिए संपर्क का पहला इकाई ( प्वाइंट ) है। योजना के प्रथम चरण में पंचायत के प्रतिनिधियों जैसे कि सरपंच एवं ग्राम सेवकों को गंभीर मुद्दों - जैसे कि गिरते शिशु लिंग अनुपात, लिंग भेदभाव, महिलाओं की प्रजनन अधिकारों, नैदानिक पूर्व प्रसव, गर्भावस्था कानूनों की अवधि एवं फ्लैगशिप योजनाओं और महिलाओं के लिए कार्यक्रमों के संबंध में बताना था।
विनीता राजावत , वर्तमान में अपने दूसरे कार्यकाल की सेवा कर रही दौलतपुर, कोटडा की सरपंच, का कहना है कि “जब पहली बार मैंने आंकड़े देखे तो मैं चौंक गई थी। मैं जानती थी कि लड़कियों की संख्या के साथ कुछ समस्या है लेकिन सीएफएआर के कार्यक्रम एवं ट्रेनिंग से हमें समस्या को ठीक प्रकार से समझने में आसानी हुई। क्योंकि मैं खुद एक राजपूत परिवार से हूं इसलिए हमें अच्छी तरह पता है कि पितृसत्ता गहरी जड़ें जमा चुकी है। इस क्षेत्र में बदलाव लाने के लिए मैंने अपनी पोस्ट का इस्तेमाल किया है।”
हालांकि बालिकाओं को सशक्त बनाने के संबंध में बातचीत शुरू करना काफी कठिन था ।
पंचायत सदस्यों सड़कें, विकास परियोजनाओं और अन्य सामान्य कार्यों के निर्माण पर चर्चा करने में अधिक इच्छुक थे। महिलाओं से संबंधित विषयों पर चर्चा करने में पीछे ही दिखे। राजावत एक महिला थी , और यही इनके लिए और अधिक जटिल स्थिति का कारण बना।
रजावत डटी रही। और रजावत की पंचायत और स्थानीय समुदायों को सुव्यवस्थित करने की कोशिश रंग लायी।
विनीता राजावत , दौलतपुर कोटडा की सरपंच, उत्तरी राजस्थान में 6034 लोगों की एक पंचायत। गांव में लड़की के जन्म पर रजावत एक बैंक अकाउंट खोलकर उसमें 200 रुपए जमा कराती हैं।
गहन विचार विमर्श के बाद, पंचायत प्रतिनिधियों ने विचार में विश्वास करना शुरू कर दिया एवं महिलाओं और बच्चियों की स्थिति बेहतर बनाने के लिए स्थानीय समुदायों को सुव्यवस्थित करने का निर्णय लिया।
लेकिन यह कर पाना इतना आसान नहीं था।
राखी बधवार , राज्य कार्यक्रम प्रबंधक, सीएफएआर, के अनुसार “हमारे रास्ते में दो मुख्य बाधाएं आई। पहली पंचायत प्रतिनिधियों की दशकों पुरानी पांरपरिक पुरुष प्रधान समाज की मानसिकता एवं दूसरी लिंग अनुपात में गड़बड़ी एवं समाज में लिंग भेद मौजूद होने के तथ्य से इंकार करना। ”
राज्य के छह ज़िलों में प्रेरणादायक दीवार लेखन, रैलियों, मोमबत्ती जुलूस , हस्ताक्षर अभियान , डाकघरों में किशोरियों के लिए बैंक खातों, सभी नवजात शिशुओं के लिए प्रसव किट, किशोरियों के लिए नियमित रूप से मध्यान्ह भोजन सहित कम से कम 540 पंचायत प्रस्तावों को लागू की गई।
ग्राम पंचायत में हरेक बच्ची के जन्म पर, रजावत अपने पति की सहायता से बैंक अकाउंट खुलवा कर 200 रुपए जमा कराती हैं। बच्ची के जन्म पर रजावत एक मिठाई के डब्बे के साथ बच्ची की मां को एक बधाई पत्र भी भेजती हैं।
रजावत और उनके कार्यकर्ताओं के प्रयासों ने यह सुनिश्चित किया कि देवी पर उसके ससुराल वाले तीसरे बच्चे के लिए दबाव न डाले।
देवी ने बताया कि “जब मैंने पहली बच्ची को जन्म दिया तो मेरे ससुराल वाले लड़की के खिलाफ थे। लेकिन पंचायत के प्रयास से उनके रवैये में बदलाव आया है। हालांकि उनकी मानसिकता पूरी तरह नहीं बदली है लेकिन फिर भी वह मुझे लड़के के लिए ताने नहीं देते हैं।”
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महिलाओं से बात करने भेजी जा रही है महिलाओं की ही दल
प्रशासनिक और शासन मामलों ग्राम पंचायतों द्वारा नियंत्रित किया गया जबकि फ्रंटलाइन का एक दल, मुख्य रुप से महिला श्रमिक - सहायक नर्स दाइयों (एएनएम) , मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता ( आशा ) और आंगनवाड़ी ( एक राष्ट्रीय कार्यक्रम के तहत चलाए शिशु गृह ) के कार्यकर्ताओं और साथी ( एक महिला विकास योजना के तहत कार्यरत ) को घर-घर महिलाओं से परामर्श कर उन्हें प्रभावित करने भेजा गया।
इस मिशन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा था कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करना जिससे वह ऐसे परिवारों की पहचान एवं परामर्श करना जो लिंग भेद की मानसिकता रखते हैं।
नरसिंगपुरा ग्राम पंचायत, 15 किलोमीटर पश्चिम में जयपुर के 1,029 लोगों के एक गांव में फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं के लिए प्रशिक्षण। श्रमिकों एवं परिवारों में कई तरह के मिथक थे। दो उदाहरण : लड़कियों पोषण और स्वास्थ्य की ज़रूरत नहीं है , और टीकाकरण ही महिला पैदा होने का कारण बनता है।
कार्यकर्ताओं को महिलाओं से जुड़े कार्यक्रमों एवं योजनाओं के विषय में प्रशिक्षित किया गया। साथ ही महिलाओं के गर्भधारण के अधिकार सहित गर्भपात के अधिकार एवं गर्भधारण और गर्भपात के साथ जुड़े भेदभावपूर्ण विश्वासों एवं मिथकों के संबंध में भी प्रशिक्षित किया गया।
भूपेंद्र सिंह, सीएफएआर पर्यवेक्षक, के अनुसार “कार्यकर्ताओं एवं समुदायों में मिथकों एवं मान्यताओं का रुप काफी चौंकाने वाला था।” उद्हारण के लिए :
- टीकाकरण से लड़की पैदा होगी।
- महिला गर्भपात नहीं करा सकती।
- बच्चियों को पोषण एवं स्वास्थ्य की आवश्यकता नहीं।
- उनके ग्राम पंचायत में लड़कों से अधिक लड़कियों की संख्या है।
- इलाके में कोई लिंग भेद नहीं है।
कृष्ण शर्मा , दौलतपुर में एक स्वास्थ्य उप केंद्र पर एएनएम के अनुसार, “इस कार्यक्रम के शुरु होने से पहले बच्चियों के जन्म पर भेद किया जाता था। न ही नवजात बच्चियों का टीकाकरण कराया जाता था और न ही उनका जन्म पंजीकृत की जाती थी। लेकिन पिछले तीन सालों से लोगों की मानसिकता एवं रवैये में काफी बदलाव देखने मिला है। हमने टीकाकरण के प्रति जागरुरकता फैलाने के उद्देस्य से यहां के स्थानीय स्कूलों को भी दौरा किया जिससे हमें काफी मदद मिली है।”
चुनौती : लड़कियों का जन्म होना जारी रहे यह कैसे होगा सुनिश्चित?
योजना तीन वर्षों तक चला, इसलिए यह महत्वपूर्ण था कि इसके प्रयास एवं प्रक्रिया जारी रहे।
स्कूल के शिक्षकों , पत्रकारों, स्व-सहायता समूहों , पूर्व पंचायत सदस्यों, युवा नेताओं , फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं और जमीनी स्तर के नेताओं को मिलाकर एक संसाधन पूल का निर्माण किया गया।
पिछले तीन वर्षों में , इनमे से कईयों ने न केवल चेतना बढ़ाने में मदद की बल्कि पंचायत सदस्यों को कई कार्यक्रमों के आयोजन करने एवं महिलाओं और बच्चियों तक सेवाएं पहुंचाने में सहायता भी की है।
अंतत: अभियान को सफल बनाने के लिए, सरकारी अधिकारियों को इसके प्रति पूरी तरह समर्पित होने की आवश्यकता है। यही भागीदारी एम्बर ब्लॉक कार्यालय ( इसी क्षेत्र के भीतर दौलतपुर कोटडा आता है ) में देखने मिलती है।
सुरेंद्र सिंह राठौड़ , खंड विकास अधिकारी , एम्बर ब्लॉक ने कहा “इससे पहले सरकारी बैठकों में लैंगिक मुद्दों पर कोई चर्चा नहीं हो थी। लेकिन अब इन मुद्दों पर चर्चा होना अनिवार्य है। हम सरपंच द्वारा किए गए अच्छे कार्यों की सराहना भी करते हैं। और जब बैठकों में इसकी चर्चा होती है तो दूसरे सरपंच भी ऐसे कार्य करने के लिए प्रेरित होते हैं। ”
सरकारी योजनाओं की भूमिका
मुख्यमंत्री बालिका संबल योजना, ज्योति योजना, मुख्यमंत्री शुभ लक्ष्मी योजना, पालनहार योजना, सुकन्या समृद्धि खाता , जननी सुरक्षा योजना, जननी एक्सप्रेस , भामाशाह योजना ।
मां और बच्चियों की स्थिति को बेहतर बनाने एवं उनका समर्थन करने के लिए राजस्थान में 51 योजनाएं चलाई जा रही हैं।
बधवार ने बताया कि “योजनाओं और पहल के समर्थन के बिना, यह हमारी परियोजना को लागू करने के लिए मुश्किल होता है। इन योजनाओं से कार्यक्रम को सफल बनाने में काफी मदद मिलती है।”
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बधवार सीएफएआर द्वारा शुरु की गई पहल के संबंध में भी उल्लेख करते हैं। बाद में इसे पूरे राजस्थान में सरकार द्वारा लागू किया गया। राजस्थान के सभी अस्पतालों में बच्ची के जन्म पर अस्पताल द्वारा माँ को बधाई प्रमाण पत्र दिया जाता है। बधवार ने कहा कि " मुख्यमंत्री के हस्ताक्षर और फोटो के साथ एक प्रमाण पत्र प्राप्त करना माता-पिता के लिए एक बड़ा मनोबल बढ़ाने वाली है। "
बच्ची के जन्म पर प्रत्येक अस्पताल द्वारा मां एक बधाई प्रमाण पत्र दिया जाता है। प्रमाण पत्र पर मुख्यमंत्री , स्थानीय पार्षद की और स्वास्थ्य मंत्री की तस्वीरें भी
देवी सहमती जताती हैं। देवी ने ऐसी कुछ योजनाओं का इस्तेमाल किया है। देवी को मुख्यमंत्री शुभ लक्ष्मी योजना के तहत 4,200 रुपये, खुशी के प्रसव के समय 700 रुपये, और जननी सुरक्षा योजना के तहत स्थानीय आशा कार्यकर्ता से सैन्य सहायता एवं और भामाशाह योजना के तहत उसके नाम में एक बैंक खाता मिली है। देवी अब अपनी बच्ची को बेहतर शिक्षा देता चाहती है।
(साहा नई दिल्ली में स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। )
फोटोग्राफी: देवानिक साहा
यह लेख मूलत: अंग्रेज़ी में 3 अक्टूबर 2015 को indiaspend.com पर प्रकाशित हुआ है।
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